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Chapter 8 नियन्त्रण

RBSE Class 12 Business Studies नियन्त्रण Textbook Questions and Answers

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
नियंत्रण का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण से तात्पर्य संगठन में नियोजन के अनुसार क्रियाओं के निष्पादन से है। यह इस बात का भी आश्वासन है कि संगठन के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी तथा दक्षतापूर्ण ढंग से हो रहा है। अतः नियंत्रण एक उद्देश्यमूलक कार्य है।

प्रश्न 2. 
उस सिद्धांत का नाम बताएँ जिस पर एक प्रबंधक को विचलन से प्रभावी ढंग से निपटने के दौरान विचार करना चाहिए। कोई एक स्थिति बताएँ जिसमें एक संगठन की नियंत्रण प्रणाली अपनी प्रभावशीलता खो देती है।
उत्तर:
प्रबंधन का सिद्धांत जिसे एक प्रबंधक को विचलन से प्रभावी ढंग से निपटने के दौरान विचार करना चाहिए अपवाद द्वारा प्रबंधन है। एक संगठन की नियंत्रण प्रणाली अपनी प्रभावशीलता खो देती है जब मानकों को परिमाणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 3. 
कोई दो मानक बताएँ जो किसी कंपनी द्वारा वित्त और लेखा विभाग के प्रबंधन का मूल्यांकन करने के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।
उत्तर:
किसी कंपनी द्वारा वित्त और लेखा विभाग के प्रबंधन का मूल्यांकन करने के लिए मानकों का उपयोग किया जा सकता है-

  • पूँजी का प्रवाह 
  • पूँजीगत व्यय।

प्रश्न 4. 
मानक प्रदर्शन और वास्तविक प्रदर्शन के बीच अंतर को इंगित करने के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
मानक प्रदर्शन और वास्तविक प्रदर्शन के बीच अंतर को इंगित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द ‘विचलन’ है। मानक प्रदर्शन के साथ वास्तविक प्रदर्शन की तुलना करने पर, ‘विचलन’ का पता चलता है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
“नियोजन आगे की ओर और नियंत्रण पीछे की ओर देखना है।” टिप्पणी करें।
उत्तर:
नियोजन एवं नियन्त्रण प्रबन्ध के अलग नहीं होने वाले कार्य हैं। नियन्त्रण प्रणाली में मानकों को पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है। निष्पादन के ये मानक ही नियन्त्रण के लिए आधार प्रदान करते हैं। ये नियोजन द्वारा ही सुलभ कराये जाते हैं। यदि एक बार नियोजन का कार्य प्रारम्भ हो जाता है तो नियन्त्रण के लिए यह आवश्यक होता है कि वह प्रगति की मॉनीटरिंग करे तथा विचलनों को खोजे तथा इस बात का निश्चय करे कि जो भी कार्यवाही हुई है वह नियोजन के अनुरूप ही है। यदि विचलन है तो उनकी सुधारात्मक कार्यवाही करे। इस प्रकार नियन्त्रण बिना नियोजन के अर्थहीन है और इसी तरह नियन्त्रण बिना नियोजन दृष्टिहीन है। यदि मानकों का पहले से निर्धारण नहीं कर लिया जाये तो प्रबन्धक को नियन्त्रण क्रिया में करने के लिए कुछ भी नहीं है। 

नियोजन ही नियन्त्रण को आधार प्रदान करता है। नियोजन भविष्य के लिए किया जाता है जिसका आधार भविष्य की दशाओं के विषय में भविष्यवाणी करना होता है। अत: नियोजन में आगे (भविष्य) देखना सम्मिलित है। इसके विपरीत नियन्त्रण भूतपूर्व क्रियाओं का पोस्टमार्टम करना है जो इस बात का पता लगाता है कि मानकों में कहाँ-कहाँ विचलन है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियोजन का कार्य आगे की ओर देखना है जबकि नियन्त्रण का कार्य पीछे की ओर देखना है।

प्रश्न 2. 
“सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास कुछ भी नियंत्रित न कर पाने में समाप्त हो सकता है।” चर्चा करें।
उत्तर:
यह प्रबन्ध का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि यदि आप सभी चीजों को नियन्त्रित करने का प्रयास करते हैं तो किसी भी चीज का नियन्त्रण नहीं कर पाते। अतः केवल वही महत्त्वपूर्ण विचलन प्रबन्ध को सूचित किये जाने चाहिए जो अनुमति देने की सीमा से बाहर के हैं। उदाहरण के लिए यदि एक निर्माणीय संगठन में श्रमलागत में 2 प्रतिशत वृद्धि करने की योजना तैयार की जाती है तो श्रम लागत में 2 प्रतिशत से और अधिक वृद्धि होने पर ही प्रबन्ध को सूचित किया जाना चाहिए।

