(क) वसंत आया (ख) तोड़ो
Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
वसन्त आगमन की सूचना कवि को कैसे मिली?
उत्तर :
वसन्त आने पर वृक्ष पर चिड़िया कुहकती है, पेड़ों के पीले पत्ते गिरते हैं, हवा में हल्की तपन आ जाती है। परन्तु कवि को वसन्त आगमन की सूचना प्रकृति में हुए इन परिवर्तनों से नहीं अपितु कलेंडर से प्राप्त हुई। वसन्त पंचमी अमुक तिथि तथा दिन को होगी यह कलेंडर से पता चला। उसको पता था कि दफ्तर में वसन्त पंचमी की छुट्टी होगी।
प्रश्न 2.
‘कोई छः बजे सुबह……फिरकी-सी आई, चली गई पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसन्त ऋतु में प्रातःकाल की हवा अत्यन्त ताजी, सुखद, शीतल एवं सुगन्धित होती है। जैसे-जैसे सूरज का ताप बढ़ता है, हवा भी तप्त होती जाती है और उसकी शीतलता भी समाप्त हो जाती है। हवा तेज चलने लगती है। जैसे फिरकी घूमती है वैसे ही हवा तेजी से आती-जाती है।
प्रश्न 3.
अलंकार बताइए-
(क) बड़े-बड़े पियराए पत्ते।
(ख) कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
(ग) खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी. आई, चली गई
(घ) कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
उत्तर :
(क) पुनरुक्तिप्रकाश और छेकानुप्रास।
(ख) उत्प्रेक्षा और मानवीकरण।
(ग) उपमा अलंकार और हवा का मानवीकरण।
(घ) पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास।
प्रश्न 4.
किन पंक्तियों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य की अनुभूति से वंचित है ?
उत्तर :
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे।
इन पंक्तियों से यह पता चलता है आज मनुष्य प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य से वंचित है। वह उस सौन्दर्य को प्रकृति निरीक्षण से नहीं अपितु किताबों में पढ़कर जानने की कोशिश कर रहा है। यही उसके जीवन की विडम्बना है।
प्रश्न 5.
‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के सन्दर्भ में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
प्रकृति मानव की चिर सहचरी है। अनादि काल से वह प्रकृति के साथ रहा है। उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हुआ है और प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को उसने अपनी आँखों से देखा है परन्तु वर्तमान युग की विडम्बना यह है कि वह प्रकृति से कटता जा रहा है। कमरों में बन्द रहकर हम टीवी देखना अधिक पसन्द करते हैं, बाहर निकलकर प्रकृति की छटा का अवलोकन करने में अब वर्तमान पीढ़ी की रुचि नहीं रही है। कवि को यह सब अच्छा नहीं लगता। इसी विडम्बना को उसने इस कविता में व्यक्त किया है।
प्रश्न 6.
‘वसन्त आया’ कविता में कवि की चिन्ता क्या है ?
उत्तर :
‘वसन्त आया’ कविता में कवि की प्रमुख चिन्ता यह है कि आज के मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता टूट गया है। वसन्त ऋतु का आना अब प्रकृति निरीक्षण से नहीं कलेंडर से जाना जाता है। पत्ते झड़ते हैं, फूल खिलते हैं, आम के वृक्ष बौर से लद जाते हैं, कोयल की कूक सुनाई पड़ती है। पर हमें वसन्तागमन का बोध इनसे नहीं अपितु कलेंडर से और वसन्त-पंचमी की छुट्टी से होता है।
कवि ने आधुनिक मानव की जीवन-शैली पर करारा व्यंग्य किया है। कविताएँ पढ़ने से हमें पता चलता है कि वसन्त में ढाक के जंगल लाल फूलों से भर जाते हैं और ऐसा लगता है कि जंगल में आग लग गई है। प्रकृति से दूर होते जाना मानव के लिए अच्छा नहीं है कवि यही बात इस कविता के माध्यम से कहना चाहता है।
तोड़ो
प्रश्न 1.
‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर :
पत्थर और चट्टान विघ्न-बाधाओं के प्रतीक हैं। जैसे खेत को फसल के लिए तैयार करने हेतु पत्थर, कंकड़ आदि निकाल दिए जाते हैं, इसी प्रकार साहित्य सृजन के लिए मार्ग में आनेवाली विघ्न-बाधाओं को नष्ट करने का आह्वान कवि कर रहा है। मन में जब तक ऊब, खीज और दुश्चिन्ता रहेगी तब तक उसमें कविता अंकुरित नहीं हो सकती।
प्रश्न 2.
भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए –
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को ?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो।
उत्तर :
कवि का कथन है कि जब मिट्टी भुरभुरी और फसल के लिए तैयार हो जाती है तो उसमें बीज को पोसने वाले रस का संचार हो जाता है। ऐसी मिट्टी में बोया गया बीज़ मिट्टी के उस रस के सम्पर्क में आकर अंकुरित होता है। इसी प्रकार जब हम अपने मन को उसमें व्याप्त ऊब, खीज से मुक्त कर देंगे तो वह रचना (सृजन) करने हेतु तत्पर हो जाएगा।
प्रश्न 3.
