Chapter 9 अहमपि विद्यालयं गमिष्यामि

पाठ-परिचय – ‘सभी पढ़ें और आगे बढ़ें’ इस भावना को स्वीकार करके तथा इसी भाव को प्रसारित करने के लिए प्रस्तुत पाठ की रचना की गई है। यह संवादात्मक पाठ है। जिसमें एक निर्धन परिवार की आठ वर्ष की बालिका को उसके शिक्षा के मौलिक अधिकार से वञ्चित करके धन कमाने के लिए दूसरे के घरों में काम करने के लिए भेज दिया जाता है, किन्तु गृहस्वामिनी मालिनी द्वारा उस बालिका की माता को समझाया जाता है और बताया जाता है कि आज सरकार द्वारा सभी बालक-बालिकाओं के लिए सरकारी विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा, पुस्तकें, वस्त्र व भोजन आदि की सुविधा दी जा रही है। इससे प्रेरित होकर वह निर्धन स्त्री अपनी पुत्री को विद्यालय में पढ़ने हेतु भेजने को कहती है, जिसे सुनकर वह बालिका प्रसन्नता व्यक्त करती हुई। कहती है कि “मैं विद्यालय जाऊँगी। मैं भी पढूंगी।”

पाठ का हिन्दी-अनुवाद :

1. मालिनी-(प्रतिवेशिनी प्रति) गिरिजे! ……………………………………………. सह वार्ता करिष्यामि। 
(अग्रिमदिने प्रातःकाले ………………………अष्टवर्षदेशीया बालिका तिष्ठति।) 

हिन्दी अनुवाद : 

मालिनी – (पड़ोसन से) हे गिरिजा ! मेरा पुत्र मामा के घर गया है। किसी दूसरी कामवाली किसी भी महिला को जानती हो तो (उसे) भिजवा दो। 
गिरिजा – हाँ सखि! आज सुबह ही मेरी सहायिका (काम करने वाली स्त्री) अपनी पुत्री के लिए काम के बारे में पूछ रही थी। कल सुबह ही उसके साथ बात करूंगी। (अगले दिन सुबह छ: बजे ही मालिनी के घर की घण्टी आने वाले किसी की सूचना देती है, मालिनी दरवाजा खोलती है और देखती है कि गिरिजा की सेविका दर्शना के साथ एक लगभग आठ साल की बालिका स्थित है।)

2. दर्शना-महोदये! भवती कार्यार्थं ……………………………………….. क्रीडनस्य च कालः। 

हिन्दी अनुवाद :

दर्शना – महोदया ! आप काम के लिए गिरिजा महोदया से पूछ रही थी, कृपया मेरी पुत्री के लिए (काम करने का) अवसर देकर आप अनुगृहीत कीजिए। मालिनी – किन्तु यह तो अल्प आयु वाली प्रतीत होती है। यह क्या काम करेगी? यह तो इसके अध्ययन का और खेलने का समय है।

3. दर्शना-एषा एकस्य गृहस्य संपूर्ण …………………………………………………. धनस्य व्यवस्था भवेत्। 

हिन्दी अनुवाद :

दर्शना – यह एक घर का सम्पूर्ण काम करती थी। वह परिवार इस समय विदेश चला गया है। काम के अभाव में मैं इसके लिए काम खोज रही थी जिससे आप जैसों का काम चल सके और हम जैसों का घर चलाने के लिए धन की व्यवस्था हो सके।।

4. मालिनी-परमेतत्तु सर्वथाऽनुचितम् ………………………………….. धनमानेष्यामि।। 

हिन्दी अनुवाद :

मालिनी – परन्तु यह तो सर्वथा अनुचित है। क्या (तुम) नहीं जानती हो कि शिक्षा तो सभी बालकों और सभी बालिकाओं का मौलिक अधिकार है। 
दर्शना – महोदया! हम जैसों के तो मौलिक अधिकार केवल अपना पेट भरना ही है। इसकी व्यवस्था के लिए ही मैं पूरे दिन में पाँच-छ: घरों का काम करती हैं। मेरा रोगी पति तो कछ भी काम नहीं। करता है। इसलिए मैं और मेरी पुत्री मिलकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। इस महँगाई के। समय में मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ही धन पर्याप्त नहीं होता है तो किस प्रकार विद्यालय का शुल्क, गणवेश, पुस्तक आदि को खरीदने के लिए धन लाऊँगी।

5. मालिनी-अहो! अज्ञानं भवत्याः …………………………………….. सर्वमेव प्राप्स्यन्ति। 

हिन्दी अनुवाद :

मालिनी – अहो! (यह) आपका अज्ञान है। क्या (तुम) नहीं जानती हो कि 2009 ई. वर्ष में सरकार के द्वारा सभी बालकों और सभी बालिकाओं के लिए शिक्षा के मौलिक अधिकार की घोषणा की गई है। जिसके अनुसार छ: वर्ष से लेकर चौदह वर्ष तक के सभी बालक-बालिकाएँ समीप के सरकारी विद्यालय में जाकर न केवल निःशुल्क शिक्षा ही प्राप्त करेंगे, अपितु निःशुल्क गणवेष (ड्रेस), पुस्तकें, पुस्तकों का थैला, जूते, दोपहर का भोजन, छात्रवृत्ति आदि सब कुछ प्राप्त करेंगे।

6. दर्शना-अप्येवम् (आश्चर्येण मालिनीं पश्यति।) …………………………………………… अहमपि पठिष्यामि!
(इत्युक्त्वा करतलवादनसहितं नृत्यति मालिनीं प्रति च कृतज्ञता ज्ञापयति।)

हिन्दी अनुवाद : 

दर्शना – क्या ऐसा है? (आश्चर्य से मालिनी को देखती है।) 
मालिनी – हाँ! वास्तव में ऐसा ही है। 
दर्शना – (कृतार्थता प्रकट करती हुई) हे महोदया! मैं अनुगृहीत हूँ, इस ज्ञान को कराने के लिए। मैं आज ही इसका प्रवेश समीप के विद्यालय में कराऊँगी। दर्शना की पुत्री-(उल्लास के साथ) मैं विद्यालय जाऊँगी! मैं भी पढूंगी। (ऐसा कहकर तालियाँ बजाते हुए नाचती है और मालिनी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।) 

पाठ के कठिन-शब्दार्थ : 

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