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Chapter 3 स्वावलम्बनम्

संख्यावाचिशब्दाः तद्-एतद्-शब्दौ च 

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ नामक दो मित्रों की कथा के माध्यम से स्वावलम्बन के महत्त्व को बतलाया गया है। साथ ही इस पाठ में संस्कृत में संख्यावाची शब्दों तथा तद् व एतद् सर्वनाम शब्दों का भी. परिचय कराया गया है।

पाठ के गद्यांशों का हिन्दी-अनुवाद एवं पठितावबोधनम् – 

1. कृष्णमूर्तिः श्रीकण्ठश्च मित्रे ……………………………………………. आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्। 

हिन्दी अनुवाद – कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ का पिता धनी था। इसलिए उसके घर में सभी प्रकार के सुख-साधन थे। उस विशाल भवन में चालीस खम्बे थे। उसके अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ, चवालीस दरवाजे और छत्तीस बिजली के पंखे थे। वहाँ दस सेवक निरन्तर कार्य करते थे। किन्तु कृष्णमूर्ति के माता-पिता निर्धन किसान पति-पत्नी थे। उसका घर आडम्बर (दिखावे) से रहित और साधारण था। 

पठितावबोधनम् : 
निर्देश: – उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं लिखतप्रश्ना :
(क) श्रीकण्ठस्य पिता कीदृशः आसीत? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कस्य माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती आस्ताम्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) कृष्णमूर्ते: गृहम् कीदृशम् आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘विशाले’ इति विशेषणस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किमस्ति?
(ङ) ‘कुर्वन्ति स्म’ इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किं प्रयुक्तम्? 
उत्तराणि : 
(क) समृद्धः।
(ख) कृष्णमूर्तेः।
(ग) कृष्णमूर्ते: गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्। 
(घ) भवने।
(ङ) सेवकाः।

2. एकदा श्रीकण्ठः तेन सह ……………………………………… तु बहवः कर्मकराः सन्ति।” 

हिन्दी अनुवाद – एक बार श्रीकण्ठ उसके साथ प्रातः नौ बजे उसके घर गया। वहाँ कृष्णमूर्ति और उसके मातापिता ने अपनी शक्ति के अनुसार श्रीकण्ठ का अतिथि सत्कार किया। यह देखकर श्रीकण्ठ ने कहा-“हे मित्र! मैं आपके सत्कार से सन्तुष्ट हूँ। मुझे केवल यही दुःख है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। मेरे सत्कार के लिए आपको बहुत कष्ट हुआ। मेरे घर में तो बहुत से कर्मचारी/सेवक हैं।” 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) एकदा श्रीकण्ठः कस्य गृहम् अगच्छत्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कस्य गृहे बहवः कर्मकराः आसन्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् के अकुर्वन्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘दृष्ट्वा ‘ इति पदे कः प्रत्ययः?
(ङ) ‘सेवकः’ इत्यर्थे गद्यांशे किं पदं प्रयुक्तम्? 
उत्तराणि :  
(क) कृष्णमूर्तेः।
(ख) श्रीकण्ठस्य। 
(ग) श्रीकण्ठस्य आतिथ्यं कृष्णमूर्तिः तस्य माता पिता च अकुर्वन्। 
(घ) क्त्वा।
(ङ) भृत्यः।

3. तदा कृष्णमूर्तिः अवदत् ………………………………………. न कदापि कष्ट भवति।” 

हिन्दी अनुवाद – तब कृष्णमूर्ति बोला-“हे मित्र! मेरे भी आठ सेवक हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो नेत्र तथा दो कान हैं। ये हर समय मेरे सहायक हैं। किन्तु तुम्हारे सेवक हमेशा और सभी जगह उपस्थित नहीं हो सकते हैं। तुम तो अपने कार्य के लिए सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित रहते हैं, तब-तब तुम कष्ट का अनुभव करते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी भी कष्ट नहीं होता है।” 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) कः स्वकार्याय भृत्याधीनः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कुत्र सर्वदा सुखमेव भवति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) कृष्णमूर्तेः अष्टौ कर्मकरा: के सन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘अष्टौ’ इति विशेषणपदस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘स्वावलम्बन तु कदापि कष्टं न भवति’- इत्यत्र अव्ययपदं किम्? 
उत्तराणि : 
(क) त्वम् (श्रीकण्ठः)।
(ख) स्वावलम्बने। 
(ग) कृष्णमूर्तेः अष्टौ कर्मकराः सन्ति-द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, वे श्रोत्रे च। 
(घ) कर्मकराः।
(ङ) कदापि।

4. श्रीकण्ठः अवदत्-“मित्र! …………………………………………………. साम्प्रतं गृहं चलामि।

हिन्दी अनुवाद – श्रीकण्ठ बोला-“मित्र! तुम्हारे वचन सुनकर मेरे मन में अत्यधिक प्रसन्नता हुई है। अब मैं भी अपने कार्य स्वयं ही करना चाहता हूँ।” ठीक है, अब साढ़े बारह बजे हैं। अभी मैं घर चलता हूँ। 

पठितावबोधनम् –
प्रश्ना :
(क) श्रीकण्ठस्य मनसि महती का जाता? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कः स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) श्रीकण्ठः कति वादने गृहं गच्छति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘इच्छामि’ इति क्रियापदस्य गद्यांशे कर्तृपदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘प्रसन्नता’ इति पदस्य गद्यांशात् विशेषणपदं चित्वा लिखत। 
उत्तराणि :
(क) प्रसन्नता।
(ख) श्रीकण्ठः। 
(ग) श्रीकण्ठः सार्धद्वादशवादने गृहं गच्छति। 
(घ) अहम्।
(ङ) महती।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ – 

  • समृद्धः = धनी। 
  • चत्वारिंशत् = चालीस। 
  • अष्टादश = अठारह। 
  • प्रकोष्ठेषु = कमरों में। 
  • पञ्चाशत् = पचास। 
  • गवाक्षाः = खिड़कियाँ। 
  • चतुश्चत्वारिंशत् = चवालीस। 
  • षट्त्रिंशत् = छत्तीस। 
  • कृषकदम्पती = किसान पति-पत्नी।
  • आतिथ्यम् = अतिथि-सत्कार। 
  • कर्मकरः = काम करने वाला। 
  • भवताम् = आपके। 
  • भृत्यः = नौकर सेवक। 
  • शक्नुवन्ति = सकते हैं।
  • सार्धद्वादशवादनम् = साढ़े बारह बजे। 
  • साम्प्रतम् = अभी। 
  • स्तम्भाः = खम्भे। 
  • अधीनः = निर्भर।
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