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पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में ‘क्रीडा स्पर्धा’ विषय पर आधारित बालकों के वार्तालाप के माध्यम से सर्वनाम शब्दों का प्रयोग बताया गया है। संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं। संज्ञा शब्द में जो विभक्ति, वचन तथा लिङ्ग होते हैं, सर्वनाम शब्दों में भी वही विभक्ति, वचन एवं लिङ्ग का प्रयोग होता है। इस पाठ में प्रथम पुरुष (एषः, एतौ, एते तथा अन्य संज्ञा व सर्वनाम पद), मध्यम पुरुष (त्वम्, युवां, यूयम्) एवं उत्तम पुरुष (अहम्, आवां, वयम्) का भी ज्ञान कराया गया है। 

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

  • स्पर्धाः = प्रतियोगिताएँ। 
  • यूयम् = तुम सब।
  • वयम् = हम सब। 
  • खेलिष्यामः = खेलेंगे। 
  • मिलित्वा = मिलकर। 
  • नियुद्धम् = जूडो। 
  • पादकन्दुकम् = फुटबाल। 
  • हस्तकन्दुकम् = वॉलीबाल। 
  • चतुरङ्गः = चेस। 
  • चलचित्रम् = सिनेमा। 
  • स्थास्यामि = रहूँगी/रहूँगा। 
  • द्रष्टुम् = देखने के लिए।
  • न्यायसङ्गतः = उचित। 
  • तादृशानि = वैसे। 
  • अन्यथासमर्थानि = भिन्न तरीके से योग्य (विकलांग)।

पाठ का हिन्दी-अनुवाद :

हुमा – यूयं कुत्र गच्छथ? …………………………………………….. सहभागिनी जूली अस्ति। 

हिन्दी-अनुवाद –

  • हुमा – तुम सब कहाँ जा रहे हो? 
  • इन्दर – हम सब विद्यालय (स्कूल) जा रहे हैं।
  • फेकन – वहाँ खेल-प्रतियोगिताएँ हैं। हम भी खेलेंगे। 
  • रामचरण – क्या प्रतियोगिताएँ केवल लड़कों के लिए ही हैं? 
  • प्रसन्ना – नहीं, लड़कियाँ भी खेलेंगी। 
  • रामचरण – क्या तुम सभी एक ही दल में हो? अथवा अलग-अलग दल में?
  • प्रसन्ना – वहाँ लड़कियाँ और लडके मिलकर खेलेंगे। 
  • फेकन – हाँ, बैडमिंटन के खेल में मेरी साथी जूली है।

2. प्रसन्ना-एतद् अतिरिक्तं कबड्डी ……………………………… स्पर्धायाम् प्रतिभागी नास्ति? 

हिन्दी-अनुवाद –

  • प्रसन्ना – इसके अलावा कबड्डी, जूडो, क्रिकेट, फुटबॉल, वॉलीबॉल, चैस (शतरंज) इत्यादि प्रतियोगिताएँ होंगी।
  • इन्दर – हे हुमा! क्या तुम नहीं खेल रही हो? तुम्हारी बहन तो मेरे पक्ष में खेलती है। 
  • हुमा – नहीं, मुझे सिनेमा (फिल्म) अच्छा लगता है। परन्तु मैं यहाँ दर्शक के रूप में रहूँगी। 
  • फेकन – अरे, पूरन कहाँ है? क्या वह किसी भी प्रतियोगिता में भाग नहीं ले रहा है?

3. रामचरण:-सः द्रष्टुं न शक्नोति ……………………………. व्यवस्था भविष्यति। 

हिन्दी-अनुवाद –

  • रामचरण – वह देख नहीं सकता। उसके लिए हमारे विद्यालय में पढ़ने के लिए तो विशेष प्रबन्ध है, किन्तु खेल के लिए प्रबन्ध नहीं है। 
  • हुमा – यह किसी प्रकार भी न्यायसंगत (उचित) नहीं है। पूरन योग्य है, किन्तु प्रबन्ध के अभाव के कारण खेल नहीं सकता। 
  • इन्दर – हमारे उस प्रकार के अनेक मित्र हैं। वास्तव में वे अन्य प्रकार से अयोग्य (विकलांग)
  • फेकन – इसलिए हम सभी प्राचार्यजी से मिलते हैं। उनसे कहते हैं। शीघ्र ही उनके लिए व्यवस्था हो जाएगी।
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