पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में एक कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि दुर्व्यवहार का फल दुःखदायी होता है। अतः सुख चाहने वाले मनुष्य को हमेशा सद्व्यवहार करना चाहिए। साथ ही इस पाठ में अव्ययों का ज्ञान कराया गया है। अव्यय वे शब्द होते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि के कारण कोई भी परिवर्तन नहीं आता है। जैसे-सः सदा पठति। सा सदा पठति। ते सदा पठन्ति। वयम् सदा पठिष्यामः। त्वम् सदा पठसि, आदि।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ :
- शृगालः = सियार।
- बकः = बगुला।
- आसीत् = था/थी।
- एकदा (अव्यय) = एक बार।
- अवदत् = बोला।
- श्वः = (आने वाला) कल।
- कुरु = करो।
- स्थाल्याम् = थाली में।
- अयच्छत् = दिया।
- सङ्कीर्णमुखे = संकुचित मुख वाले/तंग मुख वाले में।
- सहैव (सह + एव) = साथ ही।
- चञ्चुः = चोंच।
- स्थालीतः = थाली से।
- अपश्यत् = देखता था/देखती थी।
- अभक्षयत् = खाया/खायी।
- चिंतयित्वा = सोचकर।
- प्रतीकारम् = बदला।
- सद्व्यवहर्तव्यम् = अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
- सुखैषिणा = सुख चाहने वाले के द्वारा।
पाठ के गद्यांशों का हिन्दी अनुवाद एवं पठित-अवबोधनम् –
1. एकस्मिन् वने शृगाल: ………………………. प्रसन्नः अभवत्।
हिन्दी अनुवाद – एक वन में गीदड़ और बगुला रहते थे। उन दोनों में मित्रता थी। एक बार सुबह गीदड़ बगुले से बोला-“हे मित्र! कल तुम मेरे साथ भोजन करो।” गीदड़ के निमन्त्रण से बगुला प्रसन्न हुआ।
पठित-अवबोधनम् –
निर्देश: – उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
प्रश्ना : –
(क) प्रातः शृगालः कम् अवदत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कस्य निमन्त्रण बकः प्रसन्नः अभवत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कयोः मित्रता आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘एकदा शृगालः बकम् अवदत्।’ इत्यत्र अव्ययं किम्?
(ङ) ‘मित्र मया सह भोजनं कुरु।’ अत्र सर्वनामपदं किम्?
उत्तराणि :
(क) बकम्।
(ख) शृगालस्य।
(ग) शृगालस्य बकस्य च मित्रता आसीत्।
(घ) एकदा।
(ङ) मया।
2. अग्रिमे दिने सः भोजनाय ……………………………………….. सर्व क्षीरोदनम् अभक्षयत्।
हिन्दी अनुवाद – अगले दिन वह भोजन के लिए गीदड़ के निवास पर जाता है। कुटिल स्वभाव वाला गीदड़ थाली में बगुले के लिए खीर देता है और बगुले से कहता है-“हे मित्र! इस बर्तन में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं।” भोजन के समय बगुले की चोंच थाली से भोजन लेने में समर्थ नहीं हुई। इसलिए बगुला केवल खीर को देखता है। किन्तु गीदड़ सारी खीर को खा गया।
पठित-अवबोधनम् –
प्रश्ना: –
(क) शृगालः स्थाल्यां बकाय किम् अयच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कः सर्व क्षीरोदनम् अभक्षयत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) बकस्य चञ्चुः कस्मिन् समर्था न अभवत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) अभक्षयत्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
(छ) “आवाम् अधुना क्षीरोदनं खादाव:”- इत्यत्र अव्ययपदं किम्?
