Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

 ‘हिम’ और ‘आलय’, ‘देव’ और ‘आलय’, ‘देव’ और ‘इन्द्र’ आदि शब्द-युग्मों को सदि जल्दी-जल्दी पढ़ा जाये तो इनका मिला हुआ रूप ‘हिमालय’, ‘देवालय’, ‘देवेन्द्र’ आदि ही सदा मुख से निकलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सन्धि शब्दों के मिले हुए उच्चारण को ही एक रूप है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि जब कोई दो वर्ण अत्यन्त समीप आ जाते हैं तभी उनमें सन्धि होती है। इस प्रकार पास होने पर वर्षों में कभी तो परिवर्तन हो जाता है और कभी नहीं भी होता, परन्तु सदैव पहले शब्द का अन्तिम वर्ण दूसरे शब्द के आरम्भ वाले वर्ण से ही मिलता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दो वर्षों के अत्यन्त पास आने से उनमें जो परिवर्तन होता है, उसे सन्धि कहते हैं; जैसे—रमा + ईशः = रमेशः।।

सन्धि तीन प्रकार की होती है|

(क) स्वर सन्धि- जब पहले शब्द का अन्तिम स्वर दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भिक) स्वर से मिलता है तो स्वर सन्धि होती है, जैसे–रथ + आरूढः = रथारूढः।।

(ख) व्यंजन सन्धि- जब पहले शब्द का अन्तिम व्यंजन दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भिक) स्वर या व्यंजन से मिलता है तो व्यंजन सन्धि होती है, जैसे-वाक् + ईशः = वागीशः या सत् + चित् = सच्चित्।

(ग) विसर्ग सन्धि- जब पहले शब्द के अन्त में आया हुआ ‘:’ (विसर्ग) दूसरे शब्द के आदि (प्रारम्भ) में आये हुए स्वर या व्यंजन से मिलता है, तो विसर्ग सन्धि होती है, जैसे—छात्रः + तिष्ठति = छात्रस्तिष्ठति।

स्वर सन्धि

स्वर के साथ स्वर के मिलने से (स्वर + स्वर) स्वर में जो परिवर्तन (विकार) होता है, उसे स्वर या अच् सन्धि कहते हैं। इस सन्धि में धन (+) चिह्न से पूर्व व्यंजन में स्वर मिला होता है। इसीलिए व्यंजन में हलन्त () का चिह्न लगा हुआ नहीं होता है; जैसे-धन + अर्थी = धनार्थी। इसमें ‘अ’ के बाद ‘अ’ आया है। ‘धन’ के ‘न’ में ‘अ’ मिला हुआ है, इसलिए उसमें हल् का चिह्न नहीं है। ,

स्वर सन्धि प्रधानतया छः प्रकार की होती है-

(1) दीर्घ सन्धि,
(2) गुण सन्धि,
(3) वृद्धि सन्धि,
(4) यण् सन्धि,
(5) अयादि सन्धि,
(6) पूर्वरूप सन्धि ।

(1) दीर्घ सन्धि (सूत्र-अकः सवर्णे दीर्घः)

नियम- यदि (ह्रस्व या दीर्घ) अ, इ, उ, ऋ, लू स्वरों के बाद (ह्रस्व या दीर्घ) समान स्वर आते हैं तो उनके स्थान पर दीर्घ स्वर, अर्थात् आ, ई, ऊ, ऋ, ऋ (लू नहीं) हो जाता है। उदाहरण –

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विशेष- ऋ’ और ‘कृ’ सवर्ण संज्ञके हैं, अतः समान स्वर माने जाते हैं। ऋ’ और ‘लू’ में किसी भी स्वर के पूर्व या पश्चात् होने पर, सन्धि होने पर, दोनों के स्थान पर ‘ऋ’ ही होता है, ‘लु’ नहीं, क्योंकि संस्कृत में ‘लू’ होता ही नहीं।]

(2) गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः)

नियम– यदि अ या आ के बाद ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ और लु आते हैं तो दोनों की सन्धि होने पर क्रमशः ए, ओ, अर् और अल् हो जाता है। उदाहरण –
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(3) वृद्धि सन्धि (सूत्र–वृद्धिरेचि)

नियम- यदि अ या आ के बाद ए-ऐ और ओ-औ आते हैं तो दोनों की सन्धि होने पर उनके स्थान पर क्रमश: ऐ और औ हो जाते हैं। उदाहरण
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(4) यण् सन्धि (सूत्र–इको यणचि)

नियम- यदि ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, लू (इकु) के बाद कोई असमान स्वर आये तो दोनों की सन्धि होने पर उनके स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल (यण्) हो जाता है। उदाहरण
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)(5) अयादि सन्धि (सूत्र–एचोऽयवायावः) :
नियम-यदि ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई स्वर आता है, तब सन्धि होने पर ‘ए’ के स्था न में ‘अय्’, ‘ओ’ के स्थान में ‘अ’, ‘ए’ के स्थान में ‘आय्’, ‘औ’ के स्थान में ‘आव्’ परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण-
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(6) पूर्वरूप सन्धि (सूत्र-एङ् पदान्तादति)

नियम- पदान्त के ‘ए’ और ‘ओ’ के बाद ‘अ’ आने पर ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है; अर्थात् ‘अ’ अपना रूप छोड़कर पूर्ववर्ण जैसा हो जाता है और ‘अ’ के स्थान पर पूर्वरूपसूचक चिह्न () लगाया जाता है। उदाहरण –

