The Ailing Planet : the Green Movement’s Role

(बीमार ग्रह, पृथ्वी : हरित आन्दोलन कि की भूमिका)

-Nani Palkhivala

निम्नलिखित लेख नानी पालखीवाला द्वारा लिखा गया था और 24 नवम्बर, 1994 को The Indian Express’ में प्रकाशित हुआ था। पृथ्वी के गिरते स्वास्थ्य (दुर्दशा) को लेकर उनके द्वारा उठाये गये मुद्दे आज भी तर्कसंगत हैं।

कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद

One cannot recall………………………one based on partnership. (Pages 43-44)

कठिन शब्दार्थ : Recall (रिकॉल्) = स्मरण करना, movement (मूव्मन्ट) = अभियान, gripped (ग्रिप्ट) = जकड़ लिया, आकर्षित किया, imagination (इमैजिनेश्न्) = कल्पना, ध्यान, irrevocably (इरेवब्लि ) = अखण्ड रूप से, holistic (हॉलिस्टिक) = समग्र रूप में, ecological (ईकलॉजिकल) = जीवों का परस्पर एवं वातावरण के साथ सम्बन्ध के दृष्टिकोण से, perceptions (पसेप्शन्ज्) = बोध, ज्ञान, revolutionary (रैवलूशनरि) = क्रान्तिकारी, revolved (रिवॉल्व्ड ) = चक्कर लगाते थे, consciousness (कॉन्शस्नस्) = चेतना, organism (ऑगनिजम्) = जीव, metabolic (मेटबॉलिक्) = उपापचयी, भोजन को ऊर्जा में बदलने सम्बन्धी, vital processes (वाइट्ल प्रोसेस्ज) = महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ, ethical (ऐथिक्ल) = नैतिक, steward (स्ट्यू अड्) = प्रबन्धक, भण्डारी, legacy (लेगसि) = विरासत, sustainable development (सस्टेनब्ल् डिवेलप्मन्ट) = विकास जिसे बनाये रखा जा सके, compromising (कॉम्प्रमाइजिङ्) = संकट में डालना, stripping (स्ट्रिपिङ्) = नग्न, खाली कर देना, domination (डॉमिनेशन्) = प्रभुत्व।

हिन्दी अनुवाद : कोई भी व्यक्ति विश्व के इतिहास में किसी भी ऐसे आन्दोलन का स्मरण नहीं कर सकता जिसने समस्त मानव जाति की कल्पना को इतनी जल्दी एवं इतने सम्पूर्ण रूप से जकड़ लिया हो जितना हरित आन्दोलन ने जकड़ा है, जो लगभग 25 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। 1972 में, विश्व की प्रथम राष्ट्र-स्तर की हरित पार्टी की नींव न्यूजीलैंड में रखी गयी। तब से ही इस आन्दोलन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है।

हमने ध्यान हटाया है (उम्मीद करें, अखण्ड रूप से) दुनिया के प्रति एक यान्त्रिक दृष्टिकोण से और इसे केन्द्रित किया है, एक समग्र एवं जीवों तथा प्रकृति के परस्पर सम्बन्धों पर आधारित दृष्टिकोण पर। यह मानव बोध का वैसा ही क्रान्तिकारी स्थान-परिवर्तन है जैसा कोपरनिकस द्वारा शुरू किया गया था, जिसने मनुष्य जाति को 16वीं शताब्दी में यह बताया था कि पृथ्वी एवं अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। मानव इतिहास में प्रथम बार, दुनिया भर में एक बढ़ती हुई चेतना मौजूद है कि पृथ्वी स्वयं एक जीवित प्राणी है—एक विशाल प्राणी जिसके हम सब हिस्से हैं। इसकी अपनी उपापचयी आवश्यकताएँ हैं तथा महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ हैं जिनका सम्मान एवं संरक्षण किए जाने की आवश्यकता है।

_ पृथ्वी के महत्त्वपूर्ण चिह्नों से प्रकट होता है कि वह एक ऐसी मरीज है जिसका स्वास्थ्य निरन्तर बदतर होता जा रहा है। हमने अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को महसूस करना शुरू कर दिया है। ये नैतिक जिम्मेदारियाँ हैं, हम पृथ्वी नामक ग्रह के अच्छे प्रबन्धक बनें तथा जिम्मेदार न्यासियों की भाँति भावी पीढ़ियों के लिए इसे स्वस्थ विरासत के रूप में छोड़कर जायें।

