जहाँ कोई वापसी नहीं Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
अमझर से आप क्या समझते हैं? अमझर गाँव में सूनापन क्यों है? 
उत्तर : 
‘अमझर’ एक गाँव का नाम है जिसका अर्थ है-आम के पेड़ों से घिरा गाँव जहाँ आम झरते हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन पेड़ों पर सूनापन है। न कोई फल पकता है और न नीचे झरता (गिरता) है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अन्तर्गत नवागाँव के अनेक गाँव (जिनमें से एक गाँव अमझर भी है) उजाड़ दिए जाएँगे, तब से न जाने कैसे आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे ?

प्रश्न 2. 
आधुनिक भारत के ‘नए शरणार्थी’ किन्हें कहा गया है?
अथवा 
निर्मल वर्मा ने आधुनिक भारत में नए शरणार्थी किन्हें कहा है और क्यों? स्पष्ट कीजिए। 
अथवा 
‘जहाँ कोई वापसी नहीं लेख में लेखक ने आधुनिक भारत के नए शरणार्थी किन्हें कहा है और क्यों? 
उत्तर : 
औद्योगीकरण के कारण जिन लोगों को अपनी घर-जमीन छोड़कर निर्वासित होना पड़ा है, ऐसे विस्थापित लोग ही आधुनिक भारत के नए शरणार्थी कहे गए हैं। अपने गाँव, घर, परिवेश से हटने के बाद लोगों को ऐसे नये स्थान तलाशने पड़ते हैं, जहाँ वह शरण ले सके या रह सके। 

प्रश्न 3. 
प्रकृति के कारण विस्थापन और औद्योगीकरण के कारण विस्थापन में क्या अन्तर है? 
उत्तर : 
प्राकृतिक विपत्ति – बाढ़, भूकम्प आदि के कारण लोग अपना घर-बार छोड़कर कुछ समय के लिए विस्थापित होने को बाध्य होते हैं किन्तु जैसे ही प्राकृतिक विपदा समाप्त हो जाती है, वे अपने घर वापस आ जाते हैं, परन्तु औद्योगीकरण के कारण जो विस्थापन होता है वह सदा के लिए होता है। औद्योगीकरण की इस आँधी में मनुष्य अपने परिवेश और आवास स्थल से हमेशा के लिए उखड़ जाता है और फिर कभी उस परिवेश में नहीं लौट पाता। 

प्रश्न 4. 
यूरोप और भारत की पर्यावरण सम्बन्धी चिंताएँ किस प्रकार भिन्न हैं? 
उत्तर : 
1. यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है, जबकि भारत में यह प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच के नाजुक संतुलन को बनाए रखने का है। 
2. यूरोप की सांस्कृतिक विरासत संग्रहालयों में सुरक्षित रही है, जबकि भारत की सांस्कृतिक विरासत उन रिश्तों में है जो उसको धरती, जंगलों, नदियों आदि समूचे परिवेश से जोड़ते हैं। 

प्रश्न 5. 
लेखक के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी क्या है? 
उत्तर : 
स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी.यह है कि हमारे देश के पश्चिम में शिक्षित सत्ताधारियों ने पश्चिम की देखादेखी और उनका अंधानुकरण करते हुए जो विकास. योजनाएँ, बनाईं उसमें प्रकृति, मानव और संस्कृति के नाजुक संतुलन को ध्यान में नहीं रखा। परिणामतः हमारा पर्यावरण नष्ट हुआ और प्रकृति के साथ हम खिलवाड़ करते रहे। औद्योगिक विकास का यह पश्चिम आधारित मॉडल ही हमारी सबसे बड़ी ट्रेजेडी थी। हमारे सत्ताधारियों को विकास का नया भारतीय मॉडल। बनाना चाहिए था, पश्चिम की नकल नहीं करनी चाहिए थी। 

प्रश्न 6. 
औद्योगीकरण ने पर्यावरण का संकट पैदा कर दिया है, क्यों और कैसे?
अथवा 
औद्योगीकरण ने पर्यावरण को कैसे प्रभावित किया है? जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। 
अथवा 
औद्योगीकरण ने प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच आपसी संबंधों को कैसे प्रभावित किया है? ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। 
उत्तर : 
औद्योगीकरण से विकास को तो गति मिलती है परन्तु पर्यावरण को हानि पहुँचती है। वनों की अंधाधुंध कटाई, औद्योगिक कचरे का निस्तारण तथा गैंस उत्सर्जन के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण आदि अनेक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। अनेक लोगों को अपने घर-बार एवं परिवेश को छोड़कर विस्थापित होना पड़ता है जिससे वे अपनी संस्कृति से कट जाते हैं। 

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण का संकट उत्पन्न हो जाता है। बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाएँ एवं भोपाल गैस त्रासदी जैसी दुर्घटनाएँ इस औद्योगीकरण की देन हैं। लेखक का मत है कि विकास होना तो चाहिए पर उस मॉडल पर नहीं जो हमने यूरोप की नकल पर अधारित योजनाएँ बनाते हुए किया है।

प्रश्न 7. 
क्या स्वच्छता अभियान की जरूरत गाँव से ज्यादा शहरों में है? (विस्थापित लोगों, मजदूर बस्तियों, स्ला मस क्षेत्रों, शहरों में बसी झुग्गी बस्तियों के संदर्भ में लिखिए। 
उत्तर : 
गाँव प्रकृति के अधिक निकट हैं। औद्योगिक क्रांति से गाँव अभी अछूते हैं। वहाँ अस्वच्छता कम दिखाई देती है। आबादी भी घनी नहीं होती है। इस समय शहर अस्वच्छता के केन्द्र बन गए हैं। जितना बड़ा तथा औद्योगिक शहर होगा उतनी ही गंदगी वहाँ मिलेगी। मजदूरी की तलाश में लोग शहर में आते हैं, वहाँ रहने के लिए झुग्गी-झोंपड़ी बनाते हैं। धीरे धीरे एक घनी और गंदी बस्ती वहाँ बन जाती है। प्रकाश, शुद्ध हवा, शुद्ध पानी के अभाव में झुग्गी बस्तियों, स्लम क्षेत्र गंदगी के भंडार बन जाते हैं। अत: यह सही है कि गाँवों की अपेक्षा शहरों में स्वच्छता अभियान की आवश्यकता अधिक है।

प्रश्न 8. 
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) आदमी उजड़ेंगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे? 
उत्तर 
प्रस्तुत वाक्य में लेखक ने स्पष्ट किया है कि औद्योगिक विकास के दौर में आज प्राकृतिक सौन्दर्य नष्ट होता जा रहा है। औद्योगीकरण की इस आँधी में केवल मनुष्य ही नहीं उजड़ता, बल्कि उसका परिवेश, संस्कृति और आवास-स्थल भी सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं तथा वनस्पति भी नष्ट हो जाती है। अतः विकास और पर्यावरण-सुरक्षा के बीच संतुलन होना चाहिए।