(1) ए के बाद अ=एऽ
हरे + अव = हरेऽव
वृक्षे + अस्मिन् = वृक्षेऽस्मिन्

(2) ओ के बाद अब ओऽ ।
विष्णो + अव= विष्णोऽव
गुरो + अत्र= गुरोऽत्र

व्यंजन सन्धि

व्यंजन के बाद स्वरे या व्यंजन (व्यंजन् + स्वर, व्यंजन + व्यंजन) आने पर पूर्व पद के व्यंजन में जो परिवर्तन (विकार) होता है, उसे व्यंजन (हल्) सन्धि कहते हैं। इसमें ‘+’ चिह्न से पहले हलन्त व्यंजन आता है; जैसे-सत् + चित् = सच्चित्, जगत् + ईश्वरः = जगदीश्वरः। यहाँ पहले उदाहरण में ‘त्’ के बाद व्यंजन और दूसरे उदाहरण में ‘त्’ के बाद स्वर आया है।

विशेष- नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में व्यंजन सन्धि के निम्नलिखित छ: भेद निर्धारित हैं
(1) श्चुत्व सन्धि,
(2) ष्टुत्व सन्धि,
(3) जश्त्व सन्धि (पदान्त, अपदान्त)
(4) चवं सन्धि,
(5) अनुस्वार सन्धि,
(6) परसवर्ण सन्धि।

(1) श्चुत्व सन्धि (सूत्र-स्तोः श्चुना श्चुः) ।

नियम- ‘स्’ या तवर्ग (त, थ, द, ध, न) के बाद ‘श्’ या चवर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) आये तो इनकी सन्धि होने पर ‘स्’ का ‘श्’ तथा तवर्ग का चवर्ग हो जाता है। उदाहरण-

 (2) ष्टुत्व सन्धि (सूत्र-ष्टुना ष्टुः)

नियम-‘स्’ या तवर्ग के बाद में ‘ष’ या टवर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण) आये तो इनका योग (सन्धि) होने पर ‘स्’ का ‘ष’ तथा तवर्ग का टवर्ग हो जाता है। उदाहरण.

(3) जश्त्व सन्धि
यह सन्धि दो प्रकार की होती है
(क) पदान्त जश्त्व तथा
(ख) अपदान्त जश्त्व।

(क) पदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जशोऽन्ते)

नियम- यदि पदान्त में वर्ग के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ण तथा श, ष, स्, ह के बाद कोई भी स्वर तथा वर्ग के तीसरे, चौथे और पाँचवें वर्ण या य, र, ल, व में से कोई वर्ण आये तो पहले वाले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा वर्ण (जश्) हो जाता है। उदाहरण –

(ख) अपदान्त जश्त्व सन्धि (सूत्र-झलां जश् झशि)

नियम- यदि अपदान्त में झल् अर्थात् वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण के बाद कोई झश् । अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण हो तो सन्धि होने पर वह जश् अर्थात् अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है।
उदाहरण –

 (4) चव सन्धि (सूत्र–खरि च)

नियम- यदि झल् (वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्ण) के बाद वर्ग का प्रथम व द्वितीय वर्ण या श, ष, स् आता है तो सन्धि होने पर झल् के स्थान पर चर् अर्थात् अपने वर्ग का प्रथम वर्ण हो जाता है।
उदाहरण-

(5) अनुस्वार सन्धि (सूत्र-मोऽनुस्वारः)
नियम-
यदि पदान्त में ‘म्’ के बाद कोई भी व्यंजन आता है तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (‘) हो जाता है।
उदाहरण-
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे ।
त्वम् + करोषि = त्वं करोषि
त्वाम् + वदामि = त्वां वदामि ।
रामम् + भजामि = रामं भजामि ।
यदि पदान्त ‘म्’ के बाद कोई स्वर आ जाता है तो ‘म्’ ही रह जाता है;
जैसे-अहम् + अगच्छम् = अहम् अगच्छम्। ऐसी स्थिति में अगले स्वर को ‘म्’ से मिलाकर लिख देते हैं; जैसे-जलम् + आनय = जलमानय, वनम् + अगच्छत् = वनमगच्छत्।

विशेष— उपर्युक्त प्रकार से ‘म्’ का ‘अ’ से मिलना या किसी स्वर से मिलना सन्धि-कार्य नहीं है। यह हलन्त’ वर्गों की सामान्य प्रकृति है कि वे स्वर से मिल जाते हैं।

(6) परसवर्ण सन्धि (सूत्र-अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः)

नियम- अनुस्वार से परे यदि यय् प्रत्याहार (श्, ष, स्, ह के अतिरिक्त सभी व्यंजन यय् प्रत्याहार में आते हैं) का कोई भी व्यंजन आये तो अनुस्वार का परसवर्ण हो जाता है; अर्थात् पद के मध्य में अनुस्वार के आगे श्, ष, स्, ह को छोड़कर किसी भी वर्ग का कोई भी व्यंजन आने पर अनुस्वारे के स्थान पर उस वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है;
उदाहरण—
गम् + गा = गङ्गा।
गम्/गं + ता = गन्ता ।
सम्/सं + ति = सन्ति ।
अन्/अं+ कितः = अङ्कितः।
शाम्/शां + तः = शान्तः ।
अन्/अं + चितः = अञ्चितः । |
कुम्/कुं+ चितः = कुञ्चितः।

विशेष— यह नियम प्रायः अनुस्वार सन्धि के पश्चात् लगता है। पदान्त में यह नियम विकल्प से होता है।
उदाहरण-
कार्यम् + करोति = कार्यं करोति या कार्यङ्करोति।
अलम् + चकार = अलं चकार या अलञ्चकार
रामम् + नमामि = रामं नमामि यो रामन्नमामि
त्वम् + केरोषि = त्वं करोषि या त्वङ्करोषि ।

विसंर्ग सन्धि

विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यंजन के मिलने से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। इसमें ‘+’ चिह्न से पूर्व विसर्ग आता है। विसर्ग किसी-न-किसी स्वर के बाद ही आता है, व्यंजन के बाद कभी नहीं आता। विसर्ग सन्धि में विसर्ग से पूर्व आने वाले स्वर का तथा विसर्ग के बाद आने वाले वर्ण का ध्यान रखा जाता है।