‘बनाए रखा जा सकने वाला (धारणीय) विकास’ की अवधारणा को पर्यावरण एवं विकास के विश्व आयोग द्वारा 1987 में लोकप्रियता प्रदान की गयी। इसकी रिपोर्ट में, इसने इस अवधारणा को एक ऐसे “विकास के रूप में जो वर्तमान की आवश्यकताएं पूरी कर सके, बिना भावी पीढ़ियों की उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने की सामर्थ्य को प्रभावित किए” के रूप में परिभाषित किया। मतलब यह कि प्राकृतिक दुनिया को उन संसाधनों से रिक्त किए बिना जिनकी आवश्यकता भावी पीढ़ियों को होगी।

_जाम्बिया की राजधानी लुसाका के एक चिड़ियाघर में एक पिंजरा है जहाँ सूचना लगी है, “दुनिया का सर्वाधिक खतरनाक प्राणी”। पिंजरे के भीतर कोई जानवर नहीं है बल्कि एक दर्पण लगा है जिसमें आप स्वयं को देखते हैं । विभिन्न देशों की बहुत सारी संस्थाओं के प्रयासों को धन्यवाद देना होगा कि दुनिया के सबसे अधिक खतरनाक जानवर (मनुष्य) पर एक नई चेतना का उदय हुआ है। उसने इस बुद्धिमत्ता को स्वीकार किया है कि प्रभुत्व कायम करने की व्यवस्था से ह जाया जाये।

Scientists have catalogued……. ..an acre-and-a-half to a second. (Pages 44-45)

कठिन शब्दार्थ : catalogued (कैटलॉग्ड) = सूचीबद्ध किया है, reckon (रेकन्) = गणना करना, languish (लैन्ग्व श्) = दु:ख में पड़े होना, ignominious darkness (इग्नमिनिअस् डार्कनिस) = अपमानपूर्ण अज्ञातता, inter alia (इन्ट(र) एलिज) = अन्य चीजों के साथ-साथ, ecology (इकॉलजि) = पारिस्थितिकी, जीवों के परस्पर एवं प्रकृति के साथ सम्बन्धों का विज्ञान, scorched (स्कॉचट) = झुलसा हुआ, impoverished (इम्पॉवरिश्ट) = बिगड़ा हुआ, क्षतिग्रस्त, ailing (एलिङ्) = बीमार पड़ा हुआ, synthetics (सिन्थेटिक्स) = कृत्रिम, संश्लेषित पदार्थ, claims (क्लेम्ज) = अधिकार, दावे, impaired (इम्पेअ(र)ड) = खराब हो चुकी, collapse (कलैप्स) = नष्ट हो जाना, deteriorate (डिटिअरिअरेट) = बदतर होना, decimated (डेसिमेट्ड) = सामूहिक रूप से विनाश करना, evolution (ईवलूश्न्) = जैविक विकास, precede (प्रिसीड्) = पहले आना, extinction (इक्स्टिक्श्न् ) = विलुप्त हो जाना, patrimony (पैट्रिमनि) = विरासत में मिली जायदाद, tropical (ट्रॉपिकल्) = उष्णकटिबन्धीय, eroding (इरोडिङ्) = खत्म हो रही।

हिन्दी अनुवाद : वैज्ञानिकों ने करीब 14 लाख (1.4 मिलियन) जीवित प्रजातियों की सूची बनाई है जिनके साथ मानव जाति पृथ्वी पर रहती है। अभी भी जिन प्रजातियों की सूची नहीं बन पायी है उनकी संख्या के मूल्यांकन में भिन्नता पायी जाती है। जीव-विज्ञानी गणना करते हैं कि करीब तीन से एक सौ मिलियन अन्य जीवित प्रजातियाँ अभी भी गुमनाम रहकर दु:ख झेल रही हैं और अपमानपूर्ण अज्ञातता की स्थिति में हैं।

प्रारम्भ के अन्तर्राष्ट्रीय आयोगों, जिनका सम्बन्ध अन्य चीजों के साथ-साथ पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण से था, में से एक था, ब्रान्ट आयोग, जिसमें एक सदस्य के रूप में विख्यात भारतीय थे—मि. एल. के. झा । प्रथम ब्रान्ट रिपोर्ट ने प्रश्न उठाया था-“क्या हमें अपने उत्तराधिकारियों के लिए एक झुलसा हुआ ग्रह छोड़ना है जिसके रेगिस्तान आगे बढ़ रहे हों, भू-दृश्य दरिद्र हो चुके हों तथा पर्यावरण रोग-ग्रस्त हों?”

