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3 Rain on the Roof

• कविता के विषय में-जब गगन (आकाश) को श्याम (काले) मेघों (बादलों) द्वारा आच्छादित (ढक लिया) कर लिया जाता है और वर्षा आरम्भ हो जाती है, तो क्या आपने छत पर हल्की वर्षा की पटपट कभी सुनी है? जैसे ही आपने प्रकृति की यह धुन सुनी तो आपके मस्तिष्क में क्या विचार कौंधे? कविता को पढ़िए यह तलाश करने के लिए कि वर्षा को सुनते हुए कवि ने क्या स्वप्न देखा।

कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद

1. When the humid……….overhead! 

कठिन शब्दार्थ : humid (ह्यूमिड्) = नम, shadows (शैडोज) = मेघ, hover (हॉव(र)) = मँडराना, starry spheres (स्टारि स्फिअज) = तारागण, melancholy (मेलन्कलि) = उदास, bliss (ब्लिस्) = परम सुख, chamber (चैमब(र)) = कमरा, patter (पैट(र)) = पट-पट, overhead (ओवहेड्) = ऊपर।

हिन्दी अनुवाद : जब तारों भरे सम्पूर्ण गोल क्षेत्र (आकाश) में नम मेघ मँडराते हैं, और उदास अन्धकार धीरे-धीरे वर्षारूपी अश्रु से रोता है। कॉटिज-कक्ष में बिछे बिस्तर के तकिये को दबाने (अर्थात् पर लेटने) में और लेटे हुए ऊपर छत पर हल्की वर्षा की पट-पट सुनने में कितना परम सुख है।

भावार्थ : प्रकृति की सन्निधि हमें परम सुख देती है। 

2. Every tinkle……………….. the roof.

कठिन शब्दार्थ : tinkle (ड्क्ल )= टन-टन, shingles (शिङ्ग्ल्ज् ) = छत की लकड़ी की टाइल्स, echo (एको) = गूंज, fancies (फैन्सिज) = कल्पनाएँ, being (बीइङ्) = व्यक्ति, recollections (रेक्लेक्श्न्ज ) = स्मृतियाँ, woof (वुफ्) = ताना-बाना, weave (वीव) = बुनना।।

हिन्दी अनुवाद : जब मैं छत पर वर्षा की पट-पट सुनता हूँ तो छत की लकड़ी की टाइल्स पर प्रत्येक टन-टन दिल में गूंजती है। और हजारों स्वप्नत्व कल्पनाएँ व्यस्त व्यक्ति के मन में उभरती हैं (यहाँ कवि स्वप्न लेता-सा प्रतीत होता है), और हजार यादें अपना हवाई ताना-बाना बुनने लगती हैं (अर्थात् अनेक विचार आते हैं व घूमते रहते हैं)।

भावार्थ : प्रकृति का संगीत ही हमारे हृदय को झंकृत कर सकता है। हमारी स्मृतियों को तरोताजा कर सकता है। 

3. Now in………….the rain. 

कठिन शब्दार्थ : agone (अगोन्) = बीते हुए, regard (रिगाड्) = निहारना, ere (ए/एर) = इससे पहले, list (लिस्ट्) = सुनना, refrain (रिफ्रेन्) = टेक।

हिन्दी अनुवाद : (कवि स्वप्न में फिर लीन है और कहता है) मेरी स्मृति में अब मेरी माँ आती है, जैसे कि बीते हुए वर्षों में वह किया करती थी कि ऊषा काल तक उन्हें छोड़ने से पूर्व वह अपने प्रिय स्वप्न-द्रष्टाओं को निहारा करती थी। अरे ! मैं उसकी (माँ की) स्नेहपूर्ण दृष्टि को स्वयं पर अनुभव कर रहा हूँ जैसे ही मैं इस टेक (प्रकृति के संगीत की) को सुन रहा हूँ, जो कि छत की लकड़ी की टाइल्स पर वर्षा की पट-पट द्वारा उत्पन्न की जा रही है।

भावार्थ : माँ सदैव संपुष्ट करती है, चाहे वह जन्म देने वाली हो या पालने वाली धरती माँ (प्रकृति) हो। उसका स्मृति में रहना व आना सत्य ही है।

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