(ख) प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अन्तर है ? 
उत्तर : 
प्रस्तुत वाक्य में लेखक ने विस्थापन की समस्या का उल्लेख किया है। मनुष्य दो कारणों से विस्थापित होता है एक, प्राकृतिक संकट तथा दो, प्रगति और विकास के विनाशकारी प्रयास। प्राकृतिक कारणों से होने वाला विस्थापन अस्थाई होता है, उसमें अपने पूर्व स्थल पर वापसी की सम्भावना होती है। इतिहास (विकास) द्वारा हुआ विस्थापन स्थायी होता है, उसमें पूर्व स्थान पर लौटने की सम्भावना नहीं होती। दोनों में यही गहरा अन्तर है।

प्रश्न 9. 
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए – 
(क) आधुनिक शरणार्थी 
(ख) औद्योगीकरण की अनिवार्यता 
(ग) प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच आपसी संबंध . 
उत्तर : 
(क) आधुनिक शरणार्थी! जब कोई व्यक्ति अपना घर-जमीन छोड़कर, कहीं और शरण लेने को बा जाता है तब उसे शरणार्थी कहते हैं। प्रायः प्राकृतिक विपत्तियों-बाढ़, भूकम्प आदि के कारण लोगों को अपना घर-जमा छोड़कर कुछ समय के लिए इधर-उधर शरण लेनी पड़ती है किन्तु जब वह विपत्ति समाप्त हो जाती है तब वे लोग पुनः अपने घर वापस आ जाते हैं किन्तु आज औद्योगिक विकास के कारण लोगों के घर-जमीन अधिगृहीत किए जा रहे हैं ऐसी स्थिति में उन्हें स्थायी रूप से विस्थापित होकर अन्यत्र जाना पड़ता है। औद्योगीकरण की इस प्रक्रिया से विस्थापित इन लोगों को ही लेखक ने नए भारत के आधुनिक शरणार्थी कहा है। 

(ख) औद्योगीकरण की अनिवार्यता वर्तमान विश्व में औद्योगीकरण अनिवार्य है। जब सोरा विश्व औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजरकर अपना उत्पादन बढ़ा रहा है तब भारत इससे वंचित नहीं रह सकता किन्तु औद्योगीकरण का चेहरा मानवीय होना चाहिए अर्थात् औद्योगीकरण की प्रक्रिया से मानव को हानि नहीं होनी चाहिए। पर्यावरण को कम से कम हानि हो तथा हमारी संस्कृत्ति ध्वस्त न हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। लेखक का विचार है कि औद्योगीकरण तो हो पर उससे कम से कम हानि हो ऐसा प्रयास करना चाहिए। 

(ग) प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच आपसी संबंध-लेखक का विचार है कि प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच जो आपसी संबंध भारत में पाया जाता है उसे औद्योगीकरण और विकास के नाम पर नष्ट होने से बचाया जाना चाहिए। औद्योगीकरण के कारण मनुष्य को विस्थापित होकर शहरों की गन्दी बस्तियों में जाकर रहना पड़ता है, वे अपने परिवेश से कट जाते हैं, अपनी संस्कृति को विस्मृत कर देते हैं तथा उन्हें विस्थापन के कारण अपना घर-बार सदा के लिए छोड़ना पड़ता है, यह ठीक नहीं है। 

ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि हमारे देश के सत्ताधारियों ने पश्चिम की नकल करते हुए विकास और औद्योगीकरण का ‘मॉडल’ अपनाया है। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि औद्योगिक विकास के लिए हम भारतीय मॉडल विकसित करें जिसमें औद्योगीकरण तो हो पर प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के आपसी संबंध बने रहें तथा पर्यावरण को कम-से-कम हानि हो। 

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-सौन्दर्य लिखिए-
(क) कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है। 
उत्तर : 
लेखक का विचार है कि कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है। सिंगरौली क्षेत्र की खनिज संपदा ही उसका अभिशाप बन गई क्योंकि इसका दोहन करने के लिए उद्योगपतियों एवं सरकार ने यहाँ अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की जिससे यहाँ का पर्यावरण प्रदूषित हुआ और लोगों की विस्थापित होना पड़ा। यहाँ की शांति भंग हो गई और विकास योजनाओं ने यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता नष्ट कर दी। इस प्रकार यहाँ की खनिज संपदा ही अभिशाप बन गई।

(ख) अतीत का समूचा मिथक संसार पोथियों में नहीं, रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता था। 
उत्तर :
भारत एक ऐसा देश है जहाँ के लोग अपनी धरती, नदियों, पेड़-पौधों से रिश्ते. जोड़कर अपना जीवन-यापन करते हैं। उनका समूचा संसार इन रिश्तों में निहित है। यदि ये रिश्ते टूटते हैं तथा हमें अपने परिवेश से अलग कर दिया जाता है तो हमारी संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी। यही चिन्ता इन पंक्तियों में लेखक ने प्रस्तुत की है। प्रकृति और पर्यावरण से भारतीयों का सम्बन्ध पुस्तकों की वस्तु नहीं है, यह उनके जीवन का अंग है। 

भाषा-शिल्प –

प्रश्न 1. 
पाठ के सन्दर्भ में निम्नलिखित अभिव्यक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए. 
मूक सत्याग्रह, पवित्र खुलापन, स्वच्छ मांसलता, औद्योगीकरण का चक्का, नाजुक संतुलन। 
उत्तर : 
मूक सत्याग्रह – सत्य के लिए मौन रहकर किया जाने वाला विद्रोह (आन्दोलन)। 
‘अमझर’ गाँव से जब लोग विस्थापित हुए तो आम के पेड़ों ने मूक सत्याग्रह कर दिया, पेड़ सूखने लगे, उन पर फल . . आना बन्द हो गया।
पवित्र खुलापन – ऐसा खुलापन जो पवित्र हो। 
लेखक जब सिंगरौली गया तब उसने देखा कि वहाँ विस्थापन से पूर्व का परिवेश कैसा रहा होगा। साफ-सुथरे घर उस क्षेत्र के गाँवों में थे, पानी भरे खेतों में औरतें धान की रोपाई कर रही थीं। इस दृश्य में पवित्रता थी। उसमें कोई दुराव-छिपाव नहीं था। 

स्वच्छ मांसलता – स्वच्छ सौन्दर्य। 

धान के खेतों में रोपाई करती.वे महिलाएँ सुन्दर एवं स्वस्थ थीं। जंगल में चरती हिरणियों की भाँति जो बाहरी व्यकि देखकर भाग जाती थीं किन्तु वे स्त्रियाँ लेखक को देखकर बस थोड़ी देर के लिए काम से अपना ध्यान हटाकर मुसकर थीं। 

औद्योगीकरण का चक्का – औद्योगीकरण (विकास) का घूमता पहिया। उद्योग-उद्योगों का विकास होते ही मशीनों के चक्के (पहिए) घूमने लगते हैं। विकास का यह चक्र घूमता रहे। पर्यावरण को हानि न पहुँचे। 

नाजुक संतुलन – मनुष्य, प्रकृति और संस्कृति के बीच का नाजुक संबंध। लेखक का विचार है कि हमें विकास की प्रक्रिया में इस नाजुक संतुलन को बनाए रखना है जो मनुष्य, प्रकृति संस्कृति के बीच में सदियों से भारत में चला आ रहा है।

