Rajasthan Board RBSE Class 12 Geography Chapter 9 द्वितीयक व्यवसाय
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा शक्ति का साधन नहीं है?
(अ) कोयला
(ब) पेट्रोलियम
(स) जल विद्युत
(द) ताँबा
प्रश्न 2.
वह देश जिसमें कच्चे माल न्यून होने पर भी उद्योगों का विकास हुआ है?
(अ) जापान
(ब) भारत
(स) चीन
(द) रूस
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा शक्ति का साधन उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायक नहीं है?
(अ) जल विद्युत
(ब) कोयला
(स) पेट्रोलियम
(द) प्राकृतिक गैस
प्रश्न 4.
कौन-सा कथन कुटीर उद्योगों से सम्बन्धित नहीं है?
(अ) स्थानीय कच्चा माल
(ब) परिवार के सदस्यों द्वारा श्रम
(स) उत्पाद की कम मात्रा
(द) अधिक पूंजी
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा कृषि आधारित उद्योग नहीं है?
(अ) सूती वस्त्र उद्योग
(ब) रबड़े उद्योग
(स) सीमेण्ट उद्योग
(द) वनस्पति तेल उद्योग
प्रश्न 6.
वनोत्पाद आधारित उद्योग है –
(अ) चमड़ा उद्योग
(ब) चीनी उद्योग
(स) कागज उद्योग
(द) एल्युमिनियम उद्योग
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा चीन का प्रमुख लौह-इस्पात उत्पादक क्षेत्र है?
(अ) मंचूरिया
(ब) नागासाकी-यावाता
(स) पिट्सबर्ग-टंगस्टन
(द) यूराल क्षेत्र
प्रश्न 8.
भारत का लौह-इस्पात केन्द्र नहीं है –
(अ) जमशेदपुर
(ब) दुर्गापुर
(स) राउरकेला
(द) पिट्सबर्ग,
उत्तरमाला:
1. (द), 2. (अ), 3. (ब), 4. (द), 5. (स), 6. (स), 7. (अ), 8. (द)
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्र कौन-से कोयला क्षेत्र के समीप अवस्थित हैं?
उत्तर:
भारत के अधिकांश लौह-इस्पात केन्द्र दामोदर घाटी में झरिया व रानीगंज कोयला खदानों के निकट स्थापित हैं।
प्रश्न 2.
लौह-इस्पात निर्माण की विधियों के नाम बताइए।
उत्तर:
आधुनिक लौह-इस्पात निर्माण की निम्न तीन प्रमुख विधियाँ प्रचलन में हैं –
- बेसीमर विधि
- उन्मुक्त भट्टी विधि तथा
- विद्युत भट्टी विधि।
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
लौह-इस्पात उत्पादक देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योगों का केन्द्रीकरण अमेरिका, यूरोप तथा एशिया के विकसित देशों में हुआ है। चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, रूस और जर्मनी विश्व के प्रमुख लौह-इस्पात उत्पादक देश हैं। इसके अलावा दक्षिण कोरिया, यूक्रेन, ब्राजील, इटली व भारत में भी लौह-इस्पात का उत्पादन होता है। चीन विश्व का सबसे बड़ा तथा जापान दूसरा बड़ा इस्पात उत्पादक देश है।
प्रश्न 2.
वस्त्र निर्माण उद्योग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वस्त्र निर्माण उद्योग का आरम्भ कुटीर उद्योगों से हुआ। आज यह मुख्य औद्योगिक देशों में उच्च कोटि का उद्योग हो गया है। आधुनिक वस्त्र निर्माण उद्योग का प्रारम्भ औद्योगिक क्रान्ति के बाद से हुआ। वस्त्र निर्माण उद्योगों में सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र तथा पटसन व जूट उद्योग को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 3.
बड़े पैमाने के उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
बड़े पैमाने के उद्योगों का सूत्रपात औद्योगिक क्रान्ति के बाद हुआ। इन उद्योगों में विभिन्न प्रकार के कच्चे माल शक्ति के साधन, विस्तृत बाजार, कुशल श्रमिक, अधिक पूंजी तथा उच्च प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होती है। उत्पाद की गुणवत्ता तथा उत्पादन में विशिष्टीकरण इनकी विशेषताएँ हैं। उत्पादित माल का निर्यात किया जाता है। सीमेपासे, पेट्रोलियम, लौह-इस्पात आदि बड़े पैमाने के उद्योग हैं। ऐसी विशेषताओं से युक्त उद्योग बड़े पैमाने के उद्योग कहलाते हैं। .
प्रश्न 4.
जापान में लौह-इस्पात उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योग की दृष्टि से जापान विश्व का दूसरा प्रमुख उत्पादक देश है। यहाँ कच्चे माल की कमी है। किन्तु उत्कृष्ट तकनीकी, यातायात के साधनों, पर्याप्त पूंजी व सरकारी नीतियों के कारण यहाँ इस्पात उद्योग विकसित अवस्था में है। यहाँ के प्रमुख इस्पात उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- नागासाकी-यावता क्षेत्र: यह क्षेत्र उत्तरी क्यूशू द्वीप में स्थित है। इसके मुख्य केन्द्र यावाता, नागासाकी, कोकुरा, मौजी तथा शिमोनोसेकी है।
- कोबे-ओसाका क्षेत्र: यह होशू द्वीप में स्थित है। इसके मुख्य केन्द्रों में कोबे, ओसाका, हिरोहिता तथा सिकाई है।
- टोकियो-याकोहामा क्षेत्र: यह होशू द्वीप में स्थित है। इसके प्रमुख केन्द्रों में टोकियो, याकोहामा तथा कावासाकी है।
- मुरोरान क्षेत्र: यह होकैडो द्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसके प्रमुख केन्द्रों में मुरोरान, वैनिशी तथा इशीकारी है।
प्रश्न 5.
ऊनी वस्त्र उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऊनी वस्त्र उद्योग विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। इस उद्योग का विकास 17 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान में आधुनिक मशीनों के आविष्कार से इस उद्योग में तेजी आई। स्थानीयकरण के कारक-ऊनी वस्त्र उद्योग के प्रमुख स्थानीयकरण के कारक हैं-
- कच्चे माल की प्राप्ति
- बाजार
- कुशल श्रम
- स्वच्छ जल की आपूर्ति
- शक्ति साधनों की उपलब्धता
- पर्याप्त पूँजी तथा
- यातायात के साधनों की सुलभता आदि।
प्रमुख क्षेत्र: विश्व का लगभग दो तिहाई ऊनी वस्त्र उद्योग यूरोप में केन्द्रित है। रूस, चीन, जापान, जर्मनी, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रोमानिया, पोलैण्ड, ग्रेट ब्रिटेन आदि प्रमुख ऊनी वस्त्र उत्पादक देश हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध के प्रमुख ऊनी वस्त्रे उत्पादक देशों में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका व युरुग्वे हैं जहाँ विश्व का मात्र 5 प्रतिशत ऊनी वस्त्र उत्पादन होता है।
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वे कारक जो किसी उद्योग की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं उन्हें स्थानीयकरण के कारकों के रूप में जाना जाता है। उद्योगों के स्थानीयकरण के प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
1. कच्चा माल:
कच्चा माल किसी उद्योग का आधार है। कच्चा माल सुगमतापूर्वक पर्याप्त तथा सस्ते दर पर उपलब्ध होना चाहिए। जिन उद्योगों में प्रयुक्त कच्चा माल भारी, सस्ता तथा निर्माण के दौरान वजन कम हो जाता है, वे उद्योग कच्चे माल के स्त्रोत के समीप अवस्थित होते हैं। इसी प्रकार जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योग फल, सब्जी दूध, मछली आदि कच्चे मालों के स्त्रोत के समीप ही स्थापित होते हैं। गैर-ह्रास मूल को उद्योग जैसे सूती वस्त्र उद्योग इनके कच्चे माल के स्त्रोत अथवा बाजार कहीं भी स्थापित किये जा सकते हैं। इससे परिवहन व्यय में कोई अन्तर नहीं आता है।
2. शक्ति के साधन:
कोयला, पेट्रोलियम, जल विद्युत, प्राकृतिक गैस वे परमाणु ऊर्जा प्रमुख शक्ति संसाधन हैं। लौह-इस्पात उद्योग कोयले की खदानों के समीप स्थापित होते हैं। एल्युमिनियम उद्योग सस्ते जल विद्युत उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित होते हैं। जल विद्युत तारों से सम्प्रेषण व पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस में पाइपलाइन सुविधाजनक है। अतएव उद्योगों में विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
3. परिवहन व संचार के साधनं:
परिवहन लागत का औद्योगिक इकाई की अवस्थिति में महत्वपूर्ण स्थान होता है। संचार साधनों का महत्त्व भी औद्योगिक विकास में सहायक है। अतएव इनकी सुलभता औद्योगीकरण को प्रभावित करती है।
4. बाजार:
बाजार उद्योगों के स्थानीयकरण का प्रमुख कारक है। अधिक क्रय शक्ति तथा सघन आबादी उद्योगों के लिए। वृहद् बाजार उपलब्ध कराती हैं।
5. कुशल श्रमिक:
यद्यपि वर्तमान समय में मशीनीकरण का बोलबाला है किन्तु उद्योगों में कुशल श्रमिकों की प्राप्ति उनकै स्थानीयकरण को प्रभावित करती है।
6. पूँजी:
पूँजी उद्योगों की स्थापना में एक महत्वपूर्ण कारक है। विकासशील देशों में पूँजी की कमी के कारण आशातीत औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है।
7. जलापूर्ति:
कुछ ऐसे उद्योग हैं जिनमें जल की पर्याप्त आवश्यकता होती है। जैसे-कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग आदि। ऐसे उद्योग किसी स्थायी जल स्त्रोत के समीप ही स्थापित किये जाते हैं।
8. जलवायु:
उपयुक्त एवं स्वास्थ्यप्रद जलवायु श्रमिकों की कार्यक्षमता बढ़ाती है। इसके अलावा कुछ उद्योग ऐसे हैं। जिनके लिए विशिष्ट जलवायु आवश्यक होती है। जैसे-वस्त्र उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु व सिनेमाउद्योग के लिए स्वच्छ, आकाश व सूर्यप्रकाश वाली जलवायु आदि।
9. उच्च तकनीकी:
उच्च तकनीकी के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, अपशिष्टों के निस्तारण व प्रदूषण बचाव सम्भव है। अत: इसका अहम् योगदान रहता है। इन सभी कारकों के अलावा सरकारी नीतियाँ, सस्ती भूमि, राजनीतिक स्थिरता, बैंकिंग व बीमा सम्बन्धी सुविधाएँ भी। उद्योगों के स्थानीयकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कारक हैं।
प्रश्न 2.