इस प्रकार ऐसे विचलनों की जिन पर प्रबन्ध को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, की पहचान कर लेने के उपरान्त उनके कारणों का विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है। विचलनों के होने के बहुत कारण हो सकते हैं जैसे अवास्तविक मानक, त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया, अनुपयुक्त संसाधन, ढाँचागत कमियाँ, संगठनात्मक प्रबन्ध तथा ऐसे वातावरणीय तत्व जो संगठन के नियन्त्रण के बाहर होते हैं आदि हो सकते हैं। अतः यह अति आवश्यक होता है कि कारणों का सही-सही पता लगाया जाये। यदि इस कार्य में ढिलाई होती है तो उपयुक्त सुधारात्मक कार्यवाही कठिन ही होगी।

प्रश्न 3. 
प्रबन्धकीय नियन्त्रण की तकनीक के रूप में बजटीय नियन्त्रण पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
बजटीय नियन्त्रण-बजटीय नियन्त्रण प्रबन्धकीय नियन्त्रण की वह तकनीक है जिसके अन्तर्गत सभी कार्यों का नियोजन पहले से ही बजट के रूप में किया जाता है तथा वास्तविक परिणामों की तुलना बजटीय मानकों से की जाती है। यह तुलनात्मक अध्ययन ही इस ओर अग्रसर करता है कि संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक कार्यवाही की जाये।

इस प्रकार बजट एक परिमाणात्मक विवरण है जिसका निर्माण भविष्य के लिए तैयार की गई नीतियों का उस समय में अनुगमन करने के लिए किया जाता है और उस बजट का उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है। बजटीय नियन्त्रण का महत्त्व इस रूप में है कि यह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है। यह कर्मचारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। बजट विभिन्न विभागों को उनकी आवश्यकतानुसार संसाधनों का आवंटन करके उनके अधिकतम उपयोग में सहायता करता है। बजटीय नियन्त्रण एक संगठन के विभिन्न विभागों में सामंजस्य बनाये रखने तथा उनके अपने अस्तित्व को पृथक् बनाये रखने में भी सहायता करता है।

प्रश्न 4. 
बताएँ कि प्रबंधन लेखा परीक्षा कैसे नियंत्रित करने की प्रभावी तकनीक के रूप में कार्य करती है।
उत्तर:
प्रबन्ध अंकेक्षण से तात्पर्य एक संगठन के सम्पूर्ण निष्पादन की विधिवत् समीक्षा से है। इसका उद्देश्य प्रबन्ध की दक्षता तथा प्रभाविता का पुनरावलोकन करना है तथा भविष्य में इसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाना है। प्रबन्ध कार्यों के निष्पादन में होने वाली कमियों को उजागर करने में सहायता करता है। वस्तुतः प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्धकीय कार्यों के निष्पादन प्रबन्ध को लगातार अनुश्रवण कर (मॉनीटरिंग) उसकी नियन्त्रण प्रणाली को उन्नतिशील बनाने में सहायक होता है। यह प्रबन्धकीय कार्यों के निष्पादन में वर्तमान एवं सम्भावित कमियों को बतलाने में सहायक होता है। विभिन्न कार्यशील विभागों में समन्वय को उन्नतिशील बनाता है। जिससे वे उपक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रभावपूर्ण विधि के साथ-साथ कार्य करते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षण वातावरणीय परिवर्तनों के साथ-साथ वर्तमान प्रबन्धकीय नीतियों तथा मुक्तियों को आधुनिक बनाने का आश्वासन देता है।

प्रश्न 5. 
श्री अर्फाज स्टेशनरी उत्पाद बनाने वाली कंपनी राइटवेल प्रोडक्ट्स लिमिटेड के उत्पादन विभाग का कार्यभार देख रहे थे। फर्म को एक निर्यात आदेश मिला जिसे प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना था और उत्पादन लक्ष्यों को सभी कर्मचारियों के लिए परिभाषित किया गया। श्रमिकों में से एक, भानू प्रसाद, लगातार दो दिन तक अपने दैनिक उत्पादन लक्ष्य से 10 इकाइयाँ कम रहा। श्री अर्फाज ने भान प्रसाद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के लिए कंपनी की सी.ई.ओ. वसुंधरा से संपर्क किया और उनसे उसकी सेवाओं को समाप्त करने का अनुरोध किया। उस प्रबंधन नियंत्रण के सिद्धांत की व्याख्या करें जिस पर वसुंधरा को अपना निर्णय लेने के दौरान विचार करना चाहिए।
उत्तर:
प्रबंधन नियंत्रण का सिद्धान्त जिसे सुश्री वसुंधरा को अपना निर्णय लेते समय विचार करना चाहिए प्रबंधन द्वारा अपवाद है। इस तकनीक के अनुसार सब कुछ नियंत्रित करने का प्रयास कुछ भी नियंत्रित करने में समाप्त हो सकता है। इस प्रकार, केवल महत्त्वपूर्ण विचलन जो अनुमेय सीमा से परे हैं उन्हें स्वीकार किया जाना चाहिए। इस मामले में श्री भानू केवल 10 इकाइयों से कम हो गए थे, उन्हें इतने कम विचलन के लिए समाप्त नहीं किया जाना चाहिए। 