कविता का आरम्भ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अन्त ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से । विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर :
कविता के प्रारम्भ में आई पंक्ति ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ उन पत्थरों, चट्टानों को नष्ट करने की प्रेरणा देती है जो खेत को ऊसर, बंजर बनाए हुए हैं। ठीक इसी प्रकार मन में निहित खीज, ऊब, निराशा को दूर करके मन को उनसे मुक्त करने को कहा गया है। जमीन से कंकड़, पत्थर हटाकर फिर उसे गोड़ना पड़ता है तब वह फसल के लिए तैयार होती है। नव-निर्माण के लिए ‘गोड़ो, गोड़ो, गोड़ो’ कहकर परिश्रम की प्रेरणा कवि ने प्रदान की है। तुकदार शब्दों की पुनरावृत्ति से कविता में विशेष प्रभाव उत्पन्न हो गया है।
प्रश्न 4.
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर :
धरती की उर्वराशक्ति तब सामने आती है जब पत्थर, कंकड़ आदि हटा कर ढेलों को तोड़कर खेत को तैयार कर लिया जाता है। इन सब के टूटने पर धरती उपजाऊ बन जाती है। ऊसर-बंजर और परती खेत जब परिश्रम के बल पर फसल के लिए तैयार हो जाते हैं तभी उनमें डाला गया बीज अंकुरित होता है। जब तक धरती इन बाहरी आवरणों (विघ्न बाधाओं—पत्थरों कंकड़ों) से मुक्त नहीं होगी तब तक उसकी उर्वराशक्ति हमारे सामने नहीं आएगी। इसी प्रकार झूठे बन्धनों (रूढ़ियों) को तोड़ने से ही मन की सृजन-शक्ति सामने आती है। यही कवि का अभिप्रेत अर्थ है।
प्रश्न 5.
‘आधे-आधे गाने के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
इस कथन के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि जब उसके मन में ऊब और खीज होती है तब मन से आधे -अधूरे गीत निकलते हैं अर्थात् उसकी रचनाधर्मिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मन की सहज स्थिति में जो कविता निकलती है वह ऊब, खीज भरी मन:स्थिति में नहीं निकल पाती। भाव यह है कि मन की ऊब और खीज से मुक्ति पाकर ही सार्थक कविता की जा सकती है।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
वसन्त ऋतु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए।
उत्तर :
वसन्त ऋतु पर कवि सेनापति और सुमित्रानन्दन पंत ने अच्छी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।
सेनापति की रचना निम्नलिखित है –
वरन वरन तरु फूले उपवन वन
सोई चतुरंग भंग लहियत हैं।
बंदी जिमि बोलत विरद वीर कोकिल हैं
गुंजत मधुप गान गुन गहियत हैं।
आवै आसपास पुहुपन की सुवास सोई
सौंधे के सुगन्ध मांझ सने रहियत हैं।
सोभा को समाज सेनापति सुख साज आज,
आवत वसन्त ऋतुराज कहियत हैं।
सुमित्रानन्दन पंत की कविता है –
चंचल पग दीपशिखा के घर
गृह मग वन में आया वसन्त।
सुलगा फाल्गुन का सूनापन
सौन्दर्य शिखाओं में अनन्त।
पल्लव-पल्लव में नवल रुधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला
आया नीली-पीली लौ से
पुष्पों के चित्रित दीप जला।।
इन दोनों ही कविताओं में वसन्त आने पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए प्राकृतिक सुषमा का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2.
भारत में ऋतओं का चक बताइए और उनके लक्षण लिखिा।
उत्तर :
भारत में छः ऋतुएँ होती हैं जिनका विवरण इस प्रकार है –
- वसन्त-शीत ऋतु के बाद आती है। वृक्षों पर नये पत्ते, फूल, फल आते हैं। दिन गरम होने लगते हैं। हवा चलने लगती है।
- ग्रीष्म-सूर्य का ताप बढ़ने से गर्मी बढ़ जाती है।
- वर्षा-आकाश में बादल छा जाते हैं और पानी बरसने लगता है।
- शरद-वर्षा समाप्त होने पर गर्मी भी कम हो जाती है। हल्की ठण्डक हो जाती है। वायुमण्डल धूल से मुक्त हो जाता है।
- हेमन्त सर्दी बढ़ जाती है। तापमान गिरने से पहाड़ों पर बर्फ गिरने लगती है।
- शिशिर-हवा ठण्डी रहती है। धूप तेज हो जाती है परन्तु सूर्य का ताप अनुभव नहीं होता।
सामान्यतः प्रत्येक ऋतु 2-2 माह की होती है। वसन्त को ऋतुराज कहा जाता है।
प्रश्न 3.
मिट्टी और बीज से सम्बन्धित और भी कविताएँ हैं जैसे-सुमित्रानन्दन पंत की ‘बीज’। अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।
उत्तर :
बीज (सुमित्रानन्दन पंत), मिट्टी की महिमा (शिवमंगल सिंह ‘सुमन’), मृत्तिका (नरेश मेहता), आः धरती कितना देती है (सुमित्रानन्दन पंत) आदि ऐसी कुछ कविताएँ हैं। इनका संकलन कर उपयोग करें।
Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘वसन्त आया’ कविता में किस ऋतु का वर्णन है?
उत्तर :
‘वसन्त आया’ कविता में वसन्त ऋतु का वर्णन है।
प्रश्न 2.
कवि के अनुसार आज लोगों को वसन्त के आगमन का पता कैसे चलता है?
उत्तर :
कवि के अनुसार आज लोगों को वसन्त के आगमन का पता कैलेण्डर देखकर चलता है।
प्रश्न 3.
वसन्त के महीने में आम के वृक्षों पर क्या आता है?