उद्योगों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण कई आधारों पर किया जाता है। उद्योगों को आकार, उनमें प्रयुक्त कच्चे माल, उत्पाद व स्वामित्व के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है –
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण: उद्योगों का आकार, उनमें निवेशित पूंजी, कार्यरत श्रमिकों की संख्या तथा उत्पादन की मात्रा द्वारा निर्धारित होता है। इस आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है –
- कुटीर उद्योग: ये उद्योग परिवार के सदस्यों द्वारा घर पर ही स्थानीय कच्चे माल द्वारा कम पूंजी और साधारण औजारों द्वारा संचालित किये जाते हैं। इनसे दैनिक जीवन के उपभोग की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
- लघु उद्योग: ये छोटे पैमाने के उद्योग हैं। इनमें स्थानीय कच्चे माल का उपयोग होता है। इनमें अर्द्ध कुशल श्रमिक, शक्ति के साधनों से चलने वाले यन्त्रों का प्रयोग करते हैं।
- बड़े पैमाने के उद्योग: इन उद्योगों का विकास औद्योगिक क्रान्ति के बाद हुआ। इन उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता, विशिष्टीकरण तथा निर्यात के उद्देश्य से उत्पादन किया जाता है। सीमेण्ट, सूती वस्त्र, लौह-इस्पात आदि बड़े पैमाने के उद्योग हैं।
कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण: कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है –
- कृषि आधारित उद्योग: ऐसे उद्योग जिनके लिए कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है, उन्हें कृषि आधारित उद्योग कहते हैं। सूती, रेशमी, जूट उद्योग, चाय, कहवा व कोको पर आधारित उद्योग कृषि आधारित उद्योग हैं।
- (खनिज आधारित उद्योग: इन उद्योगों में खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। लौह-इस्पात . उद्योग, एल्युमिनियम आदि में धात्विक खनिजों का तथा सीमेण्ट उद्योग में अधात्विक खनिजों का उपयोग होता है।
- रसायन आधारित उद्योग: इन उद्योगों में प्राकृतिक रूप से प्राप्त रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है। पेट्रो-रसायन उद्योग, रासायनिक उर्वरक, पेन्ट, वार्निश, पेट्रो-केमिकल आदि ऐसे ही उद्योग हैं।
- वनोत्पाद पर आधारित उद्योग: इस उद्योग में वनों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग होता है। कागज व लुग्दी उद्योग, दियासलाई उद्योग, फर्नीचर उद्योग आदि वनोत्पाद पर आधारित उद्योग हैं।
- पशु आधारित उद्योग: चमड़ा उद्योग व ऊन उद्योग इसके अन्तर्गत आते हैं। चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा व ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओं से ही प्राप्त होता है।
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण: स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है –
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: ऐसे उद्योग सरकार के अधीन होते हैं। इन पर आम जनता का अधिकार होता है। साम्यवादी देशों में अधिकांश उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में हैं।
- निजी क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों पर पूर्ण नियन्त्रण व्यक्तिगत होता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में अधिकांश उद्योग निजी क्षेत्र में हैं।
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग: इन उद्योगों का संचालन संयुक्त कम्पनी द्वारा किसी निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी के संयुक्त प्रयासों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा उत्पाद के आधार पर उद्योगों को मूलभूत उद्योग (लौह-इस्पात उद्योग) तथा उपभोक्ता उत्पादक उद्योगों (खाद्य सामग्री, वस्तु आदि) में वर्गीकृत किया गया है।
प्रश्न 3.
लौह-इस्पात उद्योग या सूती वस्त्र उद्योग पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योग-लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक युग की आधारशिला है। आधुनिक निर्माण उद्योगों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण लौह-इस्पात का निर्माण है क्योंकि अन्य निर्माण उद्योगों के लिए लौहा-इस्पात कच्चे माल की तरह प्रयुक्त होता है। अतएव इसे आधारभूत उद्योग या धुरी उद्योग भी कहा जाता है।
स्थानीयकरण के कारक: परम्परागत रूप से भारी इस्पात उद्योग की अवस्थिति कच्चे माल के भण्डारों के समीप ही होती है। जहाँ लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, चूना पत्थर आदि पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इसके अलावा इस उद्योग के लिए अन्य निम्न कारक, स्थानीयकरण में महत्वपूर्ण हैं –
- परिवहन एवं यातायात के साधन
- सस्ती जलविद्युत शक्ति।
- कुशल श्रमिक।
- पूंजी की उपलब्धता
- वित्तीय एवं बैंकिंग सुविधाएँ
- बाजार की सुविधा
- राजनीतिक प्रोत्साहन आदि।
लौह-इस्पात उद्योग का विश्व वितरण: विश्व के विकसित देशों में लौह-इस्पात का अधिक केन्द्रीयकरण हुआ है। चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, रूस तथा जर्मनी प्रमुख लौह-इस्पात उत्पादक देश हैं। इसके अलावा दक्षिण कोरिया, यूक्रेन, ब्राजील, इटली और भारत में भी लौह-इस्पात का उत्पादन होता है। प्रमुख देशों में इसका वितरण निम्नलिखित प्रकार से है –
1. चीन: यह विश्व का सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। यहाँ के प्रमुख इस्पात उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- मंचूरिया क्षेत्र प्रमुख केन्द्र आनशान व फुशुन।
- उत्तरी चीन क्षेत्र: प्रमुख केन्द्र पाओटाओ, बीजिंग, टिटसिन।
- यांग्टिसी घाटी क्षेत्र: प्रमुख केन्द्र बुहान, शंघाई, हैकॉऊ तथा चुंगकिंग।
- अन्य केन्द्र: इसके अन्तर्गत केण्टन, कुनमिंग तथा सिगटाओ प्रमुख हैं।
2. जापान-यह विश्व का दूसरा बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- नागासाकी-यावाता क्षेत्र: यह उत्तरी क्यूशू द्वीप में स्थित हैं। इसके प्रमुख केन्द्रों में यावाता, नागासाकी, कोकुरा, मौजी तथा शिमोनोस्की हैं।
- कोबे-ओसाका क्षेत्र: यह होशू द्वीप में स्थित है। इसके प्रमुख केन्द्रों में कोबे, ओसाका, हिरोहिता तथा सिकाई हैं।
- टोकियो-याकोहामा क्षेत्र: यह होशू द्वीप में स्थित है। इसके प्रमुख केन्द्रों में टोकियो, योकोहामा तथा कावासाकी शामिल हैं।