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
नियन्त्रण की प्रक्रिया में शामिल विभिन्न चरणों की व्याख्या करें। 
उत्तर:
नियन्त्रण प्रक्रिया में शामिल विभिन्न चरण 
नियन्त्रण की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम उठाये जाते हैं-
1. निष्पादन मानकों का निर्धारण करनानियन्त्रण प्रक्रिया में सबसे पहले कार्य-निष्पादन मानकों का निर्धारण करना होता है। मानक एक मानदण्ड है जिसके तहत वास्तविक निष्पादन की माप की जाती है। मानकों का निर्धारण परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों रूप में हो सकता है। मानकों का निर्धारण करते समय प्रबन्धक को चाहिए कि वह मानकों को संक्षिप्त परिमाणात्मक शब्दों में निर्धारित करे ताकि उनकी तुलना वास्तविक निष्पादन से आसानी से हो सके। जब गुणात्मक मानकों का निर्धारण किया जाता है तो उनकी व्याख्या इस प्रकार की जाए जिससे उनकी गणना आसानी से की जा सके। यह ध्यान देने योग्य बात है कि मानक जो निर्धारित किये जाते हैं वे इतने लचीले होने चाहिए कि उनमें आवश्यकतानुसार सुधार किया जा सके।

2. वास्तविक निष्पादन का मापन करनानियन्त्रण प्रक्रिया के इस चरण में निष्पादन मानकों का निर्धारण कर लेने के पश्चात् वास्तविक निष्पादन का मापन होता है। निष्पादन की यह माप उद्देश्यपूर्ण तथा विश्वसनीय विधि से होनी चाहिए। निष्पादन की माप व्यक्तिगत देख-रेख, नमूना जाँच, निष्पादन रिपोर्ट आदि की सहायता से की जा सकती है। जहाँ तक सम्भव हो निष्पादन की माप उसी इकाई में हो जिसमें मानकों का निर्धारण हुआ है। निष्पादन का माप कार्य चलते रहने की स्थिति में तथा कार्य पूरा हो जाने पर किया जाना चाहिए। 

3. वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलनानियन्त्रण प्रक्रिया के इस चरण में वास्तविक निष्पादन की तुलना निर्धारित मानकों से की जाती है। ऐसी तुलना में इच्छित तथा वास्तविक परिणामों में अन्तर हो सकता है। मानकों का निर्धारण यदि परिमाणात्मक शब्दों में किया जाता है तो तुलना करना आसान होता है। उदाहरणार्थ, एक श्रमिक की एक सप्ताह में उत्पादित इकाइयों की माप आसानी से की जा सकेगी यदि साप्ताहिक उत्पादन मानक तैयार किये हुए होंगे।

4. विचलन विश्लेषण-वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना किये जाने पर कुछ विचलनों का पाया जाना स्वाभाविक है। अत: यह आवश्यक है कि यह निश्चित किया जाये कि विचलनों का क्षेत्र अनुमानत: क्या होगा? इसके साथ ही यह भी ध्यानपूर्वक देखा जाये कि विचलन के मुख्य क्षेत्र क्या हैं जिन पर कार्यवाही तुरन्त ही की जाती है अपेक्षाकृत उन क्षेत्रों के जो अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। इसके लिए यह उचित होगा कि विचलनों के लिए अधिकतम व न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण किया जाये। इस सन्दर्भ में एक प्रबन्धक को जटिल बिन्दुओं का नियन्त्रण अपवाद द्वारा प्रबन्ध को उपयोग में लाना चाहिए।

ऐसे विचलनों की जिन पर प्रबन्ध को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि पहचान कर लेने के उपरान्त उनके कारणों का विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है। विचलनों के होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे अवास्तविक मानक, त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया, अनुपयुक्त संसाधन, ढाँचागत कमियाँ, संगठनात्मक प्रतिबन्ध तथा ऐसे वातावरणीय तत्त्व जो संगठन के नियन्त्रण के बाहर होते हैं। अतः यह जरूरी होता है कि कारणों का सहीसही पता लगाया जाये। इसके अभाव में सुधारात्मक कार्यवाही करने में कठिनाई आयेगी। विचलनों तथा उनके कारणों को उसके उपरान्त उचित कार्यवाही हेतु उपयुक्त स्तर पर प्रस्तुत किया जाता है।