मि. लेस्टर ब्राउन ने अपनी विचारपूर्ण पुस्तक, द ग्लोबल इकॉनोमिक प्रोस्पेक्ट, में बताया है कि पृथ्वी के चार मुख्य जैविक तत्त्व हैं—मछली-क्षेत्र, वन, चरागाहें और कृषि क्षेत्र । ये वैश्विक अर्थव्यवस्था की नींव का निर्माण करते हैं। हमारा भोजन प्रदान करने के अतिरिक्त ये चारों तत्त्व करीब-करीब सभी प्रकार का कच्चा माल हमारे उद्योगों के लिए उपलब्ध कराते हैं, केवल खनिजों तथा पैट्रोल से उत्पादित कृत्रिम चीजों को छोड़कर। दुनिया के बड़े-बड़े हिस्सों में इन तत्त्वों पर मनुष्य के दावे अमान्य स्तर तक पहुंच रहे हैं, एक ऐसे बिन्दु तक जहाँ उनकी उत्पादकता बिगड़ती जा रही है। जब ऐसा होता है तो मछली क्षेत्र नष्ट हो जाते हैं, वन गायब हो जाते हैं, चरागाह बेकार की बंजर भूमि में बदल जाते हैं तथा कृषि क्षेत्र बदतर हो जाता है। एक प्रोटीन-सचेष्ट एवं प्रोटीन के लिए भूखी दुनिया में आवश्यकता से अधिक मछली पकड़ना रोज ही सामान्य बात हो जाती है। गरीब देशों में स्थानीय जंगलों का सामूहिक विनाश हो रहा है ताकि पकाने के लिए जलाऊ लकड़ी मिल सके। कुछ स्थानों पर जलाऊ लकड़ी इतनी महँगी हो गयी है कि “जो कुछ बर्तन के नीचे रहता है उसकी कीमत बर्तन के भीतर की चीज से अधिक हो जाती है।” क्योंकि उष्ण-कटिबन्धीय जंगल, डॉ. मिअर के शब्दों में, “जैविक विकास के शक्ति-गृह हैं”, अतः जीवों की कई प्रजातियाँ इस जंगल के विनाश के परिणामस्वरूप विलुप्तता का सामना कर रही हैं।

यह ठीक ही कहा गया है कि जंगल मनुष्य के पहले होते हैं और रेगिस्तान मनुष्य के बाद । दुनिया के उष्ण-कटिबन्धीय जंगलों की प्राचीन विरासत अब 40 से 50 मिलियन एकड़ प्रतिवर्ष की दर से घटती जा रही है और गोबर का जलाने में बढ़ता हुआ प्रयोग मिट्टी को एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक खाद से वंचित कर रहा है। विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वन लगाने की दर में पाँच गुणा वृद्धि करनी होगी ताकि सन् 2000 में

अपेक्षित ईंधन भी माँग से मुकाबला किया जा सके।

र जेम्स स्पेश, जो वर्ल्ड रिसोर्सेज इन्स्टीट्यूट के अध्यक्ष हैं, ने कुछ दिनों पूर्व कहा था, “हम कह रहे हैं र हम जंगलों को खो रहे हैं, एक सेकण्ड में एक एकड़ की दर से, लेकिन यह दर डेढ़ एकड़ प्रति सेकण्ड के अधिक निकट है।”

Article 48A of the constitution………….countries investigated. (Pages 45-46)

कठिन शब्दार्थ : endeavour (इन्डेव(र) = प्रयास करना, anguish (ऐग्विश्) = पीड़ा, catastrophic (कटैस्ट्रफि) = खतरनाक, depletion (डिप्लीश्न्) = कमी, critical (क्रिटिक्ल्) = गम्भीर।

