Rajasthan Board RBSE Class 12 Pratical Geography Chapter 4 सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तन्त्र
RBSE Class 12 Pratical Geography Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
सुदूर संवेदन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी वस्तु को स्पर्श किये बिना दूर से ही उसके बारे में सूचनाएँ प्राप्त कर लेना सुदूर संवेदन कहलाता है। कृत्रिम उपग्रह वायुयान या अन्य किसी प्लेटफार्म पर रखे किसी संवेदक द्वारा धरातल के प्रतिरूपों व अन्य सूचनाओं को प्राप्त करने, अकड़े व चित्र तैयार करने, प्राप्त तथ्यों की व्याख्या करने की समस्त क्रियाओं को सुदूर संवेदन में सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 2.
सुदूर संवेदन के वायुमंडलीय प्लेटफॉर्म कौन से हैं ?
उत्तर:
सुदूर संवदेन के वायुमंडलीय प्लेटफॉर्म निम्न हैं –
1. गुब्बारे:
- स्वतंत्र
- डोरी से बंधे
- शक्ति चालित।
2. वायुयान:
- हेलीकॉप्टर
- ड्रोन।
प्रश्न 3.
सुदूर संवेदन की प्रक्रियाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुदूर संवेदन एक ऐसा विज्ञान है जिसमें दूर स्थित संवेदक के द्वारा परावर्तित प्रकाश के आवेगों का विश्लेषण करके आंकड़ों या प्रतिबिम्ब के द्वारा उस स्थान, वस्तु या घटना के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा जो ऊष्मा या प्रकाश के रूप में मिलती है तंरगों के रूप में संचरण करती है।
ये ऊर्जा धरातल के पदार्थों से अन्योन्य क्रिया करती है यह क्रिया पदार्थों की विभिन्नता के अनुसार समान नहीं होती। धरातल एवं आपतित ऊर्जा की अन्योन्य क्रिया से विद्युत चुम्बकीय संवेग पैदा होते हैं जो परावर्तित होकर संवेदक तक पहुँचते हैं। धरातल से आने वाले विद्युत चुम्बकीय आवेगों को ग्रहण करने के लिए दूरसंवेदन में प्लेटफॉर्म चुने जाते हैं और वहाँ स्थिर संवेदक परावर्तित आवेगों को डिजिट के रूप में आलेखित करता है। इन सूचनाओं को भू-आधारित केन्द्रों में कम्प्यूटर रिकार्ड करते रहते हैं।
प्रश्न 4.
भारत में सुदूर संवेदन कार्यक्रम के प्रांरभिक विकास पर लेख लिखिए।
उत्तर:
भारत सुदूर संवेदन के क्षेत्र में विश्व के गिने चुने महत्त्वपूर्ण देशों में आता है। भारत के पास विश्वस्तरीय तकनीक उपलब्ध है जो विदेशी उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करता है। भारत में दूर संवेदन कार्यक्रम के प्रारंभिक विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है –
- दूर संवेदन तकनीकी के विकास में होमी जहाँगीर भाभा, विक्रम साराभाई, पी. रामा पिसरोतय, यू. आर. राव, सतीश धवन तथा कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन आदि वैज्ञानिकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
- दूर संवेदन तकनीकी का सर्वप्रथम उपयोग पी. रामा पिशरोतय ने नारियल की कृषि में लगने वाले बिल्ट रूट नामक बीमारी को पहचानने के लिए किया था।
- 1960 के दशक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO ने वायुयानों में लगे संवेदकों द्वारा देश के कुछ भागों में कृषि भूमि उपयोग, वनों के प्रकार, मिट्टियों के प्रकार तथा प्रदूषण की जानकारी के लिए हवाई सर्वेक्षण किए।
- अंतरिक्षी दूरसंवेदन का प्रारम्भ 1975 में हुआ जब इसरो ने आर्यभट्ट नामक प्रथम उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित किया।
- इसरो ने जुलाई 1979 में भास्कर-1 और अप्रैल 1983 में भास्कर – 2 को रूस के रॉकेट वाहकों द्वारा अंतरिक्ष में भेजा।
- मई 1981 में इसरो ने रोहिणी श्रृंखला के RS – D1 तथा RS – D2 को श्री हरिकोटा से SLV – 3 रॉकेट के द्वारा अंतरिक्ष में भेजा ये उपग्रह पूर्णतः स्वदेशी थे।
- 19 जुलाई, 1981 में भारत ने APPLE नामक प्रथम भू-तुल्यकालिक उपग्रह को फ्रेन्च गायना के कोरू केन्द्र से अन्तरिक्ष में स्थापित किया।
