Chapter 4 गूँगे
Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
गूंगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
गूंगा भले ही दिव्यांग था लेकिन उसके स्वभाव में स्वाभिमान तो जैसे कूट-कूट कर भरा था। उसने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय कई बार दिया। जब चमेली और अन्य स्त्रियाँ उससे पूछताछ कर रही थीं तब उसने बताया कि उसने परिश्रम करके पेट भरा है। किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। इस प्रकार गूंगे ने अपने स्वाभिमानी होने पर ही परिचय दिया।
इसी प्रकार जब चमेली गूंगे के सामने बासी रोटियाँ फेंक कर खाने को कहती है तो वह चुपचाप खड़ा रहता है रोटियों को हाथ तक नहीं लगाता। जब गूंगे की शिकायत पर ध्यान न देकर चमेली अपने बेटे का पक्ष लेती है और उस पर हाथ उठना चाहती है तो गूंगा उसका हाथ पकड़ लेता है। स्वाभिमानी होने कारण ही वह सड़क के लड़कों से भिड़ जाता है और लहूलुहान होकर घर लौटता है। इस प्रकार गूंगे ने अनेक बोर प्रमाणित किया कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति था।
प्रश्न 2.
'मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूंगेपन की प्रतिच्छाया है।' कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिवेश के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
गूंगे की आत्मकथा सुनकर सभी लोग करुणा की भावना से भर उठते हैं। मनुष्य के भीतर करुणा उत्पन्न होने का कारण यही है कि वह भीतर से गूंगा है। अपमान, अन्याय, उपेक्षा सहकर भी जब मनुष्य उसका प्रतिकार नहीं कर पाता तो उसकी भीतर की घुटन करुणा के रूप में व्यक्त होती है।वर्तमान में सामाजिक परिवेश भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है। चमेली की सोच भी इसी स्थिति की ओर संकेत करती है। वह सोचती है - 'आज ऐसा कौन है जो गूंगा नहीं है। किसका हृदय समाज, राष्ट्र, धर्म और व्यक्ति के प्रति विद्वेष से, घृणा से नहीं छटपटाता', किन्तु यह छटपटाहट व्यक्त नहीं हो पाती और करुणा में परिणत हो जाती है। घायल होकर चीखते गूंगे को देखकर चमेली का हृदय भी करुणा से भर उठता है और उसे लगता है कि सारा समाज ही 'गूंगापन' की पीड़ा से कराह रहा है।
प्रश्न 3.
'नाली का कीड़ा!' 'एक छत उठाकर सिर पर रख दी, फिर भी मन नहीं भरा' चमेली का यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है ?
उत्तर :
गूंगे की राम कहानी सुनकर चमेली को दया आ गई और उसने गूंगे को अपने यहाँ रख लिया। तभी एक दिन वह भाग गया। चमेली को आश्चर्य हुआ और खीज भी हुई। वह सोचने लगी कि गूंगे जैसे लोग नाली के कीड़े जैसे स्वभाव के होते हैं। उन पर एक घर में चैन से नहीं रहा जाता। उन्हें अपना वही निराश्रित जीवन अच्छा लगता है। घर-घर भटकना, हाथ फैलाना, फटकार खाना ही उनके भाग्य में लिखा होता है, तभी तो गूंगा भाग गया। इस कथन के माध्यम से चमेली के मन में आने वाले अनेक भावों का परिचय मिलता है। गूंगे के अकारण भाग जाने से वह चिढ़ गई है। उसे गूंगे पर तरस भी आ रहा है। अपनी दया और ममता का अपमान भी उसे क्षुब्ध भी कर रहा है। इस प्रकार इस अप्रत्याशित घटना ने चमेली के मन में हलचल पैदा कर दी है।
प्रश्न 4.
यदि बसंता गूंगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार उसके प्रति कैसा होता ?
उत्तर :
चमेली के हृदय में गूंगे के प्रति करुणा उत्पन्न हुई थी। सहानुभूति के कारण उसने गूंगे को अपने घर नौकर भी। उसके भागने पर चमेली को क्रोध भी आया था। उसने गूंगे को नाली का कीड़ा कहा था और उसकी पीठ पर चिमटा भी जड़ दिया था। बसंता ने गूंगे को पीटा पर उसने बसंता को दण्ड न देकर गूंगे को ही पीटने को हाथ उठाया। मूंगा पराया था, इस कारण चमेली ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया। चमेली माँ थी यदि बसंता गूंगा होता तो वह उसके साथ कठोर और रूखा व्यवहार नहीं करती। उसकी प्रत्येक गलती को देखकर उसे क्रोध नहीं आता। उसके प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति दिखाती। बसन्ता को गूंगा देखकर उसे दुख होता। यदि कोई उसे पीटता तो वह आपे से बाहर हो जाती।
प्रश्न 5.
'उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।' क्यों ?
उत्तर :
बसंता ने गूंगे को चपत जड़ी। गूंगे ने भी मारने को हाथ उठाया पर मालिक का पुत्र समझकर उसका हाथ रुक गया। गूंगे को बसंता ने पीटा था। चमेली यह बात जानती थी। गूंगे के प्रति चमेली में करुणा का भा के कारण उसने बसन्ता का ही पक्ष लिया और गँगे को मारने के लिए हाथ उठाया। गँगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली ने बाद में उसे रोटियाँ दी पर उसने नहीं खाईं। उसके मन में क्षोभ था। चमेली के पक्षपात को देखकर उसे दुःख हुआ था। इसी कारण उसकी आँखों में आँसू आए गए थे।
प्रश्न 6.
'गूंगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता था' - सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
लोग असहायों के प्रति सहानुभूति तो दिखाते हैं किन्तु उनके अधिकारों का आदर नहीं करते। गूंगे के साथ भी यही हुआ। बुआ और फूफा गूंगे के माता-पिता की मृत्यु के बाद सहानुभूति के कारण उसे अपने घर ले तो गए लेकिन उसे परिवार के सदस्य होने का अधिकार नहीं दिया। बसंता ने गूंगे को मारा, किन्तु चमेली ने अपने पुत्र का ही पक्ष लिया। गूंगा बसन्ता को दण्ड दिलाना चाहता था। चमेली से न्याय पाने का उसका अधिकार था, पर उसे न्याय नहीं मिला। गूंगा चमेली की सहानुभूति नहीं चाहता था, अपना अधिकार चाहता था। किन्तु उसे सहानुभूति नहीं मिली बल्कि उपेक्षा ही मिली।
प्रश्न 7.
'गूंगे' कहानी पढ़कर आपके मन में कौन-से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों ?
उत्तर :
गूंगे और विकलांग हमारी तरह ही ईश्वर की सन्तान हैं, हमारी तरह ही प्राणी हैं। गूंगे अपनी विवशता के कारण बोलने में असमर्थ हैं। अतः हमारी सहानुभूति के पात्र हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता न होने के कारण वे अपने प्रति होने वाले अन्याय का विरोध नहीं कर पाते हैं। उनके प्रति हमारे मन में सहानुभूति और करुणा का भाव उत्पन्न होता है। हमें उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए तथा उनके प्रति ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे उन्हें ठेस न पहुँचे। ऐसे ही भाव हमारे हृदय में उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 8.
कहानी का शीर्षक 'गूंगे' है, जबकि कहानी में एक ही गूंगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है ?
उत्तर :
कहानी का एक ही पात्र गूंगा है, किन्तु वह एक प्रतीक है और एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कहानी कार ने 'गूंगे' शीर्षक रखकर उन लोगों की ओर संकेत किया है जो अन्याय और अत्याचार को सहते रहते हैं और गूंगे की तरह विरोध नहीं करते। वे अत्याचार सहकर भी चुप रहते हैं। गूंगा उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो शोषित हैं, दलित हैं और उपेक्षित हैं। लेखक ने उन लोगों की ओर भी संकेत किया है जिसके पास वाणी है, कहने की क्षमता है फिर भी गूंगे की तरह अत्याचार और अन्याय सहन करते हैं पर विरोध नहीं करते। उनके हृदय में भाव घुमड़ते रहते हैं, फिर भी उन्हें व्यक्त नहीं करते। अत: कहानी का शीर्षक उचित है।
प्रश्न 9.
यदि 'स्किल इंडिया' जैसा कोई कार्यक्रम होता तो क्या गूंगे को दया या सहानुभूति का पात्र बनना पड़ता?