हिन्दी अनुवाद : भारत के संविधान की धारा 48A में यह प्रावधान है कि “राज्य पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार का प्रयास करेगा तथा जंगलों एवं जंगली जीवों की सुरक्षा के लिए कदम उठायेगा।” लेकिन जो चीज अनन्त पीड़ा पहुँचाती है वह यह है कि इस देश में न तो कानून का सम्मान है और न ही उसका पालन कर की सख्ती। (उदाहरणार्थ, संविधान कहता है कि जातिवाद, अस्पश्यता तथा बंधुआ मजदूरी को मिटाया जायेगा, लेकिन वे आज भी निर्लज्जता के साथ संविधान के लागू होने के 44 वर्ष बाद भी, फल-फूल रहे हैं।)….. हमारी संसद की अनुमान समिति की एक नवीन रिपोर्ट ने भारत के जंगलों की पिछली चार दशाब्दियों के दौरान हुई खतरनाक कमी पर जोर दिया है। 20its ani विश्वसनीय आँकड़ों के अनुसार भारत अपने जंगलों को 3.7 मिलियन एकड़ प्रतिवर्ष की दर से खो रहा है। बड़े-बड़े क्षेत्र जिन्हें अधिकृत रूप से जंगल-की-भूमि तय किया गया था, “पहले से ही करीब-करीब

वृक्षहीन हो चुके हैं।” जंगलों की वास्तविक हानि सरकारी आँकड़ों द्वारा बताई गई हानि की दर से आठ गुणा है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा उपग्रहों तथा हवाई फोटोग्राफी की मदद से किया गया तीन वर्ष का अध्ययन चेतावनी देता है कि पर्यावरण इतनी बुरी तरह से खराब हो चुका है कि यह जाँचे गये अट्ठासी देशों में से कई देशों में गम्भीर स्थिति में आ गया है।

There can be no doubt……… …….given topmost priority. (Page 46)

कठिन शब्दार्थ : Distorting (डिस्टॉटिङ्) = तोड़-मरोड़ रहा, बिगाड़ रहा, contraceptive (कॉन्ट्रॅसेप्टिव) = गर्भ-निरोधक, condemns (कन्डेम्ज) = अभिशप्त कर देता है, sterilised (स्टरलाइज्ड) = नसबन्दी किया जाना, coercion (कोअश्न्) = जोर-जबरदस्ती, perpetuation (पपेचुएश्न्) = स्थायी बना देना, hutments (हट्मेन्ट्स) = झोंपड़ियाँ, priority (प्राइऑरटि) = वरीयता।

हिन्दी अनुवाद : इस बात में कोई सन्देह नहीं हो सकता है कि दुनिया की आबादी में बढ़ोतरी सबसे तगड़े कारणों में से एक है जो मानव-समाज को विकृत करते हैं। प्रथम अरब की संख्या तक पहुँचने में मानव जाति को एक मिलियन (10 लाख) से अधिक वर्ष लगे। यह दुनिया की आबादी थी सन् 1800 ई. में। सन् 1900 तक एक अरब की संख्या इसमें और जुड़ गयी तथा 20वीं सदी ने 3.7 अरब इसमें जोड़ दिए। वर्तमान की विश्व जनसंख्या का अनुमान 5.7 अरब का है। हर चार दिन में दुनिया की आबादी 10 लाख बढ़ जाती है। __ सन्तानोत्पादकता कम हो जाती है ज्यों-ज्यों आय बढ़ती है, शिक्षा फैलती है तथा स्वास्थ्य में सुधार आता है। इस प्रकार विकास सबसे अच्छा गर्भ-निरोधक सिद्ध होता है। लेकिन विकास स्वयं तब तक सम्भव नहीं हो सकता जब तक संख्या में वर्तमान बढ़ोतरी जारी रहती है।

धनवान् अधिक धनवान् होते चले जाते हैं और गरीब लोग बच्चे पैदा करते हैं जो गरीब रहने को अभिशप्त होते हैं। अधिक बच्चों से तात्पर्य अधिक कार्यकर्ताओं से नहीं होता, केवल अधिक बेरोजगार लोगों से होता है। यह सुझाव नहीं दिया जा रहा है कि मनुष्यों को पशुओं के समान समझा जाये और जबरन उनकी नसबन्दी कर दी जाये। लेकिन स्वैच्छिक परिवार का कोई विकल्प भी नहीं है, बिना जोर-जबरदस्ती के तत्त्व को लाये। वास्तव में चुनाव दो चीजों के बीच करना है, जनसंख्या का नियन्त्रण अथवा दरिद्रता को बनाये रखना। । आज भारत की जनसंख्या 920 मिलियन आँकी जाती है, जो अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका की कुल आबादी से अधिक है। कोई व्यक्ति जो भारत की दशाओं के बारे में परिचित है उसे सन्देह नहीं होगा कि लोगों की उम्मीद उनकी भूखी झोंपड़ियों में मर जायेगी अगर जनसंख्या नियन्त्रण को उच्चतम वरीयता न दी गयी।

