Chapter 9 विज्ञाननौका

Textbook Questions and Answers

प्रश्न: 1. 
संस्कृतेन उत्तरं दीयताम् 
(क) एषा गीतिका कस्मात् पुस्तकात् संगृहीता? 
उत्तरम् : 
एषा गीतिका ‘तदेव गगनं सैव धरा’ इति पुस्तकात् संगृहीता। 

(ख) अस्याः गीतिकायाः लेखकः कः?। 
उत्तरम् : 
अस्याः गीतिकायाः लेखकः प्रो. श्रीनिवासः अस्ति। 

(ग) अत्र का दरिद्रीकृता? 
उत्तरम् : 
अत्र संस्कृतोद्यान दूर्वा दरिद्रीकृता। 

(घ) निष्कुटेषु का आहिता? 
उत्तरम् : 
निष्कुटेषु कण्टकिन्याहिता। 

(ङ) वाटिका योजनायां केषां कासां च रक्षा न कृता? 
उत्तरम् : 
वाटिकायोजनायां पुष्पितानां लतानां रक्षा न कृता। 

(च) राजनीति श्मशानेषु किं न ज्ञायते? 
उत्तरम् : 
राजनीतिश्मशानेष के कथं कत्र वा क्रन्दनम् कुर्वते इति न ज्ञायते। 

(छ) मानवानां कृते वर्तमानस्थितिः कीदृशी संलक्ष्यते? 
उत्तरम् :
मानवानां कृते वर्तमानस्थितिः प्रत्यहं दुनिमित्तैव संलक्ष्यते। 

(ज) आधुनिक युगे कस्या अवलम्बः न चिन्त्यते? 
उत्तरम् :
आधुनिक युगे स्वार्थरक्षालम्बोऽपि न चिन्त्यते। 

(झ) विश्वशान्तिप्रयत्नेषु का उपास्यते? 
उत्तरम् : 
विश्वशान्ति प्रयत्नेषु विश्वसंहारनीतिरूपास्यते। 

(ब) जनैः अहर्निशं का सेव्यते? 
उत्तरम् : 
जनैः अहर्निशम् यन्त्रमुग्धान्धता सेव्यते।

प्रश्न: 2. 
रिक्त स्थानानि पूरयत –
(क) ज्ञानगंगा ……………….. ना लोक्यते? 
उत्तरम् : 
ज्ञानगङ्गा विलुप्तेति ना लोक्यते? 

(ख) के कथं कुत्र वा ……………. कुर्वते? 
उत्तरम् : 
के कथं कुत्र वा क्रन्दनं कुर्वते? 

(ग) यत्र कुत्रापि ……….. समुद्वीक्ष्यते। 
उत्तरम् : 
यत्र कुत्रापि शान्तिः समुद्वीक्ष्यते।। 

(घ) गोपनीयायुधानां ………………… श्रूयते। 
उत्तरम् :
गोपनीयायुधानां कथा श्रूयते। 

(ङ) भूतले ………….. परिक्षीयते।
उत्तरम् : 
भूतले जीवरक्षा परिक्षीयते। 
 
प्रश्न: 3.
‘संस्कृतोद्यान दूर्वा …..निर्मिता’ अस्य श्लोकस्य आशयः हिन्दीभाषया स्पष्टीक्रियताम्। 
उत्तर :
हमने स्वयं ही संस्कृत भाषा एवं साहित्य के उद्यान की (दूर्वा) दूब गरीब बना दी है अर्थात् उसे सुखा दिया है। जो घरों में छोटी-छोटी बगीचियाँ हैं, वाटिकायें हैं उनमें नागफनी आदि कैक्टस (काँटेदार पौधे) लगा दिये हैं। फूलों से लदी हुई लताओं की रक्षा करने में हम असफल रहे हैं। परन्तु विशाल वाटिकाओं की योजना का निर्माण कर लिया गया है। आशय यह है कि जो वर्तमान में अच्छा उपलब्ध था उसकी तो हम रक्षा नहीं कर पा रहे हैं तथा भविष्य के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएँ अवश्य बनाई जा रही हैं। 

