Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना

पाठ-परिचय – यह पाठ कन्याओं की हत्या पर रोक और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने की प्रेरणा हेतु निर्मित है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच भेद-भाव की भावना आज भी समाज में यत्र-तत्र देखी जाती है। जिसे दूर किए जाने की आवश्यकता है। संवादात्मक शैली में इस बात को सरल संस्कृत में प्रस्तुत किया गया है। 

पाठ के अनुसार राकेश अपनी गर्भवती पत्नी माला को गर्भ में पल रहे शिशु का लिंग (पुत्र या पुत्री) पता करने हेतु चिकित्सक के पास भेजता है। रास्ते में राकेश की बहिन शालिनी को जब वास्तविक बात का पता चलता है तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर अपनी भाभी माला को वापस घर ले आती है। घर पर वह अपने भाई राकेश को इस घोर पाप करने की मंशा पर फटकारती है एवं उसे समझाती है। अपनी बहिन की बात सुनकर राकेश को अत्यधिक पश्चात्ताप होता है। वह पुत्र एवं पुत्री को समान भाव से देखने की प्रतिज्ञा करता है। इस प्रकार प्रस्तुत पाठ में नारी के महत्त्व को दर्शाते हुए ‘भ्रूण-हत्या’ करने को महापाप बतलाया गया है। 

नाट्यांशों के कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी-अनुवाद  – 

1.”शालिनी ग्रीष्मावकाशे ……………………………..दृश्यते।” 
शालिनी …………………………….. भोजनमेव करिष्यामि। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – “शालिनी ग्रीष्मावकाश में पिता के घर आती है। सभी प्रसन्न मन से उसका स्वागत करते हैं परन्तु उसकी भाभी उदास जैसी दिखाई देती है।” 
शालिनी – भाभी! चिन्तित जैसी प्रतीत हो रही हो, सब कुशल तो है? 
माला – हाँ शालिनी! मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ, शीतल पेय (ठंडा) अथवा चाय? 
शालिनी – इस समय तो कुछ भी नहीं चाहती हूँ। रात में सभी के साथ भोजन ही करूँगी। 

2. (भोजनकालेऽपि मालायाः …………………………………………….. मुखेन किमपि नोक्तवती) 
राकेश:-भगिनी शालिनी! ………………………………………… यविधेयम् तद् सम्पादय। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – (भोजन के समय भी माला की मनोदशा स्वस्थ (ठीक) प्रतीत नहीं हो रही थी, परन्तु वह मुख से कुछ भी नहीं बोली।) 
राकेश – बहिन शालिनी! भाग्य से तम आई हो। आज मेरे कार्यालय में एक महत्त्वपर्ण गोष्ठी (मीटिंग) अचानक ही निश्चित हो गई है। आज ही चिंकित्सका के साथ मिलने का समय निर्धारित है। तुम माला के साथ चिकित्सिका (महिला डॉक्टर) के पास जाओ, उसके परामर्श (सलाह) के अनुसार जो भी करने योग्य है, उसे पूरा कीजिए। 

3. शालिनी-किमभवत? भातजायायाः ………………….. सर्व ज्ञापयिष्यति। 
(माला शालिनी च चिकित्सकां प्रति गच्छन्त्यौ वार्ता कुरुतः।) 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद : 

शालिनी-क्या हुआ? क्या भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है? मैं तो कल से ही देख रही हूँ कि वह स्वस्थ नहीं है, ऐसा प्रतीत हो रहा था। 
राकेश – चिन्ता का विषय नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब कुछ बतला देगी। (माला और शालिनी महिला चिकित्सक की ओर जाती हुई बातचीत करती हैं।) 

4. शालिनी-किमभवत्? भ्रातृजाये! ……………………………… वातां करिष्ये। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – 

शालिनी-क्या हुआ? भाभी! क्या समस्या है? 
माला-शालिनी! मैं अपनी कोख में तीन महिने का गर्भ धारण किये हुए हूँ। तुम्हारे भाई का आग्रह है कि मैं लिङ्ग-परीक्षण (पुत्र अथवा पुत्री की पहचान) कराऊँ । कोख में यदि कन्या है तो गर्भपात करा दूं। मैं अत्यधिक चिन्तित हूँ, किन्तु तुम्हारा भाई बात ही नहीं सुनता है। 

शालिनी – भाई इस प्रकार से सोच भी कैसे सकता है? शिशु कन्या है तो क्या वह वध के योग्य है? यह कार्य घोर पाप है। तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारे शरीर में स्थित शिशु के वध के लिए सोच रहा है और तुम चुप बैठी हो? इसी समय घर चलो, लिंग-परीक्षण की आवश्यकता नहीं है। भाई जब घर आयेगा तब मैं बात करूँगी। 

5. (संध्याकाले भ्राता आगच्छति। ………………………………………. सर्वेऽपि एकत्रिताः) 
राकेश: – माले! त्वम् चिकित्सकां प्रति गतवती आसी:, किम् अकथयत् सा? 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – [ सायंकाल (शालिनी का) भाई आता है। हाथ-पैर धोकर और वस्त्र बदलकर पूजा-घर में जाकर दीपक प्रज्वलित करता है और देवी (भवानी) की स्तुति भी करता है। उसके बाद चायपान के लिए सभी एकत्रित होते हैं।] 
राकेश-माला! तुम महिला चिकित्सक के पास गई थी, उसने क्या कहा? 

