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Chapter 6 सदाचारः

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में मनुष्य के लिए अत्यन्त उपयोगी श्रेष्ठ आचरण का ज्ञान दिया गया है। पाठ में सदाचार से सम्बन्धित कुल छः श्लोक दिये गये हैं, जिनमें आलस्य न करने, कल का कार्य आज ही करने, सत्य एवं |प्रिय बोलने, व्यवहार करने में उदारता आदि गुणों का, माता-पिता की सेवा करने तथा मित्र के साथ कलह (झगड़ा) नहीं करने का वर्णन हुआ है। इन श्लोकों को कण्ठस्थ करके जीवन में इनके उपदेशों का पालन करना चाहिए।

पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ – 

1. आलस्यं हि मनुष्याणां ………………………………………….. कृत्वा य नावसादात।।
अन्वयः – हि आलस्यं मनुष्याणां शरीरस्थ: महान् रिपुः (अस्ति)। उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति, यं कृत्वा (मनुष्यः) न अवसीदति।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में आलस्य को त्यागकर परिश्रम करने की प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है अर्थात् आलस्य से मनुष्य का पतन हो जाती है। परिश्रम ही मनुष्य का परम मित्र है, क्योंकि परिश्रम करने वाला मनुष्य कभी दुःखी नहीं होता है। अतः हमें आलस्य का त्याग करके सदैव परिश्रम करना चाहिए।

2. श्वः कार्यमद्य कर्वीत ………………………………… कृतमस्य न वा कृतम्।। 

अन्वयः – श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत, अपराहिकं (कार्यम्) पूर्वाह्ने कुर्वीत, कृतम् न वा कृतम्, अस्य मृत्युः नहि प्रतीक्षते।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सदाचार सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण उपदेश देते हुए कहा गया है कि मृत्यु कभी भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करती है, वह कभी भी आ सकती है, अत: जो कार्य कल अथवा बाद में करना है उसे अभी कर लेना चाहिए। मनुष्य को निरन्तर कार्यरत रहना चाहिए।

3. सत्यं ब्रूयात् ………………………………………..एष धर्मः सनातनः।। 

अन्वयः – सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, अप्रियं सत्यं न ब्रूयात्, न च अनृतं प्रियं ब्रूयात्। एषः सनातनः धर्मः (अस्ति)।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत-श्लोक में प्राचीन काल से चले आ रहे हमारे सनातन धर्म का निर्देश करते हुए सत्प्रेरणा दी |गई है कि सदैव सत्य एवं प्रिय बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य अथवा असत्य प्रिय बात नहीं बोलनी चाहिए। क्योंकि इससे मनुष्य का अहित ही होता है।

4. सर्वदा व्यवहारे स्यात् …………………………………………….. कौटिल्यं च कदाचन।। 

अन्वयः – व्यवहारे सर्वदा औदार्य तथा सत्यता, ऋजुता मदता च अपि स्यात् । कौटिल्यं कदाचन न (स्यात्)।

हिन्दी भावार्थ – मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए, इस.सदाचार का सदुपदेश देते हुए प्रस्तुत श्लोक में कहा गया है कि हमारे व्यवहार में सदैव उदारता, सत्यता, सरलता तथा कोमलता होनी चाहिए किन्तु कुटिलता नहीं होनी चाहिए। कुटिल व्यवहार वाला समाज में निन्दनीय एवं दुर्जन होता है।

5. श्रेष्ठं जनं गळं चापि ……………………………………….. सेवेत सततं सदा।। 

अन्वयः – श्रेष्ठं जनम्, गुरुम्, मातरम् तथा च पितरम् अपि मनसा वाचा कर्मणा च सततं सदा सेवेत।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में बड़ों की सेवा करने की सत्प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि हमें श्रेष्ठ व्यक्ति, गुरुजन, माता तथा पिता की मन, वचन एवं कर्म से निरन्तर श्रद्धापूर्वक सेवा करनी चाहिए।

6. मित्रेण कलहं कृत्वा …………………………………………………. तदेव परिवर्जयेत्।। 

अन्वयः – मित्रेण कलहं कृत्वा जनः कदापि सुखी न (भवति), इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत्।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में मित्र के प्रति सदाचरण के महत्त्व को दर्शाते हुए प्रेरणा दी गई है कि मित्र के साथ कलह करके मनुष्य कभी भी सुखी नहीं होता है, अतः मित्र के साथ प्रयत्नपूर्वक कलह नहीं करके प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

  • रिपुः = शत्रु। 
  • उद्यमः = परिश्रम। 
  • शरीरस्थः = शरीर में स्थित। 
  • अवसीदति = दुःखी होता है। 
  • श्वः = आने वाला कल। 
  • कुर्वीत = करना चाहिए। 
  • पूर्वाह्वे = दोपहर से पहले। 
  • आपराह्निकम् = दोपहर के बाद करने योग्य कार्य। 
  • अनृतम् = झूठ। 
  • सनातनः = सदा से चला आ रहा हो।
  • स्यात् = हो। 
  • औदार्यम् = उदारता। 
  • ऋजुता = सरलता। 
  • मृदुता = कोमलता। 
  • कौटिल्यम् = कुटिलता, टेढ़ापन। 
  • सेवेत = सेवा करनी चाहिए। 
  • परिवर्जयेत् = बचना चाहिए। 
  • वाचा = वाणी से। 
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