प्रश्न: 4. 
अधोलिखित पदानां संस्कृतवाक्येषु प्रयोगं कुरुत ज्ञानगङ्गा, ज्ञायते, शान्तिः, विद्योतते, संदृश्यते, जीवरक्षा, विक्रीयते। 
उत्तरम् : 

प्रश्न: 5. 
वर्तमान ………. समायोज्यते। अस्य श्लोकस्य अन्वयं कुरुत। 
उत्तरम् : 
अन्वयः-प्रत्यहं मानवानां कृते वर्तमान स्थितिः दुर्निमित्ता एव संलक्ष्यते। यत्र कुत्रापि शान्तिः समुद्वीक्ष्यते तत्र विध्वंसबीजं समायोज्यते। 

प्रश्नः 6. 
अधोलिखित पदेषु सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत। 
विलुप्तेति, कण्टकिनी + आहिता, प्रत्यहं, बत + अस्तं, अन्तरिक्षे + अनुसंधीयते, यथोपास्यते। 
उत्तरम् : 

  1. विलुप्ता + इति। 
  2. कण्टकिन्याहिता। 
  3. प्रति + अहम् 
  4. बतास्तम् 
  5. अन्तरिक्षेऽनुसन्धीयते। 
  6. यथा + उपास्यते। 

Important Questions and Answers

संस्कृतभाषया उत्तरम् दीयताम् – 

प्रश्न: 1. 
‘तदेव गगनं सैव धरा’ कविता संग्रह कस्य कृतिरस्ति? 
उत्तरम् : 
‘तदेव गगनं सैव धरा’ कविता संग्रह प्रो. श्रीनिवास रथस्य कृतिरस्ति। 

प्रश्न: 2. 
अद्य किं ना लोक्यते? 
उत्तरम् : 
अद्य ज्ञानगङ्गा विलुप्तेति ना लोक्यते। 

प्रश्न: 3. 
यत्र कुत्रापि शान्तिः समुद्वीक्ष्यते, तत्र किं समायोज्यते? 
उत्तरम् : 
यत्र कुत्रापि शान्तिः समुद्वीक्ष्यते तत्र विध्वंसबीजं समायोज्यते। 

प्रश्न: 4. 
अद्य केषां कथा श्रूयते? 
उत्तरम् : 
अद्य गोपनीयायुधानां कथा श्रूयते। 

प्रश्नः 5.
भूतले किं परिक्षीयते? 
उत्तरम् : 
भूतले जीवरक्षा परिक्षीयते। 

प्रश्नः 6. 
जीवनाशा कुत्र अनुसन्धीयते? 
उत्तरम् : 
जीवनाशाऽन्तरिक्षे अनुसन्धीयते।

प्रश्नः 7. 
लेखकानुसारेण अद्य किं अस्तं गतम्? 
उत्तरम् : 
लेखकानुसारेण अद्य विश्वबन्धुत्वदीक्षा गुरुणां व्रतं धर्मसंस्कार तत्वं च अस्तं गतम्। 

प्रश्नः 8. 
अद्य किं न सञ्चिन्त्यते? 
उत्तरम् : 
अद्य संस्कृतिज्ञानरक्षा न सञ्चिन्त्यते। 

प्रश्नः 9. 
इदानीं किं समानीयते? 
उत्तरम् : 
इदानीं विज्ञाननौका समानीयते। 

प्रश्न: 10. 
सर्वनाशार्थ किं विद्योतते? 
उत्तरम् : 
सर्वनाशार्थ विद्यैव विद्योतते। 

प्रश्न: 11. 
अद्य किं आधीयते? 
उत्तरम् : 
अद्य तारकायुद्धसंभावना अधीयते। 

प्रश्न: 12.
प्रत्यहं किं संलक्ष्यते? 
उत्तरम् : 
प्रत्यहं दुनिमित्तैव संलक्ष्यते। 

