पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में संस्कृत की कुछ श्रेष्ठ सूक्तियों का संकलन हुआ है। ‘सूक्ति’ शब्द का अर्थ हैअच्छा वचन। कम शब्दों में जीवन के मूल्यवान् आदर्शों को सुन्दरता से व्यक्त करने के लिए संस्कृत-साहित्य में हजारों सूक्तियाँ प्रसिद्ध हैं। इस पाठ में पाँच महत्त्वपूर्ण सूक्तियों से युक्त प्रेरणास्पद श्लोक दिये गये हैं।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ :
- उद्यमेन = परिश्रम से।
- मनोरथैः = मन की इच्छा से।
- सिंहः = शेर।
- मृगाः = हिरण/पशु।
- दरिद्रता = दीनता/कृपणता।
- प्रियवाक्यप्रदानेन = प्रिय वचन बोलने से।
- तुष्यन्ति = सन्तुष्ट/प्रसन्न होते हैं।
- मानवाः = मनुष्य।
- तस्मात् = इसलिये।
- वक्तव्यम् = बोलना चाहिए।
- वचने = बोलने में।
- साधितः = उपयोग किया।
- भवेत् = होगा/होना चाहिए।
- सार्थकः = अर्थपूर्ण/प्रयोजन युक्त।
- काकः = कौआ।
- कृष्णः = काला।
- पिकः = कोयल।
- पिककाकयोः = कोयल और कौए में।
- प्राप्ते = आने पर।
- गच्छन् = जाता हुआ।
- पिपीलकः = नर चींटी।
- याति = जाता है।
- योजनानाम् = 4 कोसों का (लगभग 12 किमी.)।
- शतानि = सौ।
- अगच्छन् = न चलते हुए।
- वैनतेयः = गरुड़।
पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ –
1. उद्यमेन हि सिध्यन्ति ………………………… प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
अन्वयः – कार्याणि उद्यमेन हि सिध्यन्ति, मनोरथैः न (सिध्यन्ति)। हि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगाः न प्रविशन्ति।
हिन्दी-भावार्थ-परिश्रम से ही सभी कार्य सिद्ध (पूर्ण) होते हैं, मन की इच्छा मात्र से सिद्ध नहीं होते हैं। क्योंकि सोये हुए शेर के मुख में हिरण (पशु) प्रवेश नहीं करते हैं। अतः हमें सदैव परिश्रम करते रहना चाहिए।
2. पुस्तके पठितः पाठः …………………………. जीवने यो न सार्थकः॥
अन्वयः – (यदि) पुस्तके पठितः पाठः जीवने न साधितः। (तर्हि) जीवने यः सार्थकः न, तेन पाठेन किं भवेत्?
हिन्दी-भावार्थ – (यदि) पुस्तक में पढ़ा गया पाठ जीवन में उपयोग में नहीं लाया गया (तो) जीवन में जो (पाठ) सार्थक (अर्थपूर्ण) नहीं है उस पाठ से क्या लाभ? अर्थात् पुस्तक में से प्राप्त ज्ञान का उपयोग जीवन में अवश्य ही करना चाहिए।
3. प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे, ………………………. वचने का दरिद्रता।।
अन्वयः – सर्वे मानवाः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति; तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यम्; वचने का दरिद्रता (स्यात्)।
हिन्दी-भावार्थ – सभी मनुष्य प्रिच वचन कहने से प्रसन्न (सन्तुष्ट) हो जाते हैं। इसलिए मधुर वचन ही बोलने चाहिए। बोलने में कंजूसी क्यों? अर्थात् मधुर वचन से सभी प्रसन्न होते हैं, इसलिए सदैव मधुर वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए।
4. गच्छन् पिपीलको याति …………………………………पदमेकं न गच्छति।।
अन्वयः – गच्छन् पिपीलकः शतानि योजनानाम् अपि याति। अगच्छन् वैनतेयः एकं पदं अपि न गच्छति।
हिन्दी-भावार्थ – चलती हुई चींटी सैकड़ों योजन पार कर लेती है। (किन्तु) न चलता हुआ गरुड़ एक कदम भी नहीं जाता है। अर्थात् निरन्तर प्रयास करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
5. काकः कृष्णः पिकः कृष्णः ………………………………… काकः काकः पिकः पिकः।।
अन्वयः – काकः कृष्णः पिकः (च) कृष्णः। पिककाकयोः कः भेदः? वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः, पिकः पिकः (भवति)।
हिन्दी-भावार्थ – कौआ काला है, (और) कोयल काली है। (तब) कोयल और कौए में क्या अन्तर है? वसन्त ऋत आने पर कौआ. कौआ है और कोयल, कोयल ही है। अर्थात् बाह्य रूप से एकसमान होने पर भी समय आने पर उनके आन्तरिक गुणों के प्रकट हो जाने से दोनों का अन्तर स्पष्ट हो जाता है।