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अपठित काव्यांश 11

अपठित काव्यांश क्या है?
वह काव्यांश जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है, अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी के भावग्रहण क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।

परीक्षा में प्रश्न का स्वरूप
परीक्षा में विद्यार्थियों को 100 से 150 शब्दों का कोई काव्यांश दिया जाएगा। उस काव्यांश से संबंधित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा तथा कुल प्रश्न पाँच अंक के होंगे।

प्रश्न हल करने की विधि-
अपठित काव्यांश का प्रश्न हल करते समय निम्नलिखित बिंदु ध्यातव्य हैं-

  • विद्यार्थी कविता को मनोयोग से पढ़ें ताकि उसका अर्थ समझ में आ जाए। यदि कविता कठिन है तो इसे बार-बार पढ़ें ताकि भाव स्पष्ट हो सके।
  • कविता के अध्ययन के बाद उससे संबंधित प्रश्नों को ध्यान से पढ़िए।
  • प्रश्नों के अध्ययन के बाद कविता को दोबारा पढ़िए तथा उन पंक्तियों को चुनिए जिनमें प्रश्नों के उत्तर मिलने की संभावना हो।
  • जिन प्रश्नों के उत्तर सीधे तौर पर मिल जाएँ, उन्हें लिखिए।
  • कुछ प्रश्न कठिन या सांकेतिक होते हैं। उनका उत्तर देने के लिए कविता का भाव-तत्त्व समझिए।
  • प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट होने चाहिए।
  • प्रश्नों के उत्तर की भाषा सहज व सरल होनी चाहिए।
  • उत्तर अपने शब्दों में लिखिए।
  • प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्दों के उत्तर एक से अधिक शब्दों में दीजिए। इससे उत्तरों की स्पष्टता बढ़ेगी।

अपठित काव्यांश

निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए-

1.

हॅस ली दो क्षण खुशी मिली गर
वरना जीवन-भर क्रदन है।
किसका जीवन हँसी-खुशी में
इस दुनिया में रहकर बीता?
सदा-सर्वदा संघर्षों को
इस दुनिया में किसने जीता?
खिलता फूल म्लान हो जाता
हँसता-रोता चमन-चमन है।
कितने रोज चमकते तारे
दूर तलक धरती की गाथा
मौन मुखर कहता कण-कण है।
यदि तुमको सामथ्र्य मिला तो
मुसकाओं सबके संग जाकर।

कितने रह-रह गिर जाते हैं,
हँसता शशि भी छिप जाता है ,
जब सावन घन घिर आते हैं।
उगता-ढलता रहता सूरज
जिसका साक्षी नील गगन है।
आसमान को छुने वाली,
वे ऊँची-ऊँची मीनारें।
मिट्टी में मिल जाती हैं वे
छिन जाते हैं सभी सहारे।
यदि तुमको मुसकान मिली तो
थामो सबको हाथ बढ़ाकर।
झाँको अपने मन-दर्पण में
प्रतिबिंबित सबका आनन है।

प्रश्न 

(क) कवि दो क्षण के लिए मिली खुशी पर हँसने के लिए क्यों कह रहा है? 1
(ख) कविता में संसार की किस वास्तविकता को प्रस्तुत किया गया है? 1
(ग) धरती का कण-कण कौन-सी गाथा सुनाता रहा है? 1
(घ) भाव स्पष्ट कीजिए-1
झाँको अपने मन-दर्पण में
प्रतिबिंबित सबका आनन है।
(ङ) ‘उगता-ढलता रहता सूरज’ के माध्यम से कवि ने क्या कहना चाहा है? 1

उत्तर-

(क) जीवन में बहुत आपदाएँ हैं। अत: जब भी हँसी के क्षण मिल जाएँ तो उन क्षणों में हँस लेना चाहिए। कवि इसलिए कहता है जब अवसर मिले हँस लेना चाहिए। खुशी मनानी चाहिए।
(ख) कविता में बताया गया है कि संसार में सब कुछ नश्वर है।
(ग) धरती का कण-कण गाथा सुनाता आ रहा है कि आसमान को छूने वाली ऊँची-ऊँची दीवारें एक दिन मिट्टी में मिल जाती हैं। सभी सहारे दूर हो जाते हैं। अत: यदि समय है तो सबके साथ मुस्कराओ और यदि सामथ्र्य है तो सबको सहारा दो।
(घ) यहाँ कवि का अभिप्राय है कि यदि अपने मन-दर्पण में झाँककर देखोगे तो सभी के एक-समान चेहरे नजर आएँगे अर्थात् सभी एक ईश्वर के ही रूप दिखाई देंगे।
(ङ) ‘उगता-ढलता रहता सूरज’ के माध्यम से कवि ने कहना चाहा है कि जीवन में समय एक-सा नहीं रहता है। अच्छे-बुरे समय के साथ-साथ सुख-दुख आते-जाते रहते हैं।

2.

क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-घन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।

मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन, 

मैं अटका कब, कब विचलित मैं, सतत डगर मेरी संबल
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन।

मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।

प्रश्न  

(क) उपर्युक्त काव्यांश के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 1
(ख) कविता में आए मेघ, विदयुत, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं? कवि ने उनका संयोजन यहाँ क्यों किया है? 1
(ग) ‘शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने कभी चयन’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 1
(घ) ‘युग की प्राचीर’ से क्या तात्पर्य है? उसे कमजोर क्यों बताया गया है? 1
(ङ) किन पंक्तियों का आशय है-तन-मन में दृढ़निश्चय का नशा हो तो जीवन मार्ग में बढ़ते रहने से कोई नहीं. रोक सकता? 1

उत्तर-

(क) कवि के स्वभाव की निम्नलिखित दो विशेषताएँ हैं-

(अ) गतिशीलता
(ब) साहस व संघर्षशीलता

(ख) मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना व ज्वालामुखी जीवनपथ में आई बाधाओं के परिचायक हैं। कवि इनका संयोजन इसलिए करता है ताकि अपनी संघर्षशीलता व साहस को दर्शा सके।
(ग) इसका अर्थ है कि कवि ने हमेशा चुनौतियों से पूर्ण कठिन मार्ग चुना है। वह सुख-सुविधा पूर्ण जीवन नहीं जीना चाहता।
(घ) इसका अर्थ है, समय की बाधाएँ। कवि कहता है कि संकल्पवान व्यक्ति बाधाओं व संकटों से घबराता नहीं है। वह उनसे मुकाबला कर उन पर विजय पा लेता है।
(ङ) ये पंक्तियाँ हैं-
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।

3.

यह मजूर, जो जेठ मास के इस निधूम अनल में
कर्ममग्न है अविकल दग्ध हुआ पल-पल में;
यह मजूर, जिसके अंगों पर लिपटी एक लैंगोटी;
यह मजूर, जर्जर कुटिया में जिसकी वसुधा छोटी;
किस तप में तल्लीन यहाँ है भूख-प्यास को जीते,
किस कठोर साधन में इसके युग के युग हैं बीते।

कितने महा महाधिप आए, हुए विलीन क्षितिज में,
नहीं दृष्टि तक डाली इसने, निर्विकार यह निज में।
यह अविकंप न जाने कितने घूंट पिए हैं विष के,
आज इसे देखा जब मैंने बात नहीं की इससे।
अब ऐसा लगता है, इसके तप से विश्व विकल है,
नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।

प्रश्न  

(क) जेठ के महीने में अपने काम में लगा हुआ मजदूर क्या अनुभव कर रहा है? 1 
(ख) 
उसकी दीन-हीन दशा को कवि ने किस तरह प्रस्तुत किया है? 1
(ग) उसका पूरा जीवन कैसे बीता है? उसने बडे-से-बड़े लोगों को भी अपना कष्ट क्यों नहीं बताया? 1
(घ) उसने जीवन को कैसे जिया है? उसकी दशा को देखकर कवि को किस बात का आभास होने लगा है? 1
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए: ‘नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।’ 1