(1) विसर्ग का विसर्ग रहना
नियम-
यदि विसर्ग के पूर्व कोई भी स्वर हो और विसर्ग के बाद क-ख और प–फ आते हैं तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। उदाहरणरामः + करोति = रामः करोति ।
बालकः + खादति = बालक:खादति
शिष्यः + पठति = शिष्यः पठति
वृक्षाः + फलन्ति = वृक्षाः फलन्ति

(2) सत्व सन्धि (सूत्र-विसर्जनीयस्य सः)

नियम– विसर्ग का श, ष, सु होना–यदि विसर्ग के बाद च-छ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘श्’, ट-ठ आये तो विसर्ग के स्थान पर ष तथा त-थ आये तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है। उदाहरण –

(3) विसर्ग का विकल्प से श, ष, स् होना (सूत्र–वा शरि)

नियम- यदि विसर्ग के बाद श, ष, स आते हैं तो सन्धि के पश्चात् विसर्ग के स्थान पर क्रमशः श्, ष, स् हो जाते हैं अथवा विसर्ग का विसर्ग ही रह जाता है।
उदाहरण

(4) विसर्ग का उ होना (सूत्र–ससजुषोरुः तथा अतोरोरप्लुतादप्लुते)

नियम-
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ तथा बाद में भी ‘अ’ आता है तो सन्धि होने पर विसर्ग का ‘रु’ (र का लोप होने पर उ’) हो जाता है। विसर्ग से पूर्व का ‘अ’ तथा विसर्ग वाला ‘उ’ मिलकर (अ + उ = ओ) ‘ओ’ हो जाते हैं तथा विसर्ग के बाद वाले ‘अ’ का पूर्वरूप हो जाता है उदाहरण
(ऽ)चिह्न लग जाता है। उदाहरण

रामः + अपि = राम उ अपि-रामो
अपि = रामोऽपि। बालः + अवदत् = बाल उ अवदत्-बालो अवदत् = बालोऽवदत्।।
शुकः + अस्ति = शुक उ अस्ति–शुको अस्ति = शुकोऽस्ति।
कः + अपि = क उ अपि-को अपि = कोऽपि।
बालकः + अयम् = बालक उ अयम्-बालको अयम् = बालकोऽयम्।

(5) विसर्ग का उ होना (सूत्र–हशि च)

नियम- यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में कोमल व्यंजन (वर्ग को तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व, ह) आती है तो विसर्ग का रु (उ) हो जाता है। विसर्ग के पूर्ववर्ती अ तथा उ मिलकर (अ + उ =ओ) ओ हो जाते हैं। उदाहरणमयूरः + नृत्यति = मयूरो नृत्यति

(6) विसर्ग का लोप होना

नियम(अ) -यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो तथा बाद में ‘अ’ को छोड़कर कोई भी स्वर आये तो विसर्ग का लोप हो जाता है। उदाहरण

नियम ( ब) –यदि ‘आ’ के बाद ‘विसर्ग और विसर्ग के बाद कोई भी स्वरे या कोमल व्यंजन आता है तो विसर्ग को लोप हो जाता है। उदाहरण
बालकाः + आगच्छन्ति = बालका आगच्छन्ति शिष्याः + अनमन् = शिष्या अनमन
जनाः + उपविशन्ति = जना उपविशन्ति सिंहाः + एते = सिंहा एते
मयूराः + नृत्यन्ति = मयूरा नृत्यन्ति जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।
मृगाः + धावन्ति = मृगी धावन्ति शुकाः + वदन्ति= शुको वदन्ति

नियम ( स )- एषः और सः के बाद अ को छोड़कर कोई भी वर्ण आता है तो विसर्ग का लोप हो जाता है। उदाहरणएषः + पठति

विशेष- एषः और स: के बाद अ आने पर विसर्ग का ‘उ’ होकर ‘अतोरोरप्लुतादप्लुते’ के अनुसार सन्धि होती है।
उदाहरण-
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UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 21(7) विसर्ग का ‘र’ होना 

नियम– यदि विसर्ग के पूर्व अ या आ को छोड़कर कोई भी स्वर या कोमल व्यंजन आता है तो सन्धि होने पर विसर्ग का ‘ए’ हो जाता है। उदाहरण

(8) र का लोप

नियम- नियम 7 के अनुसार विसर्ग का र होने पर ‘र’ के बाद पुनः ‘ए’ आता है तो पूर्ववर्ती (विसर्ग वाले) ‘र’ का लोप हो जाता है और विसर्ग से पूर्व स्थित स्वर यदि ह्रस्व है तो उसका दीर्घ हो जाता है। उदाहरण-

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर संस्कृत व्याकरण से।

 दीर्घ सन्धि
प्रश्‍न 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए

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प्रश्‍न 3
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(क)
ऐसे दो शब्द मिलाइए जिनमें दोनों ओर ह्रस्व ‘अ’ हो।
उत्तर
पुर + अरिः = पुरारिः, उदक +अर्थी = उदकार्थी।

(ख)
ऐसे दो शब्द बताइए , जिनके अन्त में दीर्घ ‘ई’ हो तथा उनसे मिलने वाले के शुरू में भी दीर्घ ‘ई’ हो।
उत्तर

नदी + ईशः = नदीशः, नारी + ईश्वरः = नारीश्वरः।

(ग)

सवर्ण का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
एक समान उच्चारण-स्थान और गंक समान प्रयत्न द्वारा उच्चरित वर्ण सवर्ण कहलाते. .