- भू तुल्यकालिक से क्रियात्मक उपग्रह श्रृंखला का प्रथम उपग्रह इन्सेट – IA था जिसे नासा के डेल्टा रॉकेट द्वारा 10 अप्रैल 1982 में इसकी पूर्वनिर्धारित भू-तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया।
- इन्सेट IB भू-तुल्यकालिक उपग्रह जो 82° पूर्वी देशान्तर पर स्थित हैं, इससे देश के लगभग 220 टेलीविजन केन्द्र, मौसम विभाग के 75 केन्द्र और दूरसंचार के 8000 से अधिक टेलीफोन सर्किट जुड़े हुए हैं।
- इन्सेट – IC और इन्सेट – I को भी कोरू केन्द्र फ्रेन्च गायना से प्रेक्षित किया गया है। इन्सेट – 2 श्रृंखला के अंतिम उपग्रह 2E को 3 अप्रैल, 1999 को कोरू से ही भेजा गया। इससे दूरदर्शन व दूर संचार के क्षेत्र में प्रगति हुई।
- 1988 से 26 मई, 1999 की अवधि में इसरो ने सात उपग्रह ध्रुवीय एवं वृत्ताकार सूर्य-तुल्यकालिक कक्षाओं में स्थापित किए। इनमें चार उपग्रह IRS – 1 तथा तीन उपग्रह IRS – P श्रृंखला के हैं।
- इसरो ने 1994 में सूर्य-तुल्यकालिक उपग्रहों की नवीन श्रृंखला IRS – P प्रारम्भ की 26 मई, 1994 तक इस श्रृंखला के IRS-P2, IRS – P3 वे IRS-P4 अन्तरिक्ष में भेजे जा चुके हैं।
26 मई, 1999 में इसरो ने अपनी स्वदेशी तकनीकी से निर्मित PSLV – 2C रॉकेट के द्वारा श्रीहरिकोटा के शार केन्द्र से एक साथ तीन दूरसंवेदन उपग्रहों –
- भारत का IRS – P4
- कोरिया का KITSAT
- जर्मनी का TUBSAT
उनकी अपनी-अपनी सूर्य-तुल्यकालिक कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित कर विश्व प्रशंसनीय कार्य किया। विगत 15 वर्षों से भारत में दूर संवेदन के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलताएँ प्राप्त की।
प्रश्न 5.
भौगोलिक सूचना तंत्र क्या है?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र एक ऐसी प्रणाली है जिसमें सुदूर संवेदन तकनीकी से प्राप्त आंकड़ों को विश्लेषित करके परिणाम तक पहुँचा जाता है। इसमें धरातलीय आंकड़ों की प्रविष्टि, संग्रहण, परिचालन, विश्लेषण तथा प्रदर्शन के समस्त कार्य किए जाते हैं। भौगोलिक सूचना तंत्र, सूचनाओं का अपार भण्डार है, जिसमें स्थानीय आंकड़ों, विशिष्ट सूचनाओं की स्थिति निर्धारण कर पृथ्वी से संदर्भित आंकड़ों के प्रग्रहण, भण्डारण, जाँच, समन्वय, हेर-फेर, विश्लेषण व प्रदर्शन को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 6.
भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) की परिभाषा बताइए।
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी है जिनमें क्लार्क, बुरों, एरोनोफ, पार्कर, गुड चाइल्ड, स्मिथ तथा डी. डी. चौनियाल के नाम महत्त्वपूर्ण हैं। पार्कर के अनुसार–“कोई भी सूचना तकनीकी जो धरातलीय तथा अधरातलीय आंकड़ों का संग्रह, विश्लेषण तथा प्रदर्शन करती है उसे जी. आई. एस. कहते हैं। पार्कर ने लिखा है कि भौगोलिक सूचना तंत्र एक सूचना तकनीकी विज्ञान है जो स्थानिक एवं अस्थानिक आकड़ों के संग्रह, विश्लेषण और प्रस्तुतिकरण में सक्षम है।
बुरों के अनुसार-“भौगोलिक सूचना तंत्र वास्तविक धरातल से सम्बंधित स्थानिक सूचनाओं के एकत्रीकरण, भण्डारण, रूपान्तरण और प्रस्तुतीकरण के लिए विभिन्न यंत्रों का शक्तिशाली तंत्र है।” एरोनोफ के अनुसार-“GIS कम्प्यूटर आधारित ऐसा तंत्र है जो भौगोलिक आंकड़ों के प्रदर्शन में चार प्रकार से सक्षम है-निवेश, आंकड़ों का प्रबंधन, विश्लेषण एवं निर्गमन। डी. डी. चौनियल के अनुसार-“भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) भौगोलिक अथवा धरातलीय आँकड़ों की प्रविष्टि, संग्रह, परिचालन, विश्लेषण तथा प्रदर्शित करने वाली प्रणाली है।” संक्षेप में भौगोलिक सूचना तंत्र एक सूचना तकनीकी विज्ञान है जो स्थानिक एवं अस्थानिक आंकड़ों के संग्रह विश्लेषण एवं प्रस्तुतिकरण में सक्षम है।
प्रश्न 7.