उत्तर-

(क) जेठ के महीने में अपने काम में लगा हुआ मजदूर अपने काम में मग्न है। गरम मौसम भी उसके कार्य को बाधित नहीं कर रहा है।
(ख) 
कवि बताता है कि मजदूर की दशा खराब है। वह सिर्फ एक लैंगोटी पहने हुए है। उसकी कुटिया टूटी-फूटी है। वह पेट भरने भर भी नहीं कमा पाता है।
(ग) 
मजदूर का पूरा जीवन तंगहाली में बीतता है। उसने बड़े-से बड़े लोगों को भी अपना कष्ट नहीं बताया, क्योंकि वह अपने काम में तल्लीन रहता था।
(घ)
मजदूर ने सारा जीवन विष का घूंट पीकर जिया। वह सदा अभावों से ग्रस्त रहा। उसकी दशा देखकर कवि को लगता है कि मजदूर की तपस्या से सारा संसार विकल है।
(ङ) 
इसका अर्थ है कि मजदूर के कठोर तप से यह लगता है कि उसे नया इंद्रपद मिलेगा अर्थात् कवि को लगता है कि अब उसकी हालत में सुधार होगा।

4.

नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर हैं,
सूर्य चंद्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर हैं,
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडल है,
बंदीजन खग-वृद, शेषफन सिंहासन है
परमहंस सम बाल्यकाल में सब, सुख पाए,
जिसके कारण ‘धूल भरे हीरे कहलाए,
हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद में
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,
षट्क्रतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्स नहीं मखमल से कम है,

करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की;
जिसकी रज में लोट-लोटकर बड़े हुए हैं,
घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं,
शुचि-सुधा सींचता रात में तुझ पर चंद्रप्रकाश है
हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है
जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे,
उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्यारे,
लोट-लोट कर वहीं हृदय को शांत करेंगे
उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे,
उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जाएँगे
होकर भव-बंधन-मुक्त हम, आत्मरूप बन जाएँगे।

प्रश्न  

(क) प्रस्तुत काव्यांश में ‘हरित पट’ किसे कहा गया है? 1
(ख) कवि अपने देश पर क्यों बलिहारी जाता है? 1
(ग) कवि अपनी मातृभूमि के जल और वायु की क्या-क्या विशेषता बताता है? 1
(घ) मातृभूमि को ईश्वर का साकार रूप किस आधार पर बताया गया है? 1
(ङ) प्रस्तुत कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए। 1

उत्तर-

(क) यहाँ हरित पट शस्य-श्यामला धरती के लिए कहा है, जिस पर चारों ओर फैली हरियाली मखमल से कम सुंदर नहीं लगती है।
(ख) कवि अपनी सुंदर मातृभूमि से प्रेम करता है जिसकी प्राकृतिक छटा मनोहारी है, जो सर्वथा ईश्वर की साक्षात् प्रतिमूर्ति के रूप में विद्यमान दिखाई देती है।
(ग) कवि अपनी मातृभूमि के जल को अमृत के समान उत्तम, शीतल, निर्मल बताते हैं और वायु को शीतल, सुगंधित और श्रम की थकान को हर लेने वाली बताते हैं।
(घ) मातृभूमि को कवि ने ईश्वर का साकार रूप बताया है, क्योंकि ईश्वर की तरह ही मातृभूमि का मुकुट सूर्य और चंद्र के समान है, शेषनाग का फन सिंहासन के समान है। बादल निरंतर जिसका अभिषेक करते हैं। पक्षी प्रात: चहचहाकर गुणगान करते हैं। तारे इसके लिए फूलों के समान हैं। इस तरह मातृभूमि ईश्वर का साकार रूप है।
(ङ) मूलभाव है कि हमारी मातृभूमि अनुपम है, ईश्वर की साक्षात् प्रतिमूर्ति है। ऐसी मातृभूमि पर हम बलिहारी होते हैं।

5.

मुक्त करो नारी को, मानव।
चिर बदिनि नारी को,
युग-युग की बर्बर कारा से
जननि, सखी, प्यारी को!
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश
उसके कोमल तन-मन के
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के!
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,

उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवन–संगिनि को,
जननि देवि को आदूत
जगजीवन में मानव के संग ,
हो मानवी प्रतिष्ठित!
प्रेम स्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित,
नारी-मुख की नव किरणों से
युग-प्रभाव हो ज्योतित!

प्रश्न  

(क) कनक कि वहा से पुतकरना चहता है बाह अके धन-धन क्यों का क्लब क्यों कर रहा है? ” 1
(ख) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन न मानकर उन्हें किन रूपों में देख रहा है? 1
(ग) वह नारी को किन दो गरिमाओं से मंडित करा रहा है और क्या कामना कर रहा है? 1
(घ) वह मुक्त नारी को किन-किन रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है? 1
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए- 1
नारी मुख की नव किरणों से
युग प्रभात हो ज्योतित!

उत्तर-

(क) कवि नारी को पुरुष के बंधन से मुक्त करना चाहता है। वह नारी के जननी, सखी व प्यारी रूप को बताता है, क्योंकि पुरुष का संबंध उसके साथ माँ, दोस्त व पत्नी के रूप में होता है।
(ख) कवक के आष्यों क उके अकण के साधनों मानता वाहउहें नारीक स्तक कम मानता हैं।
(ग) कवि नारी को मानवी तथा मातृत्व की गरिमाओं से मंडित कर रहा है। वह कामना करता है कि उसे पुरुष के समान दर्जा मिले।
(घ) कवि मुक्त नारी को मानवी, युग को प्रकाश देने वाली आदि रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है।
(ङ) इसका अर्थ है कि नारी के नए रूप से नए युग का प्रभात प्रकाशित हो तथा वह अपने कार्यों से समाज को दिशा दे।

6. 

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए।
प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए।

बरसे’ आग, जलद जल जाए, भस्मसात भूधर हो जाए,
पाप-पुण्य सदसद् भावों की धूल उड़े उठ दाएँ-बाएँ।
नभ का वक्षस्थल फंट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ।
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।

प्रश्न  

(क) कवि की कविता क्रांति लाने में कैसे सहायक हो सकती है? 1
(ख) कवि ने किस प्रकार के उथल-पुथल की कल्पना की है? 1
(ग) आपके] विचार] से नाश और सत्यानाश में क्या अंतर हो सकता है? कवि  उनकी कमना क्यों करता है? 1
(घ) किसी समाज में फैली जड़ता और रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है-पक्ष या विपक्ष  में दो तर्क दीजिए। 1
(ङ) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए। 1

उत्तर-

(क) कवी लोगों में जागरूकता पैदा करता है। वह अपने संदेशों से जनता को कुशासन समाप्त  करने  के लिए प्रेरित करता है।
(ख) कवि से ऐसी उथल-पुथल की चाह की गई है, जिससे समाज में बुरी ताकत पूर्णतया नष्ट हो जाए।
(ग) हमारे विचार में, ‘नाश’ से सिर्फ बुरी ताकतें समाप्त हो सकती हैं, परंतु ‘सत्यानाश’ से सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसमें अच्छी ताकतें भी समाप्त हो जाती हैं।
(घ) यह बात बिलकुल सही है कि समाज में फैली जड़ता व रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है। क्रांति से वर्तमान में चल रही व्यवस्था नष्ट हो जाती है तथा नए विचारों को पनपने का अवसर मिलता है।
(ङ) लाले पड़ना-महँगाई के कारण गरीबों को रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।
छा जाना-बिजेंद्र ओलंपिक में पदक जीतकर देश पर छा गया।

7.

यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन
ममता की शीतल छाया में होता। कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मूंदे नयन।
होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ।

प्रश्न  

(क) ‘फूल बोने’ और ‘काँटे बोने’ का प्रतीकार्थ क्या है? 1
(ख) मन किन स्थितियों में अशांत होता है और कैसी स्थितियाँ उसे शांत कर देती हैं? 1
(ग) संकट आ पड़ने पर मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए। और क्यों? 1
(घ) मन में कटुता कैसे आती है और वह कैसे दूर हो जाती है? 1
(ङ) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर वाक्य-प्रयोग कीजिए। 1

उत्तर-

(क) इनका अर्थ है-अच्छे कार्य करना व बुरे कर्म करना।
(ख) मन में विरोध की भावना  के  उदय  के  कारण अशांति का उदय होता है।माता की शीतल छाया  उसे शांत कर देती है।
(ग) संकट आ पड़ने पर मनुष्य को भयभीत नहीं होना चाहिए। उसे मन को मजबूत करना चाहिए। उसे मुस्कराना चाहिए।
(घ) मन में कटुता तब आती है जब उसे सफलता नहीं मिलती। वह भटकता रहता है। स्नेह से यह दूर हो जाता है।
(ङ) काँटे बोना-हमें दूसरों के लिए काँटे नहीं बोने चाहिए। घुल जाना-विदेश में गए पुत्र की खोज खबर न मिलने से विक्रम घुल गया है।

8. 

पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,
बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है,
फिर अंत समय तूही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।

प्रश्न  

(क) यह काव्यांश किसे संबोधित है? उससे हम क्या पाते हैं? 1
(ख) ‘प्रत्युपकार’ किसे कहते हैं? देश का प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता? 1
(ग) शरीर-निर्माण में मात्भूमि का क्या योगदान है? 1
(घ) ‘अचल’ विशेषण किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और क्यों?  1
(ङ) यह कैसे कह सकते हैं कि देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है? 1

उत्तर-

(क) यह काव्यांश मातृभूमि को संबोधित है। मातृभूमि से हम जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ पाते हैं।
(ख) किसी से वस्तु प्राप्त करने के बदले में कुछ देना प्रत्युपकार कहलाता है। देश का प्रत्युपकार नहीं हो सकता, क्योंकि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा कुछ-न-कुछ इससे प्राप्त करता रहता है।
(ग) मातृभूमि से ही मनुष्य का शरीर बना है। जल, हवा, आग, भूमि व आकाश-मातृभूमि में ही मिलते हैं।
(घ) ‘अचल’ विशेषण मानव के मृत शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि मृत शरीर गतिहीन होता है तथा मातृभूमि ही इसे ग्रहण करती है।
(ङ) मनुष्य का जन्म देश में होता है। यहाँ के संसाधनों से वह बड़ा होता है तथा अंत में उसी में मिल जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि देश से हमारा संबंध मृत्युपर्यत रहता है।

9. 

चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है. निर्मम है,
वहाँ हवा में उसे
बाहर दाने का टोटा है
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है
यहाँ निद्र्वद्व कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,

अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।
यूँ  तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।

प्रश्न  

(क) पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है? 1
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं? 1
(ग) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत् की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है? 1
(घ) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है? 1
(ङ) कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए। 1

उत्तर-

(क) पिंजड़े के बाहर संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ सदैव संघर्ष रहता है। इस कारण वह निर्मम है।
(ख) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
(ग) कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है।
(घ) बाहर सुखों का अभाव व प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आजाद जीवन जीना पसंद करती है।
(ङ) इस कविता में कवि ने स्वाधीनता के महत्व को समझाया है। मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास आजाद परिवेश में हो सकता है।

10.

ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे।
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा कैंटीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।

फिर कहाँ डरा पाएगा यह पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रह कर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा जी चाहे जीतें हार चलूँ।

मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलूँ।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मधु-मस्त फुहारें सावन की।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे।

प्रश्न  

(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए। 1
(ख) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है? 1
(ग) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए। 1
(घ)कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 1
(ङ) आशय स्पस्ष्टकीजिए-कब रोक सकी मुज्कोम चितवन, मदमाते कजरारे घन की। 1

उत्तर-

(क) ‘अपने मन का राजा’ होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. कहीं भी रहने के लिए स्वतंत्र हूँ।
  2. मुझे किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है। मैं बंधनमुक्त रहना चाहता हूँ।

(ख) ये पंक्ति हैं-
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(ग) इस कविता में कवि जीवनपथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने, आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है।
(घ) कवि का स्वभाव निभीक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
(ङ) इसका अर्थ है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।

11.

पथ बंद है पीछे अचल है पीठ पर धक्का प्रबल।
मत सोच बढ़ चल तू अभय, प्ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर के सैनिकों संभव असंभव को करो
पथ-पथ निमंत्रण दे रहा आगे कदम, आगे कदम।

ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने।
पल-पल समर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने।
आराम संभव है नहीं जीवन सतत संग्राम है
बढ़ चल मुसाफिर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम।

ऊँचे हिमानी श्रृंगपर, अंगार के ध्रु-भृग पर
तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफर
ओ नौजवाँ, निर्माण के पथ मोड़ दे, पथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम।

प्रश्न 

(क) इस काव्यांश में कवि किसे और क्या प्रेरणा दे रहा है? 1
(ख) ‘जीवन-समर के सैनिकों संभव-असंभव को करो”-का भाव स्पष्ट कीजिए। 1
(ग) अदभुत सफर की अदभुतता क्या है? 1
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-जीवन सतत संग्राम है। 1
(ङ) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए। 1

उत्तर-

(क) इस काव्यांश में कवि मनुष्य को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।
(ख) कवि ने जीवन को युद्ध के समान बताया है। वह जीवन रूपी युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों से हर हाल में विजय प्राप्त करने का आहवान करता है अर्थात् जीवन की विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं माननी चाहिए।
(ग) कवि ने अद्भुत सफर के बारे में बताया है। यह सफर हिम से ढकी ऊँची चोटियों पर ज्वालामुखी के लावे पर तथा तीक्ष्ण तलवार पर भी जारी रहता है।
(घ) इसका अर्थ है कि जीवन युद्ध की तरह है जो निरंतर चलता रहता है। मनुष्य सफलता पाने के लिए बाधाओं से संघर्ष करता रहता है।
(ङ) इस कविता में कवि ने जीवन को संघर्ष से युक्त बताया है। मनुष्य को बाधाओं से संघर्ष करते हुए निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।

12. 

रोटी उसकी, जिसका अनाज, जिसकी जमीन, जिसका श्रम है;
अब कौन उलट सकता स्वतंत्रता का सुसिद्ध, सीधा क्रम है।
आजादी है। अधिकार परिश्रम का पुनीत फल पाने का,
आजादी है। अधिकार शोषणों की धज्जियाँ उड़ाने का।
गौरव की भाषा नई सीख, भिकमंगो  सी आवाज बदल
सिमटी बाँहों को खोल गरुड़, उड़ने का अब अंदाज बदल।
स्वाधीन मनुज की इच्छा के आगे पहाड़ हिल सकते हैं;
रोटी क्या? ये अंबरवाले सारे सिंगार मिल सकते हैं।

प्रश्न  

(क) आजादी क्यों आवश्यक है?  1
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर किसका अधिकार है? 1
(ग ) कवि ने किन पंक्तियों में गिड़गिड़ाना छोड़कर स्वाभिमानी बनने को कहा है? 1
(घ) कवि व्यक्ति को क्या परामर्श देता है? 1
(ङ) आजाद व्यक्ति क्या कर सकता है?1

उत्तर-

(क) परिश्रम का फल पाने तथा शोषण का विरोध करने के लिए आजादी आवश्यक है।
(ख) सच्चे अर्थों में रोटी पर उसका अधिकार है जो अपनी जमीन पर श्रम करके अनाज पैदा करता है।
(ग) ये पंक्तियाँ हैं गौरव की भाषा की नई सीख, भिखमैंगों सी आवाज बदल।
(घ) कवि व्यक्ति को स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का और उसके बल पर सफलता पाने का परामर्श देता है।
(ङ) जो व्यक्ति आजाद है, वह शोषण का विरोध कर सकता है, पहाड़ हिला सकता है तथा आकाश से तारे तोड़कर ला सकता है।

13.