(घ)
अक् प्रत्याहार से क्या समझते हैं?
उत्तर
अ, इ, उ, ऋ, लू वर्गों के समूह को अक् प्रत्याहार कहते हैं।

(ङ) व्यंजन सन्धि कब होती है?
उत्तर
व्यंजन से व्यंजन अथवा स्वर के मिल जाने पर व्यंजन सन्धि होती है।

प्रश्‍न 4
निम्नलिखित में शुद्ध वाक्य पर ‘✓’ तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए-
उत्तर
(क) इ तथा ई और ई + इ मिलने में परिणाम एक नहीं होता। (✗)
(ख) उ+ ऊ और ऊ+ ऊ मिलने में फल एक ही होता है। (✓)
(ग) अद्यापि और रवीन्द्रः में दीर्घ सन्धि है। (✓)
(घ) ह्रस्व तथा दीर्घ स्वर मिलकर दीर्घ नहीं होता। (✗)
(ङ) दीर्घ तथा ह्रस्व स्वर मिलने पर दीर्घ होता है। (✓)

प्ररन 5
निम्नलिखित शब्दों से अ, ई और उ के जोड़े अलग कीजिए
अद्य + अपि, रवि + इन्द्रः, दैत्य + अरिः, तथा + अपि, क्षिति + ईशः, तत्र + आसीत्, दया + अर्णवः, मधु + उत्सवः, कपि + ईश्वरः, गुरु + उपदेशः, सुधी + ईशः, परम + आत्मा, मातृ + ऋणम्।
उत्तर

प्ररन 6
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद करके नियम बताइए-
उत्तर
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गुण सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए तथा नियम बताइए
उत्तर
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प्ररन 2
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि कीजिएउत्तर- सन्धि-विच्छेद सन्धित पंद सन्धि-विच्छेद सन्धित पद
उत्तर


प्ररन 3
निम्नलिखित में जो कथन सत्य हों, उन पर ‘✓’ का तथा जो गलत हों उन पर ‘✗’ का चिह्न लगाइएउत्तर-

(क) उ और प का उच्चारण-स्थान एक है। ( ✓)
(ख)
इ और य् का उच्चारण-स्थान एक नहीं है।  (✗ )
(ग) कवीन्द्रः तथा रवीन्द्रः में गुण सन्धि है। (✗ )
(घ) महेशः तथा दिनेशः में दीर्घ सन्धि है ।(✗ )
(ङ) ई तथा चवर्ग सवर्ण हैं। (✗ )
(च) सवर्ण ह्रस्व स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। (✓ )
(छ) देवर्षि में ऋ के कारण र् और आया है। ( ✗)

प्ररन 4
निम्नलिखित में गुण और दीर्घ सन्धियों वाले वाक्य अलग-अलग छाँटिएउत्तर—

(क) महोदय! अहं तवेदं कार्यं न वाञ्छामि।। (गुण)

(ख) कुत्रागतः सः कथन्न देवालयं गच्छति। (दीर्घ) 

(ग) सन्देहास्पदं कार्यं न करणीयं त्वयात्र। (दीर्घ) 

(घ) तस्य गुणोत्कर्ष को न जानाति। (गुण)

(ङ) अद्य चन्द्रोदयः न भविष्यति।। (गुण)

यण सन्धि
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प्ररन 3

निम्नलिखित कथनों में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा शुद्ध कथन पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) इक् का अर्थ इ, उ, ऋ, लू होता है।  (✓ )
(ख) यण का अर्थ केवल य्, व् होता है। ( ✗)
(ग) अन्वेषण में दीर्घ सन्धि होती है। ( ✗)
(घ)
सूर्योदय और अभ्युदय में एक ही सन्धि होती है। ( ✗)
(ङ) मात्रादेशः में दीर्घ सन्धि होती है। ( ✗)
(च) य् का उच्चारण स्थान कण्ठ है।  ( ✗)
(छ) इ और य का उच्चारण स्थान एक है। (✓ )

प्ररन 4

निम्नलिखित शब्दों में से यण और गुण सन्धियों के शब्द अलग कीजिए
गङ्गोदकम्, अथापि, यद्यपि, इत्याह, महोत्सवः, मध्वानय, जलार्थी, कथयाम्यहम्, जानाम्यहम्, प्रधानाध्यापकः, महेशः, सुरेशः, वध्वागमनम्।
उत्तर
यण सन्धि–यद्यपि, इत्याह, मध्वानय, कथयाम्यहम्, जानाम्यहम्, वध्वागमनम्। गुण सन्धि–गङ्गोदकम्, महोत्सवः, महेशः, सुरेशः।

प्ररन 5
निम्नलिखित वाक्यों में यण् सन्धि के शब्द बताइए-
उत्तर
वाक्य

 वृध्दि सन्धि

प्ररन 3-निम्नलिखित सूत्रों का उदाहरणसहित अर्थ लिखिए

अकः सवर्णे दीर्घः, इको यणचि, आद्गुणः।
उत्तर
(क) अकः सवर्णे दीर्घः– यह दीर्घ सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि अक् प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु) के बाद क्रमशः अ, इ, उ, ऋ, लू ही आएँ तो दोनों स्वर मिलकर दीर्घ स्वर हो जाते हैं। उदाहरण-धन + अर्थी = धनार्थी, भानु + उदय = भानूदयः। 

(ख) इको यणचि- यह यण् सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि इक् प्रत्याहार (इ, उ, ऋ, लु) के बाद कोई अच् प्रत्याहार (अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ओ, ऐ, औ) का वर्ण आये तो उसके (इक्) स्थान पर यण् (य, व, र, ल) हो जाता है। उदाहरण-प्रति + एकः = प्रत्येकः, पशु +एव = पश्वेव।

(ग) आद् गुणः- यह गुण सन्धि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि अ के बाद कोई असमान स्वर आये तो दोनों को मिलाकर गुण (ए, ओ) हो जाता है। उदाहरण-नर + ईशः = नरेशः, पय + ऊर्मिः = पयोर्मिः।