प्रश्न 2. 
इन मुहावरों पर ध्यान दीजिए मटियामेट होना, आफत टलना, न फटकना। 
उत्तर : 

प्रश्न 3. 
‘किन्तु यह भ्रम है….. डूब जाती हैं।’ इस गद्यांश को भूतकाल की क्रिया के साथ अपने शब्दों में लिा । 
उत्तर : 
यह बाढ़ का पानी नहीं था अपितु गाँव के खेतों में पानी भरा था। जिसमें स्थानीय औरतें पंक्तिबद्ध होकर धाः रोपाई कर रही थीं। छप-छप करते पानी में वे सुन्दर और सुडौल महिलाएँ जिनके सिर पर चटाई के बने किश्तीनुमा टो अपना काम कर रही थीं। जरा-सी आहट पाकर वे चौकी हुई निगाहों से इस तरह देखती थीं जैसे किसी वन्यस्थल में वि करती युवा हिरणियाँ चौंककर बाहरी आदमी.को देखती हैं। अन्तर केवल इतना था कि हिरणियाँ तो बाहरी आदम देखकर भाग जाती थीं, पर वे औरतें बस आगन्तुकों को देखकर मुसकराती थी और फिर सिर झुकाकर अपने काम में जाती थीं।

योग्यता विस्तार 

प्रश्न 1. 
विस्थापन की समस्या से आप कहाँ तक परिचित हैं? किसी विस्थापन संबंधी परियोजना पर लिखिए। 
उत्तर : 
विस्थापन का अर्थ है-अपना घर-बार छोड़कर अन्यत्र जाकर बसना। ऐसा व्यक्ति को मजबूरी में या फिर प्राव विपत्ति के कारण करना पड़ता है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया से लोगों को बड़ी संख्या में विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता उनकी जमीनें अधिगृहीत कर ली जाती हैं, मजबूरी में उन्हें अन्यत्र जाना पड़ता है। 

उत्तराखण्ड में टिहरी परियोजना में बहुत से गाँव ‘डूब’ क्षेत्र में आ गए परिणामतः हजारों लोगों को विस्थापित अन्यत्र जाना पड़ा। अपनी जमीन एवं घर-बार को छोड़कर कोई नहीं जाना चाहता था किन्तु मजबूरी में उन्हें ऐसा करना उनके निवास स्थल पानी में डूब गये थे। रहने को कोई स्थान नहीं बचा था। खेती के डूब जाने से खाने-पीने की ची अभाव की भीषण समस्या थी। जीवित रहने के लिए कहीं अन्यत्र जाकर बसना जरूरी था। विकास का चेहरा मानवीय होना चाहिए। विकास के नाम पर हम लोगों को उनके घर-बार उजाड़कर विस्थापित, ठीक नहीं है। 

प्रश्न 2. 
लेखक ने दुर्घटनाग्रस्त मजदूरों को अस्पताल पहुँचाने में मदद की है। आपकी दृष्टि में दुर्घटना राहत ? बचाव कार्य के लिए क्या-क्या करना चाहिए ? 
उत्तर :
कहीं पर भी दुर्घटना हो जाएं, इससे प्रभावित लोगों को राहत पहुँचाना और बचाव कार्य में मदद करना प्रत्येक जागरूक नागरिक का कर्तव्य है। मेरे विचार में दुर्घटना से राहत और बचाव कार्य के लिए निम्न उपाय करने चाहिए – 

  1. दुर्घटना में घायल लोगों को प्राथमिक उपचार देकर. उन्हें नजदीकी अस्पताल में भेजने का प्रबंध करना चाहिए। 
  2. तुरन्त ही पुलिस अधिकारियों को फोन करके दुर्घटना की सूचना देने का प्रबंध करना चाहिए। 
  3. दुर्घटना में घायल लोगों को यदि खून की आवश्यकता पड़े तो रक्तदान करने को तत्पर रहना चाहिए। 
  4. दुर्घटना प्रभावित लोगों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने की व्यवस्था कस्ना, उनके लिए चाय-पानी, भोजन का प्रबंध करना तथा उनके घर पर सूचना पहुँचाने का कार्य भी हमें करना चाहिए। 

प्रश्न 3. 
अपने क्षेत्र की पर्यावरण संबंधी समस्याओं और उनके समाधान हेतु संभावित उपायों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। 
उत्तर : 
हमारे नगर में बहुत सारी औद्योगिक इकाइयाँ हैं जिनकी भट्ठी में कोयला डालकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इससे निकलने वाला धुआँ वातावरण को प्रदूषित करता है और वायु प्रदूषण फैलाता है। यदि इन औद्योगिक इकाइयों में गैस फर्नेस लगाकर गैस को ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाय तो धुऔं समाप्त हो जाएगा और पर्यावरण स्वच्छ हो जाएगा। साथ ही हमें जंगलों में हरे वृक्ष काटने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यदि लकड़ी के स्थान पर प्लास्टिक का फर्नीचर एवं लोहे के किवाड़ आदि घरों में प्रयुक्त हों तो वृक्ष कटने से बचेंगे। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को लगाने का संकल्प लेना चाहिए। इन उपायों से हम पर्यावरण की रक्षा कर सकेंगे।

Important Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के लेखक कौन हैं?
उत्तर : 
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ के लेखक निर्मल वर्मा हैं। 

प्रश्न 2. 
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ में किस गाँव का उल्लेख हुआ है? 
उत्तर : 
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ में अमझर गाँव का उल्लेख हुआ है।

प्रश्न 3. 
किस क्षेत्र में अठारह छोटे-छोटे गाँव हैं? 
उत्तर : 
नवागाँव क्षेत्र में अठारह छोटे-छोटे गाँव हैं। 

प्रश्न 4. 
आधुनिक भारत के नए शरणार्थी किनको कहा गया है? 
उत्तर : 
आधुनिक भारत के नए शरणार्थी नवागाँव क्षेत्र से विस्थापित लोगों को कहा गया है। 

प्रश्न 5. 
सिंगरौली अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण क्या कहलाता था? 
उत्तर : 
सिंगरौली अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण बैकुंठ कहलाता था। 

प्रश्न 6. 
खैरवार जाति के राजा कब राज किया करते थे? 
उत्तर : 
खैरवार जाति के राजा सन् 1926 से पूर्व सिंगरौली में राज किया करते थे। 

प्रश्न 7. 
लोकायन संस्था क्या करने सिंगरौली गयी थी? 
उत्तर : 
‘लोकायन’ दिल्ली की एक संस्था थी, जो कि सिंगरौली विकास का जायजा लेने गई थी।

प्रश्न 8. 
अमझर गाँव किस राज्य में आता है? 
उत्तर : 
अमझर गाँव मध्यप्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र में आता था। 

प्रश्न 9. 
सिंगरौली का नाम पुरानी दंतकथा के अनुसार क्या था? 
उत्तर :
एक पुरानी दंतकथा के अनुसार सिंगरौली का नाम ‘सुंगावली’ था। जो एक पर्वतमाला के नाम से निकला है। 