5. सुधारात्मक कार्यवाही करना-नियन्त्रण प्रक्रिया के इस अन्तिम चरण में सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। यदि विचलन निर्धारित सीमा से अधिक होता है तो प्रबन्धकीय कार्यवाही की तुरन्त आवश्यकता होती है ताकि विचलनों को समाप्त किया जा सके तथा ङ्के मानकों को प्राप्त किया जा सके । सधारात्मक कार्यवाही में कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी हो सकता है। उस अवस्था में जबकि उत्पाद का लक्ष्य नहीं प्राप्त हो पाता हो। इसी प्रकार यदि कोई उपक्रम अपने निर्धारित कार्यक्रम से पीछे चल रहा हो तो समाधान सम्बन्धी उपायों में अतिरिक्त कर्मचारियों की भर्ती की जा सकती है तथा अतिरिक्त संयन्त्रों की व्यवस्था भी की जा सकती है तथा कर्मचारियों को अतिरिक्त समय काम करने की इजाजत भी दी जा सकती है। यदि प्रबन्धकों के प्रयासों से विचलनों को ठीक रास्ते पर चलाया जा सकता हो तो मानकों का पुनः निरीक्षण करना चाहिए।

प्रश्न 2. 
प्रबन्धकीय नियन्त्रण की तकनीक की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रबन्धकीय नियन्त्रण तकनीक
प्रबन्धकीय नियन्त्रण की विभिन्न तकनीकों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत करके समझाया जा सकता है-
I. पारम्परिक तकनीकें-पारम्परिक तकनीकों से तात्पर्य उन तकनीकों से है जिनका उपयोग कम्पनियाँ लम्बे समय से करती चली आ रही हैं। फिर भी ये तकनीकें आज भी अप्रचलित नहीं हुई हैं तथा अभी भी कम्पनियाँ इनका उपयोग कर रही हैं। ये तकनीकें निम्नलिखित हैं-

1. व्यक्तिगत अवलोकन नियन्त्रण की इस पारम्परिक विधि में प्रबन्धक व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण करता है तथा सूचनाएँ प्राप्त करता है। यह तकनीक कर्मचारियों पर इस बात का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाती है कि ये अपना कार्य अच्छी से अच्छी विधि से करें। क्योंकि कार्य करते समय उन्हें इस बात का पता रहता है कि वे अपने उच्चाधिकारियों की व्यक्तिगत निगरानी में हैं। यह अधिक समय लेने वाली तकनीक है। यह सभी प्रकार के उपक्रमों में प्रभावपूर्ण ढंग से उपयोग में नहीं लायी जा सकती है। 

2. सांख्यिकीय प्रतिवेदन-सांख्यिकीय विश्लेषण, औसत, प्रतिशत, अनुपात, परस्पर सम्बन्ध आदि के रूप में प्रबन्धकों को विभिन्न क्षेत्रों के निष्पादन की उपयोगी सूचनाएँ प्रस्तुत करता है। जब इन सूचनाओं को चार्ट, ग्राफ या सारणी आदि के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो प्रबन्धकों को विगत वर्षों के निष्पादन का तुलनात्मक अध्ययन करने में आसानी रहती है तथा वे इन्हें कम-सेकम समय में तथा आसानी से विश्वास के साथ अपना लेते हैं।

3. बिना लाभ-हानि व्यापार विश्लेषणप्रबन्धकीय नियन्त्रण की इस · तकनीक का उपयोग प्रबन्धकों द्वारा लागत, आकार तथा लाभों में सम्बन्ध का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। इससे विभिन्न क्रियाओं के विभिन्न स्तरों पर होने वाले सम्भावित लाभ या हानि का निर्धारण किया जाता है। यह तकनीक क्रियाओं के विभिन्न स्तरों पर लाभों का अनुमान लगाने में सहायता प्रदान करती है। बिना लाभ-हानि व्यापार विश्लेषण से एक फर्म को परिवर्तनीय लागत पर कड़ा नियन्त्रण रखने में सहायता मिलती है तथा क्रिया के उस स्तर को निर्धारित करती है जहाँ से फर्म लाभ के लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है।

4. बजटीय नियन्त्रण-यह प्रबन्धकीय नियन्त्रण की वह तकनीक है जिसके अन्तर्गत सभी कार्यों का नियोजन पहले से ही बजट के रूप में किया जाता है तथा वास्तविक परिणामों की तुलना बजटीय मानकों से की जाती है। यह तुलनात्मक अध्ययन ही इस ओर अग्रसर करता है कि संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक कार्यवाही की जाये।

II. आधुनिक तकनीकें-प्रबन्धकीय नियन्त्रण की आधुनिक तकनीकों से आशय उन तकनीकों से है जिनका अभ्युदय अभी-अभी हुआ है तथा जो प्रबन्ध के क्षेत्र में भी नई हैं। इन तकनीकों से उन नई विचारधाराओं को जन्म मिलता है जिनके माध्यम से संगठन के विभिन्न क्षेत्रों में उचित नियन्त्रण किया जा सकता है। ये निम्नलिखित हैं- 

1. निवेश पर प्रत्याय-नियन्त्रण की इस आधुनिक तकनीक में हमें वे आधारभूत मानदण्ड मिलते हैं जो विनियोजित पूँजी के प्रभावपूर्ण ढंग से विनियोजन को मापने में सहायक होते हैं तथा इस बात का बोध कराते हैं कि पूँजी पर सन्तुलित लाभ उपार्जित हो रहे हैं या नहीं। निवेश पर प्रत्याय का उपयोग संगठन की सम्पूर्ण निष्पादन की माप करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। विभिन्न विभागों तथा खण्डों की व्यक्तिगत रूप में प्रगति मापन का भी यह एक उपयोगी साधन है।