प्ररन 4
गुण और वृद्धि में अन्तर बताइए।
उत्तर
अ, ए तथा ओ वर्ण गुण कहलाते हैं; जब कि आ, ऐ तथा औ वर्ण वृद्धि।

प्ररन 5
निम्नलिखित में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा अशुद्ध कथन पर ‘✗‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क) कमलम् में सात वर्ण हैं।
(ख) इत्यादि में चार वर्ण हैं।
(ग) माम् + अकथयत् में सन्धि सम्भव है।
(घ) सदैव और तवैव में एक ही सन्धि है।

प्ररन 6
निम्नलिखित में परिवर्तन का कारण बताइए

(क)
अ +इ=ए ही क्यों होता है; जैसे-सुरेश में।
उत्तर
गुण सन्धि के ‘आद् गुण: सूत्र से ऐसा होता है।

(ख)
इ के स्थान में ये क्यों होता है; जैसे-इत्यादि में।
उत्तर
यण् सन्धि के सूत्र ‘इको यणचि’ द्वारा ऐसा होता है।

(ग)
अ+उ =ओ ही क्यों होता है; जैसे—सूर्योदय में।
उत्तर
गुण सन्धि के सूत्र ‘आद् गुणः’ से अ + उ = ओ होता है।

(घ)
महा + ऋषिः = महार्षिः क्यों नहीं? |
उत्तर
गुण सन्धि के सूत्र ‘आद् गुणः’ के अनुसार आ + ऋ = अर् होता है, न कि आर्; इसलिए ऐसा नहीं हुआ।

(ङ)
अथैव में ऐ क्यों हुआ?
उत्तर
वृद्धि सन्धि के सूत्र ‘वृद्धिरेचि के अनुसार अ + ए = ऐ होता है।

प्ररन 7
निम्नलिखित वाक्यों में सन्धियुक्त शब्दों को अलग कीजिए

(क) रामः ममौरसः पुत्रः अस्ति।
(ख) सः सदैव अग्रजान् प्रणमति।
(ग) एकैकं पुस्तकेमादाय तत्रागच्छ।
(घ) त्वं कथं गङ्गोदकम् मलिनं करोषि। ।
(ङ) नगरेषु खाद्यान्नं विद्यते।
उत्तर 
(क) ममौरसः, (ख) सदैव, (ग) एकैकं, पुस्तकमादाय, तत्रागच्छ, (घ) गङ्गोदकम्, (ङ) खाद्यान्न।।

अयादि सन्धि

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 31

प्ररन 3
निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए-
एचोऽयवायावः, आद् गुणः, वृद्धिरेचि।
उत्तर
एचोऽयवायाः —यह अयादि सन्धि का सूत्र है। इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि एच् (ए, ऐ, ओ, औ) के बाद यदि कोई स्वर आये तो एच् के स्थान पर क्रमशः अय्, आय्, अव्, आव् हो जाते हैं; अर्थात् ए का अय्, ऐ का आय्, ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है।

आद् गुणः- इस सूत्र की व्याख्या के लिए वृद्धि सन्धि के अन्तर्गत प्रश्न 3 का (ग) भाग देखिए।

वृद्धिरेचि- यह वृद्धि सन्धुि का सूत्र है। इसका अर्थ है कि यदि ह्रस्व अथवा दीर्घ ‘अ’ के बाद एच् (ए, ऐ, ओ, औ) वर्ण आते हैं तो वृद्धि हो जाती है; अर्थात् अ अथवा आ के बाद यदि ए अथवा ऐ आये तो उनके स्थान पर ऐ तथा ओ अथवा औ आये तो उनके स्थान पर औ हो जाता है।

प्ररन 4
गुण तथा वृद्धि में अन्तर बताइए।
उत्तर
गुण के अन्तर्गत अ, ए, ओ वर्ण आते हैं, जब कि वृद्धि के अन्तर्गत आ, ऐ, औ वर्ण।

प्ररन 5
निम्नलिखित में शुद्ध कथन पर ‘✓’ तथा अशुद्ध कथन पर ‘✗‘ का निशान लगाइए।
उत्तर
(क)
ए + ए = ऐ होता है। (✗ )
(ख) अ + ओ = औ होता है। (✓ ) 
(ग) र् और ले यण् प्रत्याहार में आते हैं। (✓ )
(घ) प और उ का उच्चारण स्थान अलग-अलग है। (✗ )
(ङ) भवनम् में भू धातु आती है ( )
(च) शयनम् में शी धातु नहीं होती है। (✗ ) 
(छ) मतैक्यम् में दीर्घ सन्धि है। (✗ )
(ज) सुंर + ईशः = सुरेशः होता है। (✓ )
(झ) महा + ऋषिः मिलकर महर्षि बनता है। (✓ )
(ञ) प्रत्येकः के खण्ड सम्भव नहीं है। (✗ )

प्ररन 6
निम्नलिखित वाक्यों से सन्धियुक्त शब्दों को सन्धि के अनुसार अलग-अलग कीजिए
(क) त्वं जलाशयं कदा गमिष्यसि?
(ख) अहं तु तत्रैव मिलिष्यामि।
(ग) कृष्णः देवालये न तिष्ठति अपितु जनमानसे।
(घ) सुरेशः सदा पुस्तकालये पठति।
उत्तय

श्चुत्व सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 32

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

प्ररन 3
निम्नलिखित में शुद्ध कथनों पर ‘✓‘ तथा अशुद्ध कथनों पर ‘✗‘ का चिह्न लगाइएउत्तर-