Summary and Translation in Hindi

पद्यांशों का अन्वय, सप्रसंग हिन्दी अनुवाद/व्याख्या एवं सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या – 

1. विज्ञान नौका ……………………………………………. वाटिकायोजना निर्मिता। 

अन्वयः – विज्ञान नौका सम आनीयते, ज्ञानगङ्गा विलुप्ता इति न आलोक्यते। स्वयम् संस्कृत उद्यान दूर्वा दरिद्रीकृता, निष्कुटेषु कण्टकिनी आहिता, पुष्पितानाम् लतानाम् न रक्षा कृता विस्तृता वाटिकायोजना निर्मिता॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश ‘शाश्वती’ पुस्तक के ‘विज्ञाननौका’ शीर्षक पाठ से उद्धत है। मलतः यह पाठ प्रो. श्रीनिवास रथ द्वारा विरचित ‘तदेव गगनं सैव धरा’ संस्कृत कविता से संकलित किया गया है। इसमें कवि ने वर्तमान में विज्ञान की ओर बढ़ती प्रवृत्ति तथा प्रकृति की उपेक्षा का चित्रण किया है 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या – (वर्तमान में) विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है तथा ज्ञानरूपी गंगा लुप्त हो गई है। यह नहीं देखा जा रहा है। अर्थात् ज्ञान की ओर प्रवृत्ति नहीं दिखाई दे रही है। (हमने) स्वयं संस्कृत रूपी उद्यान की दूर्वा (दूब, घास) को गरीब बना दिया है अर्थात् संस्कृत के प्रति उपेक्षा भाव है। हमारे द्वारा अपने घरेलू उपवनों में, क्रीड़ा उद्यानों में कैक्टस या नागफनी का पौधा लगाया जा रहा है। (हमारे द्वारा) पुष्पों से युक्त लताओं की रक्षा नहीं की गई तथा विस्तृत बगीचियों का निर्माण कर दिया गया। 

विशेष – यहाँ कवि ने वर्तमान विज्ञान के प्रभाव से अपने वास्तविक ज्ञान को लुप्त करने तथा आधुनिक युग में संस्कृत के प्रति लोगों के उपेक्षा भाव को दर्शाया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – अयं पद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘विज्ञान नौका’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं प्रो. श्रीनिवास विरचितात् ‘तदेव गगनं सैव धरा’ इति गीतसंग्रहात् संकलितः। अस्मिन् पद्यांशे विज्ञानं प्रति वर्धमान प्रवृत्तिं प्रकृति प्रति उपेक्षां चावलोक्य कविः स्थित्याः चित्रणं कुर्वन् कथयति 
 
संस्कृत-व्याख्या – विज्ञान नौका = भौतिकविज्ञान रूपिणी नौका समानीयते = सम्यक प्रकारेण आनीयते, ज्ञानगङ्गा = अध्यात्म ज्ञानरूपिणी भागीरथी, विलुप्ता = विनष्टा, लुप्तप्राया जाता इति नालोक्यते = एतत्सर्वं न दृश्यते। अस्मामिः, स्वयम् = स्वयमेव, संस्कृत उद्यान = संस्कृतभाषायाः साहित्यस्य च उपवनस्य, दूर्वा = शष्या, दरिद्रीकृता = निर्धना विहिता, निष्कुटेषु = गृहवाटिकासु, कण्टकिनी = कण्टकपादपाः, आहिताः = आरोपिता। पुष्पितानाम् = कुसुमितानां, लतानाम् वल्लरीनाम्, न रक्षा कृता = न सुरक्षणं कृतम्, विस्तृता = विशाला, वाटिका योजना = वाटिकानाम् योजनायाः, निर्मिता = निर्माणं कृतम्। 

विशेष – व्याकरणम् – 

(i) विज्ञान नौका-विज्ञानस्य नौका (ष. त.)। विलुप्ता-वि + लुप् + क्त + टाप्। दरिद्रीकता-दरिद्र + च्वि + कृ + क्त + टाप्। आहिता-आ + धा + क्त + टाप्। वाटिका योजना-वाटकाना याजना (ष. तत्पु.)। 
(ii) विज्ञान नौका, ज्ञानगङ्गा एवं संस्कृतोद्यान पदों में रूपक अलंकार है। 

2. के कथं ………………………………………………………. न ज्ञायते॥ विज्ञान नौका …………………. 

