Chapter 13 गांधी विचारधारा, असहयोग आन्दोलन (अनुभाग – एक)
विरत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन के स्वरूप, कारण एवं उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए। [2014]
या
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया ? इस आन्दोलन के क्या कार्यक्रम थे ? उन्हें यह आन्दोलन क्यों स्थगित करना पड़ा ? (2010, 11, 17)
या
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया ? इसके कोई दो मुख्य कारण बताइए। [2013]
या
महात्मा गांधी ने भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाए। इन दोनों आन्दोलनों का परिचय देते हुए बताइए कि क्या ये दोनों अपने उद्देश्यों में सफल रहे ? [2013]
या
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलनों का वर्णन कीजिए। [2016, 18]
या
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए किन्हीं दो आन्दोलनों के विषय में संक्षेप में लिखिए। [2015, 17]
या
गांधी जी द्वारा संचालित तीन प्रमुख आन्दोलनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। उनके अन्तिम आन्दोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए। [2015]
या
असहयोग आन्दोलन के कोई तीन कारण बताइए। [2017]
उत्तर :
बीसवीं सदी के दूसरे दशक का अन्तिम वर्ष अर्थात् सन् 1920 ई० भारतीय जनता के लिए निराशा और क्षोभ का वर्ष था। जनता उम्मीद लगाये बैठी थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश हुकूमत उनके लिए कुछ करेगी लेकिन रॉलेट ऐक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड और पंजाब में मार्शल लॉ ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। भारतीय जनता समझ गयी कि ब्रिटिश हुकूमत से सिवाय दमन के उन्हें और कुछ मिलने वाला नहीं है।
ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में सितम्बर, 1920 ई० में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इसी अधिवेशन में गांधी जी ने ‘असहयोग’ का प्रस्ताव पेश किया। यद्यपि श्रीमती एनीबेसेण्ट ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि यह प्रस्ताव भारतीय स्वतन्त्रता के लिए बड़ा धक्का है। इससे समाज और सभ्य जीवन के बीच संघर्ष छिड़ सकता है।
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मदनमोहन मालवीय, चितरंजन दास, विपिनचन्द्र पाल, जिन्ना आदि ने भी प्रारम्भ में विरोध किया परन्तु अली बन्धुओं तथा मोतीलाल नेहरू के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।
असहयोग आन्दोलन का स्वरूप
महात्मा गांधी अंग्रेजों की दमनकारी नीति से बहुत दुःखी हो उठे थे। फलस्वरूप उन्होंने अगस्त, 1920 ई० को अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। राजनीति के क्षेत्र में यह अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन महात्मा गांधी का अभिनव प्रयोग था।उन्होंने भारतीयों से यह विनती की कि वे अंग्रेजों द्वारा दी गयी उपाधियों और सरकारी पदों को त्याग दें, अंग्रेजी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ने न भेजें, काउन्सिलो तथा स्थानीय संस्थाओं की सदस्यता त्याग दें और विदेशी वस्तुओं एवं न्यायालयों का बहिष्कार करें। गांधी जी के अहिंसा पर आधारित इस असहयोग आन्दोलन का अच्छा परिणाम निकला। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों ने विद्यालयों का परित्याग कर दिया और राष्ट्रीय विद्यापीठों की स्थापना की। लोग खद्दर एवं स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग अधिक करने लगे। स्वराज्य का सन्देश अमरबेल की भाँति समस्त भारत में फैल गया।
असहयोग आन्दोलन का रचनात्मक कार्यक्रम-सरकारी पदों व उपाधियों का बहिष्कार, विदेशी माल का बहिष्कार आदि कार्यक्रम; असहयोग आन्दोलन के विरोधात्मक कार्यक्रम थे। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। यह रचनात्मक कार्यक्रम इस प्रकार था—एक करोड़ रुपये का तिलक फण्ड स्थापित करना, एक करोड़ स्वयंसेवकों की भर्ती करना, बीस लाख चर्खा का वितरण करना, राष्ट्रीय शिक्षा की दिशा में प्रयास करना, स्वदेशी माल खरीदने पर बल देना तथा लोक अदालतों की स्थापना करना
आन्दोलन के कारण
कांग्रेस ने सन् 1920 ई० के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
- सरकार का किसी भी क्षेत्र में सहयोग न करना।
- सरकार के कार्यों को ठप करना।
- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारत की स्वतन्त्रता के लिए सरकार के द्वारा पहल न करना।
- सन् 1913-18 ई० के बीच कीमतें दोगुनी हो जाना।
- दुर्भिक्ष तथा महामारी के कारण लाखों लोगों के मरने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम न उठाना।
आन्दोलन के परिणाम
कांग्रेस के द्वारा गांधी जी के नेतृत्व में चलाये गये असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए
- इस आन्दोलन से प्रभावित होकर दो-तिहाई मतदाताओं ने विधानमण्डल के चुनावों का बहिष्कार कर दिया।
- अध्यापकों और विद्यार्थियों ने शिक्षण संस्थाओं में जाना छोड़ दिया।
