Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम् (पद्य-पीयूषम्)

Chapter 10 क्रियाकारक-कतूहलम्  (पद्य-पीयूषम्) परिचय-कोरक और क्रिया के सम्बन्ध से वाक्य का निर्माण होता है। अतः कारक और क्रिया-पदों के भली-भाँति ज्ञान से ही वाक्य का ज्ञान सम्भव है। वाक्य-रचना के समुचित ज्ञान से ही किसी भाषा को समझने एवं बोलने की शक्ति मिलती है। संस्कृत भाषा के लिए तो इस ज्ञान का होना और भी आवश्यक […]

Chapter 5 अन्योक्तिमौक्तिकानि (पद्य-पीयूषम्)

Chapter 5 अन्योक्तिमौक्तिकानि (पद्य-पीयूषम्) परिचय–प्रस्तुत को कुछ कहने के लिए जब किसी अप्रस्तुत को माध्यम बनाया जाता है, तब उसे अन्योक्ति कहते हैं। संस्कृत-साहित्य में इसे अप्रस्तुत-प्रशंसा अलंकार भी कहा जाता है। इस कथन में जिस पर बात सार्थक होती है उसे प्रस्तुत’ और जिस किसी पर बात रखकर कही जाती है, वह अप्रस्तुत कहलाता […]

Chapter 3 सुभाषितानि (पद्य-पीयूषम्)

Chapter 3 सुभाषितानि (पद्य-पीयूषम्) परिचय-‘सुभाषित’ का अर्थ होता है—सुन्दर वचन, सुन्दर बातें, सुन्दर उक्तियाँ। सुभाषितों से जीवन का निर्माण होता है और जीवन महान् बनता है। जीवन को सफल बनाने के लिए सुभाषित गुरु-मन्त्र के समान हैं। संस्कृत-साहित्य में सुभाषितों का अपरिमित भण्डार संचित है। इसमें ज्ञान के जीवनोपयोगी कथन होते हैं, जो जीवन में उचित […]

Chapter 16 अन्तरिक्ष-विज्ञानम् (गद्य – भारती)

Chapter 16 अन्तरिक्ष-विज्ञानम् (गद्य – भारती) पाठ-सारांश अन्तरिक्ष–प्रकृति के विधान में बहुवर्णी शाटिका को पहने पृथ्वी जिस प्रकार मानवों को नदी-नद-पर्वत-रत्नरूपमयी अपनी विशाल सम्पत्ति से मोह लेती है, उसी प्रकार विशाल, अनन्त, नि:सीम और ब्रह्मस्वरूपात्मक अन्तरिक्ष भी मानवों को आकृष्ट करता है। अनन्त आकाश में असंख्य नक्षत्र, पुच्छल तारे, नीहारिकाएँ, ग्रह, उपग्रह, सूर्य, चन्द्रमा, सप्तर्षि, 27 […]

Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती)

Chapter 15 पर्यावरणशुद्धि (गद्य – भारती) पाठ-सारांश पर्यावरण का स्वरूप-अन्य प्राणियों की भाँति मनुष्य ने भी प्रकृति की गोद में जन्म लिया है। प्रकृति के तत्त्व उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन्हीं प्राकृतिक तत्त्वों को पर्यावरण कहा जाता है। मिट्टी, जल, वायु, वनस्पति, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि जीवाणु पर्यावरण के अंग हैं।.विकास के […]

प्रथमः पाठः भारतीवसन्तगीतिः

प्रथमः पाठः भारतीवसन्तगीतिः (सरस्वती का वसन्त-गान) पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद (1) निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम् । मृदं गाय गीतिं. ललित-नीति-लीनाम्। मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-माला: वसन्ते लसन्तीह सरसा रसालाः कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम्॥1॥ निनादय…॥ अन्वय-अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। ललित-नीति-लीनां गीतिं मृदुं गाय। इह वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसाला: लसन्ति । ललित-कोकिला-काकलीनां कलापाः (विलसन्ति) । अये वाणि! नवीनां वीणां निनादय। कठिन-शब्दार्थ-अये वाणि! […]

द्वादशः पाठ वाड्मनःप्राणस्वरूपम्मी

द्वादशः पाठ वाड्मनःप्राणस्वरूपम्मी (वाणी, मन एवं प्राण का स्वरूप) पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या (1) श्वेतकेतः – भगवन! श्वेतकेतरहं वन्दे। आरुणिः – वत्स! चिरञ्जीव। श्वेतकेतुः – भगवन्! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि। आरुणिः – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति? श्वेतकेतुः – भगवन्! प्रष्टुमिच्छामि किमिदं मनः? आरुणिः – वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठः तन्मनः। श्वेतकेतुः – कश्च प्राणः? आरुणिः – पीतानाम अपां […]

अष्टमः पाठः लौहतुला (लोहे की तराजू)

अष्टमः पाठः लौहतुला (लोहे की तराजू) पाठ का सप्रसंग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या (1) आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयाद्देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः। तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः॥ तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं […]

षष्ठः पाठः भ्रान्तो बाल:

षष्ठः पाठः भ्रान्तो बाल: (भ्रमित बालक) पाठ के गद्यांशों का सप्रसङ्ग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या (1) भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। यतस्ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः। तन्द्रालुर्बालो लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन्नेकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश। स चिन्तयामास-विरमन्त्वेते वराकाः पुस्तकदासाः। अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि। ननु […]

पञ्चमः पाठः सूक्तिमौक्तिकम्

पञ्चमः पाठः सूक्तिमौक्तिकम् (सूक्तिरूपी मोती) (1) वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। कि अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः॥ -मनुस्मतिः अन्वयः-वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तं च एति च याति। वित्ततः (क्षीणः) तु अक्षीणः (किंतु), वृत्ततः क्षीणः हतः हतः। कठिन-शब्दार्थ- वृत्तम् = आचरण, चरित्र (चरित्रम्)। यत्नेन = प्रयत्नपूर्वक। संरक्षेद् = रक्षा करनी चाहिए। वित्तम् = धन, […]

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