अपने नहीं अभाव मिटा पाया जीवन भर
पर औरों के सभी अभाव मिटा सकता हूँ।
तूफानों-भूचालों की भयप्रद छाया में,
मैं ही एक अकेला हूँ जो गा सकता हूँ।

मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्यापक है,
इसमें मुझ-से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है।
मैं खंडहर को फिर से महल बना सकता हूँ।

जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय-मेघ भूचाल देख मुझको शरमाए।
में मजदूर मुझे देवों की बस्ती से क्या
मैंने अगणित बार धरा पर स्वर्ग बनाए।

प्रश्न  

(क) उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में किसका महत्व प्रतिपादित किया जाता है? 1
(ख) स्वर्ग के प्रति मजदूर की विरक्ति का क्या कारण है? 1
(ग) किन कठिन परिस्थितियों में भी मजदूर ने अपनी निर्भयता प्रकट की है? 1
(घ) मेरे ‘मैं’ की संज्ञा भी इतनी व्याप इसमें मुझे-से अगणित प्राणी आ जाते हैं। उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट करके लिखिए। 1.
(ङ) अपनी शक्ति और क्षमता के प्रति उसने क्या कहकर अपना आत्म-विश्वास प्रकट किया है? 1

उत्तर-

(क) उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्व प्रतिपादित किया गया है।
(ख) मजदूर निर्माता है। वह अपनी शक्ति से धरती पर स्वर्ग के समान सुंदर बस्तियाँ बना सकता है। इस कारण उसे स्वर्ग से विरक्ति है।
(ग) मजदूर ने तूफानों व भूकंपों में भी घबराहट प्रकट नहीं की है। वह हर मुसीबत का सामना करने को तैयार है।
(घ) उपर्युक्त पक्तियों में ‘मैं’ श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहा है। कवि कहना चाहता है कि मजदूर वर्ग में संसार के सभी क्रियाशील प्राणी आ जाते हैं।
(ङ) मजदूर ने कहा है कि खंडहर को भी आबाद कर सकता है। उसकी शक्ति के सामने भूचाल, प्रलय व बादल भी झुक जाते हैं।

14.

निर्भय स्वागत करो मृत्यु का,
मृत्यु है एक विश्राम-स्थल।
जीव जहाँ से फिर चलता है,
धारण कर नव जीवन संबल।

मृत्यु एक सरिता है, जिसमें
श्रम से कातर जीवन नहाकर
फिर नूतन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर।

सच्चा प्रेम वही है जिसकी-
तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर!
त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।

प्रश्न  

(क) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है? 1
(ख) मृत्यु को विश्राम-स्थल क्यों कहा गया है? 1
(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना किससे और क्यों की है? 1
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीवन में क्या परिवर्तन आ जाता है? 1
(ङ) सच्चे प्रेम की क्या विशेषता बताई गई है और उसे कब निष्प्राण कहा गया है? 1. 

उत्तर

(क) कवि ने मृत्यु के प्रति निर्भय बने रहने के लिए क्यों कहा है ?
(ख) कवि ने मृत्यु को विश्राम स्थल की संज्ञा दी है। जिस प्रकार मनुष्य चलते-चलते थक जाता है और विश्राम
स्थल पर रुककर पुन: ऊर्जा प्राप्त करता है उसी प्रकार मृत्यु के बाद जीव नए जीवन का सहारा लेकर फिर से चलने लगता है।
(ग) कवि ने मृत्यु की तुलना सरिता से की है, क्योंकि थका व्यक्ति नदी में स्नान करके प्रसन्न होता है। इसी तरह मृत्यु के बाद मानव नया शरीर रूपी वस्त्र धारण करता है।
(घ) मृत्यु रूपी सरिता में नहाकर जीव नया शरीर धारण करता है तथा पुराने को त्याग देता है।
(ङ) सच्चा प्रेम वह है जो आत्मबलिदान देता है। जिस प्रेम में त्याग नहीं होता, वह निष्प्राण होता है।

15.

जीवन एक कुआँ है
अथाह-अगम
सबके लिए एक-सा वृत्ताकार!
जो भी पास जाता है,
सहज ही तृप्ति, शांति, जीवन पाता है!
मगर छिद्र होते हैं जिसके पात्र में,
रस्सी-डोर रखने के बाद भी,
हर प्रयत्न करने के बाद भी-
वह यहाँ प्यासा का प्यासा रह जाता है।

मेरे मन! तूने भी, बार-बार
बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बटीं
रोज-रोज कुएँ पर गया
तरह-तरह घड़े को चमकाया,
पानी में डुबाया, उतराया
लेकिन तू सदा हीप्यासा गया,
प्यासा ही आया!
और दोष तूने दिया
कभी तो कुएँ को

कभी पानी को
कभी सब को
मगर कभी जाँचा नहीं खुद को
परखा नहीं घड़े की तली कोचीन्हा नहीं उन असंख्य छिद्रों को
और मूढ! अब तो खुद को परख देख 

प्रश्न  

(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है ?1
(ख) कवि का मन सभी प्रकार के प्रयासों के उपरांत भी प्यासा क्यों रह जाता है? 1
(ग) किन पंक्तियों का आशय है-हम अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को दोषी मानते हैं? 1
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे किन बातों की जाँच-परख करनी चाहिए? 1
(ङ) पात्र में छिद्र होने का आशय क्या है? 1

उत्तर-

(क) कवि ने जीवन को कुआँ कहा है क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है। दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ख) कवि ने कभी अपना मूल्यांकन नहीं किया। वह अपनी कमियों को नहीं देखता । इस कारण वह सभी प्रकार के प्रयासों के बावजूद प्यासा रह जाता है।
(ग) ये पंक्तियाँ हैं
और दोष तूने दिया
कभी तो कुएँ को
कभी पानी की
कभी सब को।
(घ) यदि किसी को असफलता प्राप्त हो रही हो तो उसे अपनी कमियों के बारे में जानना चाहिए। उन्हें अपने में सुधार करके कार्य करने चाहिए।
(ङ) पात्र में छिद्र होने का आशय है-व्यक्ति में कमी या दोष होना, जो उसके सफल होने में बाधक बनता है।

16.

माना आज मशीनी युग में, समय बहुत महँगा है लेकिन
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं।

उम्र बहुत बाकी है, लेकिन, उम्र बहुत छोटी भी तो है
एक स्वप्न मोती का है तो, एक स्वप्न रोटी भी तो है
घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है:
सोया है विश्वास जगा लो, हम सबको नदिया तरनी है!
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुम से दो बातें करनी हैं।

मन छोटा करने से मोटा काम नहीं छोटा होता है,
नेह-कोष को खुलकर बाँटो, कभी नहीं टोटा होता है,
आँसू वाला अर्थ न समझे, तो सब ज्ञान व्यर्थ जाएँगे:
मत सच का आभास दबा लो, शाश्वत आग नहीं मरनी है!
तुम थोड़ा अवकाश निकाली, तुमसे दो बातें करनी हैं।

प्रश्न  

(क) मशीनी युग में समय महँगा होने का क्या तात्पर्य है? इस कथन पर आपकी क्या राय है?1
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ और ‘रोटी का स्वप्न’ से क्या तात्पर्य है? दोनों में क्या अंतर है? 1
(ग) ‘घुटनों में माथा रखने से पोखर पार नहीं होता है’-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 1
(घ) मन और स्नेह के बारे में कवि क्या परामर्श दे रहा है और क्यों? 1
(ङ) ‘आँसू वाला अर्थ न समझे’ का क्या आशय है? 1