उत्तर :
वसन्त के महीने में आम के वृक्षों पर बौर आता है।
प्रश्न 4.
‘ये चरती परती तोड़ो’ में ‘चरती-परती’ शब्द का आशय क्या है?
उत्तर :
‘ये चरती परती तोड़ो’ में ‘चरती-परती’ शब्दं का आशय खाली पड़ी भूमि है।
प्रश्न 5.
‘तोड़ो’ कविता में खेत किसका प्रतीक है?
उत्तर :
‘तोड़ो’ कविता में खेत व्यक्ति के मन का प्रतीक है।
प्रश्न 6.
‘तोड़ो’ कविता किस प्रकार की है?
उत्तर :
तोड़ो उद्बोधनपरक कविता है।
प्रश्न 7.
कवि इस कविता के माध्यम से क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर :
इस कविता में कवि वसंत ऋतु के आगमन और मनुष्य का प्रकृति के प्रति कमजोर रिश्ते का संदेश देता है।
प्रश्न 8.
“यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा.
जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।।” पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर :
कवि कहता है कि मुझे नहीं पता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब वसंत के आने का पता हमको कैलेंडर देखकर और दफ्तर की छुट्टी से चलेगा।
प्रश्न 9.
‘वसंत आया’ कविता की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
इस कविता में कवि ने वसंत आगमन का सजीव वर्णन किया है। इसमें अलंकार का सुन्दर प्रयोग है। यह कविता छन्दमुक्त है।
प्रश्न 10.
कविता ‘तोड़ो’ से कवि हमें क्या संदेश देते हैं?
उत्तर :
इस कविता में कवि मन में व्याप्त रूढ़ियों को समाप्त करने का संदेश देता है। कवि सृजन हेतु भूमि को तैयार करने के लिए चट्टान को तोड़ने के लिए कहता है।
प्रश्न 11.
‘तोड़ो’ कविता में कवि मनुष्यों से क्या कहता है?
उत्तर :
‘तोड़ो’ कविता के माध्यम से कवि लोगों को एक अच्छा इंसान बनाने की बात कहता है और लोगों को अपने
मन के द्वेष को तोड़ने की बात कहता है।
लगत्तरात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘जैसे बहन ‘दा’ कहती है’ से कवि का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर :
जैसे कवि की बहन मधुर स्वर में उसे ‘दा’ (दादा) कहती है वसन्त आने पर ठीक वैसे ही मीठे स्वर में चिड़िया (कोयल) अशोक वृक्ष पर कूकने लगी। कवि ने यहाँ कोयल की कूक की तुलना अपनी बहने के मधुर सम्बोधन की है।
प्रश्न 2.
‘ऊँचे तरुवर से गिरे बड़े-बड़े पियराए पत्ते’ से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
ऊँचे तरुवर से गिरे बडे-बडे पियराए पत्ते’ का अभिप्राय है कि पतझड के कारण पीले. सखे तथा नीरस पत्ते वक्षों से जमीन पर गिर रहे हैं। पतझड़ वसन्त के आगमन की सूचना है। शीत ऋतु के कारण पेड़ों के पत्ते पीले पड़ जाते और सामन्त में तेज हवा चलने से वृक्ष से अलग होकर भूमि पर गिर जाते हैं।
प्रश्न 3.
मदनमहीने का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर :
मदनमहीने का तात्पर्य है….ऐसा महीना जो मन में काम भाव उत्पन्न करता है। कवि यहाँ वसन्त ऋतु और पाल्गुन (होली) महीने का उल्लेख कर रहा है। वसन्त ऋतु को कामदेव की ऋतु या मदन महीना कहा जाता है।
प्रश्न 4.
‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये ऊसर बंजर तोड़ो’ से कवि का क्या अभिप्राय हैं ?
उत्तर :
जिस प्रकार खेत को बीज बोने के लिए उपयुक्त बनाने हेतु उसकी कठोरता को तोड़ना पड़ता है, उसे गोड़कर-जोतकर टी को भुरभुरा करना होता है तभी उसमें बीज अंकुरित होता है, उसी प्रकार मनरूपी खेत में कवितारूपी बीज का अंकुरण भी होता है जब मन की कठोरता, ऊब और खीज को नष्ट कर दिया जाय। यही इस कथन का अभिप्राय है।
प्रश्न 5.
‘मधु मस्त पिक भौंर आदि अपना अपना कृतित्व अभ्यास करके दिखायेंगे’ पंक्ति का भाव-सौन्दर्य एवं न्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वसन्त ऋतु आ गई है, चारों ओर फूल खिल गए हैं, आम के वृक्ष बौर से लद गए हैं। उपवनों में खिले फूलों का रूप रम-गंध लेने के लिए भ्रमर गुंजार कर रहे हैं और पुष्प रस पीकर मदमस्त हो गए हैं। कोयल कूकने लगी है। इस गल की कूक से वसन्तागमन की सूचना मिल रही है। कवि ने बौराये आम, ककती कोकिल, गुनगुनाते भौरे इत्यादि गत से सम्बन्धित लक्षणों का उपयोग वसन्त-वर्णन में किया है।
प्रश्न 6.
‘मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को’ का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जब भुरभुरी मिट्टी में बीज बोया जाता है तो वह अपने भीतर व्याप्त रस (सजन शक्ति) से उस बीज को पोसकर (पाल-पोसकर) अंकुरित कर देती है। इसी प्रकार मन जब द्रवित होता है, संवेदनशील होता है तब वह कविता कोही है। यही इस पंक्ति में कवि व्यक्त करना चाहता है।
प्रश्न 7.