2. अनुपात विश्लेषण-अनुपात विश्लेषण से तात्पर्य वित्तीय विवरणों का विभिन्न अनुपातों की गणना करके विश्लेषण से है। विभिन्न संगठनों द्वारा अधिकतर उपयोग में आने वाले विभिन्न अनुपात इस प्रकार हैंतरलता अनुपात, शोधन क्षमता अनुपात, लाभदायकता अनुपात, आवर्त अनुपात।

3. उत्तरदायित्व लेखाकरण-यह लेखांकन की एक ऐसी विधि है जिसके अन्तर्गत एक संगठन के विभिन्न विभागों, खण्डों तथा वर्गों को उत्तरदायित्व केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। केन्द्र का प्रधान, अपने केन्द्र के लिए निर्धारित किये गये लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी होता है। उत्तरदायित्व केन्द्र लागत केन्द्र, आगम केन्द्र, लाभ केन्द्र तथा विनियोग केन्द्र के रूप में हो सकते हैं।

4. प्रबन्ध अंकेक्षण-प्रबन्ध अंकेक्षण से तात्पर्य एक संगठन के सम्पूर्ण निष्पादन की विधिवत् समीक्षा से है। इसका उद्देश्य प्रबन्ध की दक्षता तथा प्रभाविता का पुनरावलोकन करना है तथा भविष्य में इसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाना है। प्रबन्ध कार्यों के निष्पादन में होने वाली कमियों को उजागर करने में सहायता करता है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण एक संगठन की कार्यप्रणाली, निष्पादन तथा प्रभाविता का मूल्यांकन करता है।

5. पुनरावलोकन तकनीक (पी.ई.आर.टी.) एवं आलोचनात्मक उपाय प्रणाली (सी.पी.एम.)-ये नियोजन तथा नियन्त्रण में अत्यन्त उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण नेटवर्क तकनीकें हैं। विशेषकर ये तकनीकें नियोजन, सूचीयन तथा विभिन्न प्रकार की समयबद्ध परियोजनाओं को लागू करने जिनमें विभिन्न जटिल समस्याओं का निष्पादन निहित है, विशेष तौर से उपयोगी हैं। ये तकनीकें समय-सारणी तथा संसाधनों के नियतन में व्यवहार में लायी जाती हैं तथा इनका लक्ष्य परियोजनाओं के दिये हुए समय के अन्तर्गत तथा लागत ढाँचे के अनुरूप प्रभावी कार्यान्वयन ही होता है।

6. प्रबन्ध सूचना पद्धति-यह कम्प्यूटर पर आधारित सूचना पद्धति है जो सूचना सुलभ कराती है तथा प्रभावी प्रबन्धकीय निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है। प्रबन्ध सूचना पद्धति प्रबन्धक को क्रमबद्ध रूप से तैयार की गई एक संगठन को अत्यधिक मात्रा में तैयार की गई सामग्री सुलभ कराती है। इस प्रकार यह तकनीक प्रबन्धकों के लिए एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संसूचन उपकरण है।

प्रश्न 3. 
किसी संगठन में नियंत्रण के महत्त्व की व्याख्या करें। एक प्रभावी प्रणाली को लागू करने में संगठन द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएँ क्या हैं ?
उत्तर:
एक संगठन में नियन्त्रण का महत्त्व
एक संगठन में नियन्त्रण के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से समझा सकते हैं-
1. संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति-नियन्त्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाता है। यदि कोई विचलन ज्ञात होता है तो उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त करता है। इस प्रकार नियन्त्रण संस्थान का मार्गदर्शन करता है तथा सही रास्ते पर चलाकर संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।

2. मानकों की वास्तविकता को आँकना-एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली द्वारा प्रबन्ध निर्धारित मानकों को यथार्थता तथा उद्देश्य पूर्णता को सत्यापित करना है। एक प्रभावी नियन्त्रण पद्धति से वातावरण एवं संगठन में होने वाले परिवर्तनों की सावधानी से जाँच-पड़ताल की जाती है तथा इन्हीं परिवर्तनों के सन्दर्भ में उनके पुनरावलोकन तथा संशोधन में सहायता करता है।

3. संसाधनों का अधिकतम उपयोग-नियन्त्रण की सहायता से प्रबन्धक अपव्यय तथा बर्बादी को कम कर सकता है। प्रत्येक क्रिया का निष्पादन पूर्व निर्धारित मानकों के अनुरूप होता है। इस प्रकार सभी संसाधनों का उपयोग प्रभावी एवं दक्षतापूर्ण ढंग से किया जा सकता है। 