- मुरोरान क्षेत्र-यह होकैडो द्वीप में स्थित हैं। इसके प्रमुख केन्द्रों में मुरोरान, वैनिशी तथा इशीकारी हैं।
3. संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना कच्चे माल की स्थानीय उपलब्धता के आधार पर हुई थी। यहाँ के प्रमुख लौह-इस्पात उत्पादक केन्द्र निम्नलिखित हैं –
- पिट्सबर्ग-यंगस्टन क्षेत्र: इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्रों में पिट्सबर्ग-यंगस्टन, ब्रेडाक, जार्ज टाउन तथा होम्सटेड हैं।
- शिकागो-गैरी क्षेत्र: इसके प्रमुख केन्द्रों में शिकागो, गैरी व मिलबाउकी शामिल हैं।
- ईरी झील क्षेत्र: इसके प्रमुख केन्द्रों में डेट्रायट, बफेलो, क्लीवलैण्ड व टालेडो शामिल हैं।
- मध्य अटलाण्टिक क्षेत्र प्रमुख केन्द्र स्पेरोज प्वाइण्ट, एलन टाउन, स्टीलटन आदि हैं।
- अलाबामा क्षेत्र प्रमुख केन्द्र अलाबामा तथा बर्मिंघम हैं।
- पश्चिमी क्षेत्र: प्रमुख केन्द्र प्यूक्लो, सैन्फ्रांसिसको तथा लास एंजिल्स हैं।
4. रूस-रूस विश्व का चौथा बड़ा लौह-इस्पात उत्पादक देश है। यहाँ लौह-इस्पात के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- यूराल क्षेत्र: प्रमुख केन्द्र मैगनिटोगोस्क, निझनीतागिल है। यह सबसे पुराना उत्पादक क्षेत्र है।
- कुजनेत्सक क्षेत्र: मुख्य केन्द्र कुजनेस्क, नोवा कुजनेत्सक है।
- मध्यवर्ती क्षेत्र: प्रमुख केन्द्र टुला, लिपेस्क, मास्को, लेनिनग्राड तथा गोर्की है। उपर्युक्त देशों के अलावा, जर्मनी, यूक्रेन, भारत, ब्रिटेन, कनाडा, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया आदि में भी लौह-इस्पात का उत्पादन होता है।
अथवा
सूती वस्त्र उद्योग: सूती वस्त्र उद्योग वस्त्र उद्योगों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस उद्योग का प्रारम्भ सबसे पहले भारत में कुटीर उद्योग के रूप में हुआ। इस उद्योग का वास्तविक विकास 18वीं शताब्दी में यान्त्रिक चरखी और यान्त्रिक करेघों के आविष्कारों के बाद हुआ। सूती मिल उद्योग का विकास ग्रेट ब्रिटेन में हुआ।
स्थानीयकरण के कारक: सूती वस्त्र उद्योग का स्थानीयकरण निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता है –
- कच्चे माल के रूप में कपास की उपलब्धता।
- शक्ति स्त्रोत कोयला एवं जल विद्युत शक्ति की प्राप्ति।
- प्रचुर मात्रा में सस्ता एवं कुशल श्रम।
- समुद्री समीर युक्त आर्द्र जलवायु।
- बड़ी मात्रा में शुद्ध जल की प्राप्ति।
- विस्तृत बाजार तथा
- सरकारी प्रोत्साहन।
सूती वस्त्र उद्योग का विश्व वितरण: विश्व के लगभग 40 देशों में सूती वस्त्र निर्माण की मिले हैं। मुख्य उत्पादक देश चीन, पूर्व सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, जापान, पोलैण्ड, यूनाइटेड किंगडम, हांगकांग, पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस तथा चेकोस्लोवाकिया हैं। प्रमुख देशों में इसका वितरण निम्नलिखित प्रकार है –
- चीन: सूती वस्त्र उत्पादन की दृष्टि से चीन विश्व में प्रथम स्थान पर है। शंघाई, केण्टन, सिग्टाओं, टीण्टसिन, शांतुंग डेआरिन आदि सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र हैं।
- भारत: सूती वस्त्र उत्पादन की दृष्टि से विश्व में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्र मुम्बई, अहमदाबाद, शोलापुर, नासिक, सूरत, बड़ौदा, नागपुर, इन्दौर, वारंगल, ग्वालियर, कोलकाता, दिल्ली, कानपुर, भीलवाड़ा, ब्यावर, पाली, कोयम्बटूर, मदुरई, सलेम, बंगलौर आदि हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका में सूती वस्त्र उद्योग की अधिकांश मिले पूर्वी भाग में अप्लेशियन राज्य में स्थित है। सबसे पहले न्यूइंग्लैण्ड राज्य में सूती वस्त्र निर्माण का विकास हुआ था। किन्तु बाद में दक्षिण अप्लेशियन राज्यों में सर्वाधिक निर्माण होने लगा है। मध्य अटलांटिक राज्यों में भी सूती वस्त्र का उत्पादन होता है।
विश्व के प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक देशों में सूती धागे का वार्षिक उत्पादन निम्नलिखित प्रकार रहा है –
देश | उत्पादन प्रतिशत |
चीन | 26.4 |
भारत | 21.0 |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 14.7 |
पाकिस्तान | 10.7 |
इण्डोनेशिया | 7.0 |
ब्राजील | 3.8 |
टर्की | 3.7 |
दक्षिण कोरिया | 2.2 |
इटली | 2.0 |
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
विश्व मानचित्र में विश्व के प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्रों को दर्शाइये।
उत्तर:
प्रश्न 2.
विश्व मानचित्र में विश्व के प्रमुख वस्त्र उत्पादक देशों को दर्शाइए।
उत्तर:
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से जो मानव की द्वितीयक क्रिया है, बताइए –
(अ) खान खोदना
(ब) एकत्रीकरण
(स) उद्योग
(द) व्यापार एवं वाणिज्य
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा ऐसा देश है, जहाँ के अधिकांश उद्योग आयातित कच्चे माल पर आधारित हैं?
(अ) भारत
(ब) चीन
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
(द) जापान
प्रश्न 3.
भारत की झरिया की खदानों का सम्बन्ध है –
(अ) कोयला उत्पादन से
(ब) लौह अयस्क उत्पादन से
(स) तांबा उत्पादन से
(द) अभ्रक उत्पादन से
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किस उद्योग के लिए जलवायु एक महत्त्वपूर्ण स्थानीयकरण का कारक है?
(अ) लौह-इस्पात उद्योग
(ब) सिनेमा उद्योग
(स) सीमेण्ट उद्योग
(द) जूट उद्योग
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से जो कृषि आधारित उद्योग नहीं है, बताइए –
(अ) सूती वस्त्र उद्योग
(ब) चीनी उद्योग
(स) सीमेण्ट उद्योग
(द) जूट उद्योग
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से जो भार ह्रास मूलक (Weight Lossing Industry) उद्योग नहीं है, बताइए –
(अ) लौह-इस्पात उद्योग
(ब) चीनी उद्योग
(स) सीमेण्ट उद्योग
(द) सूती वस्त्र उद्योग
प्रश्न 7.
शिकागो गैरी लौह-इस्पात क्षेत्र निम्नलिखित में से किस देश में स्थित है?
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ब) जापान
(स) चीन
(द) रूस
प्रश्न 8.
आधुनिक वस्त्र निर्माण का जन्म किस देश में हुआ?
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ब) ब्रिटेन
(स) चीन
(द) जापान
प्रश्न 9.
सूती वस्त्र के उत्पादन में विश्व में द्वितीय स्थान पर कौन-सा देश है?
(अ) चीन
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका
(स) भारत
(द) जर्मनी
प्रश्न 10.