जैसे बहन ‘दा’ कहती है –
ऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक) पर कोई चिड़िया कुऊकी।
पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि वसंत के आगमन के बारे में बता रहा है और कहता है कि सुबह सैर करते समय बंगले मे लगे अशोक के पेड़ पर बैठी चिड़िया की आवाज सुनाई देती है। वह आवाज उतनी ही मधुर है जितनी कि जब कोई बहन ॐ भाई को ‘दा’ कहकर पुकारती है।
प्रश्न 8.
‘चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे बड़े-बड़े पियराए पत्ते।
पंक्तियों का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर :
उपरोक्त पंक्तियों में कवि को वसंत आगमन का संदेश मिलता है। कवि कहता है कि एक सुबह कवि सड़क बजरी के ऊपर चल रहा था तो उसके पैरों के नीचे पेड़ों के बड़े-बड़े पत्ते और जाते हैं, जिनसे चुरमुराने की आवाज है।
प्रश्न 9.
‘आधे-आधे गाने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि उसने जो गीत लिखा है, वह अभी भी अधूरा द: अह गीत तब पूरा होगा जब कोई व्यक्ति उत्साह और उल्लास से अपने दिल में इस को भरेगा और अपने भीतर के ‘ ऊब को बाहर निकाल देगा।
प्रश्न 10.
और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी
दफ्तर में छुट्टी थी, यह था प्रमाण।
पंक्तियों का भावार्थ लिखो।
उत्तर :
प्रस्तत पंक्तियों से कवि को वसंत आगमन का प्रमाण मिल जाता है। कवि कहता है कि वसंत के आगमन का पता उसे कैलेंडर से चल गया था और जब दफ्तर में उस दिन छुट्टी हुई तो यह प्रमाणित हो गया कि वसंत आ गया है।
प्रश्न 11.
रंग-रस-गंध से लदे-फंदे दूर के विदेश के
वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे।
पंक्तियों का आशय स्पष्ट करो।
उत्तर :
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि वसंत के आने पर न केवल पृथ्वी के बाग-बगीचे बल्कि इंद्र के नंदनवन में भी सुगन्धित सुंदर-सुंदर फूल खिले जाते हैं। वसंत में फलों का रस पीकर भंवरा और कोयल अपना प्रदर्शन और सुंदर तरीके से करते हैं।
प्रश्न 12.
कवि को वसंत के आने की सूचना कैसे मिल जाती है? .
उत्तर :
कवि एक प्रकृति प्रेमी है। कवि को मौसम में आये परिवर्तन, पेड़ों से गिरते पत्ते, गुनगुनी ताजी हवा और चिड़ियों के चहचहाने आदि को देखकर वसंत के आने की सूचना मिल जाती है। कवि इस बात की पुष्टि करने के लिए अपने घर जाकर कैलेंडर को देखते हैं और वसंत के आने का निश्चय कर लेते हैं।
प्रश्न 13.
‘वसंत आया’ कविता में कवि चिंतित क्यों है?
उत्तर :
कवि के अनुसार आज का मानवीय व्यवहार प्रकृति के लिए अच्छा नहीं है। लोग अपने स्वार्थ और तरक्की के लिए प्रकृति का बहुत नुकसान कर रहे हैं। महानगर में प्रकृति का दर्शन नहीं है। चारों तरफ इमारतें हैं। मनुष्य को ऋतुओं की सुंदरता और उसमें होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानकारी नहीं है। कवि के लिए यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है।
प्रश्न 14.
‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
कवि के अनुसार ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ हमारे जीवन के बंधन और बाधाओं के प्रतीक हैं। कवि चाहता है कि लोग इनको अपने जीवन से निकाल फेंकें, क्योंकि बंधन और बाधाएँ मनुष्य की तरक्की के अडंगा हैं। कवि कहता है कि अगर आपको विकास करना है तो इन्हें तोड़ना होगा, नहीं तो आप अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पायेंगे।
प्रश्न 15.
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे। पंक्तियों का भावार्थ लिखो।
उत्तर :
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि उसने अपने जीवन काल में बहुत-सी कविताएँ पढ़ी थीं और कविताओं में यह भी पढ़ा था कि वसंत आगमम से प्रकृति में क्या-क्या बदलाव होता है। कवि जानता है कि वसंत के मौसम में पलाश के पेड़ पर लाल-लाल फूल आएँगे और आम में बौर लगेगी।
निबन्धात्मक प्रश्न –
प्रश्न 1.