अन्वयः – राजनीति श्मशानेषु के कथम् कुत्र वा क्रन्दनं कुर्वते (इति) न ज्ञायते। विज्ञाननौका समानीयते ॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश ‘शाश्वती’ पुस्तक के ‘विज्ञाननौका’ शीर्षक पाठ से उद्धत है। मूलतः यह पाठ प्रो. श्रीनिवास रथ द्वारा विरचित ‘तदेव गगनं सैव धरा’ कविता संस्कृत से संकलित किया गया है। इसमें कवि ने वर्तमान में विज्ञान की ओर बढ़ती प्रवृत्ति तथा प्रकृति की उपेक्षा का चित्रण किया है – 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या – राजनीति रूपी श्मशानों में कौन, कैसे या किसलिए कहाँ क्रन्दन कर रहे हैं, यह पता नहीं चल रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक राजनीति ने श्मशान का रूप धारण कर लिया है। जहाँ सब अपना-अपना राग अलाप रहे हैं मानो क्रन्दन कर रहे हैं। विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है। 

विशेष – यहाँ वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य का वास्तविक रूप व्यक्त किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्ग: – अयं कवितांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘विज्ञान नौका’ इति पाठात् उद्धृतः। पाठोऽयं प्रो. श्रीनिवास विरचितात् ‘तदेव गगनं सैव धरा’ इति गीत संग्रहात् संकलितोऽस्ति। कविना अत्र राजनीतिम् श्मशानं मत्वा तस्य वर्णनं कृतम् 

संस्कृत-व्याख्या – राजनीतिश्मशानेषु = राजनीतिक रूपिषु पितृकानेषु, के कथम् = के केन प्रकारेण, कुत्र = कस्मिन् स्थाने, क्रन्दनं कुर्वते = विलापं करोति, इति न ज्ञायते = एतदपि न जानासि। विज्ञान नौका = विज्ञानस्य-नौका, समानीयते = सम्यगानीयते। 

व्याकरणम् –

(i) क्रन्दनम्-क्रन्द् + ल्युट्। कुत्र-किम् + बल्। 
(ii) राजनीतिश्मशानेषु-अत्र रूपकोऽलंकारः। 

3. वर्तमानस्थितिर्मानवानां ………………………………………………… नो चिन्त्यते॥ 

अन्वयः – मानवानां कृते वर्तमान स्थितिः प्रत्यहम् दु:निमित्ता एव संलक्ष्यते। यत्र कुत्रापि शान्तिः सम् उद्वीक्ष्यते तत्र विध्वंसबीजम् सम् आयोज्यते। सर्वनाशार्थ विद्या एव विद्योतते। स्वार्थरक्षा-अवलम्ब: अपि नो चिन्त्यते। विज्ञान नौका सम् आनीयते॥ 

कठिन-शब्दार्थ : 

प्रसंग – यह पद्यांश ‘विज्ञाननौका’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पद्यांश में कवि श्री रथ ने वर्तमानकालीन सामाजिक परिस्थिति का चित्रण किया है 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या – प्रतिदिन मनुष्यों के लिए वर्तमान परिस्थिति अमांगलिक (अशुभ) ही दिखाई दे रही है। जहाँ कहीं भी शान्ति दिखाई दे रही है, वहीं विनाश का बीज भी बोया जा रहा है। सभी पदार्थों का विनाश करने वाली विद्या ही अधिक चमक रही है अर्थात् उसी का बोलबाला है। स्वार्थ रक्षा के आश्रय के विषय में भी विचार नहीं किया जा रहा है। विज्ञान रूपी नाव लाई जा रही है। 