कच्चे रेशम के उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर रहने वाला देश है –
(अ) भारतं
(ब) जापान
(स) चीन
(द) रूस
उत्तरमाला:
1. (स), 2. (द), 3. (अ), 4. (ब), 5. (स), 6. (द), 7. (अ), 8. (ब), 9. (स), 10. (ब)
सुमलेन सम्बन्धी प्रश्न
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए –
स्तम्भ (अ) (प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र) |
स्तम्भ (ब) (राष्ट्र) |
(i) नागासाकी-यावाता | (अ) सयुंक्त राज्य अमेरिका |
(ii) शिकागो-गैरी | (ब) चीन |
(iii) मंचूरिया | (स) रूस |
(iv) मैगनिटोगोर्क | (द) ब्रिटेन |
(v) बर्मिंघम | (य) जापान |
उत्तरमाला:
(i) य (ii) अ (iii) ब (iv) स (v) द
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव की आर्थिक क्रियाओं को कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर:
मानव की आर्थिक क्रियाओं को चार भागों में बाँटा गया है –
- प्राथमिक
- द्वितीयक
- तृतीयक एवं
- चतुर्थक।
प्रश्न 2.
प्राथमिक क्रियाओं के अन्तर्गत आने वाली प्रमुख क्रियाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
मानव की प्राथमिक क्रियाओं में कृषि, खनन, एकत्रीकरण, मछलीपालन, प्रारम्भिक ढंग से शिकार करना आदि को शामिल किया गया है।
प्रश्न 3.
द्वितीयक आर्थिक क्रियाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
उद्योगों को मानव की द्वितीयक आर्थिक क्रियाओं में शामिल किया गया है।
प्रश्न 4.
तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ क्या हैं?
उत्तर:
व्यापार-वाणिज्य मानव की तृतीयक आर्थिक क्रियाएँ हैं।
प्रश्न 5.
चतुर्थक आर्थिक क्रियाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय एवं बेकिंग सुविधाएँ, बीमा आदि मानव की चतुर्थक क्रियाएँ हैं।।
प्रश्न 6.
विनिर्माण उद्योग की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विनिर्माण उद्योग की दो विशेषताएँ निम्न हैं –
- इससे देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।
- औद्योगिक विकास देश की आर्थिक सम्पन्नता का मापदण्ड होता है।
प्रश्न 7.
औद्योगिक दृष्टि से विकसित किन्हीं चार देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी तथा ब्रिटेन-ये चार औद्यागिक दृष्टि से विकसित प्रमुख देश हैं।
प्रश्न 8.
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों में कच्चा माल, शक्ति के साधन, परिवहन व संचार के साधन, बजार, कुशल श्रमिक, पूँजी, जलापूर्ति, जलवायु, उच्च तकनीक, सरकारी नीतियाँ, सस्ती भूमि, राजनैतिक स्थिरता, बैंकिंग व बीमा की सुविधा आदि शामिल हैं।
प्रश्न 9.
ऐसे दो प्रकार के उद्योगों के नाम बताइए जो कच्चे माल के स्त्रोतों की ओर आकर्षित होते हैं।
उत्तर:
कच्चे माल के स्त्रोतों की ओर आकर्षित होने वाले प्रमुख दो प्रकार के उद्योग अग्रलिखित हैं –
- वे उद्योग जिनमें भारी कच्चा माल प्रयुक्त होता है। और उत्पादने माल घट जाता है। यथा-लौह-इस्पात उद्योग।
- दूध, मछलियों, फल, सब्जियों आदि से सम्बन्धित उद्योग जो शीघ्र नष्ट होने वाले हैं।
प्रश्न 10.
एल्यूमिनियम उद्योग अधिकांश कहाँ स्थापित हैं?
उत्तर:
एल्युमिनियम उद्योग सामान्यत: सस्ते जले विद्युत उत्पादक क्षेत्र में स्थापित किये गए हैं।
प्रश्न 11.
वर्तमान समय में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण के क्या कारण हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में जल विद्युत का तारों के माध्यम से सम्प्रेषण तथा गैस एवं पेट्रोलियम पदार्थों के पाइप लाइन द्वारा आसानी से परिवहन के कारण उद्योगों का विकेन्द्रीकरण हुआ है।
प्रश्न 12.
प्रमुख संचार के साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
डाकतार, टेलीफोन, ई-मेल, इण्टरनेट आदि प्रमुख संचार के साधन हैं।
प्रश्न 13.
विश्व के प्रमुख दो बाजार क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
विश्व के प्रमुख दो बाजार क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
- विकसित देश जिनकी क्रय शक्ति अधिक व सघन बसावट क्षेत्र हैं।
- दक्षिण वे दक्षिणी-पूर्वी एशिया के सघन आबाद क्षेत्र हैं।
प्रश्न 14.
जलापूर्ति की दृष्टि से आवश्यक उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग आदि ऐसे उद्योग हैं। जिनके लिए अधिक जल की ओवश्यकता होती है।
प्रश्न 15.
जलवायु की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण दो उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
निम्नलिखित दो उद्योगों की स्थापना में जलवायु महत्त्वपूर्ण कारक है –
- सूती वस्त्रे उद्योग तथा
- सिनेमा उद्योग।
प्रश्न 16.
सरकारी नीतियाँ किस प्रकार किसी उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करती हैं?
उत्तर:
सरकारी नीतियाँ अग्रलिखित दो प्रकार से किसी उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करती हैं –
- यदि किसी देश में उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हो तो वहाँ विदेशी कम्पनियाँ उद्योग नहीं लगा सकतीं।
- टैक्स की छूट व अन्य सुविधाएँ उद्योगों को प्रोत्साहित करती हैं।
प्रश्न 17.
विनिर्माण उद्योगों को आकार के आधार पर कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
विनिर्माण उद्योगों को आकार के आधार पर तीन भागों-कुटीर, लघु व बड़े पैमाने के उद्योगों में बाँटा गया है।
प्रश्न 18.
कुटीर उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इसमें दस्तकार स्थानीय कच्चे माल का प्रयोग करते हैं। इसमें केवल परिवार के सदस्य की कार्य करते हैं।
प्रश्न 19.
जापान व ब्रिटेन के सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास किन देशों में आती है?
उत्तर:
जापान व ब्रिटेन के सूती वस्त्र उद्योग के लिए कच्चा माल कपास संयुक्त राज्य अमेरिका, मिस्त्र व भारत से आयात की जाती है।
प्रश्न 20.
गावों में पूर्व में कुटीर उद्योगों में संलग्न कुछ जातियों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्राचीन काल में गाँवों में लुहार, कुम्हार, सुनार, नाई, चर्मकार, बढ़ई आदि कुटीर उद्योगों में संलग्न थे।
प्रश्न 21.
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को कृषि आधारित, खनिज आधारित, रसायन आधारित, वनोत्पाद आधारित व पशु आधारित उद्योगों के रूप में बाँटा गया है।
प्रश्न 22.
लघु उद्योगों की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लघु उद्योगों की प्रमुख दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- लघु उद्योग में मशीनों एवं चालक शक्ति का प्रयोग किया जाता है तथा
- इसमें वैतनिक श्रमिक रखे जाते हैं।
प्रश्न 23.
कृषि आधारित किन्हीं चार उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
कृषि आधारित प्रमुख चार उद्योग निम्नलिखित हैं –
- सूती वस्त्र उद्योग
- चीनी उद्योग
- जूट उद्योग तथा
- भोजन प्रसंस्करण उद्योग।
प्रश्न 24.
खनिज आधारित चार उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
खनिज आधारित चार उद्योगों में-लौह-इस्पात उद्योग, मशीन व औजार उद्योग, रेल इंजन उद्योग व ताँबा उद्योग प्रमुख हैं।
प्रश्न 25.
रसायन आधारित चार उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
रसायन आधारित चार उद्योगों में–पेन्ट, वार्निश उद्योग, प्लास्टिक उद्योग, पेट्रो-केमिकल उद्योग व | औषधि उद्योग प्रमुख हैं।
प्रश्न 26.
वनोत्पाद पर आधारित किन्हीं चार उद्योगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वनोत्पाद पर आधारित चार उद्योगों में-कागज व लुग्दी उद्योग, फर्नीचर उद्योग, दियासलाई उद्योग व लाख उद्योग प्रमुख हैं।
प्रश्न 27.
पशु आधारित प्रमुख दो उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
पशु आधारित प्रमुख दो उद्योग निम्नलिखित हैं –
- चमड़ा उद्योग तथा
- ऊनी वस्त्र उद्योग।
प्रश्न 28.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का तीन | भागों-सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग, निजी क्षेत्र के उद्योग में संयुक्त क्षेत्र के उद्योगों में बाँटा गया है।
प्रश्न 29.
लौह-इस्पात को धुरी उद्योग क्यों कहते हैं?
अथवा
लौह-इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योग कहलाता है, क्यों?