‘वसन्त आया’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
वसन्त आया-‘वसन्त आया’ कविता का केन्द्रीय भाव यह बताता है कि आज मनुष्य का रिश्ता प्रकृति से टूट गया है। वसन्त ऋतु के आने पर पहले लोगों में आशा, उत्साह, माधुर्य का समावेश स्वतः हो जाता था पर अब उसे कलेण्डर से जाना जाता है। वसंत आने पर पत्ते झड़ते हैं, कोंपलें फूटती हैं, हवा बहती है, ढाक के जंगलों में लाल-लाल फूल अंगारे जैसे दहकते हैं, कोयल की कूक और भ्रमरों की गुंजार भी सुनाई देती है पर हमारी दृष्टि ही उन पर नहीं जाती। हम प्रकृति से तटस्थ एवं निरपेक्ष बने रहते हैं। वस्तुत: इस कविता के माध्यम से कवि ने आज के मनुष्य की आधुनिक जीवन-शैली पर व्यंग्य किया है।
कवि ने देशज, तद्भव शब्दों का भरपूर प्रयोग कविता में किया है। अशोक, मदन महीना, पंचमी, नन्दन वन जैसे . परम्परा में रचे-बसे शब्दों वाली जीवनानुभवों की भाषा ने इस कविता में बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से वसन्त के चित्रण में सफलता पाई है। कवि यह बता पाने में सफल हुआ है कि हमारी तथाकथित आधुनिकता ने हमें उन सुखों एवं स्फुरणों से वंचित कर दिया है जो प्रकृति के सान्निध्य में हमें सहज ही उपलब्ध होते थे। मुक्त छन्द में लिखी इस कविता का कथ्य अत्यन्त सशक्त है।
प्रश्न 2.
‘तोड़ो’ कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
तोड़ो – यह एक उद्बोधनपरक कविता है। कवि हमें प्रेरित करता है कि कुछ नया सृजन करने के लिए हमें चट्टानों, ऊसरों एवं बंजरों को तोड़ना पड़ेगा। परती एवं ऊसर जमीन को अपने परिश्रम से खेती करने के लायक बनाना होगा व सृजन की पृष्ठभूमि तैयार करनी होगी। यहाँ कवि सृजन की प्रेरणा देता है, विध्वंस की नहीं। कविता का ऊपरी ढाँचा सरल प्रतीत होता है परन्तु प्रकृति से मन की तुलना करते हुए कवि ने इस कविता को अर्थ के नए आयामों से जोड़ दिया है।
बंजर केवल प्रकृति में ही नहीं है, हमारे मन में भी है। मन में व्याप्त ऊब, खीझ भी तो उसी बंजर की तरह है। अतः इन्हें भी तोड़ने की तथा इनसे उबरने की जरूरत है तभी मन उर्वर बनेगा और सृजनशील हो सकेगा। मन के भीतर की ऊब सृजन में बाधक है अतः उससे उबरना आवश्यक है तभी हम रचनाशीलता की ओर अग्रसर हो सकेंगे। कवि मन के बारे में प्रश्न उठाकर आगे बढ़ जाता है, इससे कविता का अर्थ विस्तार हुआ है।
प्रश्न 3.
वसंत आया’ शीर्षक कविता के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि कवि ने मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली पर व्यंग्य किया है?
उत्तर :
इन कविता में यह व्यंग्य है कि अब हमें ऋत-परिवर्तन का अनभव प्रकति-निरीक्षण से नहीं होता क्योंकि हमारी जीवन-शैली में बदलाव आ गया है और हम वसंत के आगमन की सूचना कलेंडर से प्राप्त करते हैं-कोयल की कूक, भ्रमरों की गुंजार, फूले हुए पलाश या बौर से लदे. आम के वृक्षों को देखकर नहीं। हमें इतनी फुर्सत ही नहीं कि हम प्रकृति का निरीक्षण करें। कवि यह कहना चाहता है कि हम प्रकृति से कटते जा रहे हैं। यह हमारे जीवन की विडम्बना ही है कि हम प्रकृति से दूर हट गए हैं। हमने कविताओं में ही इन प्राकृतिक परिवर्तनों के बारे में पढ़ा है।
प्रश्न 4.
‘ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े बड़े पियराए पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।’
उपर्युक्त पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य (कलापक्ष) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘बड़े-बड़े पियराये पत्ते’ में पुनरुक्तिप्रकाश तथा छेकानुप्रास अलंकार है। कवि ने पतझड़ का वर्णन किया है। कोई छह नहाई हो में उत्प्रेक्षा अलंकार है। फिरकी-सी में उपमा अलंकार है। हवा का मानवीकरण किया गया है। वसन्त आगमन का वर्णन उसके लक्षणों के साथ ही सजीवतापूर्वक किया गया है। प्रकृति-चित्रण अत्यन्त सजीव है। मुक्त छन्द की रचना है।
प्रश्न 5.