4. आदेश एवं अनुशासन की सुनिश्चिततानियन्त्रण से संगठन का वातावरण ऐसा हो जाता है कि प्रत्येक कर्मचारी आदेश का पालन करता है तथा अनुशासन में रहता है। इससे कामचोर कर्मचारियों की क्रियाओं का नजदीक से निरीक्षण करके उनके असहयोगी व्यवहार को कम करने में सहायता मिलती है।

5. कार्य में समन्वय की सुविधा-निर्देशन उन सभी क्रियाओं तथा प्रयासों को निर्देशन देता है जो संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तत्पर होते हैं। प्रत्येक विभाग तथा कर्मचारी पूर्व निर्धारित मानकों से परिचित होते हैं और वे आपस में सुव्यवस्थित ढंग से एक-दूसरे से भली-भाँति समन्वित होते हैं।

6. कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में सुधार-एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली में कर्मचारियों को पहले से ही यह ज्ञात होता है कि उन्हें क्या कार्य करना है अथवा उनसे किस कार्य को करने की आशा की जाती है तथा उन्हें इस बात का भी ज्ञान होता है कि उनके कार्य निष्पादन के क्या मानक हैं जिनके आधार पर उनकी समीक्षा होगी। 

एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली को लाग करने में संगठन के सामने आने वाली कठिनाइयाँ
एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली को लागू करने में संगठन के सामने आने वाली प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-
1. परिमाणात्मक मानकों के निर्धारण में कठिनाई-जब मानकों को परिमाणात्मक शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है तो नियन्त्रण प्रणाली का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। इसलिए निष्पादन का आकलन तथा मानकों से उनकी तुलना करना कठिन कार्य होता है। कर्मचारियों का मनोबल, कार्य सन्तुष्टि तथा मानवीय व्यवहार कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ यह समस्या सामने आ सकती है।

2. बाह्य घटकों पर नियन्त्रण-सामान्य तौर पर एक उपक्रम अपने बाहरी घटकों जैसे सरकारी नीतियाँ, तकनीकी परिवर्तनों, प्रतियोगिताओं आदि पर नियन्त्रण नहीं कर पाता है।

3. कर्मचारियों से प्रतिरोध-अधिकतर कर्मचारी नियन्त्रण प्रणाली का विरोध ही करते हैं। उनके मतानुसार नियन्त्रण उनकी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध है। उदाहरण के लिए, यदि कर्मचारियों की गतिविधियों पर क्लोज सर्किट टेलीविजन द्वारा निगाह रखी जाती है तो वे इसका विरोध करते हैं। .

4. महँगा सौदा-नियन्त्रण में खर्चा, समय तथा प्रयासों की मात्रा अधिक होने के कारण यह अत्यन्त खर्चीला है। एक छोटा उद्यमी महँगी नियन्त्रण प्रणाली की पहचान नहीं कर सकता है। अतः यह एक छोटे उपक्रम के लिए न्यायसंगत नहीं माने जाते हैं। बड़े संगठनों में भी नियन्त्रण प्रणाली के अच्छे ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त खर्चा करना ही पड़ता है।

प्रश्न 4. 
योजना और नियंत्रण के बीच संबंधों पर चर्चा करें।
उत्तर:
नियोजन तथा नियन्त्रण में सम्बन्ध 
नियोजन तथा नियन्त्रण प्रबन्ध के एक-दूसरे से अलग किये जाने वाले कार्य नहीं हैं। ये एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। नियन्त्रण प्रणाली में कुछ मानकों को पहले से ही स्वीकार कर लिया जाता है। ये मानक नियन्त्रण के लिए आधार प्रदान करते हैं और ये नियोजन द्वारा ही सुलभ कराये जाते हैं। क्योंकि यदि नियोजन का कार्य शुरू कर दिया जाता है तो नियन्त्रण के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह निष्पादन की मॉनिटरिंग करे तथा विचलनों का पता लगाये तथा आश्वस्त हो कि जो भी कार्य किये जा रहे हैं वे नियोजन के अनुरूप ही हैं। यदि विचलन है तो उसकी सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नियोजन के बीच नियन्त्रण का कोई महत्त्व नहीं है। इसी प्रकार नियन्त्रण के बिना नियोजन को भी हम बिना आँखों वाला कह सकते हैं। यदि नियोजन नहीं किया जाता तो नियन्त्रण का कोई आधार ही नहीं है।

बिना नियोज़न के नियन्त्रण करना नितान्त मूर्खता ही है। बिना नियोजन इच्छित निष्पादन की कोई पूर्व निर्धारित उपयोगिता नहीं है। नियोजन कार्यक्रमों में समरूपता, संघटित करना तथा सुस्पष्टता की खोज होती है, जबकि नियन्त्रण में घटनाओं को नियोजन के अनुरूप घटित होने के लिए बाध्य किया जाता है। 