उत्तर :
दिव्यांगों (विकलांगों) की समाज में सदा से ही दयनीय स्थिति रही है। समाज में उनको प्रायः दया और सहानुभूति का पात्र माना जाता रहा है। यदि कोई दिव्यांग व्यक्ति किसी कार्य में या कला आदि में निपुण भी होता है तो भी उसकी कार्य-क्षमता पर लोगों को सहज विश्वास नहीं होता। उसे कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जाना बहुत कठिन होता है।
गूंगा भी अपनी विकलांगता के कारण चमेली की दया और सहानुभूति का पात्र बना था। यदि स्किल इंडिया जैसा कोई कार्यक्रम उस समय प्रचलन रहा होता तो गूगों की स्थिति ऐसी दयनीय नहीं होती। वह ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बनकर किसी-न-किसी कार्य में दक्षता प्राप्त कर लेता और स्वावलम्बी जीवन बिता रहा होता। पहले की अपेक्षा आज दिव्यांगों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उनको रोजगार दिलाने में तथा कार्यकुशल बनाने में स्किल इंडिया प्रोग्राम के अतिरिक्त भी अन्य अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। दिव्यांग लोग अनेक महत्वपूर्ण पदों पर सफलता से अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(क) करुणा ने सबको..........जी जान से लड़ रहा हो।
उत्तर :
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण रांगेय राघव की प्रसिद्ध कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है।
प्रसंग - गूंगा के प्रति उत्पन्न करूणा तथा उसकी कर्कश आवाज का वर्णन है।
व्याख्या - गूंगा अपनी बात को कह नहीं सकता इसलिए इशारों से सारी बात कहता है। वह मजबूर था। गूंगे की विवशता को देखकर लोगों में करुणा का भाव जाग्रत हो गया। वे सोचने लगे कि यह किशोर गूंगा बोलने का कितना प्रयास कर रहा है किन्तु वह विवश है। उसके प्रयास का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। वह जैसे-जैसे बोलने का प्रयास करता है उसके मुंह से सार्थक शब्द नहीं निकलते बल्कि केवल कठोर कर्कश काय-काय के शब्द ही बाहर निकलते हैं। उसकी अस्पष्ट ध्वनियाँ मुंह से निकलती है जो समझ में नहीं आती। उसकी इस प्रकार की ध्वनियों को सुनकर ऐसा लगता था मानो वह कोई आदिम मानव है जो भाषा बनाने का भरसक प्रयत्न कर रहा हो और वह सफल नहीं हो पाया हो।
विशेष :
- गूंगे की विवशता और उसके प्रयास का वर्णन किया है।
- गूंगे लोगों की विवशता का मार्मिक वर्णन है।
- भाषा सरल है, भावानुकूल है।
- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।
(ख) वह लौटकर चूल्हे पर..........आदमी गुलाम हो जाता है।
उत्तर :
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण 'अंतरा भाग-1' में संकलित कहानीकार रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से उदधृत है।
प्रसंग - चमेली के पुत्र बसंता ने गूंगे पर चपत जड़ दी। गूंगे ने चमेली से बसंता की शिकायत करने का प्रयास किया, किन्तु चमेली ने पुत्र का पक्ष लेकर उसे मारने के लिए हाथ उठाया, गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली सोचने लगी मेरा बेटा भी ऐसा होता तो इसके आगे वह कुछ नहीं सोच सकी।
व्याख्या - चमेली गूंगे की विवशता के बारे में सोचते-सोचते अपने बेटे के बारे में सोचने लगी, यदि मेरा बेटा भी इस गूंगे की तरह ही गूंगा होता तो वह भी ऐसा ही कष्ट उठाता जैसा यह गूंगा उठा रहा है। इस विचार ने उसे भीतर तक हिला दिया और वह आगे कुछ नहीं सोच सकी। उसका हृदय करुणा से भर गया। एक बार फिर गूंगे की प्रति चमेली के मन में ममता भर गई। वह विचारों में खोई चूल्हे के पास जाकर बैठ गई। उस चूल्हे में आग जल रही थी। चूल्हे के ऊपर वह भोजन बन रहा था जो मानव के पेट की आग को (भूख को) बुझाता है। इस पेट की आग को बुझाने के लिए मनुष्य अपमान सहन करता है, लोगों की गुलामी करता है, अपने स्वाभिमान को खो देता है।
विशेष :
- चमेली ममतामयी है, यह दिखाया गया है।
- भूख किस प्रकार मनुष्य के स्वाभिमान को समाप्त कर देती है, यह दिखाया गया है।
- दिव्यांगों के प्रति सहानुभूति रखने का संदेश निहित है।
- गूंगे के चरित्र की विशेषता-स्वाभिमान का उल्लेख है।
- भाषा सरल एवं शैली भावात्मक है।
(ग) और फिर कौन..........जिंदगी बिताए।
उत्तर :
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग -1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है।
प्रसंग - भाग जाने के बाद घर लौट आए गूंगे पर चमेली बहुत कुपित थी। उसने उसे दंडित करने का निश्चय किया। यही इस अंश में वर्णित है।
व्याख्या - चमेली ने चिमटा हाथ में लेकर कठोरता पूर्वक गूंगे से पूछा कि वह कहाँ चला गया था। गूंगे ने अपराधी की भाँति सिर झुका लिया। यह देख चमेली ने उसकी पीठ पर कसकर चिमटा मार दिया। इतने पर भी गूंगा रोया नहीं क्योंकि वह अपना अपराध जानता था। क्रोध में आकर चमेली ने उसे पीट तो दिया लेकिन भीतर से उसकी घायल ममता आँसू के रूप में टपक पड़ी। यह देखकर गूंगा भी रो उठा।
इस घटना के बाद तो गूंगा जब चाहे जाता और लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी कर भाग जाने की मानो आदत पड़ गई थी। परंतु चमेली के मन में यह प्रश्न उठता था कि क्या पीटे जाने वाले दिन, गँगे ने बासी रोटियों को भीख समझ कर खा लिया था और उसके चिमटे के प्रहार को ममतामयी माँ द्वारा दिया गया दण्ड समझ कर सहन कर लिया था। सच यही था।
विशेष :
- चमेली के संवेदनशील हृदय की आँधी प्रस्तुत हुई है।
- माँ के दुलार के भूखे गूंगे का चरित्र उजागर हुआ है।
- भाषा सरल और शैली भावात्मक है।
(घ) और ये गूंगे..........क्योंकि वे असमर्थ हैं ?
