प्रश्न-अभ्यास
- कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि इसमें कहने और लिखने को विशेष कुछ नहीं है। कवि अपने जीवन की दुर्बलताओं और दूसरों की प्रवंचनाओं को सबके सामने लाना नहीं चाहता। उसकी आत्मकथा को पढ़ने से किसी को सुख भी नहीं मिलने वाला है।
- आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं' ऐसा कवि क्यों कहता है?
उत्तर कवि को लगता है कि अभी समय नहीं है कि वह अपनी आत्मकथा सुनाए। सभी बातों को उचित समय पर ही कहना तथा सुनाना चाहिए। कवि के हृदय में अनेक दुखद स्मृतियाँ सोई पड़ी हैं, अभी उनको याद करना उचित नहीं। यदि वे सोई स्मृतियों को जगाएँगे, तो हृदय को पीड़ा ही पहुँचेगी। अभी तो कवि की मौन व्यथा शांत है, आत्मकथा सुनाते ही वह उग्र हो जाएगी। इसलिए कवि अभी आत्मकथा सुनाने की मन: स्थिति में नहीं है।
- 'स्मृति' को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर 'पाथेय' संबल (सहारा) को कहते हैं। कवि के जीवन में दुखद क्षण अधिक आए, परंतु इन दुखद क्षणों को स्मृति बनाकर जिया नहीं जा सकता। कवि के जीवन में कुछ सुखद स्मृतियाँ भी हैं, भले ही वे एक स्वप्न की तरह हों। कवि उनको ही अपना पाथेय बनाकर, जीवन में निराशा की स्थिति से पार पाना चाहता है।
- भाव स्पष्ट करें
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।।
उत्तर (क) इन पंक्तियों का भाव यह है कि वह सुख की कल्पना करता रहा, स्वप्न में ही कवि सुख को तलाशता रहा। वे सुख उसके निकट आने से पूर्व ही मुस्करा कर भाग गए। उसे धोखा देकर निकल गए। वह इच्छित सुख भोग भी नहीं पाया था कि वे झलक दिखला कर ओझल हो गए।
(ख) इन पंक्तियों में कवि अपनी प्रेयसी के रूप-सौंदर्य की स्मृति में डूबता प्रतीत होता है। प्रेयसी के गालों पर लाली फैली थी। अनुराग से भरी उषा भी उसमें अपना सौंदर्य ढूँढ़ती थी, वह भी कवि की प्रेयसी से ईर्ष्या करती थी। दुर्भाग्यवश कवि को अपनी जीवन संगिनी का साथ स्थायी रूप से नहीं मिला, वह क्षणिक था।
- 'उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर-चाँदनी रातों की' कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसका अतीत अत्यन्त मोहक रहा है। तब वह अपनी प्रेयसी के साथ मधुर चाँदनी में बैठकर खूब बातें करता था तथा खिल-खिलाकर हँसता था। अब उस गाथा को सुना पाना उसके लिए संभव नहीं है। कवि के वे क्षण न जाने कहाँ चले गए हैं? उसके जीवन में सुखद क्षण हैं ही नहीं, तो वह उज्ज्वल गाथा कैसे गा सकता है ?
- 'आत्मकथ्य' कविता की काव्य भाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखो। उत्तर 'आत्मकथ्य' कविता की काव्य भाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं संस्कृतनिष्ठ भाषा इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। उदाहरणतया
"इस गंभीर अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास।"
सांकेतिकता इस कविता में संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से भावनाएँ व्यक्त की गई हैं। उदाहरणतया
"तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।"
यह रीती गागर असफल जीवन की प्रतीक है। कवि ने इस अस्पष्टता और छायावादी शैली का प्रयोग इस प्रकार किया है। देखिए
"उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।"
मानवीकरण शैली छायावाद की प्रमुख विशेषता है-मानवीकरण। प्राकृतिक पृष्ठभूमि की छाया में मानवेतर पदार्थों को सजीव बना कर प्रस्तुत किया गया हैं; जैसे
"थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।"
"अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।"
प्राकृतिक उपमान छायावादी कवि प्रकृति के उपमानों के माध्यम से बात करते हैं। इस कविता में भी मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात और प्राकृतिक उपमान का प्रयोग किया गया है।
गेयता और छंदबद्धता यह भी गेय और छंदबद्ध गीत है। कवि ने सर्वत्र तुक, लय और मात्राओं का पूरा ध्यान रखा है। हर पंक्ति के अंत में दीर्घ स्वर और अंत्यानुप्रास है। यथा
"उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?"
- कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर कवि के सुख का स्वप्न निम्नलिखित पंक्तियों के भावों में अभिव्यक्त है "मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया। जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।"
- इस कविता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद जी के व्यक्तित्व के बारे में लिखिए।
उत्तर इस कविता के माध्यम से हमें जयशंकर प्रसाद जी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं की झलक देखने को मिलती है
प्रखर व्यक्तित्व प्रसाद जी का व्यक्तित्व प्रखर है। उन्होंने अपनी कविता में अच्छाई व दुर्बलता दोनों को स्पष्ट शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
आदर्श मित्र प्रसाद जी का व्यवहार अपने मित्रों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण था। अपने मित्रों के आग्रह पर ही वे आत्मकथा लिखने को प्रेरित हुए। जब उन्हें यह आभास हुआ कि आत्मकथ्य लिखने से उनके मित्र उनमें दुखों के लिए स्वयं को ही उत्तरदायी समझ रहे हैं, तब उनको आत्मकथा लिखना उचित नहीं लगा।
सहनशील प्रसाद जी में दुखों को सहन करने की अपूर्व क्षमता थी। उनका संपूर्ण जीवन दुखों से भरा था परन्तु उन्होंने दुखों का सामना हँसते-हँसते किया।
संघर्षपूर्ण व्यक्तित्व जीवन के संघर्षों से वे हतोत्साहित नहीं हुए बल्कि अपनी स्मृतियों को संबल बनाकर वे अपने जीवन में आगे बढ़ते गए।
सरल स्वभाव प्रसाद जी का व्यक्तित्व सरल व निश्छल था। इसी कारण उन्हें अपने जीवन में दूसरों को पहचानने में भूल हुई और उन्होंने धोखा खाया।
परिपक्व इस कविता में प्रसाद एक परिपक्व व अनुभवी व्यक्ति के रूप में सामने आते हैं। जीवन के अनुभवों ने उनके विचारों को परिपक्वता प्रदान की है।