उत्तराणि :
(क) क्षीरोदनम्।
(ख) शृगालः।
(ग) बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्।
(घ) शृगालः।
(ङ) अधुना।
3. शृगालेन वञ्चितः बकः ………………….. शृगालः प्रसन्नः अभवत्।
हिन्दी अनुवाद – सियार से ठगे हुए बगुले ने सोचा-“जिस प्रकार इसके द्वारा मेरे साथ व्यवहार किया गया है, उसी प्रकार मैं भी इसके साथ व्यवहार करूँगा।” इस प्रकार सोचकर वह सियार से बोला-“हे मित्र! तुम भी कल सायंकाल मेरे साथ भोजन करना।” बगुले के निमंत्रण से सियार प्रसन्न हो गया।
पठित-अवबोधनम् –
प्रश्ना : –
(क) बकः केन वञ्चितः? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कस्य निमन्त्रण शृगालः प्रसन्नः अभवत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) शृगालः केन सह श्वः सायं भोजनं करिष्यति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) “अपि श्वः सायं मया सह”-इत्यत्र अव्ययपदं किं न अस्ति?
(ङ) ‘प्रातः’ इति पदस्य विलोमपदं चित्वा लिखत।
उत्तराणि :
(क) शृगालेन।
(ख) बकस्य।
(ग) शृगालः बकेन सह श्वः सायं भोजनं करिष्यति।
(घ) मया।
(ङ) सायम्।
4. यदा शृगालः सायं बकस्य ………………………………… ईय॑या अपश्यत्।
हिन्दी अनुवाद – जब सियार शाम (सायंकाल) बगुले के निवास पर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने छोटे मुख वाले कलश (सुराही) में खीर दी और सियार से बोला-“हे मित्र ! हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं।” बगुला कलश से चोंच के द्वारा खीर खा गया। किन्तु सियार का मुख कलश में नहीं पहुंचा। इसलिए बगुले ने ही सम्पूर्ण खीर को खाया। और सियार केवल ईर्ष्यापूर्वक देखता रहा।
पठित-अवबोधनम् –
प्रश्ना: –
(क) शृगालः बकस्य निवासं कदा अगच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) बकः शृगालाय कीदृशे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) कः केवलम् ईय॑या अपश्यत? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘शृगालः सायं बकस्य निवासम् अगच्छत्।’ अत्र अव्ययपदं किम्?
(ङ) ‘ईjया’ इत्यत्र का विभक्तिः ?
उत्तराणि :
(क) सायंकाले।
(ख) सङ्कीर्णमुखे।
(ग) शृगालः केवलम् ईर्यया अपश्यत्।
(घ) सायम्।
(ङ) तृतीया।
5. शृगालः बकं प्रति यादृशं …………………….. प्रतीकारम् अकरोत्।
उक्तमपि-आत्मदुर्व्यवहारस्य. …………………….. मानवेन सुखैषिणा।।
अन्वयः – आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं दु:खदं भवति, तस्मात् सुखैषिणा मानवेन सद्व्यवहर्तव्यम्।।
हिन्दी अनुवाद – गीदड़ ने बगुले के प्रति जैसा व्यवहार किया था, बगुले ने भी गीदड़ के प्रति वैसा ही व्यवहार करके बदला ले लिया। कहा भी गया है –
अपने द्वारा किए गये दुर्व्यवहार का फल दुःख देने वाला होता है। इसलिए सुख चाहने वाले मनुष्य के द्वारा अच्छा व्यवहार किया जाना चाहिए।
पठित-अवबोधनम् –
प्रश्ना:
(क) प्रतीकारम् कः अकरोत्? (एकपदेन उत्तरत)
(ख) कस्य फलं दु:खदं भवति? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) सुखैषिणा मानवेन किं कर्त्तव्यम्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘यादृशम्’ इत्यस्य विलोमशब्दः कः?
(ङ) ‘कृत्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः?
उत्तराणि :
(क) बकः।
(ख) दुर्व्यवहारस्य।
(ग) सुखैषिणा मानवेन सद्व्यवहारं कर्त्तव्यम्।
(घ) तादृशम्।
(ङ) क्त्वा।