‘सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने।’
उपर्युक्त पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य (कलापक्षीय) पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कवि ने ‘मिट्टी’ और ‘मन’ की विशेषता…’उर्वरापन और रचनात्मकता’ का वर्णन किया है। ‘मन के मैदानों रूपक अलंकार है। ‘आधे आधे’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। ‘दूब है और ‘ऊब है’ में तुकान्त होने का सौन्दर्य है। जब मिट्टी में उपजाऊपन आ जाता है तो उसमें कोमल दूब घास उत्पन्न होती है। इसी प्रकार कवि का मन जब खीज, ऊब और दुश्चिन्ता से मुक्त होता है, तभी उसमें सुन्दर कविता जन्म लेती है।
साहित्यिक परिचय का प्रश्न –
प्रश्न :
रघुवीर सहाय का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाव – पक्ष रघुवीर सहाय हिन्दी की ‘नयी कविता’ से जुड़े हैं। कविता के अतिरिक्त आपने विचारात्मक और रचनात्मक गद्य की रचना भी की है। उनके काव्य में आत्मपरक अनुभव के स्थान पर जनजीवन के उसका कला-पक्ष-उनकी भाट का सर्जनात्मक उपयोग सन्दर्थों में निरीक्षण, अनुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति अधिक हुई है। व्यापक सन्दर्भो में निरीक्षण, अनुभव और बोध उनकी कविता में व्यक्त हुये हैं। यह उनकी पत्रकार-दृष्टि का सर्जनात्मक उपयोग है।
कला – पक्ष-उनकी भाषा सटीक, दो टूक और विवरण प्रधान है। वह उनकी काव्य-दृष्टि के अनुरूप है और उसकी सफल व्यंजना में सहायक है। उनकी कविता में भयाक्रांत अनुभव की आवेग रहित अभिव्यक्ति हुई है। जीवन के अनुभवों को उन्होंने कविता में कथा या वृत्तान्त के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने छन्द में तथा मुक्त छन्द में काव्य रचना की है।
प्रमुख कृतियाँ – 1. सीढ़ियों पर धूप में, 2. आत्महत्या के विरुद्ध, 3. हँसो हँसो जल्दी हँसो, 4. लोग भूल गये हैं (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त)। रघुवीर सहाय रचनावली (छ: खण्ड) में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं।
(क) वसंत आया (ख) तोड़ो Summary in Hindi
जम्म – सन् 1929, लखनऊ (उ. प्र.) में, शिक्षा–एम. ए. (अंग्रेजी साहित्य) सन् 1951। पेशा – पत्रकारिता। ‘प्रतीक’, ‘कल्पना’ और ‘दिनमान’ में सम्पादक रहे। ‘आकाशवाणी’ के समाचार विभाग में भी रहे। वह ‘नयी कविता’ के कवि हैं। निधन सन 1990 में।
साहित्यिक परिचय – भाव-पक्ष रघुवीर सहाय हिन्दी की ‘नयी कविता’ से जुड़े हैं। उनकी कुछ कविताएँ अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘दूसरा सप्तक’ में संकलित हैं। कविता के अतिरिक्त आपने विचारात्मक और रचनात्मक गद्य की रचना भी की है। उनके काव्य में आत्मपरक अनुभव के स्थान पर जनजीवन के अनुभवों की रचनात्मक अभिव्यक्ति अधिक हुई है। व्यापक सन्दर्भो में निरीक्षण, अनुभव और बोध उनकी कविता में व्यक्त हुये हैं। अखबारों में छपी खबरों के पीछे की मानवीय पीड़ा को कविता में व्यक्त करना वह अपना दायित्व मानते हैं। यह उनकी पत्रकार-दृष्टि का सर्जनात्मक उपयोग है।
कला – पक्ष – उनकी भाषा सटीक, दो टूक और विवरण प्रधान है। वह उनकी काव्य-दृष्टि के अनुरूप है और उसकी सफल व्यंजना में सहायक है। उनकी कविता में भयाक्रांत अनुभव की आवेग रहित अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचने का प्रयास किया है। जीवन के अनुभवों को उन्होंने कविता में कथा या वृत्तान्त के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। उन्होंने छन्द में तथा मुक्त छन्द में काव्य रचना की है।
कृतियाँ – 1. सीढ़ियों पर धूप में, 2. आत्महत्या के विरुद्ध, 3. हँसो-हँसो जल्दी हँसो, 4. लोग भूल गये हैं (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त)। रघुवीर सहाय रचनावली (छः खण्ड) में उनकी सभी रचनाएँ संकलित हैं।
सप्रसंग व्याख्याएँ –
वसन्त आया
1. जैसे बहन ‘दा’ कहती है
ऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोई चिड़िया कुऊकी
चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले
ऊँचे तरुवर से गिरे
बड़े-बड़े पियराए पत्ते
कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो
खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।
ऐसे, फुटपाथ पर चलते चलते चलते।
कल मैंने जाना कि वसंत आया।
शब्दार्थ :
- दा = दादा (बड़ा भाई)।
- तरु = वृक्ष।
- कुऊकी = कूकने लगी (मधुर स्वर में चहकना)।
- बजरी = मोटी रेत।
- चुरमुराए = चरमराने लगी।
- पाँव तले = पैरों के नीचे।
- तरुवर = वृक्ष।
- पियराए पत्ते = पतझड़ के पीले पत्ते।
- नहाई हो = स्नान करके आई हो।
- फिरकी = चक्री।
- वसन्त = वसन्त ऋतु।
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी के नए कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘वसन्त आया’ से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित है।
प्रसंग : वसन्त ऋतु आने पर कोयल कूकने लगती है, पतझड़ के कारण पीले और सूखे पत्ते पेड़ों से झड़ने लगते हैं और हवा में भी कुछ-कुछ गर्मी महसूस होने लगती है। कवि ने इन पंक्तियों में वसन्त के आगमन पर होने वाले इन्हीं परिवर्तनों का वर्णन किया है। .