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक युग की आधारशिला है। यह उद्योग अन्य सैकड़ों उद्योगों के लिए कच्चे माल का स्रोत है। इसलिए इसे आधारभूत उद्योग कहते हैं। इसके बगैर औद्योगिक विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती अतएव इसे धुरी उद्योग भी कहा जाता है।
प्रश्न 30.
जर्मनी के प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
जर्मनी के प्रमुख लौह-इस्पात उद्योग केन्द्र डूइसबर्ग, डोरटमुंड, डूसूलडोरफ तथा ऐसेन हैं।
प्रश्न 31.
भारत के प्रमुख लौह-इस्पात के केन्द्र कौन-कौन से है?
उत्तर:
भारत के प्रमुख लौह-इस्पात उद्योग के केन्द्र जमशेदपुर, कुल्टी, बुरहानपुर, दुर्गापुर, राउरकेला, भिलाई, बोकारो, सलेम, विशाखापत्तनम तथा भद्रावती है।
प्रश्न 32.
ब्रिटेन के प्रमुख लौह-इस्पात केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
ब्रिटेन के प्रमुख लौह-इस्पात उद्योग के केन्द्र कार्डिफ, टालबाट, हार्टफूल, शैफील्ड, ग्लासगो, फालकर्क तथा लंकाशायर है।
प्रश्न 33.
वर्तमान समय में सूती वस्त्र उद्योग की दो आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में सूती वस्त्र उद्योग की उभरती दो आधुनिक प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –
- इस उद्योग की कृत्रिम रेशे से प्रतिस्पर्धा के कारण अनेक देशों में इसमें नकारात्मक प्रवृत्ति देखी जा रही है।
- श्रम लागत कम होने के कारण यह उद्योग कम विकसित देशों की ओर स्थानान्तरित हो रहा है।
प्रश्न 34.
ऊनी वस्त्र उद्योग की अवस्थिति के दो प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ऊनी वस्त्र उद्योग की अवस्थिति के दो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक हैं –
- कच्चे माल की सुगम प्राप्ति तथा
- बाजार की सुलभता।
प्रश्न 35.
विश्व के ऊनी वस्त्र उत्पादक प्रमुख देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
विश्व के ऊनी वस्त्र उत्पादक प्रमुख देश रूस, चीन, जापान, जर्मनी, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रोमानिया, पोलैण्ड तथा ग्रेट ब्रिटेन आदि हैं।
प्रश्न 36.
रेशमी वस्त्र उद्योग का सर्वप्रथम विकास कहाँ हुआ?
उत्तर:
रेशमी वस्त्र उद्योग का सर्वप्रथम विकास चीन में कुटीर उद्योग्र के रूप में हुआ।
प्रश्न 37.
प्राकृतिक रेशम किस कीड़े से प्राप्त होता है?
उत्तर:
प्राकृतिक रेशम बायोक्जिम नामक कीड़े की लार से निकले पदार्थ से प्राप्त होता है।
प्रश्न 38.
रेशमी वस्त्र उत्पादक प्रमुख देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
रेशमी वस्त्र उत्पादक, प्रमुख देश जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, चीन, ताइवान, जर्मनी, इंग्लैण्ड तथा भारत हैं।
प्रश्न 39.
जापान के प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
जापान के प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्र यामागोता, फूकुशीमा, निगीता, किनकी तथा क्योटो है।
प्रश्न 40.
चीन के प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
चीन में रेशमी वस्त्र उद्योग प्राचीन काल से ही विकसित है। शंघाई, क्वांगचाऊ प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्र हैं।
प्रश्न 41.
भारत के प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के प्रमुख रेशमी वस्त्र उद्योग के केन्द्र कोलकाता, मैसूर, बंगलौर तथा चेन्नई हैं।
प्रश्न 42.
संयुक्त राज्य अमेरिका में रेशमी वस्त्र उद्योग का प्रमुख केन्द्र कहाँ है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में रेशमी वस्त्र उद्योग में पेन्सिलवेनिया राज्य में सबसे आगे है। पैटरसन प्रमुख केन्द्र है, अतएव उसे अमेरिका का रेशम नगर भी कहते हैं।
प्रश्न 43.
फ्रांस में रेशमी वस्त्र उत्पादक केन्द्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
फ्रांस में रोन घाटी में स्थित लियोंस नगर रेशमी वस्त्रों के उत्पादन का प्रमुख केन्द्र है।
प्रश्न 44.
जूट उद्योग के प्रमुख उत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
जूट उद्योग के प्रमुख उत्पाद टाट, बोरी, जूट के कपड़े तथा मोटी दरियाँ आदि हैं।
प्रश्न 45.
जूट की कृषि के अग्रणी दो देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
जूट को कृषि में भारत व बांग्लादेश अग्रणी हैं। जहाँ ब्रह्मपुत्र की घाटी तथा गंगा के डेल्टाई भाग में इसकी खेती की जाती है।
प्रश्न 46.
जूट उद्योग के महत्त्वपूर्ण देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
जूट उद्योग भारत, बांग्लादेश, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, बेल्जियम, स्पेन, स्वीडन, जापान, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, थाईलैण्ड आदि देशों में विकसित है।
प्रश्न 47.
जूट उत्पादों के निर्यातक दो देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
जूट उत्पादों के निर्यातक प्रमुख दो देश है –
- भारत तथा
- बांग्लादेश।
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA-I)
प्रश्न 1.
द्वितीयक व्यवसाय के अन्तर्गत कौन-कौन सी क्रियाएँ आती हैं?
उत्तर:
उद्योग मानव की द्वितीयक आर्थिक क्रिया है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तीन क्रियाएँ आती हैं –
- प्राकृतिक संसाधनों को परिष्कृत करना।
- संसाधनों के रूप में परिवर्तन तथा
- प्राकृतिक संसाधनों को मानव जीवन के लिए अधिक उपयोगी बनाना।
प्रश्न 2.
द्वितीयक व्यवसायों को किन दस समूहों में बाँटा गया है?
उत्तर:
द्वितीयक व्यवसायों को निम्नलिखित दस समूहों में बांटा गया है –
- इंजीनियरिंग उद्योग
- निर्माण उद्योग
- इलेक्ट्रानिक उद्योग
- रासायनिक उद्योग
- शक्ति उद्योग
- वस्त्र उद्योग
- भोजन व पेय पदार्थ उद्योग
- धातुकर्म उद्योग
- प्लास्टिक उद्योग तथा
- परिवहन व संचार उद्योग।
प्रश्न 3.
परिवहन साधनों का उद्योगों के केन्द्रीयकरण पर क्या प्रभाव पड़ा है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवहन साधनों का उद्योगों के स्थानीयकरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जैसे –
- पश्चिमी यूरोप व उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में उद्योगों का केन्द्रीकरण विकसित परिवहन तन्त्र का परिणाम है।
- एशिया, अफ्रीका व दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश देशों में औद्योगिक विकास कम होने का कारण परिवहन के संसाधनों की कमी है।
प्रश्न 4.
कुटीर उद्योगों की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कुटीर उद्योगों की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है जो स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करती हैं।
- ये उद्योग कम पूंजी तथा दक्षता से परिवार के सदस्यों द्वारा ही चलाये जाते हैं।
- इससे दैनिक जीवन के लिए उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
प्रश्न 5.
कुटीर एवं छोटे (लघु उद्योग) पैमाने के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उत्पादन की तकनीक व निर्माण स्थल के आधार पर कुटीर एवं छोटे पैमाने के उद्योगों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
कुटीर उद्योग तथा लघु उद्योगों में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं –
कुटीर उद्योग | लघु उद्योग |
1. यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। | 1. यह निर्माण की मध्यम स्तरीय इकाई है। |
2. इस उद्योग में शिल्पकार स्थानीय कच्चे माल का उपयोग करते हैं। | 2. इस उद्योग में स्थानीय कच्चे माल के साथ-साथ बाहर से भी मँगाये गये कच्चे माल का उपयोग होता है। |
3. इस उद्योग में एक शिल्पकार अपनी दक्षता के आधार पर घर में ही वस्तुएँ बनाता है। | 3. इस उद्योग में एक शिल्पकार छोटी-छोटी मशीनों का प्रयोग करता है। |
4. इस उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं का व्यापारिक महत्व कम होता है। | 4. इस उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं का व्यापारिक महत्त्व अधिक होता है। |
5. इस उद्योग में घर के सदस्यों की प्रधानता रहती है। | 5. इस उद्योग में स्थानीय श्रमिक भी कार्य करते हैं। |
प्रश्न 6.