For the first time in human……..from our children. (Pages 46-47)

कठिन शब्दार्थ : Transcending concern (ट्रैन्सेन्ड्न्ङ्क न्सन्) = सीमा से अधिक चिन्ता, demise (डिमाइज्) = मृत्यु, विनाश, ushered in (अश(र)ड इन्) = लेकर आया है, era (इअरा) = युग, integrated (इन्टिग्रेट्ड) = समग्र, मिश्रित, dissociated (डिसोशिएट्ड) = खण्डित, अलग अलग, transformation (ट्रैन्स्फ मेश्न्) = काया-कल्प, सम्पूर्ण परिवर्तन, excel (इक्सेल) = उत्कृष्ट होना, felicitous (फेलिसिट्स) = उपयुक्त, सटीक, freehold (फ्रीहोल्ड्) = पूर्ण अधिकार वाली सम्पत्ति, tenancy (टेनन्सि) = किरायेदार होना, repairing lease (रिपेअ(रि)ङ् लीस्) = सुधार कार्य की शर्त पर किराये पर देना, inherited (इन्हेरिट्ड) = उत्तराधिकार में अथवा विरासत के रूप में प्राप्त किया।

हिन्दी अनुवाद : मनुष्य के इतिहास में पहली बार हम एक सीमा से अधिक चिन्ता देख रहे हैं। यह चिन्ता केवल लोगों के जीवित रहने मात्र के बारे में नहीं है, बल्कि इस ग्रह (पृथ्वी) के जीवित रहने के बारे में भी है। हमने हमारे अस्तित्व के आधार के बारे में एक समग्र दृष्टिकोण रखना शुरू कर दिया है। पर्यावरण की समस्या आवश्यक रूप से हमारे विनाश का संकेत नहीं देती। यह भविष्य के लिए हमारा पासपोर्ट है। दुनिया के बारे में बन रहे हमारे नये दृष्टिकोण ने जिम्मेदारी के युग की शुरुआत की है। यह एक समग्र दृष्टिकोण है, जो समस्त जीवों एवं प्रकृति के बीच के सम्बन्धों को शामिल करता है और दुनिया को एक समग्र एवं पूर्ण इकाई के रूप में देखता है, न कि अलग-अलग हिस्सों के संग्रह के रूप में। निशा उद्योग जगत को जिम्मेदारी के इस नये युग में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। कैसा कायाकल्प हो जाये अगर अधिकाधिक व्यापारी लोग डू पोन्ट के चेअरमैन, मि. एडगर एस. वुलार्ड के दृष्टिकोण में भागीदार बन जायें, जिन्होंने पाँच वर्ष पूर्व स्वयं को कम्पनी का “चीफ एनवायरनमेंट आफिसर” घोषित किया था। उन्होंने कहा था, “एक अग्रणी निर्माता के रूप में हमारा निरन्तर चलने र बात को आवश्यक बनाता है कि हम पर्यावरणीय कार्यकुशलता में उत्कृष्टता हासिल करें।

काम मार्गरेट थैचर द्वारा उनके प्रधानमन्त्रित्व काल में दिये गये वक्तव्यों में से कोई भी अंग्रेजी के प्रयोग में अन्तिम रूप से उतना प्रचलित नहीं हुआ जितने उनके ये सटीक शब्द हुए : “कोई भी पीढ़ी इस पृथ्वी को अपनी बपौती नहीं मान सकती। हमारे पास केवल जीवन-भर के लिए किरायेदारी है (हम अपने जीवन काल तक पृथ्वी पर केवल किरायेदार हैं) और इसकी मरम्मत भी किरायेदार के रूप में हमारी ही जिम्मेदारी है।” मि. लेस्टर ब्राउन के शब्दों में, “हमने इस पृथ्वी को अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं पाया है; हमने इसे अपने बच्चों से उधार लिया है।”

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