उत्तर-

(क) इस युग में व्यक्ति समय के साथ बँध गया है। उसे हर घंटे के हिसाब से मजदूरी मिलती है। हमारी राय में यह बात सही है।
(ख) ‘मोती का स्वप्न’ का तात्पर्य वैभव युक्त जीवन की आकाक्षा से है तथा ‘रोटी का स्वप्न’ का तात्पर्य जीवन की मूल जरूरतों को पूरा करने से है। दोनों में अमीरी व गरीबी का अंतर है।
(ग) इक अ कमान क्रियाहक आगेन वा सकता उसे पिरमकता हणती इसाक किसा हो सकता है।
(घ)मन के बारे में कवि का मानना है कि मनुष्य को हिम्मत रखनी चाहिए। हौसला खोने से बाधा खत्म नहीं होती। स्नेह भी बाँटने से कभी कम नहीं होता। कवि मनुष्य को मानवता के गुणों से युक्त होने के लिए कह रहा है।
(ङ) ‘आँसू वाला अर्थ न समझे’ का अर्थ है-उन अभावग्रस्त दीन-हीन लोगों की आवश्यकताओं को समझना जिन्हें रोटी के भी लाले पड़े रहते हैं। यदि हमें उनसे सहानुभूति नहीं है तो हमारा ज्ञान किसी काम का नहीं हुआ।

17.

नवीन कंठ दो कि मैं नवीन गान गा सकूं,
स्वतंत्र देश की नवीन आरती सजा सकूं!

नवीन दृष्टि का नया विधान आज हो रहा,
नवीन आसमान में विहान आज हो रहा,
खुली दसों दिशा खुले कपाट ज्योति-द्वार के
विमुक्त राष्ट्र-सूर्य भासमान आज हो रहा।

युगांत की व्यथा लिए अतीत आज रो रहा,
दिगंत में वसंत का भविष्य बीज बो रहा,
सुदीर्घ क्रांति झेल, खेल की ज्वलंत आग
सेस्वदेश बल सँजो रहा, कडी थकान खो रहा।
प्रबुद्ध राष्ट्र की नवीन वंदना सुना सकूं!
नवीन बीन दो कि मैं अगीत गान गा सकूं!

नए समाज के लिए नवीन नींव पड़ चुकी,
नए मकान के लिए नवीन ईंट गढ़ चुकी,
सभी कुटुब एक, कौन पास, कौन दूर है
नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है।
कुलीन जो उसे नहीं गुमान या गरूर है
समर्थ शक्तिपूर्ण जो किसान या मजूर है।

भविष्य-द्वार मुक्त से स्वतंत्र भाव से चलो,
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिले चले चलो,
समान भाव के प्रकाशवान सूर्य के तले
समान रूप-गंध फूल-फूल-से खिले चलो।

पुराण पंथ में खड़े विरोध वैर भाव के
त्रिशूल को दले चलो, बबूल को मले चलो।
प्रवेश-पर्व है स्वेदश का नवीन वेश में
मनुष्य बन–मनुष्य से गले मिलो चले चलो।
नवीन भाव दो कि मैं नवीन गान गा सकूं
नवीन देश की नवीन अर्चना सुना सकूं!

प्रश्न  

(क) कवि ने किन नवीनताओं की चर्चा की है? 1
(ख) ‘नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है’-आशय स्पष्ट कीजिए। 1
(ग) कवि मनुष्य को क्या परामर्श देता है? 1
(घ) कवि किस नवीनता की कामना कर रहा है? 1
(ङ) किसान और कुलीन की क्या विशेषता बताई गई है? 1

उत्तर-

(क) कवि कहता है कि उसे नयी आवाज मिले ताकि वह स्वतंत्र देश के लिए नए गीत गा सके तथा नयी आरती सजा सके।
(ख) इसका अर्थ है कि स्वतंत्र भारत का हर व्यक्ति प्रकाश के गुणों से युक्त है। उसके विकास से भारत का विकास होता है।
(ग) कवि मनुष्य को सलाह देता है कि आजाद होने के बाद हमें अब मैत्रीभाव से आगे बढ़ना है। सूर्य व फूलों के समान समानता का भाव अपनाना है।
(घ) कवि कामना करता है कि देशवासियों को वैर-विरोध के भावों को भुलाना चाहिए। उन्हें मनुष्यता का भाव अपनाकर सौहार्दता से आगे बढ़ना है।
(ङ) किसान समर्थ व शक्तिपूर्ण होते हुए भी समाज हित में कार्य करता है तथा कुलीन वह है जो घमंड नहीं दिखाता है।

18.

जिसमें स्वदेश का मान भरा
आजादी का अभिमान भरा
जो निर्भय पथ पर बढ़ आए
जो महाप्रलय में मुस्काए
जो अंतिम दम तक रहे डटे
दे दिए प्राण, पर नहीं हटे
जो देश-राष्ट्र की वेदी पर
देकर मस्तक हो गए अमर
ये रक्त-तिलक-भारत-ललाट!
उनको मेरा पहला प्रणाम
फिर वे जो आँधी बन भीषण
कर रहे आज दुश्मन से रण
बाणों के पवि-संधान बने
जो ज्वालामुख-हिमवान बने
हैं टूट रहे रिपु के गढ़ पर

बाधाओं के पर्वत चढ़कर
जो न्याय-नीति को अर्पित हैं
भारत के लिए समर्पित हैं।
कीर्तित जिससे यह धरा धाम
उन वीरों को मेरा प्रणाम।
श्रद्धानत कवि का नमस्कार
दुर्लभ है छद-प्रसून हार
इसको बस वे ही पाते हैं
जो चढ़े काल पर आते हैं !
हुकृति से विश्व कैंपाते हैं
पर्वत का दिल दहलाते हैं
रण में त्रिपुरांतक बने शर्व
कर ले जो रिपु का गर्व खर्च
जो अग्नि-पुत्र, त्यागी, अकाम
उनको अर्पित मेरा प्रणाम!

प्रश्न  

(क) कवि किन वीरों को प्रणाम करता है? 1
(ख) कवि ने भारत के माथे का लाल चंदन किन्हें कहा है? 1
(ग) दुश्मनों पर भारतीय सैनिक किस तरह वार करते हैं? 1
(घ) उपयुक्त शीर्षक दीजिए। 1
(ङ) कवि की श्रदधा किन वीरों के प्रति है? 1

उत्तर-

(क) कवि उन वीरों को प्रणाम करता है जिनमें स्वदेश का मान भरा है तथा जो निभीक होकर अंतिम दम तक देश के लिए संघर्ष करते हैं।
(ख) कवि ने भारत के माथे का लाल तिलक उन वीरों को कहा है जिन्होंने देश की वेदी पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
(ग) दुश्मनों पर भारतीय वीर आँधी की तरह भीषण वार करते हैं तथा आग उगलते हुए शत्रुओं के किलों को तोड़ देते हैं।
(घ) शीर्षक-वीरों को मेरा प्रणाम।
(ङ) कवि की श्रद्धा उन वीरों के प्रति है जो मृत्यु से नहीं घबराते तथा अपनी हुकार से विश्व को कपा देते हैं।

19.