प्रश्न 10. 
अमरौली प्रोजेक्ट के तहत क्या हुआ? 
उत्तर : 
अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव औद्योगीकरण के नाम पर उजाड़ दिए गये।

प्रश्न 11. 
औद्योगीकरण से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर : 
तकनीकी और तकनीकी उपकरणों का उपयोग कर विकास और प्रगति के लिए किया गया प्रयास औद्योगीकरण कहलाता है। 

प्रश्न 12. 
विरोध के कौन-से स्वरूप का इस्तेमाल अमझर गाँव वालों ने किया? 
उत्तर : 
किसी बात का विरोध जब हम चुप रहकर सत्य के लिए आग्रह करते हैं, तो लेखक इसे मूक सत्याग्रह कहते हैं। अमझर गाँव वालों ने औद्योगीकरण के विरोध में यह सत्याग्रह किया गया था।

प्रश्न 13. 
गाँव वालों की जीवन-शैली के विषय में लेखक ने क्या कहा है? 
उत्तर : 
गाँवों में पवित्र खुलापन था, पवित्र खुलापन में संबंधों की पवित्रता पर ध्यान रखा. जाता है, इसके तहत ही . खुलकर बोला जाता है। अमझर गाँव के लोगों का जीवन-शैली को भी लेखक ने इसी पवित्र खुलापन के अंदर रखा है।

लयूत्तरात्मक प्रश्न – 

प्रश्न 1. 
किस सरकारी घोषणा को सुनकर अमझर गाँव के आम के वृक्षों ने फल देना बंद कर दिया और क्यों? 
उत्तर : 
जब से यह सरकारी घोषणा हुई कि अमरौली प्रोजेक्ट के अन्तर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे तब अमझर गाँव के आम के वृक्षों पर सूनापन है, उनमें कोई फल नहीं आता है। आदमी उजड़ेगा तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे? आदमी के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी जैसे मूक सत्याग्रह कर रहे हैं।

प्रश्न 2. 
औद्योगीकरण से हुए विस्थापन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर : 
औद्योगीकरण के कारण लोगों के घर-जमीन अधिगृहीत कर लिए जाते हैं. परिणामतः उन्हें अन्यत्र विस्थापित होने के लिए बाध्य होना पड़ता है। यह विस्थापन स्थायी किस्म का होता है जिसमें वे अपने पुराने परिवेश में वापस नहीं लौट पाते। विस्थापन का यह दर्द लोगों को हृदय के भीतर ही सालता रहता है। वे अपने लोगों तथा अपनी संस्कृति से ही नहीं अपितु अपने परिवेश से भी कट जाते हैं।

प्रश्न 3. 
औद्योगीकरण से क्या-क्या हानियाँ हुई हैं? 
उत्तर :
औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने पर्यावरण को प्रदूषित किया है। इससे जल, वायु तो दूषित हुए ही हैं, शोरगुल भी बढ़ा है। मशीनों, वाहनों आदि के कारण ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ा है। इससे मनुष्यों में तरह-तरह के रोग बढ़े और जीवों वनस्पतियों की प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं। इस आँधी में मनुष्य परिवेश और संस्कृति से कट गया है। यही नहीं उसे अपना घर-बार छोड़कर सदा के लिए विस्थापित होना पड़ा है।

प्रश्न 4.
लेखक को धान के खेतों में रोपाई करती महिलाएँ हिरणियों जैसी क्यों लगीं? 
उत्तर :
लेखक ने धान के खेतों में रोपाई करती महिलाओं की तुलना जंगली हिरणियों से की है। जिस प्रकार हिरणियाँ किसी बाहरी व्यक्ति की आहट पाकर चौंक जाती हैं; उसी प्रकार वे महिलाएँ भी आहट पाकर चौंक जाती हैं और सिर उठाकर देखने लगती हैं किन्तु वे हिरणियों की तरह भागती नहीं अपितु मुसकराकर देखती हैं और फिर सिर झुकाकर अपने काम में लग जाती हैं।

प्रश्न 5. 
सिंगरौली के सम्बन्ध में क्या दन्त कथा है ? इसको ‘काला पानी’ क्यों माना जाता है ? 
उत्तर :
एक दन्त कथा के अनुसार सिंगरौली नाम ‘शृंगावली’ पर्वतमाला से निकला है। यह पूर्व-पश्चिम में फैली है। सिंगरौली के चारों ओर घने जंगल हैं। इनके कारण तथा यातायात के साधन बहुत कम होने के कारण एक जमाने में लोग सिंगरौली में न आते थे और न वहाँ से बाहर जाते थे। अपने अपार सौन्दर्य के बावजूद इसको ‘काला पानी’ कहा जाता था क्योंकि वहाँ के लोगों का सम्पर्क बाहरी दुनिया से नहीं था।

प्रश्न 6. 
सिंगरौली की ऐतिहासिक और भौगोलिक विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। 
उत्तर :
सन् 1926 से पहले सिंगरौली पर खैरवार जाति के आदिवासी राजाओं का शासन था। बाद में इसका आधा हिस्सा, जिसमें उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के खण्ड शामिल थे, रीवां राज्य में शामिल कर लिया गया। बीस वर्ष पहले तक पूरा क्षेत्र विंध्याचल और कैमूर के पहाड़ों और जंगलों से घिरा था। इन जंगलों में ज्यादातर कत्था, महुआ, बाँस और शीशम के पेड़ उगते थे। इसकी प्राकृतिक सुन्दरता अनुपम थी। यातायात के साधन नहीं थे, न मार्ग ही सुगम थे। अतः यहाँ के लोगों का सम्पर्क बाहरी दुनिया से नहीं था।

प्रश्न 7. 
आम के पेड़ों के संबंध में लेखक ने क्या-क्या कहा है? 
उत्तर : 
लेखक ने सिंगरौली क्षेत्र के गाँव का जिक्र करते हुए कहा है कि वहाँ अमझर नामक एक गाँव है, जो दो शब्दों का जोड़ है जिसका मतलब आम तथा उसका पककर झरने से है। जहाँ आम झरते हों उसको लेखक ने अमझर कहा है। परन्तु जबसे यह घोषणा गाँव पहुँची कि अमरौली प्रोजेक्ट के निर्माण हेतु नवागाँव के बहुत से गाँवों को नष्ट कर दिया जाएगा, . इस गाँव के आम के पेड़ों ने अपनी हरियाली को त्याग दिया हैं, जैसे मानो प्रकृति को भी पता चल गया कि अब हाँ से जाने वाले हैं, तो हमारा क्या काम। अत: इस वजह से अमझर गाँव में सूनापन है।

प्रश्न 8. 
पेड़ों से आदमियों के रिश्ते के बारे में लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर : 
मनुष्य और प्रकृति का संबंध बहुत गहरा है। इंसान आदिकाल से ही प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाक आया है। मनुष्य के दुखी होने का अक्सर प्रकृति पर भी पड़ता है। पेड़ों ने मनुष्य की सभ्यता को बढ़ाया ही नहीं है, उसका पालन-पोषण भी किया है। जब मनुष्य ही उनके परिवेश से हटा दिए जाएँगे, तो पेड़-पौधे कैसे प्रसन्न रह सक। इसी वजह से मनुष्यों के विस्थापन के पश्चात पेड़ों का जीवित रहना सभव नहीं है।