- अनेक उत्साही भारतीयों ने अंग्रेजी शासन की सरकारी सेवाओं से त्याग-पत्र दे दिया।
- स्थान-स्थान पर विदेशी वस्तुओं की होली जला दी गयी।
- ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर उनका हड़तालों और प्रदर्शनों से स्वागत किया गया।
- यह आन्दोलन स्वतन्त्रता-प्राप्ति के संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया।
महात्मा गांधी द्वारा आन्दोलन वापस लेना – यह आन्दोलन दो वर्षों तक सफलतापूर्वक चलता रहा। अंग्रेजों ने आन्दोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस के सक्रिय नेताओं को गांधी जी सहित जेल में डाल दिया। जनता ने इसके विरोध में आन्दोलन किया परन्तु 5 फरवरी, 1922 ई० को भड़की हुई जनता ने चौरी- चौरा, नामक स्थान पर एक पुलिस चौकी में आग लगाकर 22 पुलिस कर्मियों को जिन्दा जला दिया। इस भड़की हुई हिंसा के कारण गांधी जी ने दु:खी होकर यह आन्दोलन वापस ले लिया।
[संकेत – अन्य दो आन्दोलनों के लिए अध्याय 14 के विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 व 2 देखें।
प्रश्न 2.
गांधीवादी विचारधारा सत्याग्रह एवं अहिंसात्मक नीति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सत्याग्रह का विचार
महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में एक नये तरह के आन्दोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस मार्ग को सत्याग्रह कहा गया। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह’ और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपको उद्देश्य सच्चा है और संघर्ष अन्याय के खिलाफ है, तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिये बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। केवल शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाय सच्चाई को देखने और सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस संघर्ष में अन्ततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का विश्वास था कि अहिंसा का यह मार्ग सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।
भारत आने के बाद गांधी जी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1916 ई० मे उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। सन् 1917 ई० में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। सन् 1918 ई० में गांधी जी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुंचे।
गांधी जी केवल राजनैतिक स्वतन्त्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक, आत्मिक उन्नति भी चाहते थे। इस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने ग्रामोद्योग संघ, तालीमी संघ (प्राथमिक शिक्षा) तथा हरिजन संघ की स्थापना की। उन्होंने कुटीर उद्योग के विकास पर बल दिया। ‘खादी’ उनके आत्मनिर्भरता एवं आर्थिक कार्यक्रम का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि खादी वस्त्र नहीं, एक विचारधारा है।
अहिंसा का विचार
प्राचीन काल से ही अहिंसा का अनुपालन करना भारतभूमि के वीरों का प्रमुख उद्देश्य रहा है। हमारे देश के मनीषी-गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक देव जैसे महर्षियों ने अपनी अमृतवाणी से ही नहीं अपनी कृतियों में भी विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। आधुनिक युग के महान युगपुरुष, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अहिंसा के पुरजोर समर्थक थे। वे किसी को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते थे। गांधी जी के शब्दों में, “इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत विनाशकारी शस्त्रों के मामले में ब्रिटेन या यूरोप का मुकाबला नहीं कर सकता। अंग्रेज युद्ध के देवता की उपासना करते हैं। वे सब हथियारों से लैस हो सकते हैं, होते जा रहे हैं। भारत में करोड़ों लोग कभी हथियार लेकर नहीं चल सकते। उन्होंने अहिंसा के धर्म को आत्मसात् कर लिया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चौरी-चौरा काण्ड से असहयोग आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
अंग्रेजी सरकार के अत्याचारों से दु:खी होकर गांधी जी ने अगस्त, 1920 में असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। यह आन्दोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया। 5 फ़रवरी, 1922 ई० को असहयोग आन्दोलन के सत्याग्रहियों द्वारा गोरखपुर के चौरी-चौरा गाँव में एक जुलूस निकाला गया। भीड़ ने आक्रोश में आकर एक थाने को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया, जिसमें 22 सिपाही जीवित जल गये। असहयोग आन्दोलन का रूप हिंसात्मक होता देख गांधी जी क्षुब्ध हो उठे और उन्होंने इस आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा कर दी। गांधी जी की इस घोषणा से जनता का उत्साह ठण्डा पड़ गया। सरकार ने इस अवसर का लाभ उठाकर 10 मार्च, 1922 ई० को गांधी जी को बन्दी बना लिया और उन्हें छह वर्ष कारावास का कठोर दण्ड देकर जेल भेज दिया।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए किस आन्दोलन का सहारा लिया ?