(क) स्तोः का अर्थ है–स् और तु, थ, द्, धू, न्। (✗)
(ख)
जगज्जननी में स्वर सन्धि है। (✗)
(ग) वागीशः में स्वर सन्धि है। (✗)
(घ) सत् + मार्ग मिलकर सन्मार्ग बनता है। (✓ )
(ङ) पश्यामि + अहम् मिलकर पश्यामी + अहम् होता है। (✗)
(च) अभ्युदय; में अभि + उदयः होता है। (✓ )
(छ) नदी + आवेगः = नदी आवेगः ही रहता है। (✗)
(ज) मध्वरिः में मधु + अरिः होता है। (✓ )
(झ) प्रत्येकम् का सन्धि-विच्छेद नहीं होता है। (✗)
(ञ) यद्यपि एक शब्द है। इसमें सन्धि–विच्छेद सम्भव नहीं है। (✗)

प्ररन  4
निम्नलिखित में सन्धि के अनुसार शब्द अलग-अलग कीजिए
अत्युदारः, इत्याह, गणेशः, खल्वागच्छति, वदाम्यहम्, भजाम्यहम्, व्यवहारः, यथैव, सज्जनः, सन्मार्गः।।

उत्तर
यण् सन्धि– अत्युदारः, इत्याह, खल्वागच्छति, वदाम्यहम्, भजाम्यहम्, व्यवहारः।
गुण सन्धि– गणेशः।
श्चुत्व सन्धि–सज्जनः, सन्मार्ग।
वृद्धि सन्धि–यथैव।

ष्टुत्वं सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेदै कीजिए

प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘✓ ‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗’ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क)
धनुष् + टङ्कारः = धनुषटङ्कारः होता है। ()
(ख) मत् + टीका = मद् टीका होता है। ()
(ग) रामस् + चिनोति = रामश्चिनोति होता है। ( )
(घ) सत् + जनः = सज्जनः होता है।  ()
(ङ) ड् टवर्ग का तीसरा वर्ण है।  ( )

प्ररन 4
स्तोः श्चुना श्चुः का क्या अर्थ है? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
यह श्चुत्व सन्धि का सूत्र है। स्तोः का अर्थ है स् और तवर्ग, श्चुना का अर्थ है श् और चवर्ग तथा श्चुः का अर्थ है श् और चवर्ग। प्रस्तुत सूत्र के अर्थ का तात्पर्य यह है कि यदि स् और तवर्ग के पश्चात् श् अथवा चवर्ग आता है तो स् के स्थान पर श् और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग हो जाता है। उदाहरण
रामस् + शेते = रामशेते
सत् + जनाः = सज्जनः
निस् + छलः = निश्छलः
सत् + चित् = सच्चित् जश्त्व सन्धि

जशत्व सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर

प्ररन 2
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि कीजिए
उत्तर


प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘✓‘ को तथा अशुद्ध वाक्य.पर ‘✗‘ का  चिह्न लगाइए
उत्तर

(क) तत् + धनम् = तथ्धनम् होता है। (✗)
(ख) दिक् + अम्बरः = दिगम्बरः होता है। (✓) 
(ग) जश्त्व का अर्थ ज, ब, ग, डू, द् में से कोई वर्ण होता है। (✓)
(घ) झलों में वर्ग का पंचम वर्ण भी आता है। (✗)
(ङ) अल् का अर्थ कोई भी वर्ण होता है। (✓)

प्ररन 4
निम्नलिखित में नियम-निर्देश करते हुए सन्धि कीजिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

प्ररन 5
निम्नलिखित में नियम-निर्देशपूर्वक सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

प्ररन 6
निम्नलिखित में सन्धियुक्त शब्दों को छाँटिएऔर सन्धियों को क्रम में लिखिए
(क) विष्णुदकम् आनय।
(ख) तेनोक्तं यद् सत्यमेव सत्यं भवति।
(ग) रमेशः कथयति यत् सँः दीर्घायुः भविष्यति।
(घ) पावकः सर्वान् दहति न केवलं त्वामेव।
(ङ) अयं महोत्सवः सर्वप्रियः भवति।।
उत्तर

चर्ख सन्धि
प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण) 39
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

अनुस्वार सन्धि

प्ररन 1
निम्नलिखित अंशों में आवश्यकतानुसार ‘मोऽनुस्वारः’ का अभ्यास कीजिए
उत्तर
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 2 सन्धि-प्रकरण (व्याकरण)

प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्यों पर ‘✓‘ को तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर
(क)
अहम् तत्र गच्छामि यत्र अन्यः कोऽपि न गमिष्यति। (✗)
(ख)
श्यामः त्वाम् कथयिष्यति, सः कुत्रासीत्। (✗)
(ग) ‘हरिं वन्दे’ इत्येवमुक्त्वा सः गतः।  (✓)
(घ) अहमिच्छामि गृहं गन्तुं किन्तु यानं नास्ति। (✓)
(ङ) तव पुस्तकं विलोक्य अहं प्रसन्नतामनुभवामि। (✓)
(च) मोहनः इदानीमेव अत्रागमिष्यति। (✓)
(छ) विद्यामन्दिरं गत्वा रमेशः निश्चिन्तः अभवत् । ( ✓)
(ज) जानाम्यहं यत् अस्मिन् जगति सारः नास्ति। (✓)
(झ) अद्य रूप्यकाणाम् अभावः माम् क्लेशयति। (✗)
(ञ) त्वं तु सङ्कटापन्नः नासि, अतः दुःखं न जानासि। (✓)

प्ररन 4
निम्नलिखित वाक्यों में से गुण सन्धि के उदाहरण छाँटिए|
(क) भारतदेशे महोत्सवाः भवन्ति।
(ख) प्राचीनकाले अनेके महर्षयः अत्रासन्।
(ग) ते जनाः कुत्र, तव कार्यायाहं गमिष्याम्येव।
(घ) ये जनाः कुत्र निवसन्ति, नाहं जाने।
(ङ) जाते सूर्योदये सः आगमिष्यति।
उत्तर-
(क)
महोत्सवाः,
(ख)
महर्षयः,
(ङ)
सूर्योदये।

प्ररन 5
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘✓‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘✗‘ का चिह्न लगाइए
उत्तर