प्रश्न 9. 
प्रकति और संस्कृति, इंसानी सभ्यता के लिए कैसे जरूरी है? 
उत्तर : 
प्रकृति का संस्कृति से गहरा लगाव है, यह आदिकाल से चला आ रहा है। प्रकृति की मोद में कोई भी संगम या इंसानी सभ्यता का जन्म होता है। प्रकृति की ही गोद में मनुष्य का पालन-पोषण हुआ है। इंसानी विकास के साथ-स. स्कृति का विकास प्रकृति के विकास के साथ एक बेहद नाजुक कड़ी के साथ जुड़ा हुआ है। यदि इनमें से कोई सी। कड़ी टूटी, तो यह मानना कि बाकी चीजों को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा यह सरासर मूर्खता होगी। इसलिए हमें प्रयास रहना चाहिए कि इनके मध्य, संबंध हमेशा संतुलित रूप से जोड़े रखा जाये। किसी भी कारण से इन्हें टूटने न दें।

निबन्धात्मक प्रश्न –

प्रश्न 1. 
लेखक ने कितने तरीकों को विस्थापन के बारे में बताया है? 
उत्तर : 
लेखक ने मूलतः दो तरीके विस्थापन के बारे में बताये हैं। एक जो प्रकृति के कारण विस्थापन मिलता औद्योगिकीकरण के कारण जो विस्थापन मिलता है। पहले वाले के कारण हुई क्षतिपूर्ति को कुछ समय पश्चात पूर्ण। सकता है। जैसे कि प्रकृति आपदा के बाद पुनः लोग अपने स्थानों पर जा बसते हैं। 

हाँ! यह जरूर है कि उन्हें अप का दुख जरूर होता है लेकिन आखिर में वे अपनी जमीन से फिर जुड़ जाते हैं। मगर औद्योगीकरण के कारण जो वि. मिलता है, वह पूरी तरीके से थोपा गया होता है। इसमें इन्सान को अपनी संपत्ति, धरोहर, खेत-खलिहान की यादों: गुला देना पड़ता है। इसमें उसके दुबारा पाने की कोई उम्मीद ही नहीं होती है। उसे बेघर होकर एक स्थान से दूसरे। टकने के लिए विवश होना पड़ता है। 

प्रश्न 2. 
भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ी ट्रैजडी क्या हुई? पाठ के आधार पर बताइये। 
उत्तर : 
भारत के लोगों ने, भारत के विकास और प्रगति हेतु औद्योगिकीकरण चुना। उनका यह विश्वास औद्योगिकीकरण कर, भारत को फिर से अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है। लेकिन यह सिर्फ पश्चिमी देश अनुसरण था। हमने इस नकल और भेड़चाल के चक्कर में, प्रकृति और संस्कृति से प्रेमभरा संबंध नष्ट कर डाला। 

अगः नकल न करते और चाहते तो कुछ अलग प्रयास कर सकते थे कि यह संबंध भी नष्ट न हो और हम विकास और प्रमा प्राप्त कर जाएँ। हमने अपनी क्षमताओं पर कोई भरोसा नहीं किया और न ही अपने विवेक पर विश्वास किया। म सिर्फ और सिर्फ पश्चिमी देशों की नकल करने पर उतारू थे, लेखक ने इसको ही भारत की स्वतंत्रता के बाद सबः। जडी माना है।

प्रश्न 3. 
निर्मल जी सिंगरौली क्यों गए थे और उन्होंने वहाँ जाकर क्या निष्कर्ष निकाला ?
उत्तर : 
सिंगरौली प्राकृतिक खनिज संपदा से भरा क्षेत्र था अतः उसका दोहन करने के लिए यहाँ सेंट्रल कोल फो. एन. टी. पी. सी. ने तमाम स्थानीय लोगों को विस्थापित कर दिया था। नयी सड़कें, नये पुल बने। कोयले की खदा उन पर आधारित ताप विद्युत गृहों का निर्माण हुआ। विकास की इस प्रक्रिया से कितने व्यापक पैमाने पर “विनाश’ इसका जायजा लेने के लिए दिल्ली की ‘लोकायन’ नामक संस्था ने निर्मल जी को सिंगरौली भेजा था। 

पहुँचकर लेखक ने देखा कि औद्योगीकरण और विकास के चक्के में आम आदमी को अपने परिवेश एवं स से विस्थापित होना पड़ा था। विकास का चेहरा मानवीय होना चाहिए अर्थात् विकास तो हो पर उससे मानव को कोई पहुँचे। हमारे सत्ताधारियों ने विकास के लिए यूरोपीय मॉडल को अपनाकर उनकी नकल की है जो भारतीय परिवेश के – ठीक नहीं है। यही लेखक का निष्कर्ष है। 

साहित्यिक परिचय का प्रश्न –  

प्रश्न : 
निर्मल वर्मा का साहित्यिक परिचय लिखिए। 
उत्तर :
साहित्यिक परिचय हिदी के कथा-साहित्य के क्षेत्र में वर्मा जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे नयी कहानी आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। निर्मल वर्मा की भाषा सशक्त, प्रभावपूर्ण और कसावट से युक्त है। उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के शब्दों को स्थान मिला है। उन्होंने मिश्र और संयुक्त वाक्यों को प्रधानता दी है। शब्द-चयन स्वाभाविक है। वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैलियों को अपनी रचनाओं में अपनाया है। आपके निबन्धों में विवेचनात्मक शैली को भी स्थान मिला है। कहानियों तथा उपन्यासों में संवाद शैली, मनोविश्लेषण शैली, व्यंग्य शैली आदि को भी लेखक ने यथास्थान अपनाया है। 

कृतियाँ – (क) कहानी-संग्रह परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्वे और काला पानी, सूखा तथा अन्य कहानियाँ। (ख) उपन्यास-वे दिन, लाल,टीन की छत आदि। (ग) यात्रा संस्मरण हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन। (घ) निबन्ध-संग्रह शब्द और स्मृति, कला का जोखिम तथा ढलान से उतरते हुए। आपको सन् 1985 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कव्वे और काला पानी) तथा सन् 1999 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

जहाँ कोई वापसी नहीं Summary in Hindi 

लेखक परिचय :

जन्म सन् 1929 ई.। स्थान-शिमला। शिक्षा-एम. ए. (इतिहास), दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में अध्ययन और अध्यापन। चेकोस्लोवाकिया में रहकर प्राच्यविद्या संस्थान, प्राग के तत्वावधान में चेक उपन्यास और कहानियों का हिन्दी में अनुवाद। ‘टाइम्स ऑफ इण्डिया’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के लिए लेखन। सन् 1970 ई. से स्वतंत्र लेखन। निधन-सन् 2005 ई.। साहित्यिक परिचय हिन्दी के कथा-साहित्य के क्षेत्र में वर्मा जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे नयी कहानी आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। 