छोटे एवं बड़े पैमाने के उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छोटे एवं बड़े पैमाने के उद्योगों में निम्नलिखित अंतर हैं –
छोटे पैमाने के उद्योग | बड़े पैमाने के उद्योग |
1. इन उद्योगों में शक्ति से चलने वाली छोटी-छोटी मशीनों का प्रयोग होता है। | 1. इन उद्योगों में शक्तिचालित बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रयोग होता है। |
2. इन उद्योगों में अर्द्धकुशल श्रमिकों द्वारा कार्य किया जाता है। | 2. इन उद्योगों में कुशल श्रमिकों द्वारा कार्य किया जाता है। |
3. इन उद्योगों में कम मात्रा में पूँजी का निवेश होता है। | 3. इन उद्योगों में अधिक मात्रा में पूँजी का निवेश होता है। |
4. ये उद्योग विकासशील देशों के विकास के आधार होते हैं। | 4. ये उद्योग विकसित देशों के विकास का आधार होते हैं। |
प्रश्न 7.
बड़े पैमाने के उद्योगों की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए विभिन्न प्रकार के कच्चे माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विस्तृत बाजार, उच्च प्रौद्योगिकी तथा विशाल पूँजी की आवश्यकता होती है। इनका विकास औद्योगिक क्रान्ति के बाद हुआ। बड़े पैमाने के उद्योगों को तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- इन उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- उत्पादन में विशिष्टीकरण का ध्यान रखा जाता है।
- उत्पादित माल का निर्यात किया जाता है।
प्रश्न 8.
कृषि आधारित उद्योग से क्या तात्पर्य है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषिजन्य उत्पादों पर आधारित उद्योगों को कृषि आधारित उद्योग कहा जाता है। अनेक उद्योगों की स्थापना और विकास में कृषि से प्राप्त कच्चे पदार्थों का बहुत अधिक योगदान रहता है। खेतों से प्राप्त कच्चे माल को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार माल में बदलकर विक्रय हेतु ग्रामीण व नगरीय बाजारों में भेजा जाता है। प्रमुख कृषि आधारित उद्योगों में खाद्य सामग्री तैयार करने वाले उद्योग, शक्कर, आचार, फलों के रस, पेय पदार्थ, मसाले, तेल व वस्त्र (सूती, रेशमी व जूट) तथा रबर उद्योग सम्मिलित हैं।
प्रश्न 9.
आधुनिक लौह-इस्पात उद्योग की निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक लौह-इस्पात निर्माण में तीन विधियों का प्रचलन है –
- बेसीमर विधि
- उन्मुक्त भट्टी विधि
- विद्युत भट्टी विधि
लौह: इस्पात बनाने के लिए अयस्क को उक्त भट्टियों में कोक एवं चूना पत्थर के साथ पिघलाया जाता है। पिघला लोहा जब बाहर निकलकर ठण्ड़ा हो जाता है तो उसे कच्चा लोहा कहते हैं। इसी कच्चे लौह में मैंगनीज मिलाकर इस्पात बनाया जाता है।
प्रश्न 10.
प्राकृतिक रेशम प्राप्त करने के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक रेशम बायोक्जिम नामक कीड़े की लार से निकले पदार्थ से प्राप्त होता है। शहतूत के पत्तों पर चलने वाला यह कीड़ा अपने मुँह से निकले लसलसे पदार्थ को अपने शरीर के चारों तरफ लपेटता है। इस स्थिति में इसे कोपे (कोकून) कहते हैं। पूर्ण विकसित कोपों को पानी में उबालकर उन पर लिपटे रेशम को उतारकर अलग धागे के रूप में लपेटा जाता है। इसके बाद रेशम के कपड़े बनाये जाते हैं। स्पष्ट है कि रेशमी वस्त्र उद्योग के तीन चरण हैं –
- कोपो का उत्पादन
- कोपो से रेशमी धागा लपेटना
- रेशमी वस्त्रों की बुनाई
प्रश्न 11.
चीन का रेशम प्राचीन काल से ही विकसित है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चीन का रेशम अत्यन्त प्राचीन काल से ही विकसित रहा है। प्राचीन काल में चीन का रेशम स्थल मार्ग से यूरोप के देशों को भेजा जाता था। इसी मार्ग को इतिहासकार रेशम मार्ग के नाम से सम्बोधित करते थे। चीन में शंघाई, क्वांगचाऊ आदि प्रमुख रेशम उद्योग के केन्द्र हैं।
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न (SA-II)
प्रश्न 1.
“द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है।” कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।’,
उत्तर:
द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है। द्वितीयक गतिविधियाँ प्रकृति से प्राप्त कच्चे माल को रूप बदलकर उसे और अधिक मूल्यवान बना देती हैं। द्वितीयक गतिविधियाँ खेतों, वनों, खदानों एवं सागरों वे पहासागरों से प्राप्त पदार्थों का रूप परिवर्तन कर उन्हें मूल्यवान बना देती हैं। द्वितीयक गतिविधियाँ विनिर्माण, प्रसंस्करण एवं निर्माण अवसंरचना उद्योग से सम्बन्धित हैं।
उदाहरण:
- कपास एक कच्चा पदार्थ है जिसका उपयोग सीमित है परन्तु रेशे में परिवर्तित होने के पश्चात् यह और अधिक मूल्यवान हो जाता है और इसका उपयोग वस्त्र निर्माण में होता है।
- खदानों से प्राप्त लौह अयस्क का प्रत्यक्ष उपयोग नहीं किया जाता लेकिन अयस्क से इस्पात बनाने के पश्चात् यह मूल्यवान हो जाता है तथा इसका उपयोग अनेक प्रकार की मशीनें व औजार बनाने में होता है।
प्रश्न 2.
विनिर्माण उद्योगों की अवधारणा क्या है? बताइए।।
उत्तर:
विनिर्माण उद्योगों से तात्पर्य प्राथमिक उत्पादन से प्राप्त कच्ची सामग्री को शारीरिक अथवा यान्त्रिक शक्ति द्वारा परिचालित औजारों की सहायता से पूर्व निर्धारित एवं नियन्त्रित प्रक्रिया द्वारा किसी इच्छित रूप, आकार या विशेष गुणधर्म वाली वस्तुओं में बदलना है। विनिर्माण उद्योग में सन्निहित प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं –
- विनिर्माण उद्योग का आरम्भ किसी भी स्तर से हो सकता है। अतिसाधारण वस्तुओं से लेकर भारी से भारी निर्मित वस्तुएँ इसमें सम्मिलित हैं।
- विनिर्माण उद्योग में प्रयुक्त पदार्थ प्राकृतिक दशा में कच्चे माल कहलाते हैं।
- ये संशोधित पदार्थ भी होते हैं; जैसे-इस्पाते जिससे यन्त्र व कलपुर्जे बनाये जाते हैं।
प्रश्न 3.
कच्चे माल की प्राप्ति तक अभिगम्यता उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है। कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उद्योगों की स्थापना में कच्चे माल की प्राप्ति तक अभिगम्यता की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों में बहुत बड़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। यदि यह कच्चा माल दूर से मँगाया जाता है तो परिवहन में काफी खर्च होता है। उद्योगों के लिए कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं सरलता से परिवहन योग्य होना चाहिए। यदि कच्चा माल भारी है तो परिवहन मूल्य अधिक लगता है और लागत खर्च बढ़ जाता है। अत: जिन क्षेत्रों में भारी कच्चे माल की प्राप्ति तक की अभिगम्यता होती है, उनमें विनिर्माण उद्योग लगाये जा सकते हैं।
जैसे-लौह इस्पात व चीनी के कारखाने, सीमेण्ट के कारखाने, लुग्दी का बनाना, कागज उद्योग आदि कच्चे माल के सुलभता से मिलने पर निर्भर रहते हैं। जो पदार्थ शीघ्र नष्ट होने वाले होते हैं, उनके निर्माण उद्योग भी उन पदार्थों की उपलब्धता के समीप ही स्थापित किए जाते हैं; जैसे-दुग्ध पदार्थों, पनीर, मक्खन आदि का निर्माण तथा फलों से डिब्बाबन्द सामग्री का निर्माण आदि।
प्रश्न 4.