विशेष – यहाँ वर्तमान युग में विज्ञान के नाम पर मानवता के नष्ट होने के खतरे की ओर संकेत किया गया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या –

प्रसङ्गः – अयं पद्यांशः ‘विज्ञाननौका’ शीर्षकपाठात् उद्धृतोस्ति। अस्मिन् पद्यांशे श्रीरथमहोदयेन वर्तमान सामाजिक परिस्थितेः चित्रणं कृतम् 

संस्कृत-व्याख्या – मानवानां = मनुष्याणां कृते, वर्तमानस्थितिः = वर्तमानकालीन परिस्थितिः, प्रत्यहम् = प्रतिदिनम्, दुर्निमित्ता = दुष्टं निमित्तं यस्या सा, अमांगलिकं, संलक्ष्यते = दृश्यते। यत्र कुत्रापि = यस्मिन् कस्मिन् स्थानेऽपि, शान्तिः, समुद्रीक्ष्यते = संलक्ष्यते, तत्र = तस्मिन् स्थाने, विध्वंसबीजं = विध्वंसस्य बीजं = विध्वंसकारणम्, समायोज्यते = वपनं क्रियते, सर्वनाशार्थविद्या = सर्वेषां पदार्थानां विनाशकत्री विद्या, विद्योतते = परिदृश्यते। स्वार्थरक्षावलम्बोऽपि = स्वार्थस्य रक्षायाः अवलम्बः आश्रयः अपि, नो चिन्त्यते = न विचार्यते। 

विशेष: – 

(i) प्रस्तुत पद्यांशे वर्तमान समये समाजस्य या दशा दिशा च वर्तते-तस्य यथार्थ चित्रणं कृतमस्ति। 
(ii) व्याकरणम्-प्रत्यहम्-प्रति + अहम् (यण सन्धि)। अहनि अहनि प्रति (अव्ययीभाव समास)। दुर्निमित्ता दुष्टं निमित्तं यस्याः सा (बहुव्रीहि)। विध्वंसबीजम्-विध्वंसस्य बीजम्। स्वार्थरक्षा-स्वार्थस्य रक्षा (ष. तत्पु.)। शान्तिः शम् + क्तिन्। कुत्र-किम् + त्रल्। सर्वनाश:-सर्वेषां नाशः (ष. तत्पु.)। 

4. तारका युद्ध सम्भावना ……………………………………….. अनुसन्धीयते॥विज्ञान नौका …………………. 

अन्वयः – तारकायुद्ध संभावना आधीयते, गोपनीय-आयुधानां कथा श्रूयते, विश्वशान्ति प्रयत्नेषु संदृश्यते, यथा विश्वसंहार नीतिः उपास्यते। भूतले जीवरक्षा परिक्षीयते, अन्तरिक्ष जीवनाशा अनुसन्धीयते। विज्ञाननौका समानीयते।। 

कठिन-शब्दार्थ : तारकायुद्धसम्भावना = मिसाइलों के युद्ध की संभावना (स्टार वार)। आधीयते = सिखाई जा रही है। गोपनीयायुधानाम् – गोपनीय आण्विक अस्त्र-शस्त्रों की। उपास्यते = सिखाई जा रही है। परिक्षीयते = क्षीण हो रही है। अनुसंधीयते = ढूँढ़ी जा रही है, खोजी जा रही है। 

प्रसंग – यह पद्यांश ‘विज्ञाननौका’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस पद्यांश में कवि श्री रथ द्वारा वर्तमान समय में वैज्ञानिकों द्वारा जो अनुसंधान किये जा रहे हैं तथा उनमें जो जीवन की आशा ढूँढ़ने के प्रयास किये जा रहे हैं उनकी ओर संकेत किया गया है 