भौगोलिक सूचना तंत्र से क्या लाभ है?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र से प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभ निम्न हैं –
- प्रयोक्ता सम्बंधित स्थानीय लक्षणों के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं और संबंधित गुण-व्यास को प्रदर्शन और विश्लेषण हेतु निकाल सकते हैं।
- सूचनाओं का विश्लेषण करके उन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
- स्थानिक प्रचालकों का समन्वित सूचनाधार पर अनुप्रयोग कर नए समुच्चय विकसित किए जा सकते हैं।
- विशेष आंकड़ों के विभिन्न आइटम एक-दूसरे के साथ समन्वित किए जा सकते हैं।
प्रश्न 8.
भौगोलिक सूचना तंत्र के कौन-कौन से प्रकार हैं?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र से निम्नलिखित दो प्रकार के आंकड़े प्राप्त होते हैं –
- स्थानीय आंकड़े जिन्हें उनकी स्थिति, रेखा, क्षेत्रीकरण एवं बनावट के आधार पर दिखाया जाता है।
- गैर-स्थानीय आंकड़े जिनमें मात्रा, संख्या तथा विशेष विवरण होता है। भौगोलिक सूचना तंत्र में गुण और उनकी मदें अथवा वर्ग होते हैं। बांयी ओर गैर-स्थानिक आंकड़े प्रदर्शित होते हैं, जबकि दाहिनी और स्थानिक आंकड़े जैसे राज्यों की जनसंख्या, सारक्षता आदि को प्रदर्शित किया जाता है।
प्रश्न 9.
चित्र रेखा पुंज एवं सदिश आंकडा मॉडल के मध्य कोई चार अन्तर बताइए।
उत्तर:
चित्र रेखा पुंज एवं सदिश आंकड़ा मॉडल में प्रमुख चार अंतर निम्नलिखित हैं –
चित्र रेखापुंज | सदिश आंकड़ा मॉडल |
1. इसमें आंकड़े वर्गों के जाल के प्रारूप में ग्राफिक्स के द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं। | 1. एक सदिश आंकड़ा मॉडल अपनी यथार्थ द्वारा भण्डारित बिन्दुओं का प्रयोग करता है। यहाँ रेखाओं और क्षेत्रों का निर्माण बिन्दुओं के अनुक्रम द्वारा होता हैं। |
2. इसमें आंकड़ों के सम्पीडन की आवश्यकता होती है। | 2. अधिकांश स्थानिक आंकड़े चाहे वे स्थलाकृतिक मानचित्र हो अथवा थिमेटिक मानचित्रों के रूप में हो स्थानिक मानचित्रों के रूप में उपलब्ध होते हैं तथा आंकड़ों के परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती। |
3. मिश्रित सेलों की स्थिति में अशुद्धियाँ आ जाती हैं। | 3. स्थलाकृति को दर्शाने एवं विश्लेषण में अधिक शुद्धता रहती है। |
4. आंकड़ों के भण्डारण में उच्च कोटिय स्मृति व्यवस्था होती है। | 4. इसमें कम स्मृति की आवश्यकता होती है। |
प्रश्न 10.
भौगोलिक सूचना तंत्र के मुख्य घटक कौन से हैं?