नियोजन मूलतः एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें सोचना, उच्चारण तथा खोज का विश्लेषण एवं लक्ष्यों की उपलब्धि के लिए उपयुक्त कार्यविधि निर्धारित करना सम्मिलित है। नियन्त्रण इस बात की जाँच करता है कि क्या निर्णयों को अपेक्षित परिणामों में परिणत किया गया है या नहीं। इस प्रकार नियोजन आदेशात्मक प्रक्रिया है, जबकि नियन्त्रण मूल्यांकन प्रक्रिया है। यह भी कहा जाता है कि नियोजन भविष्य में झाँकता है तो नियन्त्रण पीछे की क्रिया का अवलोकन करता है। इस प्रकार नियोजन में आगे (भविष्य) देखना सम्मिलित है और इसीलिए यह प्रबन्ध का दूरदर्शी कार्य कहलाता है। इसके विपरीत नियन्त्रण भूतपूर्व क्रियाओं की शव-परीक्षा (पोस्टमार्टम) है जो इस बात का पता लगाती है कि मानकों से कहाँ-कहाँ विचलन है। इस आधार पर नियन्त्रण पीछे देखने वाला कार्य है। यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि नियोजन का पथ-प्रदर्शन, नियन्त्रण, भूतकालीन अनुभवों तथा सुधारात्मक कार्यों द्वारा प्रेरित भविष्य के निष्पादन को अधिक सुधारपूर्ण बनाकर करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि नियोजन तथा नियन्त्रण दोनों ही पीछे की ओर देखने वाले तथा दोनों ही भविष्य की ओर देखने वाले हैं।

अतः स्पष्ट है कि नियोजन तथा नियन्त्रण दोनों ही परस्पर सम्बन्धित हैं । दोनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। नियोजन जिन तत्त्वों पर आधारित होता है ये ही नियन्त्रण को आसान तथा प्रभावी बनाते हैं। इसी तरह नियन्त्रण, नियोजन को पिछले अनुभवों की सूचनाएँ देकर भविष्य में सुधार लाता है। नियोजन प्रबन्ध प्रक्रिया का प्रथम कदम है जबकि नियन्त्रण अन्तिम। इसके अतिरिक्त नियन्त्रण प्रबन्धकों को उन क्षेत्रों की जानकारी भी प्रदान करता है जहाँ पर नियोजन की आवश्यकता है लेकिन अभी तक नियोजन नहीं किया गया है।

प्रश्न 5. 
एक कम्पनी ‘एम’ लिमिटेड घरेलू भारतीय बाजार के साथ-साथ निर्यात के लिए मोबाइल फोन का निर्माण करती है। कंपनी ने पर्याप्त बाजार हिस्सेदारी का आनंद लिया था और उसके पास वफादार ग्राहक आधार भी था। लेकिन हाल ही में यह कम्पनी समस्याओं का सामना कर रही है. क्योंकि बिक्री और ग्राहक संतुष्टि के संबंध में इसके लक्ष्य पूरे नहीं किए जा सके हैं। भारत में भी मोबाइल बाजार में काफी वृद्धि हुई है और नए खिलाड़ी बेहतर तकनीक और मूल्य निर्धारण के साथ आए हैं। इससे कम्पनी के लिए समस्याएँ पैदा हो रही हैं। कम्पनी अपनी नियंत्रण प्रणाली को संशोधित करने और समस्याओं का समाधान करने के लिए आवश्यक अन्य कदम उठाने की योजना बना रही है।
(i) कम्पनी को एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली से प्राप्त होने वाले लाभों की पहचान करें। 
(ii) यह सुनिश्चित करने के लिए कि कम्पनी की योजनाएँ वास्तव में कार्यान्वित की गई हैं और लक्ष्य प्राप्त किए गए हैं, कम्पनी कैसे कारोबार के इस क्षेत्र में नियंत्रण के साथ योजना को संबद्ध कर सकती है?
(iii) कंपनी को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनके निवारण के लिए कम्पनी द्वारा उठाए जा सकने वाले नियंत्रण प्रक्रिया के कदम बताएँ।
उत्तर:
1. एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली के लाभ-मोबाइल व्यवसाय की कम्पनी ‘एम’ लिमिटेड को व्यवसाय चलाने व बढ़ाने के लिए उत्तम नियन्त्रण प्रणाली से निम्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं-

  • नियन्त्रण के द्वारा संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाया जा सकता है। परिणामतः उसके सुधार का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • अच्छी नियन्त्रण प्रणाली द्वारा प्रबन्ध निर्धारित मानकों की वास्तविकता की जाँच कर सकता है। इससे वातावरण तथा संगठन में होने वाले परिवर्तन की सावधानी से जाँच-पड़ताल की जा सकती है।
  • अच्छी नियन्त्रण प्रणाली का उपयोग संस्था के संसाधनों की बर्बादी रोकने में सहायक है।
  • अच्छी नियन्त्रण प्रणाली कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने में सहायक है जो मोबाइल व्यवसाय के लिए अत्यन्त आवश्यक है।