भाषा-निर्मल वर्मा की भाषा सशक्त, प्रभावपूर्ण और कसावट से युक्त है। उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के शब्दों को स्थान मिला है। उन्होंने मिश्र और संयुक्त वाक्यों को प्रधानता दी है। शब्द-चयन स्वाभाविक है। शैली वर्मा जी ने वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैलियों को अपनी रचनाओं में अपनाया है। आपके निबन्धों में विवेचनात्मक शैली को भी स्थान मिला है। कहानियों तथा उपन्यासों में संवाद शैली, मनोविश्लेषण शैली, व्यंग्य शैली आदि को भी लेखक ने यथास्थान अपनाया है। 

कृतियाँ (क) कहानी-संग्रह परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्वे और काला पानी, सूखा तथा अन्य कहानियाँ। 
(ख) उपन्यास-वे दिन, लाल टीन की छत आदि। ‘रात का रिपोर्टर’ उपन्यास पर सीरियल भी तैयार किया गया। (ग) यात्रा संस्मरण हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन। (घ) निबन्ध-संग्रह शब्द और स्मृति, कला का जोखिम तथा ढलान से उतरते हुए। 
आपको सन् 1985 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कव्वे और काला पानी) तथा सन् 1999 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। 

‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ यात्रा-वृत्तांत निर्मल वर्मा के ‘धुंध से उठती धुन’ संग्रह से लिया ग : है। इसमें लेखक ने विकास के नाम पर पर्यावरण विनाश से उत्पन्न विस्थापन की समस्या को प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि विकास और पर्यावरण सुरक्षा में सन्तुलन जरूरी है अन्यथा पर्यावरण विनाश के साथ मनुष्य के सामने अपने समाज, संस्कृति और परिवेश से कटकर जीने की समस्या उत्पन्न होती रहेगी। 

लेखक ने सन 1983 में सिंगरौली की यात्रा की थी। वहाँ नवागाँव क्षेत्र में 18 छोटे-छोटे गाँव हैं। इनमें एक गाँव है अमझर। इस क्षेत्र की उपजाऊ जमीन और वन शताब्दियों से वनवासियों का पोषण करते रहे हैं। इस क्षेत्र में रिहंद बाँध, सेंट्रल कोलफील्ड, नेशनल सुपर थर्मल पावर कॉरपोरेशन के निर्माण के बाद हजारों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गये। चारों तरफ पक्की ल, विद्युत तापगृह, खदानों, इंजीनियरों और सरकारी कारिंदों की लाइन तो लग गई पर यहाँ के निवासियों के सामने पलायन की मजबूरी भी आ गई। 

क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य नष्ट हो गया और वहाँ कंकरीट का विशाल जंगल उग आया। पर्यावरण प्रदूषित हो गया। विकास के उजाले के पीछे विनाश के इस अंधेरे का जायजा लेने लेखक सिंगरौली आया था। विकास के लिए सरकार को वह रास्ता नहीं चुनना चाहिए जहाँ से कोई वार सम्भव ही न हो।

कठिन शब्दार्थ :

महत्त्वपूर्ण व्याख्याएँ 

1. इन्हीं गाँवों में एक का नाम है अमझर, आम के पेड़ों से घिरा गाँव-जहाँ आम झरते हैं। किंतु पिछले दो-तीन वर्षों से पेड़ों पर सूनापन है, न कोई फल पकता है, न कुछ नीचे झरता है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएंगे, तब से न जाने कैसे आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे?
 
टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियाँ सुनी थीं, किन्तु मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ भी एक साथ मिलकर मूक सत्याग्रह कर सकते हैं, इसका विचित्र अनुभव सिर्फ सिंगरौली में हुआ। 

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के यात्रा-वृत्तांत ‘धुंध से उठती धुन’ नामक संग्रह में संकलित यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। यह यात्रावृत्त हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित है। 

प्रसंग : निर्मल वर्मा को लोकायन संस्था ने सिंगरौली का जायजा लेने भेजा था। उन्होंने वहाँ जाकर देखा कि औद्योगिक विकास के नाम पर लोगों को बड़े पैमाने पर विस्थापित होना पड़ा था और पर्यावरण का भारी विनाश हुआ था। इसी क्षेत्र के 
अमझर गाँव के आम के पेड़ों पर फल आने बंद हो गए थे और लोगों के विस्थापन के फलस्वरूप पेड़ भी सूखने लगे थे। 

व्याख्या : सिंगरौली में निर्मल जी नवागाँव क्षेत्र में गए। इस क्षेत्र में छोटे-छोटे 18 गाँव बसे हैं जिनमें एक गाँव का नाम है अमझर। आम के पेड़ों से घिरे गाँव का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ आम के पेड़ों से आम झरते (टपकते) हैं। किन्त पिछले दो-तीन वर्षों से किसी पेड पर न कोई फल पकता है न नीचे गिरता है। कारण पछने पर लोगों ने बताया कि जब से यह सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव क्षेत्र के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे तब से न जाने कैसे आम के पेड़ सूखने लगे। 

जब आदमी उजड़ेगा तो पेड़ हरे-भरे रहकर क्या करेंगे? इसी कारण आम के पेड़ों पर न तो बौर आता है, न फल लगते हैं। निर्मल जी कहते हैं कि अभी तक मैंने यह सुना था कि उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र के निवासियों ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए ‘चिपको आन्दोलन’ जैसे कई आन्दोलन चलाकर पेड़ों के लिए संघर्ष किया था पर जब सिंगरौली क्षेत्र के अमझर गाँव में गया तो देखा कि वहाँ आम के पेड़ सूखने लगे थे। वहाँ आदमियों के विस्थापन के विरोध में पेड़ों ने एक साथ मिलकर सत्याग्रह कर दिया था। जब यहाँ से आदमी चले जाएँगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे? पेड़ों के इस मूक सत्याग्रह का अनुभव निर्मल जी को पहली बार सिंगरौली में ही हुआ। 

विशेष : 

  1. चिपको आन्दोलन टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में प्रमुख पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा ने प्रारम्भ किया था। जब कोई जंगल के पेड़ काटने आता तो स्थानीय निवासी उस पेड़ से चिपक जाते और कहते – पहले मुझे काटो तब इस पेड़ को काटना। 
  2. सिंगरौली क्षेत्र में जो कोयले की खदानें और एन. टी. पी. सी. के विद्युत ताप गृह बने, उसके कारण हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। 
  3. इन्हीं विस्थापित लोगों के कारण ही पेड़ सूखने लगे, यह लेखक कह रहा है। 
  4. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। 
  5. औद्योगिक प्रगति के कारण पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचनी चाहिए, यह इस वृत्तान्त का संकेत है। 