6. (माला मौनमेवाश्रयति ……………………………… दृष्ट्वा उत्तरं ददाति।) 
शालिनी – भ्रातः! त्वम् किम् ……………………….. पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – (माला चुप ही रहती है। तभी खेलती हुई तीन साल की पुत्री अम्बिका पिता की गोदी में बैठ जाती है और उससे चाकलेट माँगती है। राकेश अम्बिका को स्नेह (लाड़-प्यार) करता है तथा चाकलेट देकर उसको। गोदी से उतारता है। फिर से वह माला की ओर प्रश्न-वाचक दृष्टि डालता है। शालिनी यह सब देखकर उत्तर देती है।) 

शालिंनी – हे भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसकी कोख में पुत्र है अथवा पुत्री है? किसलिए? छह माह के बाद सब स्पष्ट हो जायेगा, समय से पूर्व किसलिए यह प्रयास है? 
राकेश – बहिन, तुम तो जानती ही हो कि हमारे घर में अम्बिका पुत्री के रूप में है ही। इस समय एक पुत्र की | आवश्यकता है तब………..।

7. शालिनी-तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति ………………………………………तव शिक्षा 
वृथा ………………………….। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद :  
शालिनी-तब कोख में यदि पुत्री है तो क्या (उसे) मार देना चाहिए? (तीव्र स्वर से) तुम हत्या का पाप करने के लिए तत्पर हो। 

राकेश – नहीं, हत्या तो नहीं……….! 
शालिनी – तब यह घृणा योग्य कार्य क्या है? क्या तुम सब तरह से भूल गये हो कि हमारे पिताजी ने कभी भी पुत्र और पुत्री के रूप में भेदभाव नहीं किया? वे हमेशा ही मनुस्मृति की इस पंक्ति को उदाहरण के रूप में देते थे “पुत्र पिता की आत्मा स्वरूप होता है और पुत्री पुत्र के समान होती है।” तुम भी सुबह-सायं देवी की स्तुति करते हो। किसलिए संसार को उत्पन्न करने वाली शक्ति का तिरस्कार (अपमान) कर रहे हो? तुम्हारे मन में इतनी घृणित वृत्ति (निन्दनीय व्यवहार) आ गई है, यह सोचकर ही मैं कुण्ठित (दुःखी) हूँ। तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ………………।

8. राकेश: – भगिनि! विरम विरम …………………. अहम् कथं विस्मृतवान् 
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ………………………………………. सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥”
अथवा 
“पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सन्मार्गः प्रदर्शितः भगिनि। कनिष्ठाऽपि त्वम् मम गुरुरसि। 
श्लोकस्य अन्वयः – यत्र नार्यः पूज्यन्ते तु तत्र देवताः रमन्ते। यत्र एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति)। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद : 
राकेश-बहिन! रुको, रुको (चुप रहो)। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ और लज्जित हूँ। अब से कभी भी यह निन्दित कार्य स्वप्न में भी नहीं सोचूंगा। जिस प्रकार से अम्बिका मेरे हृदय के सम्पूर्ण स्नेह की अधिकारिणी है, उसी प्रकार आने वाला शिशु भी स्नेह का अधिकारी होगा चाहे पुत्र होवे अथवा पुत्री। मैं अपने निन्दनीय विचार के प्रति पश्चाताप युक्त हूँ, मैं कैसे भूल गया – 
“जहाँ स्त्रियों का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ ये (स्त्रियाँ) सम्मानित नहीं होती हैं वहाँ सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं।” 
अथवा “पिता से दस गुना माता (गौरव में) बढ़कर है।” बहिन तुमने श्रेष्ठ मार्ग दिखला दिया है। छोटी होने पर भी तुम गुरु (बड़ी) हो। 

9. शालिनी-अलम पश्चात्तापेन …………………… यथार्थरूपं करिष्यामः 
या गार्गी श्रुतचिन्तने ………………………… सर्वैः सदोत्साह्यताम्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

हिन्दी अनुवाद – 
शालिनी-पश्चात्ताप मत करो। तुम्हारे मन का अन्धकार दूर हो गया, यह प्रसन्नता का विषय है। हे भाभी! आओ। सभी चिन्ता को छोड़ो और आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई ! तुम भी प्रतिज्ञा करो कन्या की रक्षा करने में, उसको पढ़ाने में दत्तचित्त रहोगे। “पुत्री की रक्षा करो, पुत्री को पढ़ाओ” यह सरकार की घोषणा तभी सार्थक होगी जब हम सब मिलकर इस चिन्तन को यथार्थ रूप से करेंगे तत्त्वों (ज्ञान) के चिन्तन-मनन में जो गार्गी है, राजनीति में और पराक्रम में जो द्रौपदी है, शत्रुओं को पराजित करने में जो लक्ष्मी है, आकाश के विज्ञानरूपी प्राङ्गण में जो कल्पना चावला है, खेलजगत् में अपना पराक्रम दिखाने में जो साइना नेहवाल (बैडमिन्टन खिलाड़ी) के नाम से सुप्रसिद्ध है। वही यह स्त्री सभी दिशाओं में बल से युक्त (सबला) है। सभी लोगों के द्वारा हमेशा उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। 

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