हिन्दी/व्याख्या – (आज) मिसाइलों की लड़ाई की संभावना बतलाई जा रही है। गोपनीय आण्विक अस्त्र-शस्त्र आदि की कहानी सुनने में आ रही है। विश्वशान्ति के प्रयास दिखाई दे रहे हैं। विश्व के विनाश की नीति सिखाई जा रही है या अपनाई जा रही है। पृथ्वी पर प्राणियों की रक्षा क्षीण हो रही है तथा आकाश में जीवन की आशा ढूँढ़ी जा रही है। विज्ञान रूपी नौका लाई जा रही है। 

विशेष – यहाँ आधुनिक आणविक अस्त्र-शस्त्रों के द्वारा विश्व में उत्पन्न अशान्ति एवं भय की स्थिति को दर्शाया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या – 

प्रसङ्गः – प्रस्तुत पद्यांशे श्रीरथमहोदयेन वर्तमानसमये वैज्ञानिकैः यत् अनुसन्धानं क्रियते तथा तेषु या जीवनाशा अन्वेषणस्य प्रयत्नानि क्रियन्ते तान् प्रति संकेतः कृतः 

संस्कत-व्याख्या – तारकायद्धसंभावना = तारकाणां यद्धस्य संभावना (स्टारवारस्य संभावना). आधीयते = प्रशिक्ष्यते. गोपनीयायुधानां = आण्विक अस्त्रशस्त्राणाम्, कथा श्रूयते = वार्ता यत्र तत्र श्रूयते। विश्वशान्तिप्रयत्नेषु = विश्व शान्तिः प्रयासेषु, संदृश्येत संलक्ष्यते। वस्तुतः विश्व शान्तिर्नास्ति सातु केवलं प्रयासेषु दृश्यते। विश्वसंहारनीतिः यथा उपास्यते = विश्वस्य संहारनीतिः इति विश्वसंहारनीतिः, यथा = येनप्रकारेण, उपास्यते = शिक्ष्यते, उपासनां क्रियते, भूतले = पृथिव्याम् जीवरक्षा = प्राणरक्षा, परिक्षीयते = शनैः-शनैः क्षीणतां याति, जीवनाशा = जीवनस्य आशा, अन्तरिक्षे = आकाशे, अनुसन्धीयते = मृगयते, भावोऽयं यत् जीवनाशायाः नभसि अनुसन्धानम् क्रियते। 

विशेषः – 

(i) कविः अस्मिन् पद्यांशे वक्तुं वाञ्छति यत् वर्तमानयुगः विज्ञानस्य युगः वर्तते, यस्मिन् तारकानां आण्विकायुधानां च प्रतिस्पर्धा प्रचलिता वर्तते। पृथिव्यां प्राणीनाम् रक्षा शनैः-शनैः क्षीणं याति अन्तरिक्षे च जीवनाशा अनुसन्धीयते। 

(ii) व्याकरणम्-तारकायुद्धसंभावना-तारकानां युद्धस्य संभावना (ष. तत्पु.)। युद्ध-युध् + क्त। गोपनीय-गुण + अनीयर्। संहार-सम् + हृ + घञ्। नीति:-नी + क्तिन्। यथोपास्यते-यथा + उपास्यते (गुण सन्धि)। 

5. विश्वबन्धुत्वदीक्षागुरुणां ……………………………………………… सञ्चिन्त्यते। विज्ञान नौका ………..

अन्वयः – विश्वबन्धुत्वदीक्षा, गुरुणाम् व्रतम्, धर्मसंस्कार तत्वं बत् अस्तम् गतम्। हन्त। लोककल्याण शिक्षा समाराधनम् काव्यसङ्कीर्तनम् विक्रीयते। अहर्निशम् यंत्रमुग्धान्धता सेव्यते संस्कृतिविज्ञानरक्षा न सञ्चिन्त्यते। विज्ञाननौका समानीयते॥ 

कठिन-शब्दार्थ :

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश विज्ञाननौका’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें प्रो. श्रीनिवास रथ संसार में विज्ञान की जिस दिशा में प्रगति हो रही है, उससे चिन्तित हैं। साथ ही विश्वबन्धुत्व, लोकहित संस्कृति एवं ज्ञान का जो ह्रास हो रहा है उसके विषय में भी कवि चिन्तित है 