2. लोग अपने गाँवों से विस्थापित होकर कैसी अनाथ, उन्मूलित जिन्दगी बिताते हैं, यह मैंने हिन्दुस्तानी शहरों के बीच बसी मजदूरों की गंदी, दम घुटती, भयावह बस्तियों और स्लम्स में कई बार देखा था, किन्तु विस्थापन से पूर्व वे कैसे परिवेश में रहते होंगे, किस तरह की जिंदगी बिताते होंगे, इसका दृश्य अपने स्वच्छ, पवित्र खुलेपन में पहली बार अमझर गाँव में देखने को मिला। पेड़ों के घने झुरमुट, साफ-सुथरे खप्पर लगे मिट्टी के झोंपड़े और पानी। चारों तरफ पानी। अगर मोटर-रोड की भागती बस की खिड़की से देखो, तो लगेगा जैसे समूची जमीन एक झील है, एक अंतहीन सरोवर जिसमें पेड़, झोंपड़े, आदमी, ढोर-डाँगर आधे पानी में, आधे ऊपर तिरते दिखाई देते हैं, मानो किसी बाढ़ में सब कुछ डूब गया हो, पानी में धंस गया हो।

सन्दर्भ : प्रस्तुत गद्यावतरण निर्मल वर्मा के यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापंसी नहीं’ से लिया गया है जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अतंरा भाग-2’ में संकलित किया गया है। 

प्रसंग : औद्योगीकरण एवं विकास के नाम पर जमीनों का अधिग्रहण करके ग्रामीणों को अपने मूल स्थान से विस्थापित होकर और अपने परिवेश से उखड़कर शहरों में बसना पड़ता है। झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले इन बेबस और लाचार लोगों को देखकर कोई अनुमान नहीं कर सकता कि ये किस खुले, स्वच्छ वातावरण में रहा करते थे। 

व्याख्या : औद्योगीकरण से विस्थापित लोग कैसी अनाथ, उखड़ी हुई जिन्दगी व्यतीत करते हैं इसे लेखक ने भारतीय नगरों के बीच बसी झुग्गी-झोंपड़ियों और गन्दी बस्तियों में देखा था। उनका जीवन निश्चित रूप से दमघोंटू और भयाबह था किन्तु विस्थापन से पूर्व वे किस वातावरण में रहते थे इसे उसने सिंगरौली के इस क्षेत्र की यात्रा में ही देखा। वहाँ पेड़ों के घने झुरमुट के बीच बने खपरैल की छत वाले साफ-सुथरे घर और चारों ओर पानी भरे खेत थे, जिनमें धान की रोपाई चल रही थी। 

यही दृश्य सड़क पर भागती बस की खिड़की से लेखक ने देखा। ऐसा लगता था जैसे कोई बड़ा अंतहीन सरोवर एक बड़ी झील जैसा लग रहा था जिसमें पेड़, जानवर, झोंपड़े, आदमी सब पानी में डूबे और आधे तिरते दिख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे बाढ़ के पानी में डूबा गाँव हो या पूरा गाँव ही पानी में धंस गया हो।

विशेष : 

  1. विस्थापन के बाद वे ग्रामीण गन्दे, दमघोंटू और भयावह वातावरण में रहने को विवश हैं जो पहले स्वास्थ्यप्रद परिवेश में रहते थे।
  2. लेखक ने औद्योगीकरण के कारण होने वाले विस्थापन पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है। 
  3. निर्मल जी अपनी लेखनी से पूरे दृश्य का. शब्दचित्र उतार देते हैं। 
  4. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है।

3. ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘शरणार्थी’ हैं, जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपने घर-जमीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है। बाढ़ या भूकम्प के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए जरूर बाहर चले जाते हैं, किन्तु आफत टलते ही वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। किन्तु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।

संदर्भ प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित किया गया है। – प्रसंग सामान्यतः व्यक्ति प्राकृतिक विपदाओं के कारण अपना घर-बार छोड़कर कुछ समय के लिए विस्थापित होता है पर आधुनिक भारत में औद्योगीकरण के झंझावात ने तमाम लोगों को विस्थापित होकर सदा के लिए शरणार्थी बनने को विवश कर दिया है। 

व्याख्या प्रायः व्यक्ति को प्राकतिक विपदाओं भकम्प, बाढ आदि के कारण अपना घरबार छोडकर-थोडे समय के लिए विस्थापित होकर कहीं अन्यत्र शरण लेनी पड़ती है। जैसे ही प्राकृतिक विपदा शांत हुई वे अपने पुराने घर में, पुराने परिवेश में वापस लौट आते हैं किन्तु औद्योगीकरण के झंझावात. (तूफान) से जो विस्थापन लोगों को झेलना पड़ता है वह स्थायी किस्म का होता है जिसमें व्यक्ति को सदा के लिए अपना घर-बार छोड़कर इधर-उधर शरण लेनी पड़ती है। 

औद्योगीकरण के कारण विस्थापित ये आधुनिक भारत के नए शरणार्थी हैं जिन्हें अपनी जमीन से अपने घर से सदा के लिए उखाड़कर निर्वासित कर दिया गया है। प्राकृतिक प्रकोप तो कुछ समय के लिए ही होता है और जैसे ही वह समाप्त होता है, विस्थापित लोग पुनः अपने घर लौट आते हैं। औद्योगीकरण में विकास और प्रगति के नाम पर जो विस्थापित. होता है उसमें घर-जमीन से उखड़े लोग सदा के लिए अपना घर छोड़ने को विवश हो जाते हैं और फिर कभी वापस नहीं आ पाते। आधुनिक औद्योगीकरण ने ग्रामीणों को उनके परिवेश से काट दिया है, उनके आवास स्थलों को सदा के लिए नष्ट कर दिया है।

विशेष :

  1. औद्योगीकरण के कारण होने वाले लोगों के विस्थापन पर लेखक ने चिन्ता व्यक्त की है। 
  2. प्राकृतिक होने वाला विस्थापन अस्थायी होता है जबकि औद्योगीकरण के कारण होने वाला विस्थापन स्थायी होता है जिसमें व्यक्ति अपने परिवेश से ही उखड़ जाता है। 
  3. लेखक का दष्टिकोण मानवीय एवं संवेदनशील है। 
  4. दि का चेहरा मानवीय होना चाहिए, यही लेखक कहना चाहता है। 
  5. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। शैली विवरणात्मक और विचारात्मक है। 

4. किन्तु कोई भी प्रदेश आज के लोलुप युग में अपने अलगाव में सुरक्षित नहीं रह सकता। कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है। दिल्ली के सत्ताधारियों और उद्योगपतियों की आँखों से सिंगरौली की अपार खनिज संपदा छिपी नहीं रही। विस्थापन की एक लहर रिहंद बाँध बनने से आई थी, जिसके कारण हजारों गाँव उजाड़ दिए गए थे। इन्हीं नयी योजनाओं के अन्तर्गत सेंट्रल कोल फील्ड और नेशनल सुपर थर्मल पॉवर कॉरपोरेशन का निर्माण हुआ। चारों तरफ पक्की सड़कें और पुल बनाए गए। सिंगरौली जो अब तक अपने सौन्दर्य के कारण ‘बैकुंठ’ और अपने अकेलेपन के कारण ‘काला पानी’ माना जाता था, अब प्रगति के मानचित्र पर राष्ट्रीय गौरव के साथ प्रतिष्ठित हुआ। 

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग-2’ में संकलित किया गया है। 