पुरुष हो पुरुषार्थ करो, उठो।
पुरुष क्या, पुरुषार्थी हुआ न जो,
हृदय की सब दुर्बलता तजो।
प्रबल जो तुम में पुरुषार्थ हो,
सुलभ कौन तुम्हें न पदार्थ हो?
प्रगति के पथ में विचरो उठो,
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।

न पुरुषार्थ बिना कुछ स्वार्थ है,
न पुरुषार्थ बिना परमार्थ है।
समझ लो यह बात यथार्थ है
कि पुरुषार्थ ही पुरुषार्थ है।
भुवन में सुख-शांति भरो, उठो।
पुरुष हो पुरुषार्थ करो, उठो।

न पुरुषार्थ बिना वह स्वर्ग है,
न पुरुषार्थ बिना अपवर्ग है।
न पुरुषार्थ बिना क्रियता कहीं,
न पुरुषार्थ बिना प्रियता कहीं।
सफलता वर-तुल्य वरो, उठो
पुरुष हो पुरुषार्थ करो, उठो।

न जिसमें कुछ पौरुष हो यहाँ
सफलता वह पा सकता कहाँ?
अपुरुषार्थ भयंकर पाप है,
न उसमें यश है, न प्रताप है।
न कृमि-कीट समान मरो, उठो
पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।

प्रश्न  

(क) प्रथम काव्यांश के माध्यम से कवि ने मनुष्य को क्या प्रेरणा दी है? 1
(ख) मनुष्य पुरुषार्थ से क्या-क्या कर सकता है? 1
(ग) ‘सफलता वर-तुल्य वरो उठो’-पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें। 1
(घ) अपुरुषार्थ भयंकर पाप है-कैसे? 1
(ङ) काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए। 1

उत्तर-

(क) प्रथम काव्यांश में कवि मनुष्य को प्रेरणा देता है कि वह अपनी समस्त शक्तियाँ इकट्ठी करके परिश्रम करे। इससे उसका विकास होगा।
(ख) पुरुषार्थ से मनुष्य अपना व समाज का भला कर सकता है। वह विश्व में सुख-शांति की स्थापना कर सकता है।
(ग) इसका अर्थ है कि मनुष्य निरंतर कर्म करे तथा वरदान के समान सफलता को धारणा करे। दूसरे शब्दों में, जीवन में सफलता के लिए परिश्रम आवश्यक है।
(घ) अपुरुषार्थ का अर्थ है-कर्म न करना। जो व्यक्ति परिश्रम नहीं करता, उसे यश नहीं मिलता। उसे वीरत्व नहीं प्राप्त होता है। इसी कारण अपुरुषार्थ को भयंकर पाप कहा गया है।
(ङ) शीर्षक–पुरुषार्थ का महत्त्व अथवा पुरुष हो पुरुषार्थ करो।

20.

मनमोहनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है।
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है।

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन-सा है।
जिसके बड़े रसीले, फल, कंद, नाज, मेवे।
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है।

जिसके सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है।
मैदान, गिरि, वनों, में हरियालियाँ महकतीं।
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन-सा है।

जिसकी अनंत वन से धरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है।
सबसे प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा, वह देश कौन-सा है।

प्रश्न 

(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में कौन-सा देश बसा हुआ है और वहाँ कौन-सा सुख प्राप्त होता है? 1
(ख) भारत की नदियों की क्या विशेषता है? 1
(ग) भारत के फूलों का स्वरूप कैसा है? 1
(घ) जगदीश का दुलारा देश भारत संसार का शिरोमणि कैसे है? 1
(ङ) काव्यांश का सार्थक एवं उपयुक्त शीर्षक लिखिए। 1

उत्तर-

(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में भारत देश बसा हुआ है। यहाँ स्वर्ग के समान सुख प्राप्त होता है।
(ख) भारत की नदियों की विशेषता है कि इनका जल अमृत के समान है तथा यह निरंतर देश को सींचती रहती हैं।
(ग) भारत के फूल सुंदर व प्यारे हैं। वे दिन-रात हँसते रहते हैं।
(घ) भारत देश जगदीश का दुलारा है तथा यह संसार शिरोमणि है, क्योंकि यहीं पर सबसे पहले सभ्यता फैली।
(ङ) शीर्षक-वह देश कौन-सा है?

21.

जब कभी मछेरे को फेंका हुआ
फैला जाल
समेटते हुए, देखता हूँ
तो अपना सिमटता हुआ
‘स्व’ याद हो आता है
जो कभी समाज, गाँव और
परिवार के वृहत्तर रकबे में
समाहित था ‘सर्व’ की परिभाषा बनकर
और अब केंद्रित हो
गया हूँ, मात्र बिंदु में।
जब कभी अनेक फूलों पर
बैठी, पराग को समेटती
मधुमक्खियों को देखता हूँ
तो मुझे अपने पूर्वजों की
याद हो आती है,
जो कभी फूलों को रंग, जाति, वर्ग
अथवा कबीलों में नहीं बाँटते थे
और समझते रहे थे कि
देश एक बाग है,
और मधु-मनुष्यता
जिससे जीने की अपेक्षा होती है।
किंतु अब
बाग और मनुष्यता
शिलालेखों में जकड़ गई है
मात्र संग्रहालय की जड़ वस्तुएँ।

प्रश्न  

(क) कविता में प्रयुक्त ‘स्व’ शब्द से कवि का क्या अभिप्राय है? उसकी जाल से तुलना क्यों की गई है? 1
(ख) कवि का ‘स्व’ पहले जैसा था और अब कैसा हो गया है और क्यों? 1
(ग) कवि को अपने पूर्वजों की याद कब और क्यों आती है? 1
(घ) उसके पूर्वजों की विचारधारा पर टिप्पणी लिखिए। 1
(ङ) निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए- 1
“और मनुष्यता
शिलालेखों में जकड़ गई है।”

उत्तर-

(क) यहाँ ‘स्व’ का अभिप्राय निजता से है। इसकी तुलना जाल से की गई है, क्योंकि इसमें भी जाल की तरह विस्तार व संकुचन की क्षमता होती है।
(ख) कवि का ‘स्व’ पहले समाज, गाँव व परिवार के बड़े दायरे में फैला था। आज यह निजी जीवन तक सिमटकर रह गया है, क्योंकि अब वह स्वार्थी हो गया है।
(ग) कवि जब मधुमक्खियों को परागकण समेटते देखता है तो उसे अपने पूर्वजों की याद आती है। पूर्वज रंग, जाति, वर्ग या कबीलों के आधार पर भेदभाव नहीं करते थे।
(घ) कवि के पूर्वज सारे देश को एक बाग के समान समझते थे। वे मनुष्यता को महत्व देते थे।
(ङ) इसका अर्थ है कि आज मनुष्य शिलालेखों की तरह जड़, कठोर, सीमित व कट्टर हो गए हैं। वे जीवन को सहज रूप में नहीं जीते।

22.

तू हिमालय नहीं, तू न गंगा-यमुना
तू त्रिवेणी नहीं, तू न रामेश्वरम्
तू महाशील की है अमर कल्पना
देश! मेरे लिए तू परम वंदना।

मेघ करते नमन, सिंधु धोता चरण,
लहलहाते सहस्त्रों यहाँ खेत-वन।
नर्मदा-ताप्ती, सिंधु, गोदावरी,
हैं कराती युगों से तुझे आचमन।

तू पुरातन बहुत, तू नए से नया
तू महाशील की है अमर कल्पना। ।

देश! मेरे लिए तू महा अर्चना।

शक्ति–बल का समर्थक रहा सर्वदा,
तू परम तत्व का नित विचारक रहा।
शांति-संदेश देता रहा विश्व की।
प्रेम-सद्भाव का नित प्रचारक रहा।

सत्य और प्रेम की है परम प्रेरणा
देश! मेरे लिए तू महा अर्चना।

प्रश्न  

(क) कवि का देश को ‘महाशील की अमर कल्पना’ कहने से क्या तात्पर्य है?1
(ख) भारत देश पुरातन होते हुए भी नित नूतन कैसे है? 1
(ग) ‘तू परम तत्व का नित विचारक रहा’ पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए। 1
(घ) देश का सत्कार प्रकृति कैसे करती है? काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 1
(ङ) “शांति-संदेश ……………….रहा” काव्य-पंक्तियों का अर्थ बताते हुए इस कथन की पुष्टि में इतिहास से कोई एक प्रमाण दीजिए। 1

उत्तर-

(क) कवि देश को महाशील की अमर कल्पना कहता है। इसका अर्थ है कि भारत में महाशील के अंतर्गत करुणा, प्रेम, दया, शांति जैसे महान आचरण हैं जिसके कारण भारत का उज्ज्वल चरित्र बना है। ‘
(ख) भारत में करुणा, दया, प्रेम आदि पुराने गुण विद्यमान हैं तथा वैज्ञानिक व तकनीकी विकास भी बहुत हुआ है। इस कारण भारत देश पुरातन होते हुए नित नूतन है।
(ग) इसका अर्थ है कि भारत ने सदा सृष्टि के परम तत्व की खोज की है।
(घ) प्रकृति देश का सत्कार करती है। मेघ यहाँ वर्षा करते हैं, सागर भारत के चरण धोता है। यहाँ लाखों लहलहाते खेत व वन हैं। नर्मदा, ताप्ती, सिंधु, गोदावरी भारत को आचमन करवाती हैं।
(ङ) इसका अर्थ है कि भारत सदा विश्व को शांति का पाठ पढ़ाता रहा है। यहाँ सम्राट अशोक व गौतम बुद्ध ने संसार को शांति व धर्म का पाठ पढ़ाया।

23.