हिन्दी अनुवाद/व्याख्या – बड़ा कष्ट है कि वर्तमान में विश्वबन्धुत्व की दीक्षा, गुरुओं का व्रत, धर्म संस्कार सम्बन्धी बातें नष्ट हो रही हैं। खेद है कि आज लोकहित शिक्षा की आराधना तथा काव्य संकीर्तन बेचा जा रहा है। दिन रात यन्त्रों के मोह के अन्धकार का सेवन किया जा रहा है, अर्थात् यन्त्रों का मोह बढ़ रहा है। संस्कृति एवं ज्ञान की रक्षा के विषय में किसी को भी चिन्ता नहीं है, उनके विषय में कुछ भी विचार नहीं किया जा रहा है। विज्ञान रूपी नौका लाई जा रही है। 

विशेष – यहाँ वर्तमान दशा का कवि ने यथार्थ चित्रण करते हुए हमारी संस्कृति एवं ज्ञान की रक्षा करने हेतु प्रेरित किया है। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या – 

प्रसङ्गः – अयं पद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तक ‘शाश्वती’ प्रथम भागस्य ‘विज्ञाननौका’ शीर्षकपाठात् अवतरितः। अस्मिन् पद्यांशे प्रो. श्रीनिवासरथमहोदयः जगति विज्ञानस्य यस्याम् दिशि प्रगतिः वर्तते, तया चिन्तितः वर्तते 

संस्कृत-व्याख्या – विश्वबन्धुत्वदीक्षा = विश्वबन्धुत्वस्य दीक्षा, विश्वबन्धुत्व दीक्षा = भातृत्वभावस्य शिक्षा, गुरुणां व्रतम् = आचार्याणां व्रतम्, धर्मसंस्कारतत्त्वं = धर्म संस्कार सम्बन्धिनः विषयाः बत् = कष्टमस्ति, अस्तं गतम् = समाप्तप्रायः जातः। लोककल्याण शिक्षा = (अद्य) लोककल्याण शिक्षा = लोकस्य संसारस्य कल्याणं लोककल्याणं तस्य शिक्षा = लोकहित शिक्षा तस्याः समाराधनम् = आराधनम्, काव्यसंकीर्तनम् चं, हन्त = दुःख मस्ति, विक्रीयते। यन्त्रमुग्धान्धता = यन्त्राणां मोहस्य अन्धकारः, अहर्निशम् = अहः च निशा च = रात्रिन्दिवम्, सेव्यते = सेवनं क्रियते, संस्कृतिज्ञानरक्षा = संस्कृते: ज्ञानरक्षा विषये च, न सञ्चिन्त्यते = सम्यक् चिन्तनं न क्रियते। 

विशेष: – 

(i) कविः अस्मिन् पद्यांशे कथयितुं वाञ्छति यत् अद्य वैज्ञानिकयन्त्रानां अस्त्रशस्त्राणां च प्रतिस्पर्धा वर्तते। विश्वमानवाः एतेषां मोहजाले बद्धाः वर्तन्ते। विश्वबन्धुत्वस्य भावना, गुरुणां व्रतं, काव्यसंकीर्तनम्, संस्कृति ज्ञानं प्रति च कस्यापि ध्यानं न वर्तते। शनैः शनैः इमे क्षीणाः जाताः। 

(ii) व्याकरणम्-अस्तंगतम्-अस्तम् गतम् (अलुक् समास)। लोक कल्याणम्-लोकस्य कल्याणम् (ष. तत्पु.)। समाराधनम्-सम् + आ + राध् + ल्युट्। काव्यसंकीर्तनम्-काव्यस्य सङ्कीर्तनम् (ष. तत्पु.)। सड्कीर्तनम्-सम् + कृत् + णिच् + ल्युट्। विज्ञान-वि + ज्ञा + ल्युट्। 

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