पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में बालकों की एक रोचक कथा के माध्यम से एक से दस तक की संस्कृत में संख्याओं का ज्ञान कराया गया है तथा बालकों के स्वभाव का सुन्दर चित्रण किया गया है।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

पाठ का हिन्दी-अनुवाद –

1. एकदा दश बालकाः स्नानाय ……………………………………………. बालकाः नदीम्-उत्तीर्णाः? 

हिन्दी-अनुवाद – एक बार दस बालक स्नान करने के लिए नदी पर गए। उन्होंने नदी के जल में बहुत समय तक स्नान किया। उसके बाद वे तैरकर नदी के पार गए। तब उनके नायक ने पूछा-क्या सभी बालकों ने नदी को पार कर लिया है?

2. तदा कश्चित् बालकः ……………………………….. दुःखिताः तूष्णीम् अतिष्ठन्। 

हिन्दी-अनुवाद – तब कोई बालक गिनने लगा-एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ। उसने स्वयं को (अपने आपको) नहीं गिना। इसलिए वह बोला-नौ ही हैं। दसवाँ नहीं है। दूसरे बालक ने भी पुनः अन्य बालकों को गिन लिया। तब भी नौ ही थे। इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि दसवाँ (बालक) नदी में डूब गया। वे दु:खी होकर चुपचाप बैठ गए।

3. तदा कश्चित् पथिकः ………………………………… नद्यां मग्नः’ इति।  

हिन्दी-अनुवाद – तभी कोई राहगीर (यात्री) वहाँ आया। उसने उन बालकों को दुःखी देखकर पूछा-हे बालकों! तुम्हारे दु:ख का क्या कारण है? बालकों के नायक ने कहा-“हम दस बालक स्नान करने (नहाने) के लिए आए थे। अब नौ ही हैं। एक नदी में डूब गया।”

4. पथिकः तान् अगणयत् …………………………….. सर्वे गृहम् अगच्छन्।

हिन्दी अनुवाद – राहगीर (यात्री) ने उनको (बालकों को) गिना। वहाँ दस बालक ही थे। उसने नायक को आदेश दिया-तुम बालकों को गिनो। उसने नौ बालकों को ही गिना। तब यात्री ने कहा-“दसवें (बालक) तुम हो।” यह सुनकर प्रसन्न होकर सभी (बालक) घर को चले गए।

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