व्याख्या : कवि कहता है कि जैसे मेरी बहन मधुर स्वर में मुझे ‘दा’ (दादा) कहकर बुलाती है, ठीक इसी प्रकार किसी बंगले के अशोक वृक्ष पर कोई चिड़िया (संभवतः कोयल) मधुर स्वर में कूकने लगी। यही नहीं सड़क किनारे बने लाल बजरी के रास्ते पर वृक्षों के पीले, सूखे पत्ते पतझड़ के कारण झड़कर नीचे गिरे हुए थे जो मेरे पैरों तले कुचले जाकर चरमराने लगे थे।
सूखे पत्तों की यह आवाज जैसे यह घोषित कर रही थी कि वसन्त आ गया है। सुबह की हवा में अब ठंडक न होकर हल्की गरमाहट थी। वह उसी प्रकार की लग रही थी जैसे गरम पानी से नहाकर आई हो। बस थोड़ी देर के लिए हवा आई और फिरकी के समान घूमकर चली गई। कल फुटपाथ पर चलते-चलते मैंने जान लिया कि वसन्त ऋतु आ गई है तभी तो ये सारे परिवर्तन हुए हैं।
विशेष :
- कवि ने इस कविता में प्रतिपादित किया है कि अब लोग प्रकृति से जुड़ाव अनुभव नहीं करते। वसन्त के आगमन की सूचना उन्हें कलेण्डर से मिलती है। ऑफिस में वसन्त पंचमी को छुट्टी होती है।
- जैसे बहन ‘दा’ कहती है, खिली हुई हवा फिरकी-सी आई में उपमा अलंकार है। चिड़िया की बोली बहन की बोली की तरह मीठी लग रही है।
- कोई छः बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
- भाषा में देशज (आंचलिक) शब्दों का प्रयोग है; यथा – कुऊकी, बजरी, चुरमुराए, पियराए, नहाई आदि। फुटपाथ जैसे अंग्रेजी शब्द भी प्रयुक्त हैं। तद्भव शब्दों वाली भाषा प्रयुक्त है।
- इन पंक्तियों में मुक्त छन्द का प्रयोग है।
2. और यह कैलेंडर से मालूम था
अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी
दफ्तर में छुट्टी थी यह था प्रमाण
और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था
कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल
आम बौर आवेंगे
रंग-रस-गंध से लदे-फंदे दूर के विदेश के
वे नन्दन-वन होवेंगे यशस्वी
मधुमस्त पिक भौंर आदि अपना-अपना कृतित्व
अभ्यास करके दिखावेंगे।
यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा
जैसे मैंने जाना, कि वसन्त आया।
शब्दार्थ :
- कैलेंडर = पंचांग, दिनांक जानने का साधन।
- बार = दिन।
- मदनमहीने की पंचमी = वसन्त पंचमी (वसन्त को मदन महीना कहा गया है, कामदेव का महीना)।
- दहर-दहर = धधक-धधक कर।
- दहकेंगे = जलेंगे।
- ढाक = पलाश (वसन्त ऋतु में पलाश के लाल-लाल फूल जंगल में खिल उठते हैं जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो जंगल में आग लग गई है)।
- आम बौर = आम्रमंजरी (आम पर बौर आ जाना)।
- लदे-फंदे = घिरे हुए, (भार से आंक्रांत)।
- नन्दन-वन = इंद्र का उपवन (आनंद देने वाला उपवन)।
- मधुमस्त = पुष्पों का मधु (रस) पीकर मस्त बने हुए।
- पिक = कोयल।
- भौंर = भ्रमर।
- कृतित्व = कार्य।
- नगण्य = तुच्छ, जो गिनती में न हो।
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता ‘वसन्त आया’ से ली गई हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित है।
प्रसंग : वर्तमान युग के लोग प्रकृति से इतना कट गए हैं कि अब ऋतु परिवर्तन का अनुभव उन्हें प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों से नहीं अपितु कलेंडर को देखकर होता है।
व्याख्या : कवि कहता है कि भले ही वसन्त ऋतु आने पर पेड़ों से झड़ते हुए पीले पत्ते पैरों के नीचे चरमराने लगे हों, हवा में हल्की-सी तपन आ गई हो, वृक्षों पर कोयल कूकने लगी हो पर मुझे तो वसन्त के आगमन की सूचना कलेंडर से प्राप्त होती है। कलेंडर से हमें यह पता था कि अमुक तिथि को वसन्त पंचमी होगी और उस दिन दफ्तर की छुट्टी रहेगी। केलिए मुझे कलेंडर से यह पता था कि वसन्त कब आएगा। आज मनुष्य का रिश्ता प्रकृति से टूट गया है। अब वसन्तागमन में मस्ती, मादकता और स्फुरण नहीं जगाता क्योंकि वह प्रकृति के सान्निध्य में रहता ही नहीं है।
मैंने कभी वसन्तागमन पर जंगल में खिले लाल-लाल पलाश के फूलों को देखा ही नहीं था जो यह समझता कि वसन्त आगमन पर जंगल इन लाल फूलों के कारण दहकता (धधकती आग वाला) सा लगता है। बस कविताएँ पढ़ने से यह था कि ऐसा होता है। कविता में ही मैंने पढ़ा था कि वसन्त के आने पर आम में बौर आ जाता है, कोयल की कूक सुनाई हती है और खिले हुए फूलों का रस पीने के लिए भ्रमर उनके चारों ओर मंडराने लगते हैं। भ्रमरों से आक्रान्त वे पुष्प भी ना रूप-रस-गंध उन्हें समर्पित कर देते हैं। उपवन फूलों से, भ्रमरों से भर जाएँगे और वे नन्दन वन की तरह मनमोहक ला लगेंगे। भ्रमर, कोयल भी अपनी गुंजार एवं कृक से मन को प्रसन्न करेंगे, पर यह नहीं जाना था कि वसन्त के आगमन ही गुचना मुझे इन उपादानों से, प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों से नहीं अपितु कलेंडर से गिलेगी।
विशेष :