(क) सम्बन्ध की वर्तनी इस प्रकार होती है।  (✓)
(ख) दण्डित का शुद्धस्वरूप ऐसा ही है।  (✓)
(ग) परसवर्ण का अर्थ दूसरा वर्ण होता है। (✗)
(घ) कुञ्चित में ञ् नहीं लिखना चाहिए। (✗)
(ङ) दम्पत्ति की वर्तनी अशुद्ध है।  (✗)
(च) मन्त्र में तवर्ग का कोई वर्ण नहीं है। (✗)
(छ) वाक् + ईशः =.वाकीशः होता है। (✗)
(ज) “दिग्गजः’ में जश्त्व सन्धि है। (✓)
(झ) “सत्कार: एक शब्द है। (✗)
() ‘सुहत्फलम्’ अशुद्ध लिखा है। (✓) 
(ट) “एतज्जलम्’ में श्चुत्व सन्धि है। (✓)
(ठ) ‘गृहंगतः’ में कोई सन्धि नहीं है। (✗) 
(ड) “सत्यंवद में अनुस्वार सन्धि है। (✓)

विसर्जनीयस्य सः 

प्ररन 3
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘✓‘ का तथा अशुद्ध वाक्यं पर ‘✗‘ का । चिह्न लगाइए–
उत्तर

(क) अत्र छात्राश्तिष्ठन्ति। ()
(ख) त्वम् तत्र कथेत्र गच्छसि। ()
(ग) वयमत्र पश्यामस्तावत्।  ()
(घ) अस्माकं परिश्रमः त्वकृते भवति। ()
(ङ) मम स्थितः न शोभना वर्तते।। ()
(च) कठिन परिश्रमः फलति सदा।()
(छ) देवेनाहं ताडितः किं बहुना। ()
(ज) अस्माकं गृहे निवासाय देवा आयान्ति। ()
(झ) लक्ष्मीश्चञ्चला भवति।। ()

ससजुषोरुः

हाशि च
प्ररन 1
निम्नलिखित शब्दों में सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर

प्ररन 2
निम्नलिखित वाक्यों में शुद्ध वाक्य पर ‘‘ का तथा अशुद्ध वाक्य पर ‘‘ का चिह्न लगाइए-
उत्तर
(क) सोऽहम् = सः + अहम्। (✓)
(ख) शिवोऽहम् में अतोरोरप्लुतादप्लुते की प्रवृत्ति है। (✓)
(ग) सदैव में गुण सन्धि है।। (✗)
(घ) गत्वाहम् में वृद्धि सन्धि है। (✗)
(ङ) अहं गच्छामि में कोई सन्धि नहीं है। (✗)
(च) रामो वदति में हशि च की प्रवृत्ति है। (✓)
(छ) श्यामो नमति में हशि च नहीं लगता। (✗)
(ज) यत्र योगेश्वरः कृष्णः में योगेश्वरो होना चाहिए। (✗)

प्ररन 3
निम्नलिखित में वर्ण-परिवर्तन के कारण बताइए
उत्तर

प्ररन 4
निम्नलिखित को शुद्ध करके लिखिए-
भौ + उकः = भावुकः। सर्पः + सर्पति = सप्रसर्पति। रामः पाठम् पठति। मोहनस्चलति। देवश्तिष्ठति।।
उत्तर
भौ + उकः = भावुकः।
सर्पः + सर्पति = सर्पस्सर्पति।
रामः पाठं पठति। मोहनश्चलति। देवस्तिष्ठति।

वस्तुनिष्ठ प्रश्‍नत्तर

अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए

1. स्वर सन्धि कब होती है?
(क) व्यंजन और विसर्ग के मिलने पर।
(ख) स्वर के साथ विसर्ग मिलने पर
(ग) स्वर के साथ व्यंजन मिलने पर

(घ) स्वर के साथ स्वर मिलने पर

2. दीर्घ सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) अकः सवणे दीर्घः
(ख) इको यणचि
(ग) आद्गुणः ।
(घ) स्तो: श्चुना श्चुः

3. ‘इको यणचि’ सूत्र में इक् से क्या तात्पर्य है?
(क) इ, आ, ऋ, लू वर्ण ।
(ख) अ, इ, उ, ऋ, लु वर्ण
(ग) इ, उ, ऋ, लु वर्ण ।
(घ) य, व, र, ले वर्ण

4. इक् प्रत्याहार का यण प्रत्याहार किस सन्धि में होता है? |
(क) वृद्धि सन्धि में
(ख) गुण सन्धि में
(ग) दीर्घ सन्धि में
(घ) यण् सन्धि में

5. व्यंजन सन्धि में किसका मेल होता है? |
(क) स्वर और स्वर का
(ख) व्यंजन से स्वर या व्यंजन का।

(ग) केवल स्वर और व्यंजन का।
(घ) व्यंजन और विसर्ग का

6. व्यंजन सन्धिका कौन-सा भेद है?
(क) सत्व सन्धि
(ख) रुत्व सन्धि
(ग) चवं सन्धि
(घ) पूर्वरूप सन्धि

7. ‘स्तोः श्चुना श्चुःसूत्र किस सन्धि का है?
(क) टुत्व सन्धि का
(ख) जश्त्व सन्धि का ।
(ग) श्चुत्व सन्धि का । 
(घ) अनुस्वार सन्धि को

8. चवं सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) टुना टुः
(ख) झलां जशोऽन्ते
(ग) खरि च
(घ) ससजुषोरुः

9. इकार का उकार से योग होने पर क्या होता है?
(क) इकार का अकार
(ख) इकार का यकार
(ग) इकार का लोप
(घ) उकार का लोप

10. ‘ओ’ के बाद कोई स्वर आने पर ‘ओ’ का क्या होता है? |
(क) अय् ।
(ख) अव्
(ग) आव् ।
(घ) आय्