“बाजार तक अभिगम्यता उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण कारक है।” स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उद्योगों की अवस्थिति निर्धारण में बाजार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।” कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों की स्थापना में सबसे महत्वपूर्ण कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होना है। बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की माँग एवं वहाँ के निवासियों में खरीदने की क्षमता अथवा क्रय शक्ति से है। जिन क्षेत्रों में किसी उद्योग विशेष की वस्तुओं की खपत अधिक होती है, वहीं उद्योग प्रारम्भ हो जाते हैं।
ऐसा करने से तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने का व्यय कम हो जाता है। यह तब अधिक लाभप्रद होता हैं, जब तैयार माल कच्चे माल की तुलना में अधिक स्थान घेरता है या अधिक भारी होता है। इसी कारण सीमेण्ट, फर्नीचर, काँच, मिट्टी के बर्तन, चीनी के बर्तन आदि उद्योग खपत क्षेत्र की समीपता पर निर्भर रहते हैं।
प्रश्न 5.
उद्योगों की स्थापना में परिवहन व संचार की सुविधाओं तक अभिगम्यता की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों की स्थापना में परिवहन व संचार के साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कच्चे माल, श्रमिकों और मशीनों को उद्योगों तक लाने एवं उत्पादित तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए परिवहन की जरूरत पड़ती है। इसलिए स्थानीयकरण ऐसे ही स्थानों पर होता है, जहाँ सस्ता और तीव्रगामी परिवहन मिल सके। सस्ता परिवहन उत्पादन व्यय को कम रखता है।
पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में अत्यधिक परिवहन तंत्र विकसित होने के कारण सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का संकेन्द्र रहा है। परिवहन के साधनों की सस्ती दरों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में ईरी झील के निकटवर्ती क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र बना दिया है। परिवहन के अलावा उद्योगों के स्थानीयकरण में उद्योगों हेतु सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं प्रबन्ध के लिए उत्तम संचार सुविधाओं की उपलब्धता भी महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 6.
उद्योगों की स्थापना में श्रम आपूर्ति एवं शक्ति के साधनों की अभिगम्यता की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रम आपूर्ति तक अभिगम्यता-उद्योगों के स्थानीयकरण में मानवीय श्रम की सस्ती व सुलभ उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कारक रहा है। कुशल श्रमिको अधिक एवं अच्छा कार्य कर सकते हैं जिससे कारखाने में उत्तम व सस्ता माल बनता है। लेकिन वर्तमान समय में उद्योगों में बढ़ते यन्त्रीकरण तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं के लचीलेपन ने उद्योगों में मानवीय श्रम की निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है।
वर्तमान में अनेक उद्योग ऐसे हैं जिनमें कुशल श्रमिकों की आपूर्ति उनके स्थानीयकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। शक्ति के स्रोतों की उपलब्धता–उद्योगों की मशीनों को चलाने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख स्रोतों में कोयला, पेट्रोलियम, जल विद्युत, प्राकृतिक गैस एवं परमाणु ऊर्जा आदि प्रमुख हैं। ऐसे उद्योग जिनमें ऊर्जा की खपत बहुत अधिक होती है, उनको ऊर्जा उत्पादक स्रोतों के समीप ही स्थापित किया जाता है; जैसे-एल्युमिनियम उद्योग एवं लौह इस्पात उद्योग।
लौह इस्पात जैसे उद्योग जो कोयले से शक्ति प्राप्त करते हैं, कोयला खानों के पास ही स्थापित किए जाते हैं। एल्युमिनियम जैसे उद्योग जिनमें जल विद्युत की अधिक आवश्यकता होती है, जल विद्युत उत्पादक क्षेत्रों के समीप ही स्थापित किए जाते हैं। परन्तु अवस्थिति के कारक के रूप में अब शक्ति का महत्व कम होता जा रहा है क्योंकि ऊर्जा दक्षता में पर्याप्त सुधार हो गया है।
प्रश्न 7.
विश्व में ऊनी वस्त्र उत्पादन के प्रमुख देशों के उत्पादन को बताइए।
उत्तर:
ऊनी वस्त्र उद्योग वस्त्र उद्योगों में दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्योग है। ऊनी वस्त्र उद्योग का तेजी से विकास 17वीं शताब्दी इंग्लैण्ड में हुआ है। मूल्य की दृष्टि से यह विश्व का महत्त्वपूर्ण उद्योग है। विश्व के प्रमुख देशों में ऊनी वस्त्र का वार्षिक उत्पादन (2013) निम्नलिखित प्रकार रहा है –
देश | वार्षिक उत्पादन (प्रतिशत में) |
चीन | 28.8 |
इटली | 24.9 |
जापान | 6.2 |
टर्की | 5.7 |
जर्मनी | 5.0 |
रूस | 4.2 |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 3.6 |
यूनाइटेड किंगडम | 2.4 |
फ्रांस | 2.3 |
पोलैण्ड | 2.2 |
प्रश्न 8.
उच्च तकनीकी और सरकारी नीतियाँ उद्योगों के स्थानीयकरण में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर:
उद्योगों के स्थानीयकरण में उच्च तकनीकी तथा सरकारी नीतियाँ महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इनका स्पष्टीकरण निम्नलिखित प्रकार है –
1. उच्च तकनीकी: उद्योगों की स्थापना में पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना अति आवश्यक है। उच्च तकनीकी इसमें २ निम्नलिखित प्रकार से मदद करती है –
- विनिर्माण की गुणवत्ता का निर्धारण उच्च तकनीकी द्वारा होता है।
- अपशिष्टों का निस्तारण तथा
- प्रदूषण के विरुद्ध नवीन तकनीकों का उपयोग।
2. सरकारी नीतियाँ: किसी देश की सरकारी नीतियाँ निम्नलिखित प्रकार सरकार से उद्योगों के विकास को प्रभावित करती है –
- यदि किसी देश की सरकार वहाँ उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर रही है तो विदेशी कम्पनियाँ वहाँ उद्योग नहीं लगा पाएँगी।
- टैक्स में छूट व अन्य सुविधाएँ उद्योगों के विकास की सम्भावना को बढ़ा देती हैं।
प्रश्न 9.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए। उत्तर-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को अग्रलिखित तीन भागों में बाँटा गया है ।
- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग: ये उद्योग सरकार के अधीन होते हैं। भारत में बहुत से उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। साम्यवादी देशों में अधिकांश उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में है।
- निजी क्षेत्र के उद्योग: उद्योगों का स्वामित्व व नियन्त्रण निजी निवेशकों के हाथ में होता है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में अधिकांश उद्योग निजी क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं।
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग: इस प्रकार के उद्योगों का संचालन सार्वजनिक व निजी दोनों प्रकार के प्रयासों के संयुक्त तत्वाधान में होता है।
प्रश्न 10.
उत्पाद आधारित उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
अथवा
आधारभूत एवं गैर-आधारभूत उद्योगों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद आधारित उद्योग: उत्पादन के आधार पर उद्योगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- आधारभूत उद्योग
- गैर आधारभूत उद्योग।
1. आधारभूत उद्योग: वे उद्योग जिनके उत्पाद को अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, आधारभूत उद्योग कहलाते हैं। जैसे-लौह इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है, जिसके उत्पादों का प्रयोग दूसरे उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
2. गैर आधारभूत उद्योग: इसे उपभोक्ता वस्तु उद्योग भी कहा जाता है। इन उद्योगों से निर्मित उत्पादों को सीधे उपभोग के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के रूप में ब्रेड व बिस्कुट, चाय, साबुन, वस्त्र, लिखने के लिए कागज, रेडियो, टेलीविजन एवं श्रृंगार का सामान आदि।
RBSE Class 12 Geography Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
किसी उद्योग का आकार उसमें निवेशित पूँजी, कार्यतर श्रमिकों की संख्या तथा उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। उद्योगों को उनके आकार के आधार पर निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा जाता है –
1. कुटीर उद्योग:
कुटीर या घरेलू उद्योग वस्तु निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। इस उद्योग के अन्तर्गत शिल्पकार अपने घरों पर ही स्थानीय कच्चे माल का प्रयोग करते हैं। इसमें पूँजी का समावेश न्यूनतम तथा मानवीय श्रम का समावेश अधिकतम होता है। कुटीर उद्योग में साधारण औजारों द्वारा परिवार का अधिकांश सदस्य मिलकर विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, पूँजी एवं परिवहन इन उद्योगों के स्थानीयकरण को अधिक प्रभावित नहीं कर पाते क्योंकि इन उद्योगों में उत्पादित वस्तुओं के अधिकांश भाग का उपभोग स्थानीय स्तर पर कर लिया जाता है। भारत में कुटीर उद्योग के अन्तर्गत जुलाहों द्वारा कपड़े बनाने, चमड़े से निर्मित वस्तुएँ, कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तनों के निर्माण को प्रमुख रूप से शामिल किया जाता है। कुछ वस्तुएँ स्थानीय रूप से उपलब्ध वनोत्पादों से भी निर्मित की जाती हैं।
2. छोटे पैमाने के उद्योग:
इस स्तर के उद्योगों में स्थानीय कच्चे माल, अर्द्ध-कुशल श्रमिक तथा शक्ति संचालित मशीनों का प्रयोग होता है। यह उद्योग घर से बाहर लगाए जाते हैं तथा इनमें उत्पादन की तकनीक कुटीर उद्योगों की तुलना में उत्तम होती है। छोटे पैमाने के उद्योग स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे स्थानीय निवासियों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है। विश्व में भारत, चीन इण्डोनेशिया तथा ब्राजील जैसे विकासशील राष्ट्रों में स्थानीय लोगों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करने के लिए छोटे पैमाने के उद्योगों की स्थापना पर बल दिया जा रहा है।
3. बड़े पैमाने के उद्योग:
बड़े पैमाने के उद्योगों की स्थापना मुख्यतः वाष्पचालित मशीनों के आविष्कार के बाद प्रारम्भ हुई। इन शक्ति संचालित यन्त्रों की सहायता से उद्योगों में वृहत् स्तर पर उत्पादन प्रारम्भ हो गया। बड़े पैमाने के लिए विस्तृत बाजार, विभिन्न प्रकार के कच्चे माल, पर्याप्त शक्ति आपूर्ति, कुशल श्रमिक, विकसित तकनीक, अधिक उत्पादन तथा पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता होती है। प्रारम्भ में इन उद्योगों का विकास ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी भाग तथा यूरोपियन देशों में हुआ, लेकिन वर्तमान में इन उद्योगों का विकास विश्व के अधिकांश देशों में मिलता है।
प्रश्न 2.
कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को अग्रलिखित पाँच भागों में रखा जाता है –
- कृषि आधरित उद्योग
- खनिज आधरित उद्योग
- रसायन आधारित उद्योग
- वन आधरित उद्योग
- पशु आधारित उद्योग।
1. कृषि आधारित उद्योग: इस वर्ग के उद्योग कृषि से प्राप्त उत्पादों का प्रयोग कच्चे माल के रूप में करते हैं। ऐसे गों में भोजन प्रसंस्करण उद्योग, चीनी उद्योग, सूती व रेशमी वस्त्र उद्योग, जूट, चाय, कॉफी तथा रबड़ उद्योग सम्मिलित हैं।
2. खनिज आधारित उद्योग:
इस वर्ग में वे उद्योग’ सम्मिलित हैं जो कच्चे माल के रूप में खनिजों का प्रयोग करते हैं। इनमें से कुछ उद्योग लौह अंश वाले धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं; जैसे-लौह-इस्पात उद्योग। जबकि कुछ उद्योग अलौह धात्विक खनिजों का प्रयोग करते हैं; जैसे-ताँबा, एल्युमिनियम एवं रत्न-आभूषण उद्योग। दूसरी ओर कुछ उद्योग ऐसे होते हैं जो कच्चे माल के रूप में अधात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं; जैसे-सीमेण्ट व चीनी मिट्टी के बर्तनों का उद्योग।
3. रसायन आधरित उद्योग: इस वर्ग के उद्योग कच्चे माल के रूप में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं। पेट्रो-रसायन उद्योग, नमक, गन्धक उद्योग, पोटाश उद्योग, प्लास्टिक उद्योग तथा कृत्रिम रेशे बनाने का उद्योग इस वर्ग के प्रमुख रसायन आधारित उद्योग हैं।
4. वनों पर आधारित उद्योग: इस वर्ग के उद्योग वनों से प्राप्त अनेक मुख्य व गौण उत्पादों का उपयोग अपने कच्चे माल के रूप में करते हैं। फर्नीचर उद्योग, कागज उद्योग तथा लाख उद्योग प्रमुख वन आधारित उद्योग हैं। फर्नीचर उद्योग के लिए इमारती लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी, बाँस व घास तथा लाख उद्योग के लिए लाख वनों से ही प्राप्त होती है।
5. पशु आधारित उद्योग: पशुओं से प्राप्त चमड़ा तथा ऊन ऐसे. महत्त्वपूर्ण पशु उत्पाद हैं जिनका उपयोग कच्चे माल के रूप में क्रमश: चमड़ा उद्योग तथा ऊनी वस्त्र उद्योग द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3.
रेशमी वस्त्र उद्योग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक काल से रेशमी वस्त्र सम्पन्न लोगों की वस्तु रहा है। अतएव यह उद्योग सूती वस्त्र उद्योग तथा ऊनी वस्त्र उद्योग की तुलना में अधिक सीमित और केन्द्रित उद्योग रहा है। रेशमी वस्त्र उद्योग का विकास सर्वप्रथम चीन में कुटीर उद्योगों के रूप में हुआ। यहीं से इस उद्योग का प्रसार विश्व के अन्य देशों में हुआ। स्वचालित कारखानों के आविष्कार के साथ हो उस उद्योग ने फैक्ट्री उद्योग का रूप धारण कर लिया। रेशमी वस्तु उद्योग के प्रमुख चरण रेशमी वस्त्र उद्योग के प्रमुख तीन चरण हैं –
- कोयों (कोकून) का उत्पादन
- कोयों से रेशमी धागा लपेटना तथा
- रेशमी वस्त्रों की बुनाई।
प्राकृतिक रेशम बायोक्जिम नामक कीड़े की लार से निकले पदार्थ से प्राप्त होता है। शहतूत के पत्तों पर पलने वाला यह कीड़ा अपने मुंह से निकले लसलसे पदार्थ को अपने शरीर के चारों तरफ लपेटता है। इस स्थिति में इसे कोये (कोकून) कहते हैं। पूर्ण विकसित कोयों को पानी में उबालकर उन पर लिपटे रेशम को उतार कर अलग धागे में लपेटा जाता है। इसके बाद रेशम के कपड़े बनाये जाते हैं।
विश्व के प्रमुख रेशम उत्पादक देश:
विश्व में प्राकृतिक कच्चे रेशम का उत्पादन करने वाले देशों में जापान लगभग 50 प्रतिशत, चीन 28 प्रतिशत, रूस 6 प्रतिशत तथा भारत 6 प्रतिशत रेशम का उत्पादन करता है। रेशमी वस्त्र मुख्य रूप से बाजार व मांग से प्रभावित होता है। इस उद्योग का विकास वहीं सफलतापूर्वक होता है जहाँ पर्याप्त संख्या में कुशल श्रम उपलब्ध है।
जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, चीन, ताइवान, जर्मनी, इंग्लैण्ड तथा भारत रेशमी वस्त्र के प्रमुख निर्माण करने वाले देश हैं। पूर्वी एशिया के देशों में विश्व का लगभग 85 प्रतिशत कच्चा रेशमें तैयार होता है। किन्तु यहाँ से विश्व के रेशम उत्पादन का लगभग 35 प्रतिशत भाग ही प्राप्त होता है। विश्व के प्रमुख रेशम उत्पादक देश निम्नलिखित हैं –
- जापान: यह विश्व का प्रमुख रेशम उत्पादक देश है। जापान के यामागोता, फुकुशिमा, निगीता, किनकी तथा क्यूटो रेशमी । वस्त्रों की बुनाई के प्रमुख केन्द्र हैं।
- चीन: चीन में रेशमी वस्त्र उद्योग अति प्राचीन काल से विकसित रहा है। चीन से यूरोप के स्थलीय मार्ग को इतिहासकार रेशम मार्ग के नाम से पुकारते हैं। चीन के प्रमुख रेशम उद्योग के केन्द्र शंघाई तथा क्वांगचाऊ है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका में रेशमी वस्त्रों के उत्पादन में पेन्सिलवेनिया राज्य संबसे आगे है। पैटरसन नगर यहाँ का सबसे बड़ा रेशमी वस्त्र उत्पादक नगर है। जिसे अमेरिका का ‘रेशमी नगर’ कहते हैं।
- फ्रांस: फ्रांस की रोन घाटी में स्थित लियोस नगर रेशमी वस्त्रों के उत्पादन का सबसे प्रमुख केन्द्र है।
- भारत: भारत में रेशमी वस्त्रों के उत्पादन की दृष्टि से कोलकाता, मैसूर, बंगलौर तथा चेन्नई का प्रमुख स्थान है।