उत्तर :
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है।
प्रसंग - चमेली ने क्रोध में आकर गूंगे को घर से निकाल दिया। घण्टे भर बाद ही वह सड़क के लड़कों से लड़ाई में सिर फुड़वाकर लौट आया। उसका सर फट गया था और वह द्वार पर पड़ा हुआ घायल कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली यह दृश्य देखकर अवाक सी रह गई। उसे गूंगे मौन में असमर्थ लोगों का हाहाकार सुनाई दे रहा था।
व्याख्या - गूंगे की दुर्दशा देखकर चमेली बड़ी मर्माहत हुई। उसका हृदय असमर्थों और दिव्यांगों पर होने वाले अत्याचारों को याद करके बड़ा व्यथित हो गया। वह सोचने लगी कि सारे संसार में इस गूंगे जैसे दलित व उपेक्षित लोग भिन्न-भिन्न रूपों में अन्याय और अत्याचार सहते आ रहे हैं। ये अपनी व्यथा को चाहकर भी नहीं कह पाते हैं। ये वे अभागे लोग हैं जो न्याय और अन्याय को जानकर भी अन्याय का विरोध नहीं कर पाते। ये अत्याचारों को चुनौती देने में असमर्थ हैं। इनके पास अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए वाणी तो है लेकिन उसमें समाज को प्रभावित करने की शक्ति नहीं है। इसी कारण वे वाणी होने पर भी गूंगे हैं क्योंकि वे अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं।
दार्शनिक-सी होकर चमेली सोचने लगती है कि आज के सामाजिक परिवेश में सभी लोग गूगों के ही समान हो गए हैं। ऐसा कौन है जिसके मन में सामाजिक उपेक्षा, राष्ट्रीय कुव्यवस्था, धार्मिक भेदभाव और व्यक्तिगत अन्याय के प्रति द्वेष और घृणा नहीं उत्पन्न होती ? सभी के हृदय प्रतिशोध लेने के लिए छटपटाते हैं। इतने पर भी ऐसे लोग झूठी सुख-सुविधाओं के जाल में नहीं फँसते क्योंकि वे समाज में सच्चा स्नेह भाव और सच्ची समानता देखना चाहते हैं। इसी असमंजस में पड़े-पड़े लोग गूंगे रहकर ही सारा जीवन बिता देते हैं।
विशेष :
- कहानीकार ने समाज के उन लोगों के प्रति सहानुभूति जगाने का प्रयास किया है जो अपनी विवशता या असमर्थता के कारण अन्याय सहते रहते हैं।
- लेखक ने कहानी के 'गूंगे' की भावनाओं के माध्यम से मानव समाज में गूंगे रहकर जी रहे अभागे लोगों की मनोभावनाओं के दर्शन कराए हैं।
- भाषा और शैली भाव व्यंजना के अनुरूप है।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए....
(क) 'कैसी यातना है कि वह अपने हृदय को उगल देना चाहता है, किन्तु उगल नहीं पाता।'
आशय - बचपन में गूंगे का काकल कट गया था इसलिए वह बोलने में असमर्थ था। उसके हृदय में भी हमारी तरह भावनाएँ उठती थीं जिन्हें वह अभिव्यक्त करना चाहता था किन्तु बोलने में असमर्थ होने के कारण वह उन भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने में समर्थ नहीं था। उसकी भावनाएँ उसके हृदय में घुमड़कर रह जाती थीं।
(ख) 'जैसे मन्दिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।'
आशय - चमेली ने क्रोध के आवेश में गूंगे को मक्कार, बदमाश कहा, उसका हाथ पकड़कर घर से निकाल दिया। चमेली के क्रोध से वह विचलित नहीं हुआ। चमेली का क्षोभ और क्रोध उस पर कुछ प्रभाव नहीं दिखा सका। वह पत्थर की मूर्ति की तरह शान्त खड़ा रहा। पत्थर की मूर्ति कुछ उत्तर नहीं देती, इसी प्रकार उसने भी कोई उत्तर नहीं दिया और चमेली की क्रोध भरी वाणी सुनता रहा।