प्रसंग : सिंगरौली अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण स्वर्ग जैसा और अपने अलगाव के कारण काला पानी माना जाता था परन्तु यहाँ भी समृद्ध खनिज सम्पदा पर सत्ताधारियों और उद्योगपतियों की ऐसी गिद्ध दृष्टि टिकी कि यहाँ की शांति भंग हो गई। यहाँ नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ हुईं तो यह प्रगति के मानचित्र पर गौरव के साथ प्रतिष्ठित हो गया।

व्याख्या : भले ही सिंगरौली क्षेत्र चारों ओर फैले घने जंगलों के कारण आवागमन से मुक्त क्षेत्र माना जाता था और लोग इसे ‘काला पानी’ की संज्ञा देते थे। पर. आज के युग में लालची लोगों की दृष्टि से कुछ बच पाना असंभव है। इस क्षेत्र की खनिज संपदा ही इसके लिए अभिशाप बन गई। सत्ताधारियों और उद्योगपतियों की आँखों से यहाँ की प्रचुर खनिज संपदा छिपी न रही और यहाँ सेंट्रल कोल फील्ड तथा एन. टी. पी. सी. का गठन हुआ। 

विकास के नाम पर नयी-नयी सड़कें, पुल बने। जो क्षेत्र पहले शांत था वहाँ इंजीनियरों, विशेषज्ञों एवं मशीनों का शोर व्याप्त हो गया। सिंगरौली अब तक अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण ‘बैकुंठ’ (स्वर्ग) कहा जाता था और अपने अलगाव के कारण ‘काला पानी’ माना जाता था पर अब तमाम नई परियोजनाओं के कारण यह विकास के मानचित्र पर गौरव के साथ प्रतिष्ठित हुआ।


विशेष : 

  1. सिंगरौली में सेंट्रल कोल फील्ड एवं एन. टी. पी. सी. के विद्युत ताप गृह हैं। 
  2. विकास के नाम पर किसी क्षेत्र की शांति भंग करना और लोगों को विस्थापित करना लेखक को उचित प्रतीत नहीं होता। 
  3. लेखक विकास र और प्रकृति में सन्तुलन रखने का पक्षधर है। 
  4. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण हिन्दी है। शैली विवरणात्मक और विचारात्मक है। 

5. विकास का यह ‘उजला’ पहलू अपने पीछे कितने व्यापक पैमाने पर विनाश का अँधेरा लेकर आया था, हम उसका छोटा-सा जायजा लेने दिल्ली में स्थित ‘लोकायन’ संस्था की ओर से सिंगरौली गए थे। सिंगरौली जाने से पहले मेरे मन में इस तरह का कोई सुखद भ्रम नहीं था कि औद्योगीकरण का चक्का, जो स्वतंत्रता के बाद चलाया गया, उसे रोका जा सकता है। शायद पैंतीस वर्ष पहले हम कोई दूसरा विकल्प चुन सकते थे, जिसमें मानव सुख की कसौटी भौतिक लिप्सा न होकर जीवन की जरूरतों द्वारा निर्धारित होती। . सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ नामक यात्रावृत्त से ली गई हैं। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अंतरा भाग-2’ में संकलित किया गया है। 

प्रसंग : सिंगरौली में विकास के साथ-साथ विस्थापन का जो कहर बरसा था उसका जायजा लेने निर्मल वर्मा (लेखक) ‘लोकायन’ संस्था की ओर से वहाँ गए थे। भौतिक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए वहाँ के निवासियों को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी इसका उल्लेख निर्मल जी ने यहाँ किया है।

व्याख्या : विकास के उजले पक्ष के साथ उसका अंधेरा पक्ष भी है। घर-बार छोड़कर विस्थापित होना पड़ता है और अपने परिवेश से हटना पड़ता है। इसी का जायजा लेने निर्मल जी को दिल्ली की लोकायन संस्था ने सिंगरौली भेजा था। सिंगरौली जाने से पहले भी वे यह जानते थे कि स्वतंत्रता के बाद विकास का जो पहिया चलाया गया है उसे रोक पाना उनके या किसी और के बस की बात नहीं है फिर भी वे यह जानने के लिए गए थे कि इस विकास की कितनी बड़ी कीमत हमें चुकानी पड़ी है। वास्तव में हम यदि भौतिक इच्छाओं की पूर्ति की कामना न करके जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विकास करें और उसका पहलू मानवीय हो तो ज्यादा उपयुक्त है।

 विशेष : 

  1. विकास अपने साथ विनाश भी लाता है यही लेखक का मंतव्य है। 
  2. विकास के साथ-साथ हम संवेदनहीन होते जा रहे हैं। लोगों के विस्थापन का दर्द भी हमें देखना चाहिए और उसे कम करना चाहिए, यही इस पाठ का संदेश है। 
  3. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। 
  4. विवरणात्मक शैली प्रयुक्त है। 

6. यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है भारत में यही प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पारम्परिक संबंध बनाए रखने का हो जाता है। स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह रही है कि शासक वर्ग ने औद्योगीकरण का मार्ग चुना, ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते समय प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है इस ओर हमारे पश्चिम शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान कभी नहीं गया। 

संदर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ जहाँ कोई वापसी नहीं’ नामक यात्रावृत्त से ली गई हैं। इसके लेखक निर्मल वर्मा हैं। यह पाठ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘अन्तरा भाग -2’ में संकलित है। 

प्रसंग : लेखक का विचार है कि स्वतंत्रता के बाद भारत के विकास का जो मॉडल अपनाया गया वह यूरोप की नकल मात्र था, जबकि दोनों स्थानों की परिस्थितियाँ भिन्न हैं। हमें विकास योजनाएँ बनाते समय यह ध्यान रखना होगा कि हमारा पर्यावरण संतुलन बिगड़ने न पाए और संस्कृति को कोई हानि न पहुँचे। 

व्याख्या : यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है, जबकि भारत में यह प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पारम्परिक संबंध बनाए रखने का है। खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता के उपरान्त हमारे देश के शासकों ने जो योजनाएँ बनाईं और विकास का जो मॉडल चुना उसमें यूरोप की नकल की और प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच के नाजुक सम्बन्ध का संतुलन नष्ट कर दिया। पश्चिम में शिक्षा प्राप्त ये स्वातंत्र्योत्तर भारत के शासक यह भूल गए कि हमें औद्योगिक विकास इस प्रकार से करना है जिससे हमारे पर्यावरण का संतुलन नष्ट न हो और मनुष्य, प्रकृति एवं संस्कृति का जो नाजुक संतुलन है वह भी बिगड़ने न पाए। 

विशेष : 

  1. लेखक का विचार है कि भारत ने औद्योगिक विकास का जो मॉडल अपनाया है वह यूरोप की नकल का प्रयास है। 
  2. औद्योगिक विकास इस प्रकार से होना चाहिए जिससे पर्यावरण को हानि न पहुँचे और हमारी संस्कृति भी नष्ट न हो। 
  3. लेखक निर्मल वर्मा ने यहाँ जवाहरलाल नेहरू जी की ओर संकेत किया है जिन्होंने इंग्लैण्ड में शिक्षा प्राप्त की और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। 
  4. भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है। अंग्रेजी, उर्दू और तत्सम शब्दों से सज्जित भाषा है। 
  5. विवरणात्मक शैली का प्रयोग है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0:00
0:00