2. नियोजन व नियन्त्रण में सम्बन्ध-नियोजन एवं नियन्त्रण में गहरा सम्बन्ध है। नियन्त्रण में जिन मानकों के आधार पर विचलनों का पता लगाया जाता है वे नियोजन नियन्त्रण के बिना तथा नियन्त्रण नियोजन के बिना आधारहीन हैं। नियोजन में मोबाइल व्यवसाय को सफल बनाने के बारे में सोचा जाता है तो नियन्त्रण उसको मूर्त रूप प्रदान करता है। वस्तुतः नियोजन भविष्य में झाँकता है तो नियन्त्रण पीछे न देखने की क्रिया है। नियोजन जिन तथ्यों पर आधारित होता है वे नियन्त्रण को आसान एवं प्रभावी बनाते हैं। नियन्त्रण, नियोजन को पिछले अनुभवों की सूचनाएँ देकर भविष्य में सुधार लाता है।

3. नियन्त्रण प्रक्रिया के चरण/कदम-‘एम’ मोबाइल कम्पनी नियन्त्रण की प्रक्रिया के निम्न चरणों को अपनाये जिससे कि कम्पनी अपनी वर्तमान समस्याओं से छुटकारा पा सकती है-

  • निष्पादन मानकों का निर्धारण-मोबाइल व्यवसाय में नियन्त्रण प्रक्रिया का आरम्भ निष्पादन मानकों का निर्धारण करने से होता है। मानक परिणामात्मक भी हो सकते हैं और गुणात्मक भी, किन्तु यदि परिणामात्मक मानक हैं तो तुलना आसानी से होती है। निष्पादन मानक लचीले होने चाहिए जिससे सुधारात्मक कार्यवाही हो सके। 
  • वास्तविक निष्पादन का माप-जब एक बार निष्पादन मानकों का निर्धारण कर लिया जाता है तो उसके पश्चात् वास्तविक निष्पादन का मापन किया जाता
  • वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना करना-नियन्त्रण प्रक्रिया के इस चरण में वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना करके विचलनों का पता लगाया जाता है।
  • विचलन विश्लेषण-यदि वास्तविक निष्पादन की मानकों से तुलना करने के पश्चात् विचलनों की जानकारी होती है तो विचलन के कारणों का पता लगाकर उसे दूर करने के उपाय ढूँढ़े जाने चाहिए।
  • सुधारात्मक कार्यवाही करना-यदि विचलन निर्धारित सीमा के अन्तर्गतः ही है तो किसी सुधारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता नहीं है किन्तु यदि विचलन काफी अधिक है तो सुधारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6. 
श्री शांतनु वस्त्र बनाने वाली एक प्रतिष्ठित कंपनी के मुख्य प्रबंधक हैं। उन्होंने उत्पादन प्रबंधक को बुलाया और निर्देश दिया कि वह अपने विभाग से संबंधित सभी गतिविधियों पर निरंतर जाँच करें ताकि सब कुछ निर्धारित योजना के अनुसार हो। उन्होंने उन्हें संगठन के सभी कर्मचारियों के प्रदर्शन पर नजर रखने का भी सुझाव दिया ताकि लक्ष्य प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक हासिल किए जा सकें।
(i) उपर्युक्त स्थिति में वर्णित नियंत्रण की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन करें।
(ii) नियंत्रण के चार महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
(i) नियंत्रण की विशेषताएँ-

  • लक्ष्य उन्मुख-नियंत्रण कार्य में प्रगति पर कड़ी निगरानी रखता है और लगातार संगठनात्मक लक्ष्यों की सिद्धि की दिशा में काम करता है। 
  • सतत् प्रक्रिया-नियंत्रण एक चालू प्रक्रिया है क्योंकि इसमें निर्धारित मानकों के विपरीत वर्तमान कार्यों और गतिविधियों की प्रगति का निरंतर मूल्यांकन और मूल्यांकन शामिल है। 

(ii) नियंत्रण के निम्न महत्त्व हैं-

  • संगठनात्मक लक्ष्यों की निष्पत्ति-नियंत्रण संगठन के लक्ष्यों की ओर प्रगति का मापन करके विचलनों का पता लगाता है। इस प्रकार यह संस्थान का मार्गदर्शन करता है तथा सदमार्ग पर चलाकर संगठनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है।
  • मानकों की यथार्थता को आँकना-एक अच्छी नियंत्रण प्रणाली द्वारा प्रबंध निर्धारित मानकों की यथार्थता तथा उद्देश्य पूर्णता को सत्यापित कर सकता है। यह परिवर्तनों के संदर्भ में उनके पुनरावलोकन तथा संशोधन में सहायता करता है।
  • कार्य में समन्वय की सुविधा-उचित नियंत्रण यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक विभाग अपनी संबंधित गतिविधियों और कार्यों से अवगत हो और एक दूसरे के साथ समन्वय स्थपित करे।
  • आदेश एवं अनुशासन की सुनिश्चितताकर्मचारियों को इस तथ्य के बारे में पता है कि उन्हें लगातार देखा जा रहा है। इस प्रकार, व्यवहार में बेईमानी और अक्षमता कम से कम हो जाती है।
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