जब-जब बाहें झुकी मेघ की, धरती का तन-मन ललका है
जब-जब मैं गुजरा पनघट से, पनिहारिन का घट छलका है।

सुन बाँसुरिया सदा-सदा से हर बेसुध राधा बहकी है,
मेघदूत को देख यक्ष की सुधियों में केसर महकी है।
क्या अपराध किसी का है फिर, क्या कमजोरी कहूँ किसी की,
जब-जब रंग जमा महफिल में जोश रुका कब पायल का है।

जब-जब मन में भाव उमड़ते, प्रणय श्लोक अवतीर्ण हुए हैं।
जब-जब प्यास जमी पत्थर में, निझर स्रोत विकीर्ण हुए हैं।
जब-जब गूंजी लोकगीत की धुन अथवा आल्हा की कड़ियाँ
खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है।

प्रश्न  

(क) मेघों के झुकने का धरती पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों? 1
(ख) राधा कौन थी? उसे ‘बेसुध’ क्यों कहा है? 1
(ग) मन के भावों और प्रेम-गीतों का परस्पर क्या संबंध है? इनमें कौन किस पर आश्रित है? 1
(घ) काव्यांश में झरनों के अनायास फूट पड़ने का क्या कारण बताया गया है? 1
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए-खेतों पर यौवन लहराया, रूप गुजरिया का दमका है। 1

उत्तर-

(क) मेघों के झुकने पर धरती का तन-मन ललक उठता है, क्योंकि मेघों से बारिश होती है और इससे धरती पर खुशियाँ फैलती हैं।
(ख) राधा कृष्ण की आराधिका थी। वह कृष्ण की बाँसुरी की मधुरता पर मुग्ध थी। वह हर समय उसमें ही खोई रहती थी। इस कारण उसे बेसुध कहा गया है।
(ग) प्रेम का स्थान मन में है। जब मन में प्रेम उमड़ता है तो कवि प्रेम-गीतों की रचना करता है। प्रेम-गीत मन के भावों पर आश्रित होते हैं।
(घ) जब-जब पत्थरों के मन में प्रेम की प्यास जागती है, तब-तब उसमें से झरने फूट पड़ते हैं।
(ङ) इसका अर्थ है कि खेतों में हरी-भरी फसलें लहलहाने पर कृषक-बालिकाएँ प्रसन्न हो जाती हैं। उनके चेहरे खुशी से दमक उठते हैं।

स्वयं करें

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

यहाँ कोकिला नहीं, काक हैं शोर मचाते।
काले-काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
कलियाँ भी अधखिलीं, मिली हैं कटक-कुल से।
वे पौधे, वे पुष्प, शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग-सा बना पड़ा है।
हा! ये प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज! किंतु धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

वायु चले मंद चाल से उसे चलाना।
दुख की आहें संग उड़ाकर मत ले जाना।
कोकिल गावे, किंतु राग रोने का गावे।
भ्रमर करे गुजार, कष्ट की कथा सुनावे।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले।
हो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ-कुछ गीले।
किंतु न तुम उपहार भाव आकर दरसाना।
स्मृति की पूजा-हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा—खाकर।
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं।
अपने प्रिय परिवार, देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिलीं यहाँ इसलिए चढ़ाना।
करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना।
तड़प-तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर।
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर।
यह सब करना किंतु,
बहुत धीरे से आना।
यह है शोक-स्थान,
यहाँ मत शोर मचाना।

प्रश्न  

(क) कवि ने बाग की क्या दशा बताई है? 1
(ख) कवि ऋतुराज को धीरे से आने की सलाह क्यों देता है? 1
(ग) ऋतुराज को क्या-क्या न लाने के लिए कहा गया है? 1
(घ) ‘कोमल बालक………………खा-खाकर’ पंक्ति से किस घटना का पता चलता है? 1
(ङ) शुष्क पुष्प कहाँ गिराने की बात कही गई है तथा क्यों? 1

2.

चौड़ी सड़क पतली गली थी,
दिन का समय घनी बदली थी,
रामदास उस समय उदास थी,
अंत समय आ गया पास था,
उसे बता दिया गया था उसकी हत्या होगी।
धीरे-धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे,
सभी मौन थे सभी निहत्थे,
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।
खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर,
दोनों हाथ पेट पर रखकर
सधे कदम रख करके आए,

लोग सिमटकर आँख गदाडाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।
निकट गली से तब हत्यारा
आकर उसने नाम पुकारा
हाथ तौलकर चाकू मारा
छटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था आखिर उसकी हत्या होगी
भीड़ टेलकर ठेलकर लौट गया वह,
मरा पड़ा है रामदास यह
देखी-देखी बार-बार कह
लोग निडर उस जगह खड़े रह,
लगे बुलाने उन्हें जिन्हें संशय था हत्या होगी।

प्रश्न  

(क) रामदास की उदासी का क्या कारण था? 1
(ख) रामदास सड़क पर अकेले क्यों आया? 1
(ग) हत्यारा अपने उददेश्य में क्यों कामयाब हो गया? 1
(घ) समाज की इस मानसिकता को आप कितना उचित समझते हैं? 1
(ङ) लोगों ने रामदास की सहायता क्यों नहीं की? 1

3.

एक फाइल ने दूसरी फाइल से कहा
बहन लगता है
साहब हमें छोड़कर जा रहे हैं
इसीलिए तो सारा काम
जल्दी-जल्दी निपटा रहे हैं
मैं बार-बार सामने जाती हूँ
रोती हूँ, गिडगिडाती हूँ
करती हूँ विनती हर बार
साहब जी! इधर भी देख लो एक बार।

पर साहब हैं कि ………
कभी मुझे नीचे पटक देते हैं
कभी पीछे सरका देते हैं
और कभी-कभी तो
फाइलों के ढेर तले
दबा देते हैं।

अधिकारी बार-बार
अंदर झाँक जाता है
डरते-डरते पूछ जाता है
साहब कहाँ गए ………?
हस्ताक्षर हो गए……….?

दूसरी फाइल ने उसे
प्यार से समझाया
जीवन का नया फलसफा सिखाया
बहन! हम यूँ ही रोते  हैं
बेकार गिडगिडाते  हैं
लोग आते हैं, जाते हैं।
हस्ताक्षर कहाँ रुकते हैं
हो ही जाते हैं।

पर कुछ बातें ऐसी होती हैं
जो दिखाई नहीं देतीं
और कुछ आवाजें
सुनाई नहीं देतीं
जैसे फूल खिलते हैं
और अपनी महक छोड़ जाते हैं
वैसे ही कुछ लोग
कागज पर नहीं
दिलों पर हस्ताक्षर छोड़ जाते हैं।

प्रश्न  

(क) साहब जल्दी-जल्दी काम क्यों निपटा रहे हैं? 1
(ख) फाइल की विनती पर साहब की क्या प्रतिक्रिया होती है? 1
(ग) ‘हस्ताक्षर कहाँ रुकते हैं, हो ही जाते हैं।’-पंक्ति में छिपा व्यंग्य बताइए। 1
(घ) दूसरी फाइल ने पहली फाइल को क्या समझाया? 1
(ङ) इस काव्यांश का भाव स्पष्ट करें। 1

4.