11. ‘अ’ या ‘आ’ के बाद’इ’या’ई’ आने पर ‘अ’ या ‘आ’ को क्या हो जाता है?
(क) ए
(ख) ऐ
(ग) अय्
(घ) आय्

12. ‘अ’ या ‘ओ’ के बाद ‘ओ’ या’ औ’ आने पर ‘अ’ या ‘आ’ का क्या हो जाता है?”
(क) ओ
(ख) औ 
(ग) अव्
(घ) आव् ।

13.यदि’अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए-ऐ’ या’ओ-औ’ आते हैं तो उनके स्थान पर क्रमशः ‘ऐ’ और | ‘औ’ हो जाते हैं, यह सन्धि है
(क) अकः सवर्णे दीर्घः
(ख) इको यणचि ।
(ग) वृद्धिरेचि
(घ) एचोऽयवायावः

14. यदि किसी शब्द में विसर्ग से पहले ‘अ’ आता है और बाद में भी ‘अ’ आता है, ऐसे शब्दों में कौन-सी सन्धि होगी ?
(क) वा शरि
(ख) अतोरोरप्लुतादप्लुते

(ग) मोऽनुस्वारः
(घ) हशि च ।

15. सकार या तवर्ग के बाद षकार या टवर्ग का योग होने पर स् का ५ तथा तवर्ग का टवर्ग हो। जाता है। यह कौन-सी सन्धि है?
(क) टुना ष्टुः

(ख) खरि च
(ग) स्तो: श्चुना श्चुः
(घ) झलां जशोऽन्ते

16. मकार का अनुस्वार किस सन्धि में होता है?
(क) अपदान्त जश्त्व सन्धि में ।
(ख) पदान्त जश्त्व सन्धि में ।
(ग) अनुस्वार सन्धि में।
(घ) अनुनासिक सन्धि में

17. विसर्ग सन्धि में विसर्ग सदैव कहाँ आता है?
(क) व्यंजन के बाद
(ख) स्वर के बाद
(ग) स्वर से पहले
(घ) व्यंजन से पहले

18. सत्व सन्धि का सूत्र कौन-सा है?
(क) अतोरोरप्लुतादप्लुते
(ख) विसर्जनीयस्य सः
(ग) ससजुषोरुः ।
(घ) हशि च ।

19. होतृ + लृकारः में कौन-सी सन्धि होगी?
(क) अयादि सन्धि
(ख) दीर्घ सन्धि
(ग) गुण सन्धि
(घ) वृद्धि सन्धि

20. निम्नलिखित विकल्पों में वृद्धि सन्धि का उदाहरण कौन-सा है?
(क) मधु + अरिः
(ख) नदी + ईशः
(ग) नै + अकः।
(घ) लता + एव

21. कृष् + नः किस सन्धि का उदाहरण है? । 
(क) अनुनासिक सन्धि का
(ख) टुत्व सन्धि को
(ग) चव सन्धि को
(घ) श्चुत्व सन्धि का

22. ‘निः + दयः’ में विसर्ग का’र’ किस सूत्र से हुआ है?
(क) ससजुषोरु: से
(ख) ठूलोपेपूर्वस्य दीघोंऽणः से
(ग) हशि च से।
(घ) अतोरोरप्लुतादप्लुते से

23. गङ्गा + उदकम् में सन्धित पद होगा-
(क) गङ्दकम् ,
(ख) गङ्गोदकम्
(ग) गङ्गादूकम् ।
(घ) गङ्गौदकम् ।

24. ‘पवित्रम्’ का सही सन्धि-विच्छेद क्या है?
(क) पव् + इत्रम्
(ख) पौ + इत्रम्
(ग) पो + इत्रम्
(घ) पे + इत्रम्

25. नकुलो + अपि का सन्धित पद क्या होगा?
(क) नकुलौपि
(ख) नकुलैपि
(ग) नकुलोऽपि
(घ) नकुलेपि

26. ‘शुद्धिः’ का सन्धि-विच्छेद क्या होगा?
(क) शुध् + दिः
(ख) शुद् + धिः
(ग) शुदि + धः
(घ) शुध् + धिः

27. जगन्नाथः का सन्धि-विच्छेद क्या होगा?
(क) जगत् + नाथः

(ख) जगन्न + अथः
(ग) जगन् + नाथः
(घ) जगद् + नाथः

28. ‘दिगम्बरः’ का सन्धि-विच्छेद होगा-
(क) दिक् + अम्बरः
(ख) दिग + अम्बर:
(ग) दिक+ अम्बरः
(घ) दिग् + अम्बरः

29.’चयनम्’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) च + अनम्

(ख) चय+ नम्रै
(ग) चे + अनम्
(च) चे + एनम् ।

30. ‘वाक्-जाल’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा
(क) वाघ्ञ्जालः
(ख) वाग्जालः
(ग) वाक्जाल:
(घ) वाक्जाल:

31. ‘निराश्रितः’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(क) निर + आश्रितः
(ख) निरा + आश्रितः
(ग) निरा + श्रितः
(घ) निः + आश्रितः

32. ‘वृक्ष + छाया’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा-
(क) वृक्षच्छाया
(ख) वृक्षश्छाया
(ग) वृक्षया
(घ) वृक्षाछाया

33. ‘शिवः + अहम्’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा-
(क) शिवर्हम्
(ख) शिवोहम्
(ग) शिवोऽहम्
(घ) शिवोऽहम्

34. ‘तथैव’ का सन्धि-विच्छेद होगा-
(क) तथा + एव

(ख) तथ + ऐव
(ग) तथ् + ऐव |
(घ) तथे + एव

35. ‘त्वम् + करोषि’ में सन्धि होने पर रूप बनेगा
(क) त्वम्करोषि
(ख) त्वंकरोषि
(ग) त्वङ्करोषि ।
(घ) त्वन्करोषि

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