Chapter 13 क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ्यांश डॉ. कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित है, जिसमें भारत के गौरव का गुणगान है। इसमें देश की खाद्यान्न सम्पन्नता, कलानुराग, प्राविधिक प्रवीणता, वन एवं सामरिक शक्ति की महनीयता को दर्शाया गया है। प्राचीन परम्परा, संस्कृति, आधुनिक मिसाइल क्षमता एवं परमाणु शक्ति सम्पन्नता के गीत द्वारा कवि ने देश की सामर्थ्यशक्ति का वर्णन किया है। छात्र संस्कृत के इन श्लोकों का सस्वर गायन करें तथा देश के गौरव को महसूस करें, इसी उद्देश्य से इन्हें यहाँ संकलित किया गया है।
पाठ के पद्यों के अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी भावार्थ –
सुपूर्ण सदैवास्ति ……………………. राजते भारतस्वर्णभूमिः॥
अन्वयः – यत्र सदैव खाद्यान्नभाण्डं सुपूर्णम् अस्ति, नदीनां जलं पीयूषतुल्यम् (अस्ति)। इयं धरा शस्यैः स्वर्णबद् भाति। क्षितौ इयं भारत-स्वर्णभूमिः राजते।
कठिन-शब्दार्थ :
- सुपूर्णम् = पूर्ण रूप से भरा हुआ।
- पीयूषतुल्यम् = अमृत के समान।
- धरेयम् = (धरा + इयम्) यह पृथ्वी।
- भाति = सुशोभित होती है।
- शस्यैः = फसलों से।
- क्षितौ = पृथ्वी पर।
- राजते = सुशोभित है।
हिन्दी भावार्थ : प्रस्तुत श्लोक में कवि भारत देश की महिमा का वर्णन करते हुए कहता है कि इस देश में हमेशा खाद्यान्न के भण्डार भरे हुए रहते हैं। यहाँ की नदियों का जल अमृत के समान है। धान आदि की फसलों से भारत की धरती स्वर्ण के समान सुशोभित होती है। इस पृथ्वी पर भारत की यह स्वर्णभूमि सुशोभित है।
त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोर: …………………. राजते भारतस्वर्णभूमिः॥
अन्वयः – इयम् (धरा) त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रघोरैः अणूनां महाशक्तिभिः पूरिता (अस्ति)। इयम् सदा राष्ट्ररक्षारतानां धरा (अस्ति)। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।
कठिन-शब्दार्थ :
- त्रिशूलाग्निनागैः पृथिव्यस्त्रधोरैः = त्रिशूल, अग्नि, नाग, पृथ्वी तथा आकाश – पाँच मिसाइलों (अस्त्रों) के नाम।
- परिता = परिपर्ण।
- राष्टरक्षारतानाम = राष्ट-रक्षा में लगे हए लोगों की।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में भारत की सैन्य समृद्धि का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भारत देश की भूमि त्रिशूल, अग्नि, नाग, पृथ्वी तथा आकाश नामक पाँच आणविक महाशक्तियों वाले अस्त्रों से परिपूर्ण है। यह सदैव राष्ट्र रक्षा में तत्पर वीरों की धरती है। भारत-स्वर्णभूमि इस पृथ्वी पर सुशोभित है।
इयं वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या ……………………………. राजते भारतस्वर्णभूमिः॥
अन्वयः – इयं भूः वीरभोग्या तथा कर्मसेव्या जगद्वन्दनीया देवगेया च (अस्ति)। इयं सदा पर्वणाम् उत्सवानां (च) धरा। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।
कठिन-शब्दार्थ :
- भूः = पृथ्वी, भूमि।
- वीरभोग्या = वीरों द्वारा भोग करने योग्य।
- कर्मसेव्या = कर्मशील लोगों के द्वारा सेवनीय।
- पर्वणामुत्सवानाम् = पर्व और उत्सवों की।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में भारत की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि भारत की यह भूमि वीरों द्वारा भोगने योग्य है तथा यहाँ कर्मशील लोग ही निवास करते हैं। यह संसार में सभी के द्वारा वन्दनीय है। देवता भी इसकी प्रशंसा करते हैं। यह सदा पर्यों और उत्सवों की भूमि है। भारतस्वर्णभूमि इस पृथ्वी पर सुशोभित है।
इयं ज्ञानिनां चैव वैज्ञानिकाना ……………………. राजते भारतस्वर्णभूमिः॥
अन्वयः – इयं (धरा) ज्ञानिनाम्, वैज्ञानिकानां चैव (अस्ति)। इयं (धरा) विपश्चिज्जनानां संस्कृतानाम् (चास्ति)। इयं धरा बहूनां मतानां जनानाम् (अस्ति)। भारतस्वर्णभूमि क्षितौ राजते।
कठिन-शब्दार्थ :
- विपश्चिज्जनानाम् = विद्वज्जनों की।
- संस्कृतानाम् = संस्कृतज्ञों की।
- बहूनाम् = बहुतों की।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में भारत देश की महिमा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि भारत देश की भूमि ज्ञानियों, वैज्ञानिकों, विद्वानों और संस्कृतज्ञों से युक्त है। इस भूमि पर अनेक मतों वाले लोग रहते हैं। भारत की यह स्वर्णभूमि पृथ्वी पर सुशोभित है।
इयं शिल्पिनां यन्त्रविद्याधराणां ………………………………………. राजते भारतस्वर्णभूमिः॥
अन्वयः – इयं (धरा) शिल्पिनाम्, यन्त्रविद्याधाराणाम्, भिषक्शास्त्रिणाम्, भूः प्रबन्धे युतानाम् (चास्ति)। इयं धरा नटानां नटीनां कवीनां (चास्ति)। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।
कठिन-शब्दार्थ :
- यन्त्रविद्याधराणाम् = यन्त्र विद्या को जानने वालों की।
- भिषक्शास्त्रिणाम् = वैद्य, चिकित्सकों की।
- प्रबन्धे युतानाम् = प्रबन्ध कार्यों में लगे हुए (इंजीनियरों) की।
- नटानाम् = अभिनेताओं की।
- नटीनाम् = अभिनेत्रियों की।
हिन्दी भावार्थ-प्रस्तुत श्लोक में भारत देश की महिमा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि भारत देश महान् शिल्पकार, यन्त्र-विद्या के ज्ञाता, प्रबन्धक, अभिनेता, अभिनेत्रियाँ तथा कवियों से सुशोभित है। भारत-स्वर्णभूमि पृथ्वी पर सुशोभित है।
वने दिग्गजानां तथा केसरीणां ……………………………राजते भारतस्वर्णभूमिः।।
अन्वयः – इयं धरा वने दिग्गजानां तथा केशरीणाम्, तटीनां भूधराणां (च) वर्तते। इयं धरा शिखीनां शुकानां पिकानां (च) वर्तते। भारतस्वर्णभूमिः क्षितौ राजते।।
कठिन-शब्दार्थ :
- दिग्गजानाम् = हाथियों की।
- केसरीणाम् = सिंहों की।
- तटीनाम् = नदियों की।
- भूधराणाम् = पर्वतों की।
- शिखीनाम् = मोरों की।
- शुकानाम् = तोतों की।
- पिकानाम् = कोयलों की।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में कवि भारत देश की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहता है कि भारत-भूमि वनों में हाथियों, सिंहों, नदियों, पर्वतों, मयूरों, तोतों तथा कोयलों से सुशोभित है। भारत की स्वर्णभूमि इस पृथ्वी पर सुशोभित हो रही है।