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख–ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना
नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूं सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले,

हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की ही शक्ति अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना
नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय
वहन कर सकूं इसको निर्भय।

प्रश्न  

(क) विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं – पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? 1
(ख) कवि अपना कोई सहायक न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है? 1
(ग) कवि निर्भय होकर क्या वहन करना चाहता है? 1
(घ) बल पौरुष न हिलने का क्या तात्पर्य है? 1
(ङ) साधारण मनुष्य और कवि की प्रार्थना में क्या अंतर दिखाई देता है? काव्यांश के आधार पर लिखिए। 1

5.

ग्राम, नगर या कुछ लोगों का
नाम नहीं होता है देश।
संसद, सड़कों, आयोगों का
नाम नहीं होता है देश।
देश नहीं होता है केवल
सीमाओं से घिरा मकान।
देश नहीं होता है कोई
सजी हुई ऊँची दुकान।
देश नहीं क्लब जिसमें बैठे
करते रहें सदा हम मौज।
देश नहीं होता बंदूकें
देश नहीं होता है फौज।
जहाँ प्रेम के दीपक जलते
वहीं हुआ करता है देश।

जहाँ इरादे नहीं बदलते
वहीं हुआ करता है देश।
हर दिल में अरमान मचलते,
वहीं हुआ करता है देश।
सज्जन सीना ताने चलते,
वहीं हुआ करता है देश।
देश वहीं होता जो सचमुच,
आगे बढ़ता कदम-कदम।
धर्म, जाति, सीमाएँ जिसका,
ऊँचा रखते हैं परचम।
पहले हम खुद को पहचानें,
फिर पहचानें अपना देश
एक दमकता सत्य बनेगा,
वहीं रहेगा सपना देश।

प्रश्न   

(क) कवि किसे देश नहीं मानता? 1
(ख) ‘पहले हम खुद को पहचानें, फिर पहचानें अपना देश’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 1
(ग) किन-किन बातों से देश की पहचान होती है? 1
(घ) देश के मस्तक को ऊँचा रखने में किन-किनका योगदान होता है? 1
(ङ) कवि क्या कहना चाहता है?1

6.

बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया
तले जल नहा, पहन श्वेत वसन आई
खुले लान बैठे गई दमकती लुनाई
सूरज खरगोश धवल गोद उछल आया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया
नभ के उद्यान-छत्र-तले मेघ टीला
पड़ा हरा फूल कढ़ा मेजपोश पीला
वृक्ष खुली पुस्तक हर पेड़ फड़फड़ाया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।

पैरों में मखमल की जूती-सी क्यारी
मेघ ऊन का गोला बुनती सुकुमारी
डोलती सिलाई, हिलता जल लहराया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया
बोली कुछ नहीं, एक कुर्सी थी खाली
हाथ बढ़ा छज्जे की छाया सरका ली
बाँह छुड़ा भागा, गिर बर्फ हुई छाया
बहुत दिनों बाद मुझे धूप ने बुलाया।

प्रश्न  

(क) धूप किस रूप में आई? 1
(ख) ‘पड़ा हरा फूल मेजपोश पीला’ पंक्ति से क्या तात्पर्य है? 1
(ग) कवि बाँह छुड़ा कब और क्यों भागा? 1
(घ) सुकुमारी क्या बुन रही थी? उससे जल पर क्या प्रभाव पड़ा? 1
(ङ) मेघ रूपी टीले की विशेषता काव्यांश के आधार पर लिखिए। 1

7.

अभी परिंदों
में धड़कन है
पेड़ हरे है जिंदा धरती,
मत उदास
हो छाले लखकर,
चाहे
थके पर्वतारोही
धूप शिखर पर चढ़ती रहती।
फिर-फिर समय का पीपल कहता
बढ़ो हवा की लेकर हिम्मत,
बरगद का आशीष सिखाता
खोना नहीं प्यार की दौलत
पथ में

ओी माझी नदियां कब थकती?
चाँद भले ही बहुत दूर हो
राहों को चाँदनी सजाती,
हर गतिमान चरण की खातिर
बदली खुद छाया बन जाती।
रात भोले घिर आए,
कभी सूर्य की दौड़ न रुकती
कितने ही पक्षी बेघर हैं
हिरनों के बच्चे बेहाल,
तम से लड़ने कौन चलेगारोज दिए का यही सवाल
पग-पग है आँधी की साजिश पथ में
पर मशाल की जग न थमती।

प्रश्न  

(क) उदास व्यक्ति को कवि किस तरह उत्साहित कर रहा है? 1
(ख) 
कवि ने नदी का उदाहरण किस संदर्भ में दिया है और क्यों? 1
(ग) पीपल मनुष्य को क्या प्रेरणा देता है? 1
(घ) दीप मनुष्य से क्या सवाल करता है? उससे मनुष्य को क्या प्रेरणा लेनी चाहिए? 1
(ङ) बदली किसकी प्रतीक है? वह किनके लिए छाया बन जाती है? 1

8.

उसे दरवाजे पर रखकर
चला गया है माली
उसका वहाँ होना
अटपटा लगता है मेरी आँखों को
पर जाते हुए दिन की
धुंधली रोशनी में
उसकी वह अजब अड़बंग-सी धूल भरी
धज
आकर्षित करती है मुझे
काम था
सो हो चुका है
मिट्टी थी
सो खुद चुकी है जड़ों तक
और अब कुदाल है कि एक चुपचाप
चुनौती की तरह
खड़ी है दरवाजे पर
सोचता हूँ उसे वहाँ से उठाकर
ले जाऊँ अंदर
और रख दूँ किसी कोने में
ड्राइंग-रूम कैसा रहेगा-
मैं सोचता हूँ

न सही कुदाल
एक अलंकार ही सही
यदि वहाँ रह सकती है नागफनी
तो कुदाल क्यों नहीं?
पर नहीं-मेरे मन ने कहा
कुदाल नहीं रह सकती ड्राइंग-रूम में
इससे घर का संतुलन बिगड़ सकता है
फिर किया क्या जाए मैंने सोचा
कि तभी ख्याल आया
उसे क्यों न छिपा दूँ।
पलंग के नीचे के अंधेरे में
इससे साहस थोड़ा दबेगा जरूर
पर हवा में जो भर जाएगी एक रहस्य की गंध
उससे घर की गरमाहट कुछ बढ़ेगी ही
लेकिन पलंग के नीचे कुदाल?
मैं ठठाकर हँस पड़ा इस अद्भुत बिंब पर
अंत में कुदाल के सामने रुककर
मैंने कुछ देर सोचा कुदाल के बारे में
सोचते हुए लगा उसे कंधे पर रखकर
किसी अदृश्य अदालत में खड़ा हूँ मैं
पृथ्वी पर कुदाल के होने की गवाही में

प्रश्न  

(क) माली किस वस्तु को घर के दरवाजे पर रखकर चला गया और क्यों? 1
(ख) कवि ने कुदाल को दरवाजे के निकट रख कर क्या सोचा? 1
(ग) ‘यदि वहाँ रह सकती है नागफनी
तो कुदाल क्यों नहीं’
आशय स्पष्ट कीजिए। 1
(घ) कुदाल के बारे में सोचते हुए कवि को क्या महसूस हुआ? 1
(ङ) कवि कुदाल को अलंकार की तरह ड्राइग रूम में नहीं सजा पाता है, क्यों? 1

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