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र के निम्नलिखित चार घटक हैं –
- हार्डवेयर
- सॉफ्टवेयर
- आँकड़े
- व्यक्ति।
1. हार्डवेयर:
इसमें हार्डवेयर के प्रक्रमण भंडार, प्रदर्शन और निवेश तथा बहिर्वेश उपतंत्र, आंकड़ा प्रविष्टि, संपादन, अनुरक्षण, विश्लेषण, रूपान्तरण हेरफेर आंकड़ा प्रदर्शन और बहिर्वेशों के लिए सॉफ्टवेयर मॉडयूल तथा सूचनाधार प्रबंधन तंत्र सम्मिलित है।
2. सॉफ्टवेयर:
भौगोलिक सूचना तंत्र व्यक्तिगत कम्प्यूटर से लेकर सुपर कम्प्यूटर तक पर व्यवस्थित किया जा सकता है। सभी में कुछ आवश्यक तत्व होते हैं, जो भौगोलिक सूचना तंत्र को प्रभावी बनाने में सहायक होते हैं।
3. आँकड़े:
भौगोलिक सूचना तंत्र में स्थानिक एवं गैर-स्थानिक आँकड़ों के विवरण होते हैं।
4. व्यक्ति:
व्यक्ति के अन्तर्गत एक व्यक्ति से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं तक को सम्मिलित किया जाता है। इसकी योजना बनाने, क्रियान्वित करने तथा इसके तर्कसंगत निष्कर्ष निकालने के लिए लोगों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 11.
चित्र रेखा पुंज (Raster) संरचना के कोई दो गुण व दो दोष बताइए।
उत्तर:
चित्र रेखा पुंज (Raster) संरचना के कोई दो गुण व दो दोष निम्नानुसार हैं-
गुण:
- इसमें आंकड़े वर्गों के जाल के प्रारूप में ग्राफिक्स द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं।
- इसकी पंक्तियों और स्तम्भों में निर्देशांक किसी भी पिक्सल की पहचान कर सकते हैं।
दोष:
- इसमें नेटवर्क संबंधों को सुचारु रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
- मिश्रित सेलों की स्थिति में अशुद्धियाँ आ जाती हैं।
प्रश्न 12.
सदिश (Vector) संरचना के कोई दो गुण व दो दोष बताइए।
उत्तर:
सदिश संरचना के गुण व दो दोष निम्नानुसार हैं –
गुण:
- यह सांस्कृतिक लक्षणों को प्रदर्शित करने के लिए अधिक उपयोगी है।
- सदिश संरचना में भौगोलिक स्थितियों से संबंधित आंकड़ों को संजोया जाना है और ये आंकड़े इतने सुनिश्चित होते हैं कि इनके साधारणीकरण की आवश्यकता नहीं होती और ग्राफ सौंदर्यपरक होता है।
दोष:
- इसकी प्रक्रिया जटिल है तथा इसको संशोधित करना भी मुश्किल है।
- आंकड़ों का विश्लेषण एवं गणना जटिल प्रक्रिया है।
प्रश्न 13.
भौगोलिक सूचना तंत्र की क्रियाओं का अनुक्रम बताइए।
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र की क्रियाओं का अनुक्रम निम्नानुसार होता है –
- स्थानिक आंकड़ा निवेश (Spatial Data Input)।
- गुण व्यास की प्रविष्टि (Entering of the Attribute Data)।
- आंकड़ों का सत्यापन और संपा (Data Verification and Editing)।
- स्थानीय गुण व्यास आंकड़ों की सहलग्नता (Spatial and Attribute Data Linkager)।
- स्थानिक विश्लेषण (Spatial Analysis)।
प्रश्न 14.
भौगोलिक सूचना तंत्र के उपयोग के क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
भौगोलिक सूचना तंत्र के उपयोग का क्षेत्र निम्नानुसार है –
1. वन संसाधनों के संरक्षण व प्रबन्धन में –
- वनाग्नि मानचित्र।
- जैव विविधता का संरक्षण।
- पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन।
- वन आवरण मानचित्र।
2. जल संसाधन संरक्षण व नियोजन में –
- धरातलीय जल संसाधन का मानचित्रण।
- बाढ़ से हानि का मूल्यांकन।
- जलग्रहण प्राथमिकता।
- बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का मानचित्रण।
3. मृदा संसाधन संरक्षण में –
- मृदा मानचित्र।
- मृदा का आकलन।
- लवणीय तथा क्षारीय मृदाओं का मानचित्र।
- भू-सिंचाई योग्यता मानचित्र।
4. कृषि संसाधन संरक्षण में –
- फसल क्षेत्र के उत्पादन का आकलन।
- सूखे का मूल्यांकन।
- फसल उत्पादकता मॉडलों का विकास।