- कवि ने यह प्रतिपादित किया है कि आज का मनुष्य प्रकृति से कटता जा रहा है। वसन्त के आने की नाना अब उसे प्रकृति के परिवर्तन से नहीं अपितु कलेंडर से मिलती है।
- कोयल की कूक, गुंजार करते भ्रमर, ढाक के फूलों से भरे जंगल, बौर से लदे आम, पतझड़ के झरे हुए पीले पत्ते, कुछ-कुछ गरम हवा, सब कुछ वसन्तागमन के मक है।
- प्रतीकात्मक शैली है। नन्दन वन आनन्द का प्रतीक है।
- भाषा में देशज तथा तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
- सशक्त बिम्ब योजना तथा मुक्त छन्द का प्रयोग है।
(तोड़ो)
1. तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बन्धन टूटे
तो धरती को हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने
शब्दार्थ :
- चट्टानें = कठोर पत्थर।
- बंधन = रुकावट।
- धरती = भूमि का उपजाऊपन।
- रस = जल।
- दूब = हरी घास।
- हामी = फैली हुई।
- ऊब = मन की बेचैनी।
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश ‘तोड़ो’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसकी रचना कवि रघुवीर सहाय ने की है। इसे मासी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित किया गया है।
प्रसंग : यह एक उद्बोधन परक कविता है जिसमें कवि ने सृजन हेतु भूमि को तैयार करने का आह्वान किया है। र-बंजर और परती जमीन को हमें खेती के लिए तैयार करना होगा, मन में व्याप्त ऊब और खीज को भी हमें इसी तरह माप्त करना होगा तभी मन के इस खेत में कवितारूपी हरियाली पैदा हो सकेगी।
व्याख्या : कवि हमें उद्बोधन देता हुआ कहता है कि धरती को खेती के लिए तैयार करने हेतु हमें चट्टानें, पत्थर ताईने होंगे और मन को उर्वर बनाने के लिए रूढ़ियों तथा बन्धनों से छुटकारा पाना होगा। परती जमीन को खेत में बदलना मन की पहली आवश्यकता है। मिट्टी में रस है जिससे दूब उगती है पर उसके लिए हमें परिश्रम करके पहले खेत तैयार करना होगा। मन की ऊब और खीज भी अनुपजाऊ भूमि के समान है जो मन की सृजनशीलता में बाधक है। हमें इस ऊब और खीज से छुटकारा पाना होगा। मन को आशा और उत्साह से युक्त करना होगा तभी. उसमें कवितारूपी दूब (हरियाली) उग सकेगी।
विशेष :
- रूपकातिशयोक्ति अलंकार का विधान किया गया है।
- खेत मन का प्रतीक है और ऊब तथा खीज को रानात्मकता की बाधा के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- कवि सृजन के लिए प्रेरित कर रहा है। निराशा, ऊब और खीज को आशा, उत्साह एवं कर्मशीलता से ही दूर किया जा सकता है।
- यह एक संदेशप्रद एवं प्रेरणा प्रदान करने वाली कविता है।
- भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है।
2. तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये ऊसर बंजर तोड़ो
ये चरती परती तोड़ो
सब खेत बनाकर छोड़ो
मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को
हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को?
गोड़ो गोड़ो गोड़ो
शब्दार्थ :
- ऊसर-बंजर = अनपजाऊ भमि।
- चरती = चरागाह।
- परती = खेती के काम न आने वाली खाली भूमि।
- रस = जल।
- पोसेगी = पालन-पोषण करेगी।
- खीज = व्याकुलता, चिढ़न।
- गोड़ो = खेत की मिट्टी मुलायम बनाने के लिए उसकी खुदाई करना।
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित कविता ‘तोड़ो’ से लिया गया है। इसके रचयिता नयी कविता के कवि रघुवीर सहाय हैं।
प्रसंग : कवि ने ऊसर भूमि को खेती के लिए तैयार करने का आह्वान किया है। उसने कहा है कि इसी प्रकार श्रेष्ठ काव्य रचना के लिए मन को ऊब और खीज से मुक्त करना भी आवश्यक है।
व्याख्या : कवि चाहता है कि धरती से अच्छी फसलें और पैदावार प्राप्त करने के लिए हमें अनुपजाऊ जमीन को तैयार करना होगा। हमें चरागाहों और खाली पड़ी भूमि को जोतकर और गुड़ाई करके खेती के योग्य बनाना होगा। हमें ऐसी समस्त भूमि को खेती करने लायक बनाकर ही अपना काम समाप्त करना होगा।
खेत की मिट्टी में जब नमी होगी और वह बीज बोने लायक हो जायेगी, तभी उसमें पड़े हुए बीज को पोषण मिलेगा और नये पौधे उत्पन्न होंगे तथा बढ़ेंगे। इसी प्रकार हमें अपने मन की खीज को भी हटाना होगा। खीज की भावना से मन के मुक्त होने पर ही उसमें पौधों रूपी नवीन भाव उत्पन्न होंगे और सुन्दर सरस कविता की रचना सम्भव हो सकेगी। खेत की भूमि के समान ही हमें अपने मन को कविता की रचना के लिए भावनापूर्ण और क्रियाशील बनाना होगा।
विशेष :
- सरल, भावानुकूल और तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
- भाषा प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली हिन्दी है।
- खेत मन का प्रतीक है। मन की निराशा, खीज और ऊब खेत की मिट्टी में दबे पत्थरों, चट्टानों आदि के द्योतक हैं।
- यह एक आह्वान गीत है। इसमें निर्माण की बाधाओं को हटाकर नवनिर्माण का सन्देश दिया गया है।
- रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।