उत्तर :
महात्मा गांधी ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए असहयोग आन्दोलन का सहारा लिया।
प्रश्न 2.
सत्याग्रह से क्या आशय है ?
उतर :
गांधी जी के शब्दों में – “सत्याग्रह, शारीरिक बल नहीं है। सत्याग्रही शत्रु को कष्ट नहीं पहुँचाता, वह अपने शत्रु का विनाश नहीं चाहता। सत्याग्रह के प्रयोग में दुर्भावना के लिए कोई स्थान नहीं होता है।” सत्याग्रह’ का शाब्दिक अर्थ है – सत्य + आग्रह अर्थात् सत्य के लिए आग्रह करना।
प्रश्न 3.
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया ? [2011]
या
गांधी जी ने 1922 ई० में असहयोग आन्दोलन क्यों स्थगित कर दिया ? [2011]
उत्तर :
चौरी-चौरा काण्ड को देखकर गांधी जी को लगा कि आन्दोलन हिंसात्मक होता जा रहा है। इसलिए उन्होंने 12 फरवरी, 1922 को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।
प्रश्न 4.
26 जनवरी, 1950 ई० को भारत गणतन्त्र क्यों घोषित किया गया ? [2011]
उत्तर :
26 जनवरी, 1950 ई० को भारत गणतन्त्र इसलिए घोषित किया गया क्योंकि इस दिन हमारे देश में संविधान लागू हुआ था।
प्रश्न 5.
स्वराज्य पार्टी का गठन कब हुआ ? (2011)
उत्तर :
स्वराज्य पार्टी का गठन 1923 ई० में हुआ।
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. महात्मा गांधी का जन्म किस स्थान पर हुआ था ?
(क) सूरत
(ख) पोरबन्दर
(ग) साबरमती आश्रम
(घ) खेड़ा
2. गांधी जी दक्षिण अफ्रीका किस सन् में गये थे ?
(क) 1869 ई० में
(ख) 1885 ई० में
(ग) 1893 ई० में
(घ) 1914 ई० में
3. गांधी जी ने किस व्यक्ति को अपना राजनीतिक गुरु माना?
(क) बाल गंगाधर तिलक को
(ख) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को
(ग) विपिनचन्द्र पाल को
(घ) गोपालकृष्ण गोखले को
4. गांधी जी ने किस स्थान पर असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पेश किया ?
(क) मुम्बई में
(ख) दिल्ली में
(ग) कलकत्ता में
(घ) गुजरात में
5. महात्मा गांधी अफ्रीका से भारत कब लौटे ? [2011]
(क) 1914 ई०
(ख) 1916 ई०
(ग) 1918 ई०
(घ) 1920 ई०
6. असहयोग आन्दोलन को नेतृत्व किसने दिया? [2014]
(क) जवाहरलाल नेहरू ने
(ख) मोतीलाल नेहरू ने
(ग) लोकमान्य तिलक ने
(घ) महात्मा गांधी ने
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